विवाह-पूर्व और विवाहेतर संबंधों का भारतीय समाज पर प्रभाव: तलाक और हत्याओं में वृद्धि का समाजशास्त्रीय विश्लेषण
1. प्रस्तावना
भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र संस्था है, जो न केवल दो व्यक्तियों, बल्कि दो परिवारों और समुदायों को जोड़ती है। यह सामाजिक स्थिरता, नैतिकता और पारिवारिक एकता का आधार रहा है। हालांकि, आधुनिकता, वैश्वीकरण और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के साथ, विवाह-पूर्व और विवाहेतर संबंधों की स्वीकार्यता और प्रचलन में वृद्धि हुई है। इन संबंधों ने भारतीय समाज में तलाक और हत्याओं जैसी गंभीर सामाजिक समस्याओं को बढ़ावा दिया है। यह लेख समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से इन संबंधों के कारणों, प्रभावों और सामाजिक परिणामों का विश्लेषण करता है, साथ ही इन समस्याओं के समाधान के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत करता है।
2. विवाह-पूर्व और विवाहेतर संबंधों का सामाजिक संदर्भ
2.1 विवाह-पूर्व संबंध (Premarital Relationships)
परंपरागत रूप से, भारतीय समाज में विवाह-पूर्व यौन या भावनात्मक संबंधों को नैतिक रूप से गलत और सामाजिक रूप से अस्वीकार्य माना जाता रहा है। हालांकि, शहरीकरण, शिक्षा और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता के कारण, खासकर शहरी क्षेत्रों में, विवाह-पूर्व संबंधों की स्वीकार्यता बढ़ी है। लिव-इन रिलेशनशिप जैसे वैकल्पिक संबंधों को कानूनी मान्यता प्राप्त होने से यह प्रवृत्ति और बढ़ी है।
2.2 विवाहेतर संबंध (Extramarital Relationships)
विवाहेतर संबंध, जिन्हें "adultery" या "extramarital affairs" कहा जाता है, शादीशुदा व्यक्तियों द्वारा अपने जीवनसाथी के अलावा अन्य व्यक्तियों के साथ भावनात्मक या यौन संबंध स्थापित करना है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, प्रेम संबंध हत्याओं के तीसरे सबसे बड़े कारण हैं, जो दर्शाता है कि विवाहेतर संबंध न केवल सामाजिक नैतिकता के लिए, बल्कि कानून-व्यवस्था और व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए भी खतरा बन रहे हैं ।
3. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से कारणों का विश्लेषण
3.1 सामाजिक परिवर्तन और आधुनिकता
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वैश्वीकरण और पश्चिमी प्रभाव: पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव, विशेष रूप से मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और रोमांटिक प्रेम की अवधारणाओं को बढ़ावा देता है, जो पारंपरिक भारतीय मूल्यों के साथ टकराव पैदा करता है।
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शहरीकरण और गतिशीलता: शहरी क्षेत्रों में लोग परिवार और समुदाय से दूर रहते हैं, जिससे सामाजिक नियंत्रण कमजोर पड़ता है और व्यक्तियों को विवाह-पूर्व और विवाहेतर संबंधों में शामिल होने की अधिक स्वतंत्रता मिलती है।
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महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता: महिलाओं की बढ़ती शिक्षा और रोजगार ने उनकी आर्थिक और सामाजिक स्वायत्तता को बढ़ाया है, जिससे वे असंतोषजनक वैवाहिक संबंधों को तोड़ने या विवाहेतर संबंधों में शामिल होने के लिए अधिक सशक्त हुई हैं।
3.2 बदलते वैवाहिक उद्देश्य
परंपरागत रूप से, भारतीय विवाह का उद्देश्य धार्मिक कर्तव्यों की पूर्ति और वंश वृद्धि था। लेकिन अब विवाह को व्यक्तिगत संतुष्टि, भावनात्मक और शारीरिक पूर्ति का साधन माना जाता है। यदि ये अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो लोग विवाहेतर संबंधों की ओर आकर्षित होते हैं या तलाक लेते हैं।
3.3 सामाजिक मानदंडों में कमी
पारंपरिक सामाजिक मानदंड, जैसे परिवार की प्रतिष्ठा और सामुदायिक दबाव, जो विवाह को बनाए रखने में मदद करते थे, अब कमजोर पड़ रहे हैं। इससे तलाक और विवाहेतर संबंधों की स्वीकार्यता बढ़ी है। यौन शिक्षा और सामाजिक जागरूकता की कमी भी एक कारण है, जिससे गलतफहमियां और अवास्तविक अपेक्षाएं बढ़ती हैं।
3.4 प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया
इंटरनेट और सोशल मीडिया ने लोगों को नए संबंध बनाने के अवसर प्रदान किए हैं। डेटिंग ऐप्स और सोशल नेटवर्किंग साइट्स विवाहेतर संबंधों को बढ़ावा दे रही हैं, क्योंकि वे गुप्त और आसान संचार की सुविधा प्रदान करते हैं। स्मार्टफोन और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने निजता के उल्लंघन को भी बढ़ाया है, जिससे वैवाहिक अविश्वास और हिंसा को बढ़ावा मिलता है।
4. तलाक और हत्याओं में वृद्धि के सामाजिक परिणाम
4.1 तलाक में वृद्धि
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 13.6 लाख लोग तलाकशुदा हैं, जो कुल आबादी का 0.11% और शादीशुदा आबादी का 0.24% है । विवाह-पूर्व संबंधों के कारण कई बार विवाह में विश्वास की कमी उत्पन्न होती है, जबकि विवाहेतर संबंध वैवाहिक असंतोष और विश्वासघात का कारण बनते हैं। इसके अलावा, महिलाओं की बढ़ती स्वतंत्रता ने उन्हें अपमानजनक या असंतोषजनक विवाह से बाहर निकलने का साहस दिया है।
4.2 हत्याओं में वृद्धि
एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, प्रेम संबंध हत्याओं के तीसरे सबसे बड़े कारण हैं, जो दर्शाता है कि विवाहेतर संबंध न केवल सामाजिक नैतिकता के लिए, बल्कि कानून-व्यवस्था और व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए भी खतरा बन रहे हैं ।
5. समाजशास्त्रीय सैद्धांतिक दृष्टिकोण
5.1 प्रकार्यवादी दृष्टिकोण (Functionalist Perspective)
प्रकार्यवादी, जैसे एमिल दुर्खाइम, समाज को एक एकीकृत प्रणाली मानते हैं, जहां विवाह सामाजिक स्थिरता और एकता का आधार है। विवाह-पूर्व और विवाहेतर संबंध इस संरचना को कमजोर करते हैं, जिससे सामाजिक विचलन जैसे तलाक और हिंसा बढ़ती है।
5.2 संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
संघर्ष सिद्धांतकारों का मानना है कि सामाजिक असमानताएं और शक्ति असंतुलन सामाजिक समस्याओं का मूल कारण हैं। भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक संरचना के कारण, पुरुषों को विवाहेतर संबंधों में शामिल होने की अधिक छूट मिलती है, जबकि महिलाओं को इसके लिए सामाजिक और कानूनी दंड का सामना करना पड़ता है।
5.3 प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
यह दृष्टिकोण व्यक्तियों के बीच अर्थ और प्रतीकों की भूमिका पर जोर देता है। विवाहेतर संबंधों को लेकर सामाजिक कलंक और व्यक्तिगत अपेक्षाएं जैसे प्रेम, विश्वास टकराव पैदा करती हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपने जीवनसाथी के विश्वासघात को सामाजिक प्रतिष्ठा के नुकसान के रूप में देख सकता है, जिससे हिंसक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है।
6. समाधान और सुझाव
6.1 यौन और सामाजिक शिक्षा
स्कूलों और कॉलेजों में यौन शिक्षा, वैवाहिक संबंधों, और सामाजिक नैतिकता पर पाठ्यक्रम शुरू किए जाएं। इससे युवाओं में स्वस्थ संबंधों और जिम्मेदार व्यवहार की समझ विकसित होगी।
6.2 कानूनी और सामाजिक सुधार
तलाक की प्रक्रिया को और सरल और सुलभ बनाया जाए, ताकि असंतुष्ट दंपति हिंसा के बजाय कानूनी रास्ता चुनें। विवाहेतर संबंधों से उत्पन्न हिंसा को रोकने के लिए सख्त कानून और तेजी से न्याय सुनिश्चित किया जाए।
6.3 परामर्श और समर्थन
वैवाहिक परामर्श केंद्रों की स्थापना की जाए, जहां दंपति अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ सकें। तलाकशुदा और एकल माता-पिता के लिए सामाजिक समर्थन प्रणाली विकसित की जाए, ताकि उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना न करना पड़े।
6.4 सामाजिक मानदंडों का पुनर्जनन
सामुदायिक और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएं। पितृसत्तात्मक मानसिकता को बदलने के लिए लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जाए।
7. निष्कर्ष
विवाह-पूर्व और विवाहेतर संबंध भारतीय समाज में सामाजिक परिवर्तन और आधुनिकता के परिणाम हैं, लेकिन इनके दुष्परिणाम, जैसे तलाक और हत्याओं में वृद्धि, सामाजिक स्थिरता के लिए खतरा बन रहे हैं। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, इन समस्याओं के पीछे सामाजिक मानदंडों का कमजोर पड़ना, व्यक्तिवाद का बढ़ना, और पितृसत्तात्मक संरचनाएं प्रमुख कारक हैं। इन समस्याओं का समाधान केवल कानूनी उपायों से नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता, शिक्षा, और सामुदायिक सहयोग से ही संभव है। भारतीय समाज को अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए आधुनिक मूल्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि वैवाहिक और पारिवारिक जीवन में स्थिरता और शांति बनी रहे।
लेखक: सत्यमित्र सिंह
स्थान: सिविल लाइंस, लालगंज, आज़मगढ़
संपर्क: 8840394042
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