केस स्टडी: त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 (उत्तराखंड) – एक पीठासीन अधिकारी का अनुभवात्मक दस्तावेज
भाग 1: नियुक्ति, प्रशिक्षण और यात्रा
प्रारंभिक सूचना और तैयारी:
- 9 जुलाई 2025 को बनारस में रहते हुए दोपहर 3:30 बजे सूचना मिली कि पंचायत चुनाव में ड्यूटी लगाई गई है।
- उसी रात डोभी स्टेशन से ट्रेन पकड़ी, बरेली होते हुए हल्द्वानी पहुँचे, फिर रानीखेत, और 10 जुलाई को विश्राम किया।
प्रशिक्षण:
- प्रथम प्रशिक्षण: 11 जुलाई 2025, ऑडिटोरियम, अल्मोड़ा कैंपस। बी.के. जोशी और पंकज प्रियदर्शी के साथ भागीदारी। बारिश के बावजूद उपस्थिति दर्ज कराई।
- ड्यूटी अनुरूप न होने पर आपत्ति: मुख्य विकास अधिकारी व जिला शिक्षा अधिकारी से संपर्क, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।
- द्वितीय प्रशिक्षण: 17 जुलाई 2025, उदयनाथ शंकर अकैडमी, अल्मोड़ा। टीम मिली: राजेश तिवारी (द्वाराहाट), गरिमा उप्रेती (मैथ टीचर), दिवाकर मिश्रा (सहायक अध्यापक), दया कृष्ण पांडे।
भाग 2: मतदेय स्थल की यात्रा और मतदान दिवस
यात्रा विवरण:
- 22 जुलाई की दोपहर 2 बजे टीम सहित रानीखेत से धनिया के लिए रवाना, लगभग 115 किमी की यात्रा।
- रात को स्वागत रेस्टोरेंट में भोजन व विश्राम। साथी चंदेल जी के सौजन्य से ठहराव।
मतदान स्थल का विवरण:
- मतदान केंद्र: पटवारी चौकी, कुमड ग्राम, ब्लॉक: धौलादेवी, जिला: अल्मोड़ा
- कुल मतदाता: 300 (पुरुष: 167, महिला: 133)
- कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं था, स्थल सड़क से लगभग 1 किमी की चढ़ाई/जंगल से रास्ता।
मतदान की स्थिति:
- 178 मत पड़े।
- टीम ने कड़ी मेहनत से समस्त प्रपत्रों, चार स्तरों के मतपत्रों (ग्राम प्रधान, वार्ड सदस्य, बीडीसी, जिला पंचायत) की एंट्री की, जिसमें लगभग 200 प्रविष्टियाँ करनी पड़ीं।
- पीठासीन अधिकारी द्वारा सभी व्यवस्थाओं की देखरेख की गई।
- 24 जुलाई को दिवाकर मिश्रा (पी4) को मिर्गी का दौरा, एंबुलेंस बुलाई गई और प्राथमिक उपचार हेतु भेजा गया।
भाग 3: सामग्री जमा और प्रशासनिक कुप्रबंधन
सामग्री जमा की स्थिति:
- मतदान समाप्ति के बाद टीम शाम को 9 बजे सामान लेकर धौलादेवी ब्लॉक पहुँची।
- वहाँ सामग्री जमा कराने में भारी अव्यवस्था, अव्यवसायिकता और अफरा-तफरी का माहौल था।
- सामान जमा करते समय कोई स्पष्ट मार्गदर्शन, प्राथमिकता या सहयोग नहीं मिला।
- प्रशासनिक स्टाफ द्वारा दुर्व्यवहार जैसी स्थिति उत्पन्न हुई।
महत्वपूर्ण प्रेक्षण:
- प्रशिक्षण में व्यवहारिक पक्ष की अनदेखी: केवल प्रपत्रों की संख्या, कोड, और नियमों की बात हुई; जबकि व्यवहारिक मुद्दों, जंगलों से मार्ग, ऊँचाई पर चढ़ाई, आपातकालीन स्थितियों की कोई चर्चा नहीं हुई।
- रियलिस्टिक एनिमेटेड प्रशिक्षण या वर्कशॉप की आवश्यकता: जो दिखाए कि कैसे पीठासीन अधिकारी को व्यवहारिक स्थिति में कार्य करना होता है।
भाग 4: न्यायिक प्रयास और प्रशासन की संवेदनहीनता
न्यायालय में याचिका:
- ₹8000 का योगदान कर उच्च न्यायालय नैनीताल में याचिका दायर की गई कि पदानुसार ड्यूटी दी जाए।
- मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने आदेश को नजरअंदाज किया, और पीठासीन ड्यूटी यथावत रही।
प्रेस में गलत सूचना:
- मीडिया में यह सूचना प्रसारित की गई कि "असिस्टेंट प्रोफेसर कोर्ट में केस हार गए और अब ड्यूटी निभाएंगे", जो पूर्णतः भ्रामक थी।
भाग 5: निष्कर्ष और सुझाव
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प्रशिक्षण में सुधार आवश्यक:
- एनिमेशन, वीडियो केस स्टडी और रोल-प्ले जैसी इंटरैक्टिव विधियाँ अपनाई जाएं।
- ग्रामीण दुर्गम क्षेत्रों की व्यवहारिक चुनौती को शामिल किया जाए।
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प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार:
- मतदान सामग्री जमा कराने की प्राथमिकता कतार, निर्दिष्ट समय, और सहयोगी कर्मचारी की नियुक्ति हो।
- पीठासीन अधिकारी को सहज मार्गदर्शन और सम्मान मिले।
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जोखिम प्रबंधन की रणनीति:
- एम्बुलेंस, मेडिकल सहायता, संचार व्यवस्था पहले से सुनिश्चित हो।
- ऊँचाई, जंगल, मौसम संबंधी रिस्क मैनेजमेंट प्लान आवश्यक है।
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सीखने योग्य बात:
- ग्रामवासियों का सहयोग अत्यंत सराहनीय था – सादगी, सौजन्यता और सहयोग।
- प्रशासन से अधिक सहयोग स्थानीय जनता से मिला।
अंतिम टिप्पणी:
यह केस स्टडी न केवल त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की कार्यप्रणाली को उजागर करती है, बल्कि लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान पर काम करने वाले कर्मियों की "अनदेखी हुई ज़मीनी सच्चाई" को भी दर्शाती है। इसमें सुधार की आवश्यकता नीतिगत, प्रशासनिक और व्यवहारिक – तीनों स्तरों पर है।
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