Sunday, August 24, 2025

समाजशास्त्र


समाजशास्त्र
1
समाजशास्त्र दो शब्दों से मिलकर बना है | पहला लैटिन शब्द ‘Socius’ जिसका अर्थ है – समाज तथा दूसरा ग्रीक शब्द ‘Logos’ जिसका अर्थ है – अध्ययन या विज्ञान | इस प्रकार समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ समाज का विज्ञान है|
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समाज शास्त्री जॉन स्टुअर्ट मिल 
 समाजशास्त्र दो भाषाओं लैटिन एवं ग्रीक से मिलकर बना है ,इसलिए जॉन स्टुअर्ट मिल (J.S.Mill)  समाजशास्त्र को दो भाषाओं की अवैध संतान कहा एवं इसके स्थान पर इथोलॉजी (Ethology)शब्द के प्रयोग का सुझाव दिया था |

3
हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) ने समाज का व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अध्ययन किया एवं अपनी किताब का नाम प्रिंसिपल ऑफ सोशियोलॉजी (Principles of Sociology) रखा| 
इसे समाजशास्त्र की प्रथम पाठ्य पुस्तक माना जाता है|

4
सन् 1838 में समाज का पूर्णता में अध्ययन करने के लिए काम्टे ने समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग किया | काम्टे ने सर्वप्रथम इस नये विषय का नाम सोशल फिजिक्स(Social Physics) रखा था ,
 फिर इसका नामकरण काम्टे ने  सोशियोलॉजी(Sociology) कर दिया |
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समाजशास्त्र का उद्भव 
1
 18 सदी में यूरोपीय महाद्वीप में उस समय हुआ जब वहां की जनता सामंतवादी व्यवस्था के प्रति असहज एवं असुरक्षित महसूस करने लगी साथ ही वह अपनी तात्कालिक परिस्थितियों से निजात पाने का प्रयास करने लगी | 
2
यह प्रयास औद्योगिक क्रांति (1760)एवं फ्रांसीसी(1789) क्रांति के रूप में सामने आया जिसने वहां की परंपरागत सामाजिक ढांचे को विस्थापित कर एक अत्यधिक नवीन सामाजिक व्यवस्था को जन्म दिया |

3
 इन्हीं बदलती परिस्थितियों को समझने के लिए फ्रांसीसी दार्शनिक अगस्त काम्टे (August Comte) ने एक अलग विषय की आवश्यकता पर बल दिया तथा सन् 1838 में इसके लिए समाजशास्त्र (Sociology) शब्द का प्रयोग किया |

समाजशास्त्र के उद्भव के कारण

(FACTORS OF EMERGENCE OF SOCIOLOGY)

समाजशास्त्र के उद्भव के लिए यूरोप की ऐतिहासिक दशाएं तथा तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियां तो जिम्मेदार थी, साथ ही वे बौद्धिक संवेदनाये भी शामिल थी, जो सेंट साइमन, कार्ल मार्क्स, अगस्त काम्टे आदि चिंतकों के विचारों द्वारा अभिव्यक्त हुआ | इस तरह समाजशास्त्र के उद्भव के कारणों को निम्न तीन बिंदुओं में देखा जा सकता है –

ऐतिहासिक कारक
वाणिज्यिक क्रांति
वैज्ञानिक क्रांति
बौद्धिक कारक
सामाजिक कारक
औद्योगिक क्रांति
फ्रांसीसी क्रांति
ऐतिहासिक कारक

ऐतिहासिक कारकों पर नजर डालें तो यूरोप में 12वीं शताब्दी में हुई वाणिज्यिक क्रांति एवं 14वीं शताब्दी में हुई वैज्ञानिक क्रांति ने जनता को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने पर मजबूर कर दिया कि उसकी दीन हीन दशा में सुधार राजा या धर्म प्रचारको की कृपा से नहीं बल्कि स्वयं के प्रयास व वैज्ञानिक आधार से ही हो सकता है |

(i) वाणिज्यिक क्रांति – वाणिज्यिक क्रांति के दौरान यूरोप के लोग सिल्क, मसालों एवं अन्य वस्तुओं के नए क्षेत्रों की खोज किए, साथ ही नए स्थापित हो रहे राज्य समुद्री यात्रा के द्वारा व्यापार के नए रास्ते तलाशने लगे जिससे यूरोप वासियों को बड़ा व्यापार क्षेत्र एवं आय के नए स्रोत प्राप्त हो गए, जो उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने में मददगार साबित हुआ |

(ii) वैज्ञानिक क्रांति – इस क्रांति ने यूरोप की सामंतवादी परंपरागत सोच को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | इसकी शुरुआत कॉपरनिकस से होती है जब उन्होंने यह कर रुढ़िवादी एवम् धार्मिक कट्टरपंथी को चुनौती दी की ब्रह्माण्ड के केंद्र में सूर्य है ना कि पृथ्वी | 

न्यूटन
इसके अतिरिक्त न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गति का नियम(Law of motion) एवं सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण के नियम ने लोगों कोे प्रकृति के बारे में नए सिरे से सोचने को प्रेरित एवं बाध्य किया | 
यूरोप की इस बदलती मनोवृत्तियों के काल को पुनर्जागरण (Renaissance) कहा गया |

बौद्धिक कारक
उन्नीसवीं शताब्दी में हीगेल(Hegel) एवं सेंट साइमन का लेखन यूरोप में एक बौद्धिक आंदोलन बन गया | हीगेल के अनुसार चेतना से अस्तित्व का निर्माण होता है , जिसके माध्यम से वे यूरोप की जनता को यह संदेश देना चाहते थे कि यदि व्यक्ति अपनी सोच को दृढ़ता पूर्वक यथार्थ में बदलने की कोशिश करें तभी वह अपनी इस दीन- हीन स्थित से मुक्ति पा सकता है न कि राजा या ईश्वरीय कृपा से |

 
सेंट साइमन-कांट के गुरु सेंट साइमन के अनुसार यद्यपि यूरोप में विज्ञान विद्यमान है ,लेकिन व्यक्तियों को समझने के लिए कोई विज्ञान मौजूद नहीं है | अतः समाज का वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए |


यह बौद्धिक आंदोलन यूरोपीय सामाजिक व्यवस्था से भिन्न नहीं था क्योंकि तीव्र सामाजिक परिवर्तन एवं समुद्र मार्ग से बढ़ते व्यापार के द्वारा अन्य देशो से मिली संस्कृतियों की भिन्नता के कारण समाज संक्रमण के दौर से गुजर रहा था ,तथा प्राकृतिक विज्ञान के बढ़ते प्रभाव के कारण लोग यह समझने लगे थे कि जो ज्ञान सत्यापनीय नहीं है उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए | इस बदलती सोच के समय को प्रबोधन युग (Age of enlightenment) के नाम से जाना जाता है | इसी सोच के कारण ही फ्रांसीसी एवं औद्योगिक क्रांतियाँ हुई |

समाजशास्त्र की शुरुआत प्रबोधन कालीन दार्शनिक मांटेस्क्यू एवं रूसो के विचारों से ही हो जाती है जब वे कहते हैं कि मनुष्य स्वयं ब्रह्माण्ड को नियंत्रित कर सकता है |अतः उसे परंपरागत रूढ़ियों एवं अंधविश्वासो को छोड़कर नए सिरे से विचार करना चाहिए |

विज्ञान के बढ़ते प्रभाव के कारण लोगों द्वारा पुरानी परंपराओं एवं संस्थाओं से अपने को अलग करने प्रवृत्ति बढ़ती जा रही थी | इन्हीं परिस्थितियों में समाज वैज्ञानिकों ने भी सामाजिक समस्या का समाधान वैज्ञानिक तरीके से सुलझाने की तरफ प्रेरित हुए |

 अगस्त काम्टे भी प्रबोधन कालीन विचारों से प्रभावित थे एवं ऐसे सिद्धांतो का निर्माण करना चाहते थे जो अानुभविक ज्ञान एवं तथ्यों पर आधारित हो | साथ ही ऐसे सामाजिक विज्ञान का निर्माण करना चाहते थे जो समाज का समग्रता में अध्ययन करें क्योंकि अन्य सामाजिक विज्ञान समाज के किसी विशेष पक्ष का ही अध्ययन करता है | वैज्ञानिकता के महत्व को देखते हुए काम्टे ने सर्वप्रथम अपने विषय का नाम सामाजिक भौतिकी(Social Physics) रखा |


सामाजिक कारक

(i) औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution)  – औद्योगिक क्रांति की शुरूआत 1760 से मानी जाती है, जो मुख्यत: कपास (Cotton) ,खनन (Mining) तथा परिवहन (Transportation) के क्षेत्र में शुरु हुई ,किंतु लोगों ने अपनी बुद्धि का प्रयोग कर अन्य क्षेत्रों में भी मशीनों का आविष्कार कर लिया | यह समय औद्योगीकरण का था जिसके अंतर्गत कृषि का मशीनीकरण , टेक्सटाइल उद्योग, विनिर्माण एवं ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए | जिसने लोगों के सामाजिक ,आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित किया |

औद्योगिक क्रांति शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ब्लांकी ने किया था ,लेकिन यह चर्चा में तब आया जब ब्रिटिश इतिहासकार अर्नाल्ड टॉयनबी (Arnold Toynbee) ने इस शब्द का प्रयोग ब्रिटेन में 1760 से 1840 के बीच हुए आर्थिक विकास का वर्णन करने के लिए किया |

औद्योगिक क्रांति समाजशास्त्रीय दृष्टि से इसलिए महत्वपूर्ण साबित हुइ क्योंकि इसने न केवल उत्पादन के क्षेत्र में व्यापक बदलाव लाया ,बल्कि लोगों ने पहली बार अभाव मुक्त समाज की संभावनाओं का अनुभव किया | उस दौरान ब्रिटेन की सामूहिक आवश्यकता से लगभग दस गुना अधिक उत्पादन हुआ था | 

इस संपन्नता ने लोगों की बौद्धिक सोच में भी परिवर्तन लाया क्योंकि औद्योगिक क्रांति से पहले मनुष्य अपनी दरिद्रता का कारण प्राकृतिक या दैवीय शक्तियों की इच्छाओं का प्रतिफल माना करता था | लेकिन जब उसने स्व प्रयास से अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने में सफलता प्राप्त की , तब उसके ईश्वरीय सत्ता के विश्वास में कमी आयी एवं इस विचार ने जन्म लिया कि हमारे दरिद्रता का कारण हमारा शोषण एवं हमारी अज्ञानता है न कि ईश्वरीय सत्ता |

औद्योगिक क्रांति के दौरान लोग कृषि कार्य छोड़कर फैक्टरी काम की तलाश में शहरों की तरफ पलायन करने लगे | इस तरह क्रांति के दौरान उत्पादन , विनिर्माण ,वितरण आदि में बड़ा बदलाव दिखाई दिया | इस बदलती व्यवस्था के साथ बाल अपराध ,संगठित अपराध , मालिक कर्मचारी विवाद आदि नई चुनौतियों के रुप में सामने आया | इसका समाधान ढूढ़ने में हम अगस्त काम्टे के प्रयासों को देख सकते हैं | उनके अनुसार इन परिवर्तनो को समझने के लिए हमें समाज की वास्तविकता को पूर्ण रूपेण समझना होगा एवं इसके लिए एक अलग विषय का होना अति आवश्यक है ,जिसके लिए उन्होंने समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग किया |

(ii) फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution) 

 फ्रांसीसी क्रांति 
स्वतंत्रता (Liberty) ,
समानता(Equality)
एवं बंधुत्व(Fraternity) 
के लक्ष्य के साथ सन् 1789 में शुरु हुई | क्रांति से ठीक पहले फ्रांस की आर्थिक स्थिति बहुत ही जर्जर थी | रोटी का एक टुकड़ा की कीमत किसानों के कई दिनों की मजदूरी के बराबर था | बोर्बन राजवंश का राजा लुई 16वाँ इस संकट से लोगों को बाहर लाने में असफल रहा | जनता भूखों मर रही थी |

समाजशास्त्र की परिभाषा

  समाजशास्त्र क्या है ,इसकी प्रकृति एवं विषय क्षेत्र क्या है, जिसका यह अध्ययन करता है |

अतः इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए नए विषय के रूप में समाजशास्त्र अस्तित्व में आया|

 एंथोनी गिडेंस (Anthony Giddens) लिखते हैं कि समाजशास्त्र आधुनिक समाज का विज्ञान है 

विद्वानों द्वारा दी गई समाजशास्त्र की परिभाषा को हम चार भागों में बांट सकते हैं |

(1) समाजशास्त्र समाज के अध्ययन के रूप में
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लिस्टर एफ. वार्ड (Lester F. Ward) के अनुसार – “समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है“|

एफ. एच. गिडिंस (F. H. Giddings) के अनुसार – “समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है|” 
ओडम के अनुसार “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है|“

(2) समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के अध्ययन के रूप में –

मैकाइवर एवं पेज (Maciver and Page) के अनुसार -“समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में है संबंधों के इसी जाल को हम समाज कहते हैं|“

वॉन विज (Von Wiese) के अनुसार -“सामाजिक संबंध ही समाजशास्त्र की विषय वस्तु का एकमात्र वास्तविक आधार है|“

(3) समाजशास्त्र समूहों के अध्ययन के रूप में –

जॉनसन के अनुसार – “समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का विज्ञान है|” (Sociology is the science that deals with social group.)

(4) समाजशास्त्र सामाजिक अंतःक्रिया के रूप में –

मोरिस गिन्सवर्ग के अनुसार – “समाजशास्त्र मानवीय अंत:क्रियाओं और अंत:संबंधों, उनकी दशाओं और परिणामों का अध्ययन है |” अन्य विद्वानों द्वारा दी गई समाजशास्त्र की परिभाषा निम्न है –

हरबर्ट स्पेंसर के अनुसार – ” समाजशास्त्र सामाजिक प्रघटना (Social Phenomenon)का विज्ञान है |“

दुर्खीम के अनुसार – “समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधानों (Collective Representation)का विज्ञान है|”

रॉबर्ट पार्क के अनुसार – “समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहार(Collective Behaviour)का विज्ञान है|“

फेयर चाइल्ड (Fair Child) के अनुसार —- “समाजशास्त्र मनुष्यों एवं उनके मानवीय पर्यावरण (Human Environment)के मध्य संबंधों का अध्ययन है|“

अागस्त काम्टे ने अपनी पुस्तक पॉजिटिव फिलोसोफी (Positive Philosophy) में समाजशास्त्र शब्द का प्रतिपादन किया | उनके अनुसार समाजशास्त्र  का विज्ञान क्रमबद्ध अवलोकन एवं वर्गीकरण  पर आधारित होना चाहिए |

हरबर्ट स्पेन्सर ने अपनी पुस्तक प्रिंसिपल्स ऑफ सोशियोलॉजी (Principles of Sociology) में जैविकीय उद् विकास के सिद्धांत को मानवीय समाज पर लागू किया एवं सामाजिक उद् विकास के सिद्धांत को विकसित किया|

दुर्खीम ने अपनी पुस्तक द रूल्स ऑफ सोशियोलॉजिकल  मेथड (The Rules  Of Sociological  Method) के माध्यम से समाजशास्त्र में वैज्ञानिक पद्धति शास्त्र को प्रदर्शित किया जो उनके आत्महत्या सिद्धांत में दिखाई देता है |

कार्ल मार्क्स ने भी सामाजिक संरचना, वर्ग एवं सामाजिक परिवर्तन का विश्लेषण कर समाजशास्त्र विषय में विशेष योगदान दिया |

समाजशास्त्र विषय का अध्ययन – अध्यापन कार्य सर्वप्रथम 1876 में अमेरिका के येेल विश्वविद्यालय (Yale University) में समनर  (Sumner) के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया | समनर को ही समाजशास्त्र विषय का अकादमिक जनक माना जाता है |

फ्रांस में समाजशास्त्र विषय के अध्ययन की शुरुआत 1889 में बोर्डिक्स विश्वविद्यालय (Bordeaux University) में दुर्खीम के नेतृत्व में हुई दुर्खीम को समाजशास्त्र का प्रथम प्रोफ़ेसर माना जाता है |

1906 में ए. डब्ल्यू. स्माल (A. W. Small)  ने अमेरिकन समाजशास्त्रीय परिषद (American Sociological Society) की स्थापना की | लिस्टर एफ. वार्ड इसके प्रथम अध्यक्ष एवं स्माल पहले उपाध्यक्ष बने |

एशिया में समाजशास्त्र विषय के अध्ययन की शुरुआत सर्वप्रथम टोकियो विश्वविद्यालय (Tokyo University) में हुई |

भारत में समाजशास्त्र विषय के अध्ययन की शुरुअात 1919 में पैट्रिक गिड्स के नेतृत्व में बम्बई  विश्वविद्यालय (University of Bombay) में हुई | प्रारम्भ में इसे अर्थशास्त्र के साथ  ऐच्छिक विषय के रूप में जोड़ा गया था | 

गिड्स के बाद बम्बई विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग का उत्तरदायित्व प्रोफ़ेसर जी. एस. घुरिये (G. S. Ghuriye) को दिया गया  | 

घुरिये ने सन् 1952 में  भारतीय समाजशास्त्रीय परिषद (Indian Sociological Society) की स्थापना की | घुरिये को ही भारत में समाजशास्त्र का जनक  माना जाता है |उत्तर प्रदेश में सन् 1921 में लखनऊ विश्वविद्यालय  (Lucknow University) में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना हुई, राधा  कमल मुकर्जी (R.K.Mukerjee) को इसका अध्यक्ष बनाया गया |जे. के. इंस्टिट्यूट ऑफ सोशियोलॉजी एंड ह्यूमन रिलेशन (J. K. Institute of Sociology and Human Relation) की स्थापना 1948 में लखनऊ में हुई | सन् 1958 में  मुकर्जी इस संस्था के डायरेक्टर बने |


अगस्त कॉम्टे ने 'समाजशास्त्र' (Sociology) शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1838 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक The Course in Positive Philosophy" (फ्रेंच: Cours de philosophie positive) में किया था। यह पुस्तक 1830 से 1842 के बीच छः खंडों में प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक में कॉम्टे ने सामाजिक अध्ययन के लिए वैज्ञानिक (पॉज़िटिविस्ट) दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित किया और 'सोशल फिजिक्स' की बजाय 'सोशियोलॉजी' (समाजशास्त्र) शब्द को स्थापित किया

कॉम्टे के अनुसार, समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो प्राकृतिक वैज्ञानिक पद्धति से सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है। इसी कृति में उन्होंने तीन अवस्थाओं का नियम (The Law of Three Stages) और समाज को अन्य विज्ञानों की भाँति व्यवस्थित करने का सिद्धांत प्रस्तुत किया।

  
- 1838 में 'Sociology' शब्द The Course in Positive Philosophy पुस्तक में पहली बार प्रयोग।  

- पुस्तक का प्रकाशन काल: 1830-1842 (6 भागों में)।  
- पुस्तक की थीम: समाज के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक विधि (पॉज़िटिविज्म), विज्ञानों का वर्गीकरण, समाजशास्त्र की स्थापना।
हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) एक प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक, समाजशास्त्री और जीवविज्ञानी थे, जिन्होंने 19वीं सदी के दौरान समाज का व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अध्ययन किया। उन्होंने समाज को एक जीवित जीव के रूप में देखा और इसके विकास को जैविक विकास के सिद्धांतों के अनुरूप समझाया। स्पेंसर ने सामाजिक विकास के सिद्धांत को स्पष्ट किया कि समाज सरल से जटिल रूप में क्रमशः विकसित होता है, जैसे जैविक जीवों का विकास होता है।स्पेंसर ने अपनी प्रमुख पुस्तक का नाम रखा—**"Principles of Sociology" (प्रिंसिपल्स ऑफ सोशियोलॉजी)**। यह पुस्तक समाजशास्त्र की प्रथम व्यापक और व्यवस्थित पाठ्य पुस्तक मानी जाती है। इसमें उन्होंने समाज के संरचनात्मक और क्रियात्मक पहलुओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास किया। 

स्पेंसर ने "योग्यतम की उत्तरजीविता" (Survival of the Fittest) का सिद्धांत भी समाजशास्त्र में प्रस्तुत किया, जिसे बाद में सामाजिक डार्विनवाद (Social Darwinism) के नाम से जाना गया। उनकी यह सोच साफ़ करती है कि समाज के कुछ हिस्से विकास के उच्च स्तर पर पहुंचते हैं और दूसरे पिछड़ जाते हैं। संक्षेप में स्पेंसर का योगदान इस प्रकार है:  
- समाज को विकासशील जीव माना।  
- समाज के सामाजिक संरचना व क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन।  
- "Principles of Sociology" को समाजशास्त्र की प्रथम पाठ्य पुस्तक माना जाता है।  
- सामाजिक डार्विनवाद की अवधारणा का विकास।  

यह पुस्तक पहली बार 1876 में प्रकाशित हुई थी और समाजशास्त्र के क्षेत्र में एक मील का पत्थर मानी जाती है। 

इस प्रकार स्पेंसर ने समाजशास्त्र की व्याख्या जैविक विकास के सैद्धांतिक आधार पर की और इसे एक वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
"योग्यतम की उत्तरजीविता" (Survival of the Fittest) सिद्धांत हर्बर्ट स्पेंसर ने समाजशास्त्र में प्रस्तुत किया था। उन्होंने यह अवधारणा चार्ल्स डार्विन की प्राकृतिक चयन की थ्योरी को पढ़ने के बाद विकसित की। इस सिद्धांत का मतलब है कि समाज के वे हिस्से जो पर्यावरण या परिस्थितियों के अनुसार बेहतर अनुकूलित हैं, वे अधिक सफल होते हैं और विकास के उच्च स्तर पर पहुँचते हैं, जबकि कम अनुकूलित हिस्से पिछड़ जाते हैं। यही विचार सामाजिक डार्विनवाद (Social Darwinism) का आधार है। चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin)
- डार्विन एक इंग्लिश प्राकृतिकतत्त्ववेत्ता (Naturalist) थे, जिन्होंने जीव-विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी।
- उनका मुख्य कार्य था **"On the Origin of Species"** (प्रजातियों का उद्गम) जो 1859 में प्रकाशित हुई।
- इस पुस्तक में उन्होंने विकास के सिद्धांत को समझाया, जिसमें बताया कि जीव जनसंख्या में प्राकृतिक चयन (Natural Selection) के माध्यम से अनुकूलतम जीव ही अधिक सफल होते हैं और अपने गुण अगली पीढ़ी को देते हैं।
- डार्विन की यह पुस्तक इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि इसने जैविक विविधता और विकास की प्रक्रिया को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया और इसने जीवन की उत्पत्ति के बारे में पहली बार व्यवस्थित एवं गहराई से समझाइश दी।
- यह पुस्तक हमें विकास, जैविक विविधता, और जीवों के पर्यावरण के अनुकूल बनने के वैज्ञानिक सिद्धांतों को समझने में मदद करती है।
- यह प्राकृतिक दुनिया की क्रियाशीलता को समझने का आधार है, जो समाज, पर्यावरण और मानव विकास के अध्ययन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- हर्बर्ट स्पेंसर ने डार्विन के सिद्धांतों को समाजशास्त्र के संदर्भ में लागू किया, इसलिए डार्विन की मूल पुस्तक पढ़ना आवश्यक है ताकि हम प्राकृतिक चयन और विकास के वैज्ञानिक सिद्धांतों को बेहतर समझ सकें।


- हर्बर्ट स्पेंसर ने "योग्यतम की उत्तरजीविता" शब्द गढ़ा, जो डार्विन के प्राकृतिक चयन से जुड़ा है।  
- डार्विन ने "On the Origin of Species" में विकास का सिद्धांत दिया।  
- यह पुस्तक जैविक विकास और जीवन की विविधता को समझने में क्रांतिकारी थी।  
- दोनों के सिद्धांतों को समझना समाज और जीव विज्ञान के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए जरूरी है।


1. सामंतवाद के प्रति असंतोष (18वीं सदी यूरोप)
18वीं शताब्दी में यूरोप के लोग सामंती व्यवस्था के शोषण एवं सामाजिक अन्याय से असंतुष्ट हो गए थे। आम जनता में असुरक्षा, सामाजिक दमन, और पुरानी परंपराओं के विरुद्ध असंतोष बढ़ गया। लोग अपने परिवेश को बदलने, सामाजिक असमानता व शोषण से निजात पाने के लिए बेचैन थे।

 2. औद्योगिक क्रांति (1760) का प्रभाव
- **औद्योगिक क्रांति** ने समाज की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक संरचना में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए।
- पारंपरिक गाँव-प्रधान समाज टूटने लगे, और नगरीकरण, नए सामाजिक वर्ग (मजदूर, पूंजीपति आदि) अस्तित्व में आए।
- सामाजिक समस्याएँ जैसे- शोषण, बालश्रम, बेरोज़गारी, जनसंख्या में वृद्धि, महिला-सशक्तिकरण, आवास-संकट इत्यादि उभरने लगीं।
- इस तेज़ परिवर्तन ने समाज को समझने, उसके घटकों का वैज्ञानिक अध्ययन करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

 3. फ्रांसीसी क्रांति (1789) का प्रभाव
- **फ्रांसीसी क्रांति** ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व (liberty, equality, fraternity) की भावना को जन्म दिया और वर्गों पर आधारित सत्ता संरचना को तोड़ दिया।
- परंपरागत सत्ता (राजा, चर्च, सामंत) समाप्त कर लोकतांत्रिक और नागरिक अधिकारों पर आधारित समाज की स्थापना की गई।
- इस क्रांति ने सामाजिक विज्ञान के लिए एक नई विचारधारा को जन्म दिया, जिसके तहत मानव समाज के बदलते स्वरूप व उसकी व्याख्या जरूरी हो गई।

4. समाजशास्त्र का शैक्षणिक उद्भव
- उपरोक्त ऐतिहासिक परिस्थितियों के चलते विद्वानों ने समाज, उसके घटकों एवं घटनाओं का गहराई से अध्ययन करने के लिए एक स्वायत्त (autonomous) विज्ञान का विकास किया, जो ‘समाजशास्त्र’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 19वीं सदी में औगस्त कॉम्टे (Auguste Comte) ने इसे एक विशिष्ट सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित किया।

Part 2

 “समाजशास्त्र के पिता” ऑगस्ट कॉम्टे (Auguste Comte, 1798–1857) 



1. विज्ञानों का वर्गीकरण (Classification of Sciences)

ऑगस्ट कॉम्टे ने विज्ञानों को उनकी सरलता (simplicity) से लेकर जटिलता (complexity) और सामान्यता (generality) से लेकर विशिष्टता (speciality) के आधार पर क्रमबद्ध किया।
उनके अनुसार विज्ञानों की प्रगति और समाज की प्रगति में समानता है।

उन्होंने विज्ञानों को इस प्रकार क्रमबद्ध किया:

  1. गणित (Mathematics)

    • सबसे सरल और सबसे सामान्य विज्ञान।
    • सभी अन्य विज्ञानों का आधार।
  2. खगोलशास्त्र (Astronomy)

    • भौतिक वस्तुओं के नियमों का अध्ययन।
    • यह गणित पर आधारित है।
  3. भौतिकी (Physics)

    • प्रकृति के सामान्य नियमों का अध्ययन।
    • खगोलशास्त्र से अधिक जटिल।
  4. रसायनशास्त्र (Chemistry)

    • पदार्थों की संरचना और उनके आपसी परिवर्तन का अध्ययन।
    • भौतिकी से आगे बढ़कर पदार्थ के सूक्ष्म गुणों पर केंद्रित।
  5. जीवविज्ञान (Biology)

    • जीवित प्राणियों और उनके अंग-प्रत्यंगों का अध्ययन।
    • रसायनशास्त्र से अधिक जटिल और विशिष्ट।
  6. समाजशास्त्र (Sociology)

    • सबसे जटिल और विशिष्ट विज्ञान।
    • मानव समाज, उसके संगठन, संस्थाओं और विकास का अध्ययन।
    • कॉम्टे ने कहा कि यह "Queen of Sciences" है।

  यह वर्गीकरण ऑगस्ट कॉम्टे की पुस्तक “Course of Positive Philosophy” (1830–1842) में दिया गया है।


3. मुख्य बातें (Points में)

  • कॉम्टे का वर्गीकरण सोपान (hierarchy) के रूप में है – सरल से जटिल विज्ञान।
  • प्रत्येक विज्ञान अपने पूर्ववर्ती विज्ञान पर आधारित है।
  • सबसे ऊपर समाजशास्त्र है, क्योंकि यह सबसे जटिल और सबसे विशिष्ट है।
  • इस वर्गीकरण के ज़रिए कॉम्टे ने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि समाजशास्त्र भी एक "Science" है, और इसका भी उतना ही महत्व है जितना प्राकृतिक विज्ञानों का।



ऑगस्ट कॉम्टे : जीवन परिचय (Father of Sociology)

  1. पूरा नाम – इसिडोर मेरी ऑगस्ट फ्रांस्वा जेवियर कॉम्टे (Isidore Marie Auguste François Xavier Comte)।
  2. जन्म – 19 जनवरी 1798 को मॉन्टपेलियर, फ्रांस में हुआ।
  3. परिवारिक पृष्ठभूमि – एक कैथोलिक व रॉयलिस्ट परिवार से थे।
  4. शिक्षा
    • 1814 में École Polytechnique, Paris में प्रवेश लिया।
    • गणित और प्राकृतिक विज्ञानों में गहरी रुचि।
    • बाद में दार्शनिक और समाजशास्त्रीय चिंतन की ओर झुकाव।
  5. करियर
    • प्रारंभ में गणित के शिक्षक रहे।
    • दार्शनिक सेंट-साइमोन (Henri de Saint-Simon) के सहायक के रूप में कार्य किया।
    • बाद में स्वतंत्र रूप से समाजशास्त्रीय सिद्धांतों का विकास किया।
  6. योगदान
    • "Sociology" शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया।
    • समाज को वैज्ञानिक ढंग से समझने का प्रयास किया।
    • पॉज़िटिविज़्म (Positivism) का प्रतिपादन किया।
    • "तीन अवस्थाओं का नियम" (Law of Three Stages) दिया –
      1. धार्मिक अवस्था (Theological Stage)
      2. दार्शनिक/मेटाफिजिकल अवस्था (Metaphysical Stage)
      3. वैज्ञानिक/पॉज़िटिव अवस्था (Positive Stage)
    • समाज को "सोशल स्टैटिक्स" और "सोशल डायनेमिक्स" में बाँटा।
  7. मुख्य पुस्तकें
    • Course of Positive Philosophy (1830–1842)
    • System of Positive Polity (1851–1854)
  8. व्यक्तिगत जीवन
    • मानसिक तनाव और अवसाद (depression) से ग्रसित रहे।
    • 1845 में उनकी प्रिय कैरोलिन मासिन (Caroline Massin) से अलगाव हुआ।
    • 1845 के बाद क्लोटिल्ड दे वो (Clotilde de Vaux) से आध्यात्मिक संबंध ने उनके विचारों को गहराई दी।
  9. सम्मान – उन्हें “Father of Sociology” (समाजशास्त्र का पिता) और “Father of Positivism” कहा जाता है।
  10. मृत्यु – 5 सितम्बर 1857 को पेरिस, फ्रांस में।


समाजशास्त्र का उद्भव 18वीं सदी के यूरोप में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था में आए व्यापक और तीव्र परिवर्तनों की वैज्ञानिक व्याख्या की आवश्यकता के तहत हुआ। औद्योगिक और फ्रांसीसी क्रांतियों के प्रभाव से समाज का ढांचा पूरी तरह बदल गया था, जिससे नए सामाजिक वर्ग, समस्याएँ और वैचारिक आंदोलनों का जन्म हुआ। इन सबका व्यवस्थित अध्ययन और समाधान ढूंढने के लिए समाजशास्त्र एक पृथक वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में अस्तित्व में आया।


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