Monday, September 23, 2024
मॉर्निंग फेस .... मुल्कराज आनन्द
गाँजा
Friday, September 20, 2024
बुद्धं शरणं गच्छामि
बुद्धं शरणं गच्छामि:-
https://youtu.be/a70LOiNf2ns
बुद्ध का विवाह : शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का सोलह वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ।वैराग्य भाव : बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोदन से कहा था कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा, लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे बुद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्याति समूचे संसार में अनंतकाल तक कायम रहेगी।
राजा शुद्धोदन सिद्धार्थ को चक्रवर्ती सम्राट बनते देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने सिद्धार्थ के आस-पास भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया ताकि किसी भी प्रकार से वैराग्य उत्पन्न न हो। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहाँ पर नाच-गाना और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उनकी सेवा में रख दिए गए, लेकिन...एक दिन वसंत ऋतु में सिद्धार्थ बगीचे की सैर करने निकले। रास्ते में सांसारिक दुःख देखकर विचलन हुआ और सब कुछ बदल गया।
सुजाता ने इसे अपना भाग्य समझा और सोचा कि वटदेवता साक्षात हैं तो सुजाता ने बड़े ही आदर-सत्कार के साथ सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा 'जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई है यदि तुम भी किसी मनोकामना से यहाँ बैठे हो तो तुम्हारी मनोकामना भी पूर्ण होगी।'
बोधीवृक्ष : उसी रात को ध्यान लगाते समय सिद्धार्थ को सच्चा बोध हुआ। वहीं उन्हें बुद्धत्व उपलब्ध हुआ। भारत के बिहार में बोधगया में आज भी वह वटवृक्ष विद्यमान है जिसे अब बोधीवृक्ष कहा जाता है।
धर्मचक्र प्रवर्तन : बोधी प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाने लगे। ज्ञान उपलब्ध होने के बाद वे सारनाथ पहुँचे। वहीं पर उन्होंने लोगों को मध्यम मार्ग अपनाने के लिए कहा।
दुःख के कारण बताए और दुःख से छुटकारा पाने के लिए आष्टांगिक मार्ग बताया। तरह-तरह के देवता, यज्ञ, पशुबलि और व्यर्थ के पूजा-पाठ की निंदा की। अहिंसा पर जोर दिया।
80 वर्ष की उम्र तक गौतम बुद्ध ने जीवन और धर्म के प्रत्येक पहलू पर प्रवचन दिए और लोगों को दीक्षा देकर बुद्ध शिक्षा के लिए प्रचार पर भेजा। सुद्धोधन और राहुल ने भी उनसे दीक्षा ली।बुद्ध दर्शन के मुख्य तत्व : चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएँ, अनात्मवाद और निर्वाण। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं।
बुद्ध के गुरु : गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त आदि।
बुद्ध के प्रमुख दस शिष्य : आनंद, अनिरुद्ध (अनुरुद्धा), महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, और उपाली (नाई) आदि।
धर्म के प्रमुख प्रचारक : अँगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक, ह्वेन त्सांग, फा श्येन, ई जिंग, हे चो आदि।
प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु :
भरतीय : विमल मित्र, बोधिसत्व, वैंदा (स्त्री), उपगुप्त (अशोक के गुरु), वज्रबोधि, अश्वघोष, नागार्जुन, चंद्रकीर्ति, मैत्रेयनाथ, आर्य असंग, वसुबंधु, स्थिरमति, दिग्नाग, धर्मकीर्ति, शांतरक्षित, कमलशील, सौत्रांत्रिक, आम्रपाली, संघमित्रा आदि।
विदेशी : चीनी भिक्षु व्हेन सांग (ह्वेन त्सांग), फा श्येन, ई जिंग, कोरियायी भिक्षु हे चो आदि।
महापरिनिर्वाण : वैशाखी पूर्णिमा के दिन (जन्म और बोधी प्राप्ति वाले दिन ही) ईसा से 483 वर्ष पहले भगवान बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। अर्थात देह छोड़ दी। देह छोड़ने के पूर्व उनके अंतिम वचन थे 'अप्प दिपो भव:...सम्मासती। अपने दीये खुद बनो...स्मरण करो कि तुम भी एक बुद्ध हो।
बुद्ध ने जीवन के प्रत्येक विषय और धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो कुछ भी कहा वह त्रिपिटक में संकलित है। त्रिपिटक अर्थात तीन पिटक- विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक। सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के एक अंश धम्मपद को पढ़ने का ज्यादा प्रचलन है। इसके अलावा बौद्ध जातक कथाएँ विश्व प्रसिद्ध हैं।
संघं शरणं गच्छामि :-
बुद्ध के धर्म प्रचार से उनके भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी तो भिक्षुओं के आग्रह पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई। बौद्ध संघ में बुद्ध ने स्त्रियों को भी लेने की अनुमति दे दी। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में संघ के दो हिस्से हो गए। हीनयान और महायान।
सम्राट अशोक ने 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन कराया था। उसके बाद भी भरपूर प्रयास किए गए सभी भिक्षुओं को एक ही तरह के बौद्ध संघ के अंतर्गत रखे जाने के किंतु देश और काल के अनुसार इनमें बदलाव आता रहा जो आज तक जारी है.....
सत्यमित्र
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एम॰ एन॰ श्रीनिवास
मैसूर नरसिंहाचार श्रीनिवास (1916-1999)
एम. एन. श्रीनिवास -यह भारतीय समाजशास्त्र एक महत्वपूर्ण नाम हैं। समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास का पूरा नाम मैसूर नरसिंहाचार श्रीनिवास हैं। उनका जन्म ६ नवंबर, १९१६ में मैसूर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
भारतीय गांव ,भारत में सामाजिक परिवर्तन संस्कृतिकरण, प्रभु जाति इनके प्रिय विषय थे। उन्होने दक्षिण भारत में 'प्रबल जाति' (Dominant Caste) की अवधारण प्रस्तुत की। जाति की अवधारणा संख्या बल, भू-स्वामित्व, शिक्षा और नौकरी जैसे कारकों के कारण किसी जाति के गाँव या क्षेत्र विशेष में दबदबे को जाहिर करती है।जिसका आज भी भारतीय राजनीति के विश्लेषण में इसका प्रयोग किया जाता है।अपने शोध अध्ययन के लिए श्रीनिवास ने जिस रामपुरा गाँव को चुना था ।श्रीनिवास का जाति-अध्ययन एक गाँव की स्थानीय संरचना पर केंद्रित था लेकिन वह इस परिघटना की अखिल भारतीय व्याप्ति को लेकर भी सचेत थे। जिसके कारण इनकी विश्वव्यापी समाजशास्त्रीय के रूप में इनकी पहचान बनी।
शिक्षा-दिक्षा
एम. एन. श्रीनिवास ने मुंबई विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट पदवी हासिल येे भारतीय समाजशास्त्र के पितामह जी. एस. घूरे के शिष्य रहे ।
रिलीजन् ऍन्ड् सोसाय्टी अमंग् द कूर्ग्स् ऑफ़् साउथ् इन्डिया" (१९५२ में प्रकाशित)। यह पुस्तक कर्नाटक के कोडावा समुदाय का नृतत्त्वशास्त्रीय अध्ययन थी। यही इनका शोध प्रबंध था।ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वे अपने प्रोफेसर रॅडक्लिफ ब्राउन से बहुत प्रभावित हुए।
...
भारत मेें समाज शास्त्र विषय मे योगदान
श्रीनिवास कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयो में अध्यापक रह चुके है, जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय; इंस्टीट्यट फॉर सोशियल एंड इकोनोमिक चेंज, बंगलौर; नैशनल इंस्टीट्युट ऑफ अडवान्स्ड स्टडिज़, बंगलौर; महाराज सयाजीराउ बड़ोदरा विश्वविद्यालय और जे. आर्. डी. टाटा इंस्टीट्युट।
श्रीनिवास ने एम. एस. बी. विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के विभाग की स्थपना करने लिये
में अपना योगदान दिया यहाँ तक कि उन्होने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की पदवी को भी ठुकरा दिया था। बादमें, उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय में भी समाजशास्त्र के विभाग की स्थापना में सहायता की तथा जीवन भर अध्यापन के क्षेत्र में रहे।
श्रीनिवास संस्थाओं के निर्माता भी थे। बड़ौदा और दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के विभागों की स्थापना का श्रेय उन्हीं को जाता है। शोध और अध्ययन के उच्चस्तरीय संस्थानों की स्थापना और दिशा-निर्देशन के लिहाज़ से भी भारतीय समाजशास्त्र के विकास में उनका योगदान कालजयी माना जाएगा।
लेखन/रचना
एम. एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज और संस्कृति के कई पहलूओ पर अपनी कलम चलाई है। वे खसकर धर्म, गाँव, जाति प्रथा और सामाजिक परिवर्तन की विषयवस्तुओ पर लिखी पुस्तको के लिये विख्यात है।
श्रीनिवास की कुछ उतकृष्ट पुस्तके निम्नलिखित है-
पुस्तके
- मैरिज एंड फैमिली इन मैसूर (१९४२)
- रिलिजन एंड सोसाइटी अमंग द कूरगस ऑफ़ साउथ इंडिया (१९५२)
- कास्ट्स इन मॉडर्न इंडिया एंड अदर एसेज (१९६२), एशिया पब्लिशिंग हाउस
- द रेमेम्बेरेड विलेज (१९७६, पुनः प्रकाशित २०१३)
- इंडियन सोसाइटी थ्रू पर्सनल राइटिंग्स (१९९८)
- विलेज, कास्ट, जेन्डर एंड मेथ्ड़ (१९९८)
- सोशल चेंज इन मॉडर्न इंडिया
- द डोमिनेंट कास्ट एंड अदर एसेज
- डाइमेंशन्स ऑफ़ सोशल चेंज इन इंडिया
•भारत के ग्राम (India’s Villages),१९५२
•भावी भारत में जाति प्रथा, १९५९
आधुनिक भारत में जाति और अन्य निबंध (Caste in Modern India and other essays),१९६२
•दक्षिण भारत के कूर्ग में धर्म और समाज (Religion and Society among the Coorgs of South India), १९६५
•आधुनिक भारत मे सामाजिक परिवर्तन (Social Change in Modern India), १९७२
•यादों से रचा गाँव (Remembered Village), १९७६
•भारत: सामाजिक संरचना (India: Social Structure), १९८०
•प्रभावी जाति और अन्य निबंध (The Dominant Caste and other essays), १९८७
•संस्कृतीकरण की संसज्जित भूमिका (The Cohesive Role of Sanskritization), १९८९
•ग्राम, जाति, लिंग और विधि (Village, Caste, Gender and Method), १९९६
इन रचनाओ के अलावा, श्रीनिवास ने दर्ज़नो और रचनाए की है।
श्रीनिवास के अनुसंधान के मुद्दे....
•सामाजिक परिवर्तन- सामाजिक पतिवर्तन एक एसा मुद्द है जिसपर अनेकानेक समाजशास्त्री जाँच और अनुसंधान करते आ रहे है। एम एन श्रीनिवास ने निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों ख़ास तौर पर ब्राह्मण वर्ग की संस्कृति, रीति-रिवाज़ों, भाषा और वेशभूषा आदि को अपनाने की प्रवृत्ति को ज्ञापित करती हैं। जिसको इन्होंने संस्कृतिकरण का नाम दिया यह इसी संस्कृतिकरण की अवधारणा से बहुुुत ख्याति प्राप्त किए थे।इनकी पाश्चातिकरण और धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रियाओ के आधार पर गाँवों में सामाजिक परिवर्तन के स्वरूप और प्रकृति को बताया है।संस्कृतिकरण, पाश्चातिकरण, प्रभावी जाति, अंतर-जातिय एवं जाति की आंतरिक एकजुटता जैसे ससंप्रत्ययो काअ प्रयोग कर के श्रीनिवास ने जाति की व्यवस्था की परिवर्तनशीलता पर प्रकाश डाला है।
•धर्म और समाज- एम. एन. श्रीनिवास ने दक्षिण भारत के कूर्ग में धर्म और समाज पर अनुसंधान किया था। उनके जाँच के आधार पर उन्होने भारतीय परंपराओ और जाति-व्यवस्थाकी विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की।
उन्कोने हिन्दु संस्कृति, रहन- सहन और सामजिक व्यवस्था के विषयों पर भी चर्चा की। उनके अनुसार भारतीय परंपरा वास्तव में हिन्दु परंपरा है; और हिन्दु परंपरा की जड जाति व्यवस्था है।
•ग्राम एम एन श्रीनिवास के अनुसार गाँव ही भारत का प्रतिनिधी है। श्रीनिवास का यह मानना है कि गाँवो की जाति-व्यवस्था, धर्म , समाज, परिवर्तन और विकास के अध्ययन से हम भारतीय समाज को समझ सकते है।
•जाति व्यवस्था- भारत में जाति एक एसी व्यवस्था है जो केवल धर्म तक ही सीमित नहि है, उसका प्रभाव व्यापार-व्यवसाय, राजनीति और शिक्षा जैसी अन्य व्यवस्थाओ पर भी गहरा प्रभाव है।
जाति व्यवस्था 'पवित्र' और 'अपवित्र' के बनावटी धारणा पर टिकी हुई है, जिसको धर्म से बढावा मिला है। किसी जाति के आचरण, रीति-रिवाज़ और मूल्यो के आधार पर उस जाति ई श्रेणी तय की जाती है।
एम एन श्रीनिवास का यह मानना है की निचली वर्ग की जातियाँ अपनी श्रेणी सुधारने के लिये "उच्च" वर्ग की जातियों के आचरण और रीति-रिवाज़ो का अनुकरण करती है; इस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण कहते है।
कहते हैं संस्कृतीकरण केवल नयी प्रथाओं और आदतों का अंगीकार करना ही नहीं है, बल्कि संस्कृत वाङ्मय में विद्यमान नये विचारों और मूल्यों के साथ साक्षात्कार करना भी इसमें आ जाता है।1
वे कहते हैं कि कर्म, धर्म, पाप, माया, संसार, मोक्ष आदि ऐसे संस्कृत साहित्य में उपस्थित विचार हैं जो कि संस्कृतीकृत लोगों के बोलचाल में आम हो जाते हैं।
क्रिया-विधि
एम एन श्रीनिवास ने पाश्चातिय दृष्तिकोण को छोड भारतीय दृष्तिकोण को ध्यान में रखकर अपने जाँच-परिणामो को प्रस्तुत किया था। अर्थातश्रीनिवास ने किताबी दृष्तिकोण को नकार कर उन्होने क्षेत्र-जाँच की परियोजना को अपनाया। उनकी रचनाए कूर्ग और रामपुर जैसी जगहो पर किए उनके व्यापक जाँच पर आधारित है। उन्होने प्रत्यक्ष अवलोकन (direct observation) को समाज के अध्ययन का सर्वश्रेष्ठ माध्यम माना।
उनकी क्रिया-विधि और अवलोकन को कई समाजशास्त्रियो अपनाया और आगे बढाया है। उनकी रचना "यादों से रचा गांव, १९७६" उनकी क्रिया-विधि का एक श्रेष्ठ उदाहरण है; क्यो कि यह रचना एक गाँव में बिताए ग्यारह महीनो के उनके अनुभव पर आधारित है।
सम्मान
एम.एन. श्रीनिवास
एम.एन. श्रीनिवास इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकॉनॉमिक चेंज बंगलोर की समाजशास्त्र इकाई के सीनियर फैलो और प्रमुख थे। वे ऑक्स फोर्ड विश्वविद्यालय में (1948-51) भारतीय समाजशास्त्र के व्याख्याता, एम.एस. विश्वविद्यालय, बड़ौदा में (1952-59) और दिल्ली विश्वविद्यालय में (1952-72) समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे।
1953-54 में वह मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के साइमन सीनियर रिसर्च फैलो और 1956-57 में ब्रिटेन और अमेरिका में रॉक फैलर फैलो रहे। वे पहले भारतीय हैं जिन्हें रॉयल एन्थ्रॉपॉलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ ग्रेेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड की मानद फैलोशिप मिली। इसके अलावा, 1963 में लेखक कुछ समय के लिए बर्कले, कैलिफोॢनया में टैगोर लैक्चरर और डिपार्टमेंट ऑफ सोशल एन्थ्रॉपॉलॉजी एंड सोशियोलॉजी के साइमन विजि़टिंग प्रोफेसर रहे।
पुरस्कार
: रॉयल एन्थ्रॉपॉलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड का रिवर्स मेमोरियल मेडल (1955), भारतीय नृतत्त्वशास्त्र में योगदान के लिए शरतचन्द्र रॉय मेमोरियल गोल्ड मेडल (1958) और जी.एस. धुर्वे अवार्ड (1978)। शिकागो, नाइस और मैसूर विश्वविद्यालयों की मानद उपाधियाँ प्राप्त हुई हैं।
मृत्यु
एम एन श्रीनिवास का देहांत 30 नवम्बर, 1999
१९९९ में बंगलौर हुआ था।
आलोचना
एम एन श्रिनिवास के काय की कुछ विद्वानों ने आलोचना भी की है जैसे...
•संस्कृतिकरण को बढावा देने के कारण एम एन श्रीनिवास ने धार्मिक अपवर्गो को और भी उपेक्षित कर दिया है।
•श्रीनिवास के लिये भारतीय परंपरा हिन्दु परंपरा है जो जाति व्यवस्था और ग्रामो मे दिखाई देती है। इस दावे में धर्म-निश्पक्षता नहि दिखाई देती है।
•श्रीनिवास का सामाजिक परिवर्तन का विवरण केवल संस्कृतिकरण, पाश्चातिकरण और धर्मनिरपेक्षीकरण तक ही सीमित है, जो बाकी देशो और समाजो में समान रूप से उपयुक्त या लागु नही है।
•श्रीनिवास के पहले भी कैइ समाजशास्त्री संस्कृतिकरण, पाश्चातिकरण और धर्मनिरपेक्षीकरण जैजी संप्रत्ययो की चर्चा कर चुके है, अतः इन संप्रत्ययो में श्रीनिवास की मौलिकता नहि झलकती।
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मेरी बात...
इन सब आलोचनाओं के बावजूद एम एन श्रीनिवास की भारतीय समाजशास्त्र में एक महत्वपूर्ण जगह है। उनकी रचनाओं के अध्ययन के बिना भारतीय समाजशास्त्र का अभ्यास अधूरा है। उनके अनुसंधान और पुस्तकों ने कैइ अन्य समाजशास्त्रियों को प्रेरित किया है। भारतीय समाज और संस्कृति को समझने के लिये एम एन श्री निवास द्वारा रचित पुस्तको और उनके अनुसंधान का अभ्यास करना अनिवार्य है।
2
एक समाजशास्त्री के तौर पर श्रीनिवास ने भारतीय ग्राम और जाति की संरचना को औपनिवेशिक धारणाओं के सैद्धांतिक वर्चस्व से भी मुक्त कराया है।
श्रीनिवास जब ग्रामीण समुदाय की संकल्पना और गाँवों की आर्थिक-सांस्कृतिक अंतर-निर्भरता की बात करते हैं तो वे अव्यक्त ढंग से अखिल भारतीय सभ्यता की बात भी करते हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
Srinivas, M.N. (1952) Religion and Society Amongst the Coorgs of South India Clarendon Press, Oxford, page 32,
1-Srinivas, Mysore Narasimhachar (1962) Caste in Modern India: And other essays Asia Publishing House, Bombay, page 48,
Friday, March 1, 2024
एक शिखर व्यक्तित्व -ः महाराज कर्ण सिंह
एक शिखर व्यक्तित्व -ः महाराज कर्ण सिंह
भारत की परंपरा, संस्कृति तथा स्वाधीन चेतना को आधी शताब्दी तक अपने सतत जागरूक व्यक्त्वि एवं रचनात्मक सोच से जिस महानुभावों ने उत्प्रेरित और विकसित किया है, ऐसे लोगो के नाम उंगलियों पर गिने जा सकते हैंै। आदमी का ऊॅचा होना, अपने व्यक्त्वि को चमकाकर, मांजकर एवरेस्ट बना देना एक बड़ी बात है, पर अपने समकालीन समाज की सोच को, चिंतन के स्तर को पूरी काॅम की अस्मिता को झकझोर कर एक बालिस्त भर उठा देना सम्भवतः उससे भी बड़ी बात है।
महान रघुवंशियों की उत्तरवर्ती शाखा जिसने साकेत से अलवर, भटिण्डा से रोहतक और उससे भी आगे बढकर जम्मू कश्मीर में अपना प्रभुत्व व प्रभाव विस्तरित किया था के यशस्वी वरद पुत्र हैं, महाराज कर्ण सिंह। महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य में विशेषणों की एक लम्बी श्रृंखला जोड़कर रघुवंश का वर्णन प्रारम्भ किया है-
सोेहम आजन्म शुद्वानाम, आॅलोदम वर्मणाम
आसमुद्र शितीषानाम अनाकरथ र्बत्मनाम।
यथाविधि हुताग्निनाम, यथा कामार्चितार्थीनाम
यथापराध दण्डानाम यथाकाल प्रबोधिनाम
त्यागाय संवृतार्थानाम सत्यायमित भाषिणाम
यशसे विजयीषुणाम, पूजाायै गृहमेदिनाम
जन्म से ही शुद्व, फलोत्पत्ति तक कार्यरत रहने वाले , विधि पूर्वक यज्ञाहुति करने त्याग के लिए अर्थ संग्रह करने वाले, समय से जगने वाले, सत्य बोलने के लिए कम बोलने वाले आदि अनेक गुणों के मूर्तिमान रूप में अवतीर्ण हुए युवराज कर्ण सिंह उमके थी यशोगाथा प्राचीन रघुवंशियों के अनरूप व अनुवर्तिनी ही रही है।
जम्मू कश्मीर के राजा हरी सिंह और राजमहिषी श्रीमती तारा देवी का यह --और यशस्वी पुत्र भारत आर्य व्यक्तित्व और सनातन धर्म- कर्म का साक्षात विग्रह प्रतिमा है। महाराजा कर्ण सिंह कर्मवीर, दानवीर, दयावीर तथा धर्मवीरत्व के आधुनिक प्रतिमान है। वे सांस्कृतिक, चेतना के संवाहक, अतीत के अध्येता तथा भारत के भावी आलोक के उदगाता रहे हैं।युग के साथ संचरण काटे हुए भी वे कालातीत परम पुरूष की ज्ञान ज्योति के सम्यक प्रस्तोता हैं, वे सबके हैं, पूरे आर्यवर्त, पूरी दुनियाॅ, पूरे ब्रम्हाण्ड के हैं, इसीलिए वे इतिहास के नहीं भाव संसार के व्यक्ति हैं।
नेपाल की राजकन्या यशोराज लक्ष्मी का यह पति यशस्वी पुत्रों का पिता तथा सच्चा भारतीय है। 1949 में अठारह वर्ष की ही अवस्था में वे जम्मू कश्मीर के रेजिडेन्ट बनाये गये। विख्यात दून स्कूल से सीनियर कैम्ब्रिज की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर उन्होने जम्मू कश्मीर वि0वि0 से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।दिल्ली वि0वि0 से राजनीतिशास्त्र में 1957 में प्रथम श्रेणी प्रथम स्थान प्राप्त कर उन्होंने एम0ए की डिग्री हासिल की तथा वहीं से महर्षि अरविन्द के राजनीतिक विचार विषय पर डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।अदभुत प्रतिभा और विलक्षण मेधा सम्पन्न उनका अप्रतिम योग रहा है। बनारस हिन्दू वि0वि0 के अरविन्द शोध पीठ के चेयरमैन प्रोफेसर रहे। वे जम्मू कश्मीर वि0वि0 और का हि0वि0वि0के महाकुलाधिपति रहे हैं, वे जम्मू कश्मीर के सदर-ए- रियासत, गर्वनर भी रहे हैं। उन्होने सर्वप्रथम स्वेच्छा से ही प्रिवीपर्स का त्याग किया था, वर्ष 1967 में वे स्व0 श्रीमती इंदिरा गांधी के मंत्रीमंडल में 36 वर्ष की सबसे कम उम्र के माननीय मंत्री पर्यटन भारत सरकार बनाये गये। वर्ष 1973 में उन्हें स्वास्थय एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का दायित्व सौंपा गया और वे उधमपुर लोकसभा क्षेत्र से विशाल बहुमत से विजयी सदस्य के रूप में अभिनंदित किए गये । उन्होंने 1971,1977, तथा 1980 में अपनी विशेष विजयों का कीर्तिमान कायम किया पर एक सुखद आश्चर्य ही है कि उन्होने गरीब देश से वेतन के रूपये में न कोई धनराशि ली और न सरकारी बंगले में काबिज हुए। बाद में कांग्रेसी मंत्रियों ने जो लूट खसोट और घोटालों किये हैं, उन्हें देख सुनकर उनकी आत्मा पीडा़ से, घृणा से तिलमिलाती रही है, पर वे निर्विकल्प तथा निर्लेप चरित्र के धनी ही बने अपनी सम्पूर्ण चल अचल सम्पत्ति को हरी-तारा ट्रस्ट को समर्पित कर अपना अदभुत राजमहल उन्होने पर्वतीय स्थापत्य, कला और पुस्तकालय तथा संग्रहालय में रूपान्तरित कर दिया । देश का रूपातंरण का वह सपना जो उन्हें राम की रक्त शुद्वता, समरसता लोक से दास में मिली थी ।
वह ऊर्जा, वह दर्शन जिसे उन्होंने महर्षि अरविंद से आत्म साथ किया था, उसका सम्यक उपयोग भारत की परवर्ती पीढी़ नहीं कर पायी।इस अप्रतिम व्यक्तित्व का वह मूल्य,वहमान, उपभोक्ता पीढी़ तथा उन्मुक्त व्यापार वाली स्वार्थी राजनीति ने समझा ही नहीं, जिसके समझ लेने मात्र भर से देश की दिशा और दशा बदल सकती थी । आज मनुवादी व्यवस्था, ब्राम्हाणवादी कर्मकाण्डी व्यवस्था की लानत मलामत हो रही है और पण्डित सुखराम , कैप्टन सतीश शर्मा, नरसिंह राव, हर्ष मेहता, चन्द्रास्वामी के घोटालों का पर्दाफाश हो रहे है तो बार-बार उन लोगों पर नजर जाती हैं। जिन्होनें समय≤ पर समाज को जागरूक बनाने तथा ढोंग लूट एवं धनसंचयी बुद्वि को चुनौती दिया है। पता नहीं क्यों लगता है, कि जनक, विश्वामित्र, चार्वक, वाल्मिकी केवल ऐलुष, एकलव्य,कर्ण, युधिष्ठिर, गौतम, महावीर, कबीर, गांधी, आचार्य नर देव सिंह, लोहिया, लाल बहादुर, कर्ण सिंह, बी0पी0 सिंह, ही संस्कृति के देश पुरूष के रूप में मान्य रहेगें। स्ववार्थी और पाखण्डी, सुख की भौतिक ऐसाग में मशगूल सारे सत्तालोलूप चमत्कारिक पुरूषों के नाम-निशान काल के प्रवाह में बह जायेगें ।
डाॅ0 कर्ण सिंह को देश विदेश में बेहद प्यार और सम्मान मिला, का0टी0वि0वि0अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय तथा ओशोक विश्वविद्यालय टोकेयो से डाक्टेरेट की मानक उपाधियाॅ मिली। वे रोम के सर्वाधिक सम्मानित क्लब के आजीवन सदस्य बनाये गये, उन्होंने दर्शन, राजनीति, स्थापत्य, नृत्य, संगीत ,हिन्दी, अंग्रेजी, के अप्रतिम अध्येता तथा विद्वान वक्ता के रूप में समादृत है।निबन्ध, यात्रवृतांत और गंम्भीर प्रकृति की कविताओं की संरचना में उन्हें महारत हासिल हैं।
भारत के अमेरिका राजदूत, सांस्कृतिक समितियोें के संयोजक सदस्य के रूप में उन्होंनेें न केवल अमेरिका वरन विश्व के तमाम देशों में भारत का सम्मान बढाया है। सर राधाकृष्णन के पश्चात वे एक मात्र ऐसे भारतीय हैं, जिनकी चितंन शक्ति, वाणी वैदग्ध और धारा प्रवाह वक्हता से विश्व के गणमान्य बौद्विक चमत्कृत होते रहे हैं। उनकी भौतिक उपलब्धि है, उनकी पुत्री ज्योत्सा, पुत्र विक्रम तथा अजातशत्रु ।
उनकी इन तीन संततियों के नाम ही उनका सबसे सटीक परिचय है, वक सरल, सहज ,शालीन, मृदुभाषी, विजयी, विनयी, और अजातशत्रु के प्रतिमान के रूप में जाने जाते हैं। वे प्राकृत संगीत छाया और प्रकाश वेलकम दि मूनराइज जैसी उत्कृष्ट काव्य कृतियों के सृजक हैं।भारतीय राष्ट्रीयता के देवदूत उनकी अप्रतिम गद्य संरचना है, समकालीन निबन्ध उनके व्यक्ति व्यंजक तथा विश्लेषणात्मक निबंधों का संग्रह धर्म के पास तथा हिन्दुत्व के संबंध में उनकी सांस्कृतिक सोच के संवाहक हैं।उन्होंने जीवनवृत, यात्रावृत, संस्मरण आदि भी लिखे हैं, पर सबसे बड़ी बात है, उनकी स्वतः स्फूर्त वाग्मिता जो उन्होंने मुख्य -अतिथि , अध्यक्ष पदों से बोलते हुए अनेक स्थलों, स्थानों पर अभिव्यक्त किया हैउनके चितंन उनकी मनीषा, उनकी अध्यवसायिता उनकी वाजी से फूलों के मानिन्द भरी है।जिसका पान स्रोता समूह अपलक, अनिमेष करता रहता है, इस विशाल भारत भूमि पर वे आर्य चिंतन के आर्य वाणी के आदर्श चरित्र एवं उदान्त जीवन मूल्यों के अन्वेषी और संस्थापक है। वे भारत की सनातन प्रतिमा को समादृत करने का संकल्प साधने वाले राजर्षि मनीषी हैंवे राष्ट्रीय अस्मिता तथा सांस्कृतिक अस्तीत्व के सजीव स्मारक हैं, वे है इसी से हम गौरवान्वित है।वे रहें इसी से संतुष्ट हैं, वे सक्रिय और सचेत रहें, तो हमारी सहज चेतना संतोष का लाभ पाती रहेगी हम उनकी तेजस्वी संचेतना को सौ वर्षो तक शुभ्र ज्योत्रना सस्वर भास्वरता के रूप में देखने के आकांक्षी है।हम चाहते हैं - तमाम जिल्रों पर लिखने दो करन ढाई आखर जरा सी जिंदगी बेहतर किताब क्या देखें।
न्यौछावर उस पर सिंगार
वह परम पूर्ण पूरन परमेश्वर
अजर अमर वह निराकार
वह गुणातीत गुनसागर वह
सच्चिदानन्द वह निर्विकार ।
योगेश्वर, ज्ञानी र्निविकल्प
उत्तम गृहस्थ शोभा अपार
वह निर्मोही निर्वाण परम
वह मूर्तिमान वह सदाचार ।
वह पूर्णरसिक, करूणा सागर
वह ज्ञान कर्म वह गुणगार ।
वह भाव पुरूष, वह योगीराज,
वह धर्मतत्व सर्जन संहार ।
वह गायक, वादक नर्तक वह
माधुर्य-मंत्र का महोच्यार ।
वह परम प्रकृति, वह प्रथम पुरूष
वह दिव्य देह पूर्णवितार।
वह कूटनीति मर्मज्ञ परम रसिया,
स्वतंत्र उत्तम विचार।
वह ज्ञान गीत गीता गायक
वह सरवा सहज सुन्दर दुलार
प्रणयी वह शोषण, सजीला वह
अवछावर उस पर रस सिंगार ।
Wednesday, November 22, 2023
A1000
01
Research Proposal Format
Chief Minister Higher Education Research Encouragement Scheme 2023-24 (Department of Higher Education, Govt. of Uttarakhand)
1: Broad area of Subject: Sociology
2: Specialization:Rural Sociology
3: Project Title:
जागरूकता के संदर्भ में थारू जनजाति के महाविद्यालयी छात्र /छात्राओं का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
(ऊधम सिंह जनपद के विशेष सन्दर्भ में)
4: Name, Post and Address of Principal Investigator:Dr.Satya mitra Singh Assistant Professor Sociology Government PG College Sitarganj
5: Name, Post and Address of Co-Investigator:
6: Name of the institution where a project is being executed/likely to be executed:
Government P.G College Sitarganj Uttarakhand
7: Introduction (Origin of Proposal):
थारू जनजाति
उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र की सर्वाधिक आबादी वाली जनजाति थारू है ।थारू जनजाति ऊधमसिंह नगर के खटीमा, किच्छा, नानकमता व सितारगंज के 144 गांवो में 90% निवास करते है।ऊधम सिंह नगर क्षेत्र के अंतर्गत आता है थारू जनजाति इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश बिहार और नेपाल में प्रमुखता से पाई जाती हैं यह आदिम जातियां स्थानीय कृषि और पशुपालन होते हैं।
8. Review of research and development in the proposed area: (National and International status, Importance, patents)
अध्ययन क्षेत्र (Research Area)
- शोध क्षेत्र के रूप में ऊधमसिंहनगर जनपद के राजकीय महाविद्यालय रुद्रपुर राजकीय महाविद्यालय खटीमा ,राजकीय महाविद्यालय नानकमत्ता ,राजकीय महाविद्यालय सितारगंज में पढ़ने वाले 90% विद्यार्थी स्टूडेंट थारू समुदाय के इन्ही महाविद्यालय में पढ़ते हैं ।
यह शोध महाविद्यालयी विद्यार्थियों में जागरूकता से सम्बन्धित है। शोध कार्य में प्राथमिक तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया जायेगा तथा यथा सम्भव द्वितीयक स्रोतों द्वारा प्राप्त तथ्यों का प्रयोग भी किया जायेगा। प्राथमिक प्रत्यक्ष तथ्य संकलन हेतु जनपद की सितारगंज तहसील के लगभग सभी जनजातीय युवाओं साक्षात्कार किया जायेगा सितारगंज तहसील के जिन जिन ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं उन सभी का सर्वेक्षण किया जायेगा और इनमें रहने वाले नई शिक्षा नीति से आच्छादित 18 से 35 वर्ष की आयु के छात्र/ छात्रों का साक्षात्कार किया जायेगा।
जनजातीय (थारू)छात्र/छात्रों के साथ-साथ लगभग उतनी ही संख्या में सामान्य वर्ग के इस क्षेत्र के युवक युवतियों का साक्षात्कार भी किया जायेगा ताकि जनजातीय तथा सामान्य युवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। वर्तमान में थारु बाहुल्य ग्रामों में सामान्य वर्ग के विभिन्न समुदायों जैसे पंजाबी, बंगाली, कुमाऊँनी, गढ़वाली तथा पूर्वाचली (भोजपुरी) के लोगो निवास कर रहे हैं अतः सामान्य वर्ग के युवाओं के साथ-साथ जनजातीय युवाओं का तुल्नात्मक अध्ययन करना अनिवार्य व सार्थक प्रतीत होता है साक्षात्कार हेतु साक्षात्कार अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग किया जायेगा। सर्वेक्षण के दौरान अन्य तकनीकीय यंत्रों जैसे मोबाइल, कैमरा आदि का प्रयोग भी किया जायेगा।
द्वितीयक स्रोतों के रूप में विषय से सम्बन्धित अब तक हुए शोध कार्यों,प्रकाशित पुस्तकों, सरकारी अभिलेखों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का प्रयोग किया जायेगा। प्राथमिक स्रोतों से संकलित तथ्यों का वर्गीकरण कर सारणीबद्ध किया जायेगा तथा उनका तार्किक व अन्वेषणात्मक विश्लेषण किया जायेगा तथ्यों के विश्लेषण में सांख्यिकीय पद्धतियों तथा चित्रमय प्रदर्शन की सहायता ली जायेगी।
धारणाओं की पुष्टि तुलनात्मक व्याख्या तथा पूर्व में विकसित धारणाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु द्वितीय से प्राप्त प्रयोग किया जाना भी द्वितीयको की सहायता ली जायेगी।
9: Objectives of the Proposed Project:
अध्ययन के उद्देश्य : प्रस्तुत शोध अध्ययन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1- वर्तमान में कौशल विकास के स्वरूप का अध्ययन करना
2.उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों पर संचार माध्यमों का प्रभाव
3-उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों पर औधोगिकरण का प्रभाव
4-उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों के थारू भाषा में अन्य भाषा का प्रभाव
5- स्वास्थ्य व नवाचारों के प्रभाव का आकलन करना
6- उत्तराखंड की जनजाति नित व थारू जनजाति के प्रभावी अंतर संबंध ज्ञात करना
7- जनजाति क्षेत्र के संसाधनों की समीक्षा समस्याओं और आवश्यकताओं की पुणे पहचान करना तथा उचित सुझाव प्रस्तुत करना
10: Methodology:
शोध कार्य की रूपरेखा (Methodology)
अध्ययन पद्धति :--
जनजातीय युवाओं के अध्ययन के लिए इस शोध कार्य में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जायेगा ।
जिसके निम्नलिखित चरण होंगे-
1- समस्या / विषय का चयन
2- उपकल्पना का निर्माण,
3- तथ्यों का संकलन,
4- तथ्यों कानिरीक्षण परीक्षण तथा वर्गीकरण,
5- निष्कर्ष निकालना
Methodology
अनुसंधान पद्धति
यह अध्ययन क्षेत्र में प्राथमिक डेटा संग्रह पर आधारित है । उधम सिंह नगर जनपद के गुणात्मक तथा मात्रात्मक डेटा संग्रह का विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए तथा वर्णनात्मक अनुसंधान में थारू समुदाय के रीति-रिवाज परंपरा में परिवर्तन के तरीकों का वर्णन होगा।इस शोध विश्लेषणपरक है क्योंकि यह थारू समुदाय के सामाजिक जागरूकता अवस्था में परिवर्तन के क्रम तथा सीमाओं से संबंधित है ।इस शोध अध्ययन पद्धति में विश्लेषणात्मक और व्याख्यात्मक दोनों पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। जिससे सामाजिक आर्थिक स्थिति और सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन के कई पहलुओं का व्यवस्थित रूप से पता लगेगा। इस अध्ययन के लिए उत्तरदाताओं के चयन के लिए अनुपातिक यादृच्छिक नमूना का प्रयोग किया जाएगा। नमूना लेते समय मजबूत और खराब आर्थिक स्थिति वाले थारू परिवार साक्षर इत्यादि को लिया जाएगा। यह अध्ययन प्राथमिक और द्वितीय दोनों डाटा पर आधारित है इस अध्ययन के लिए आवश्यक डाटा प्राथमिक स्रोतों से प्राप्त किया गया है प्राथमिक डाटा विभिन्न तरीकों से एकत्र किया गया है जैसे इंटरव्यू ऑब्जरवेशन हाउसहोल्ड सर्वे आदि कुछ डाटा एकत्र किया जाएगा। प्रश्नावली विधि से भूमि और पशुधन इतिहास के आंकड़े लिए जाएंगे प्रायमरी डाटा कलेक्शन के क्षेत्र के लिए प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने के लिए इंटरव्यू शेड्यूल तकनीक को मुख्य रूप से अपनाया जाएगा। यह विभिन्न उम्र लिंग और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के साथ आयोजित की जाएगी की इनफार्मेशन इंटरव्यू साक्षात्कार में थारू लोग जो विभिन्न पदों पर पहुंचे हैं वह इनके विषय मे समझ में अन्य समुदाय के शिक्षक सामाजिक कार्यकर्ता को भी शामिल किया जाएगा जो उनकी परंपरा रीतिबद्ध और सामाजिक आर्थिक स्थिति का वर्णन करने में सक्षम होंगे
Participatory Rapid Appraisal (PRA)
पार्टिसिपेशन रैपिड अपप्रसियाल पी आर ए सहभागी तीव्र मूल्यांकन- इस अध्ययन के लिए डेटा संग्रह का सबसे प्रभावी माध्यम PRA मैथड है। PRA मैथड को समुदाय के नेताओं शिक्षकों महिलाओं सामाजिककार्यकर्ता तथा इच्छुक समूह के माध्यम से लिया जाएगा । स्थानीय लोगों की धारणाओं की अपेक्षाओं और दृष्टिकोण की संस्कृति समस्या दृष्टिकोण सामूहिक संभावना और मौजूदा कारणों पर ज्ञान प्राप्त करने में PRA पद्धति सबसे महत्वपूर्ण होगी। सेकेंडरी डाटा कलेक्शन या विभिन्न थारू संबंधित पत्रिकाओं संगठन दस्तावेज ग्राम जिला से डाटा एकत्र किया जाएगा। थारू संस्कृति पर लिखे गए शोध प्रबंध ,पुस्तकें विभिन्न दस्तावेज इतिहास के प्रासंगिक प्रमाणिक साहित्य और प्रशासन का अध्ययन किया जाएगा। डेटा विश्लेषण एकत्रित आंकड़ों का वर्णनात्मक विश्लेषणात्मक किया जाएगा आंकड़ों को व्यवस्थित सारणीयन और निष्कर्ष का विश्लेषण और व्याख्या के लिए सांख्यिकी विधि का उपयोग किया जाएगा।
.......
01 अनुसंधान डिजाइन अध्ययन क्षेत्र से प्राथमिक डेटा संग्रह पर आधारित है। संबंधित क्षेत्र से गुणात्मक और मात्रात्मक डेटा संग्रह का विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए वर्णनात्मक अनुसंधान डिजाइन को अनुकूलित किया गया है। यह वर्णनात्मक है क्योंकि यह थारू समुदाय में प्रचलित पुरानी परंपरा और रीति-रिवाजों को चित्रित करता है और यह उस समुदाय में परिवर्तन के पैटर्न का भी वर्णन करता है। यह शोध विश्लेषणात्मक भी है क्योंकि यह थारू समुदाय की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारणों और सीमा से संबंधित ह।
11: Duration of the Proposed Project:
2years= 24 months
12: Work Plan: Year wise plan of work and targets to be achieved.
शोधकार्य की वार्षिक योजना
(Year-wise Plan of Work and Targets to be Achieve)
प्रथम वर्ष
01-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण व तथ्य संकलन करना।
02-तीन माह
संकलित तथ्यों का वर्गीकरण तथा रिपोर्ट तैयार करना और उद्देश्य संख्या एक को पूर्ण करना किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।
03-तीन माह
शोध क्षेत्र का पुनः सर्वेक्षण तथा तथ्य संकलन करना।
04-तीन माह
संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण से उद्देश्य संख्या दो तथा तीन को प्राप्त करना और निकाले गये निष्कर्षो को प्रकाशित कराना।
द्वितीय वर्ष
01-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन करना।
02-तीन माह
संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण द्वारा उद्देश्य संख्या चार की प्राप्ति करना तथा किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।
03-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन तथा पूर्व में हो चुके शोध कार्यों और विषय सम्बन्धी उपलब्ध प्रकाशित व अपंकाशित सामग्री की सहायता से उद्देश्य संख्या पाँच की प्राप्ति करना तथा शोध कार्य क प्रकाशित करना।
अंतिम तीन माह
समस्त शोध कार्य की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को प्रेषित करना।
सहायता
(सहयोग)
1.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुम्बई
2. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणासी
3.कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
4.उत्तरांचल प्रशासन अकादमी नैनीताल
5.जी०बी० पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर
6. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली
7. आई०सी०एस०एस०आर० नई दिल्ली
13: Relevance of the proposed study for society and policy making.
14: References:
—---/
डॉ
1.
समस्या का मूल
(Origin of the Problem)
उत्तरांचल की पौधों जनजातियों (थारू, बुक्सा भोटिया, वनरावत तथा जौनसारी) पर अब त शोध कार्य हो चुका है। अभी तक हुए लगभग सभी शोध कार्य इन जनजातियों की पारम्परि संस्कृति व सामाजिक आर्थिक व्यवस्था पर केन्द्रित हैं। वर्तमान में लगभग सभी जनजातियाँ परिवर्तन । सास्कृतिक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। ऐसे में इन जनजातियों से सम्बन्धित विभिन्न सन्दर्भों आधारित नवीन अनुसंधान की आवश्यकता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि आज जनजातियों का स् वह नहीं रहा जो वर्षो पहले था। आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण, शिक्षा प्रसार, रातनैतिक चेतन आजनीय संस्कृति एवं व्यवस्था के मूल ढाँचे पर प्रभाव डाला है जिसका परिणाम है कि यह जनजातियों अब विकास की मुख्य धारा से जुड़ने लगी है। कम से कम उत्तरांचल के संदर्भ में तो यह बात शत प्रतिशत सत्य है। उत्तराचल के जनजातीय समुदाय के युवाओं में नवीन चेतना का उदय हुआ है। पुरानी पीढ़ी की तुलना में नई पीढ़ी के जनजातीय लोग आधुनिक व स्वतंत्र विचारधारा को अधिक अपना रहे है किन्तु यर्थाथ यह भी है कि आधुनिक होने तथा जागरूकता फैलने की गति जितनी तंत्र सामान्य समाज के युवाओं मे है उतनी तीव्र जनजातीय युवाओं में नहीं है। हर जनजाति के युवाओं में जागरुकता की मात्रा अलग-अलग है। ऊधमसिंहनगर जनपद में मुख्य रूप से थारू, बुक्सा तथा भोटिया जनताति के लोग निवास करते है भोटिया जनजाति के युवाओं में थारू एवं बुक्सा जनजातियों के युवाओं की तुलना में अधिक जागरूकता पायी जाती है। जिसका कारण यह भी हो सकता है कि भोटिया जनजाति मूलतः ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र के निवासी है तथा वहाँ के जागरूक परिवार ही आकर तराई क्षेत्र में बसे है। कारण कुछ भी हो परन्तु सत्यता यही है कि ऊधमसिंहनगर जनपद में थारु बुक्सा जनजातियों के युवा भोटिया जनजाति के युवाओं की तुलना में कम जागरूक है। इस कथन के प्रमाण में यह तथ्य भी सामने रखा जा सकता है कि अब तक थारू एवं बुक्सा जनजातियों में से कोई भी युवा आईएएस या पी०सी०एस० जैसी प्रतिष्ठित सरकारी सेवाओं में नहीं चुना गया है जबकि भोटिया जनजाति में अनेक लोग इन सेवाओं में चयनित हुए ।
हैं15
ऊधमसिंहनगर जनपद में खटीमा तथा सितारगंज तहसीलों में लगभग डेढ़ सौ ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते है। दोनों तहसीलों में थारू जनजाति की जनसंख्या लगभग सत्तर हजार है। बाजपुर तथा गदरपुर तहसीलों में बुक्सा जनजाति के लगभग तीस हजार लोग निवास करते हैं।" रूद्रपुर, काशीपुर, खटीमा, सितारगंज, बाजपुर, किच्छा, गदरपुर तथा दिनेशपुर कस्बों में थारू, बुक्सा तथा भोटिया जनजातियों के कुछ परिवार निवास करते है जो रोजगार आदि के कारण अपने मूल स्थानों से आकर यहाँ बस गये है। परिवारों का प्रतिशत कुल जनजातीय जनसंख्या का लगभग आधा प्रतिशत भाग ही नगरीय क्षेत्र में निवास करता है सितारगंज तहसील में थारु जनजाति की जनसंख्या लगभग 26000 है जो कुल जनसंख्या का लगभग 24 प्रतिशत है।
थारू जनजाति के युवाओं में धीरे धीरे जागरूकता तो आ रही है किन्तु उस गति से नहीं जिस गति से सामान्य समाज के युवाओं में आ रही है। थारू जनजाति में अभी कम आयु के विवाह प्रचलित है। वर्तमान में भी तीन चौथाई से अधिक विवाह वैधानिक आयु सीमा से पहले ही हो जाते हैं। विवा के मामले में थारू जनजाति की परम्परागत विवाह पद्धतियों जैसे उदरा, घुसपैठ आदि युवाओं को अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता प्रदान करती है इनकी तुलना हम गन्धर्व एवं हक विवाह से कर सकते ।। थारु युवाओं के सम्बन्ध में एक तथ्य विशेष रूप से विचारणीय है कि यह लोग अपनी परम्परागत संस्कृति के प्रति उदासीन तो होते जा रहे हैं पर नये सामाजिक मूल्यों व चेतना को इस सीमा तक ग्रहण नहीं कर पा रहे है कि वह भोटिया जनजाति अथवा अन्य सामान्य वर्ग के युवाओं की भाँति तेजी से प्रगति कर सके। थारू जनजाति में अभी तक मात्र एक युवक प्रेम सिंह राणा ने पी-एच०डी० की उपाधि प्रा की एक व्यक्ति लक्ष्मण सिंह राणा डिग्री कालेज में प्राध्यापक है मात्र एक व्यक्ति श्री गोपाल सिंह राणा विधायक चुने गये है। हों अधिक जनसंख्या होने के कारण ग्राम प्रधान क्षेत्र पंचायत सदस्य
02
क्यूब्लाक प्रमुख आदि पदो पर तो कई थारू युवा चुने गये हैं। अराजपत्रित पदों पर तो अनेक थारू युवा सेवारत है पर राजपत्रित पदों पर अभी भी इनकी संख्या नगण्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षा एवं उच्च पदों पर चयनित होने के लिए भी थारू युवाओं के सामने आदर्श एवं उत्प्ररको के अभाव है जब किसी समुदाय में कुछ लोग उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद प्राप्त कर लेते हैं तो वह अपने समुदाय के लिए आदर्श एवं उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। थारु समुदाय में अभी इनकी कमी है। अतः यही कारण प्रतीत होता है कि थारू युवा तेजी से विकास नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि ग्रामीण विकास की विभिन्न योजनाओं के प्रति थारू युवा काफी सचेत प्रतीत होते हैं किन्तु यह चेतना सिर्फ ग्राम स्तर तक ही दिखाई देती है। विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे जलागम, ट्राइरोम, स्वयं सहायता समूह आदि में यह लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते है किन्तु बड़ी सफलताओं हेतु अधिक प्रयास नहीं करते।
उत्तरांचल बनने के बाद उत्तरांचल की जनजातियों हेतु पी०सी०एस० में आरक्षण होने के बाद भी कोई थारू युवा राज्य की प्रथम पी०सी०एस० परीक्षा में सफल नहीं हुआ थारू युवाओं के सम्बन्ध में यदि कोई संन्तोषजनक बात है तो यह है कि यह लोग स्थानीय स्तर पर परम्परागत व आधुनिक खेलों में पर्यान्त रूचि रखते हैं। थारू युवा एथ्लेटिक्स, कबड्डी, बॉलीबॉल, क्रिकेट, फुटबॉल, हांकी आदि खेलों पर विशेष ध्यान देते हैं। इस क्षेत्र के विद्यालयों की खेल टीमों में थारू युवाओं की अधिकांश भागीदारी रहती है। इस सम्बन्ध में एक चिन्ताजनक पहलू यह भी है कि उचित सुविधाओं व मार्गदर्शन के अभाव में थारू युवा राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी खेल प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। यदि इन्हें सुविधाएं व अवसर मिलें तो यह काफी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। राजनैतिक चेतना के सन्दर्भ में धारू युवक स्थानीय राजनीति के प्रति तो काफी सजग हैं पर राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय राजनैतिद गतिविधियों से प्रायः अनभिज्ञ प्रतीत होते हैं। थारू जनजाति का अपना संगठन है जिसे यह लोग था राणा परिषद कहते हैं। यह परिषद थारू समाज के विकास हेतु कार्य करती है। थारू राणा परिषद के अन्य सह संगठन भी कार्य कर रहे हे जिनमें जाति सुधार सभा, थारू उत्थान युवा संगठन, २ महिला कल्याण समिति, एकीकृत थारू जनजाति समिति आदि प्रमुख हैं। थारू राणा परिषद ने थाल समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने तथा विकास की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए कुछ प्रस्ताव पारित किए हैं जैसे विवाह में कन्याधन न लेना, शराब का निर्माण व सेवन न करना, बच्चों की शिक्षा अनिवा करना, विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध न करना, बाल विवाह न करना आदि। थारू समुदाय के श्री दौलत सिंह राणा, श्री ओम प्रकाश राणा, जिला पंचायत के उपाध्यक्ष व श्री बादाम सिंह राणा, श्री भीम सिंह राणा ब्लाक प्रमुख जैसे प्रमुख स्थानीय निकाय के पदों को प्राप्त करचुके हैं किन्तु अभी तक कोई थारू केन्द्र अथवा राज्य सरकार में मंत्री नहीं बन पाया है।
थारूओं के क्षेत्र में कुछ ईसाई संस्थाएं थारू युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। ईसाई संस्थाओं ने इस क्षेत्र में शिक्षा व चिकित्सा सम्बन्धी विकास के बहाने अपने धर्म प्रचार हेतु गिरिजाघरों, स्कूलों व अस्पतालों की स्थापना की है यह संस्थाएं विशेषतौर पर थारू युवाओं को अपने जाल में फंसाती है और उन्हें विकास के शब्जबाग दिखाकर ईसाई धर्म ग्रहण कराती हैं हाँलाकि थारू युवा इन संस्थाओं के षडयंत्र से परिचित हो चुके हैं अतः इनका विरोध होने लगा है। इक्का-दुक्का लोग ही ईसाई धर्म में दीक्षित हुए हैं। थारू युवाओं में अपराध की भावना कम पायी जाती है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि शराब
आदि नशील पदार्थों का सेवन करने के बाद भी यह लोग आपराधिक कार्यों से प्रायः दूर रहते हैं। हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती जैसे जघन्य अपराध थारू युवाओं में प्रायः नहीं पाये जाते थारू युवा भोले-भाले और शर्मीले होते हैं। स्त्रियों के प्रति अपराध तो थारू जनजाति में न के बराबर होते हैं 24 गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति तो थारू युवाओं में आई है परन्तु यह ज्यादा अधिक नहीं हैं। अधिकांश युवा ग्रामों में ही रहते हैं। पढ़ने-लिखने के साथ-साथ यह लोग प्राय: कृषि व पशुपालन में भी अपने परिजनों की मदद करते हैं। वर्तमान में संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है फिर भी लगभग 25 प्रतिशत परिवार संयुक्त परिवार हैं थारूओं में एक अनोखी परम्परा 'मिलाई' का पालन अभी भी किया जाता
04
सन्दर्भ
1- जोशी अवनींद्र कुमार (1983) 'जियोलॉजिकल ट्राइब्स, प्रकाश बुक डिपो बरेली पी
2-- मजूमदार, डी0एन0 (1942), दि थोरूज एण्ड दियर ब्लड ग्रुप, जर्नल ऑफ राफयल एशियाटिक
सोसाइटी कलकत्ता बाल्यूम XXXXI पृष्ठ-33
3- पाण्डे, बद्रीदत्त (1990) कुमाऊँ का इतिहास', अल्मोडा बुक डिपो अल्मोड़ा पृष्ठ-548
4- अग्रवाल, जी.के. (1989) सोशल एंथ्रोपोलॉजी' आगरा बुक स्टोर आगरा, पृष्ठ-361
5- पाण्डे, बद्रीदत्त (1990) उपरोक्त ही पृष्ठ 549
उप्रेती, हरिचंद्र (1970) इंडियन ट्राइब्स, राजस्थान यूनिवर्सिटी, जयपुर पृष्ठ-64 अशोककीर्ति, भिक्षु (1999) "निःस्वार्थ आत्म पत्रिका के मूल की खोज" नेपाली
6-अध्ययन, रॉयल नेपाल अकादमी काठमांडू,
8- http://en.wikipedia.org/wiki/tharu. पेज 3
9-
10- बिष्ट, भगवान सिंह (1996) उत्तराखंड आज, अल्मोड़ा बुक डिपों अल्मोडा, पृष्ठ-9
उपरोक्त ही
11- भाषा कोड के लिए एथनोलॉग 14 रिपोर्ट: टीएचएल पृष्ठ-1 http://www.ethnologue.com/ पर
14/show_Language.asp उपरोक्त ही 12-
13- http://crafts. Indianetzone.com/patch_work.htm, पेज-1
14- सुभाषचन्द्र (2004) उत्तर प्रदेश की थारू जनजाति का समाजशास्त्रीय अध्ययन (अप्रकाशित
15- उपरोक्त ही पृष्ठ-178
5
निबंध) डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा पृष्ठ-1
16 बिष्ट भगवान सिंह (1996) उत्तराखंड आज अल्मोड़ा बुक डिपो एवं प्रकाशक, अल्मोडा,
पृष्ठ-161
17- संख्या पत्रिका 2001, जिला सांख्यिकी कार्यालय ऊधम सिंह नगर, पृष्ठ-6 उपरोक्त ही
18-
19- सुभाषचन्द्र (2004) उपरोक्त ही उपरोक्त ही पृष्ठ 55
20-
21- 22- वरीयता सूची (राजपत्रित) उच्च शिक्षा विभाग उत्तरांचल शासन कार्यालय, जिला पंचायत राज अधिकारी, ऊधम सिंह नगर की सूचनानुसार
23- राणा, प्रेम सिंह (1999) खटीमा विकास खंड में आवासित थारु ईसाई परिवारों की सामाजिक आर्थिक स्थिति का अध्ययन (अपकाशित शोध प्रबन्ध) कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल, पृष्ठ-70
24- मुखर्जी, रविन्द्र नाथ (1997) सामाजिक मानव शास्त्र की रूपरेखा, विवेक प्रकाशन दिल्ली,
पृष्ठ-381
25- सुभाषचन्द्र (2004) उपरोक्त ही पृष्ठ-34
26- श्रीवास्तव (1958) द थारूज़ आगरा यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन पृष्ठ 96-9
27- सकलानी, शक्ति प्रसाद (1996) तराई रुद्रपुर का इतिहास औ विकास गौरव प्रकाशन दिल्ली, पृष्ठ 69-70
28- अमर उजाला बरेली, 30 दिसम्बर 2002
29- "ऊधमसिंहनगर तब और अब सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग, उत्तरांचल की रिपोर्ट-2005
पृष्ठ-54 उपरोक्त ही. 30- पृष्ठ-22
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थारू जनजाति थारू जनजाति भारत में निवास करने वाली सैकड़ों जनजातियों में से एक है। उत्तराखण्ड में पाई जाने वाली जनसंख्या की दृष्टि से पाँच प्रमुख जनजातियों में से थारू पहले स्थान पर हैं। थारू अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते हैं। अवध गजेटियर के अनुसार थारू का शाब्दिक अर्थ ठहरे है, अर्थात जो लोग तराई के वनों में आकर ठहर गये। अध्ययन के अन्तर्गत थारू जनजाति से तात्पर्य उत्तराखण्ड के कुमायूँ मण्डल में निवास कर रही जनजाति से है।
(ii) प्रस्तुत अध्ययन में माध्यमिक स्तर से आशय उत्तराखण्ड के विद्यालयों में कक्षा 12 से लेकर कक्षा स्नाकोत्तर तक अध्ययनरत् विद्यार्थियों से है।
(iii) शैक्षिक समस्यायें प्रस्तुत अध्ययन में शैक्षिक समस्याओं के अन्तर्गत विशेष रूप से विद्यार्थियों के अध्ययन के अन्तर्गत आने वाली समस्याओं का अध्ययन तथा साथ ही सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और समायोजन सम्बन्धी समस्याओं का भी अध्ययन किया गया हैं।
अध्ययन क्षेत्र (Research Area)
शोध क्षेत्र के रूप में ऊधमसिंहनगर जनपद की सितारगंज तहसील को चुना गया है।तहसील के अधिकांश ग्रामों में थारू जनजाति की बहुलता है। शोध का विषय इस तहसील जनजातीय महाविद्यालयी विद्यार्थियों में जागरूकता से सम्बन्धित है। शोध कार्य में प्राथमिक तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया जायेगा तथा यथा सम्भव द्वितीयक स्रोतों द्वारा प्राप्त तथ्यों का प्रयोग भी किया जायेगा। प्राथमिक प्रत्यक्ष तथ्य संकलन हेतु जनपद की सितारगंज तहसील के लगभग सभी जनजातीय युवाओं साक्षात्कार किया जायेगा सितारगंज तहसील के जिन जिन ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं उन सभी का सर्वेक्षण किया जायेगा और इनमें रहने वाले 18 से 35 वर्ष की आयु के युवा युवतियों का साक्षात्कार किया जायेगा। जनजातीय (थारू) युवक युवतियों के साथ-साथ लगभग उतनी ही संख्या में सामान्य वर्ग के युवक युवतियों का साक्षात्कार भी किया जायेगा ताकि जनजातीय तथा सामान्य युवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। वर्तमान में थारु बाहुल्य ग्रामों में सामान्य वर्ग के विभिन्न समुदायों जैसे पंजाबी, बंगाली, कुमाऊँनी, गढ़वाली तथा पूर्वाचली (भोजपुरी) के लोगो निवास कर रहे हैं अतः सामान्य वर्ग के युवाओं के साथ-साथ जनजातीय युवाओं का तुल्नात्मक अध्ययन करना अनिवार्य व सार्थक प्रतीत होता है साक्षात्कार हेतु साक्षात्कार अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग किया जायेगा। सर्वेक्षण के दौरान अन्य तकनीकीय यंत्रों जैसे मोबाइल, कैमरा, , वाइस रिकार्डर आदि का प्रयोग भी किया जायेगा।द्वितीयक स्रोतों के रूप में विषय से सम्बन्धित अब तक हुए शोध कार्यों,प्रकाशित पुस्तकों, सरकारी अभिलेखों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का प्रयोग किया जायेगा। प्राथमिक स्रोतों से संकलित तथ्यों का वर्गीकरण कर सारणीबद्ध किया जायेगा तथा उनका तार्किक व अन्वेषणात्मक विश्लेषण किया जायेगा तथ्यों के विश्लेषण में सांख्यिकीय पद्धतियों तथा चित्रमय प्रदर्शन की सहायता ली जायेगी। धारणाओं की पुष्टि तुलनात्मक व्याख्या तथा पूर्व में विकसित धारणाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु द्वितीय से प्राप्त प्रयोग किया जाना भी द्वितीयको की सहायता ली जायेगी करने प्रकारकये जायेंगे भारत नेपाल ने किया प्रकार के सम्बन्ध और समानताएं हैं तथा अन्तर
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शोध कार्य की रूपरेखा (Methodology)
हेतु यह रचना ही अधिक उपयुक्त रहेगी।
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Duration of the Proposed work
2years= 24 months
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शोधकार्य की वार्षिक योजना
(Year-wise Plan of Work and Targets to be Achieve)
प्रथम वर्ष
01-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण व तथ्य संकलन करना।
02-तीन माह
संकलित तथ्यों का वर्गीकरण तथा रिपोर्ट तैयार करना और उद्देश्य संख्या एक को पूर्ण करना किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।
03-तीन माह
शोध क्षेत्र का पुनः सर्वेक्षण तथा तथ्य संकलन करना।
04-तीन माह
संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण से उद्देश्य संख्या दो तथा तीन को प्राप्त करना और निकाले गये निष्कर्षो को प्रकाशित कराना।
द्वितीय वर्ष
01-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन करना।
02-तीन माह
संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण द्वारा उद्देश्य संख्या चार की प्राप्ति करना तथा किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।
03-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन तथा पूर्व में हो चुके शोध कार्यों और विषय सम्बन्धी उपलब्ध प्रकाशित व अपंकाशित सामग्री की सहायता से उद्देश्य संख्या पाँच की प्राप्ति करना तथा शोध कार्य क प्रकाशित करना।
अंतिम तीन माह
समस्त शोध कार्य की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को प्रेषित करना।
सहायता
(सहयोग)
1.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुम्बई
2. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणासी
3.कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
4.उत्तरांचल प्रशासन अकादमी नैनीताल
5.जी०बी० पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर
6. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली
7. आई०सी०एस०एस०आर० नई दिल्ली


