Wednesday, November 18, 2020

राम

आप सभी को 'राम' 'राम'। 

https://youtu.be/g23p9HlTlVU

और राम से  सच्चा प्रेम रखते हैं, तो समय निकाल कर पढ़िए।
 
"राम-राम" शब्द कोई सामान्य नहीं है।सनातन संसार के समस्त साहित्य को धार्मिकता की दृष्टि से देखें 80% राम और कृष्ण के ही बारे में ही है,राम शब्द के बारे में स्वयं तुलसीदास जी ने कहा है कि ,
  "करऊँ कहां लगी नाम बड़ाई।
 राम न सकहि नाम गुण गाई"।।
  स्वयं राम भी राम शब्द की व्याख्या नहीं कर सकते ऐसा राम नाम है जैसा कि मैंने पहले कहा राम-राम शब्द जब भी प्रणाम होता है दो बार कहा जाता है इसके पीछे एक बहुत बड़ा वैदिक दृष्टिकोण है पूर्ण ब्रह्म का जो  मात्रिकगुणांक है 108है, वह राम- राम शब्द दो बार कहने से पूरा हो जाता है क्योंकि हिंदी वर्णमाला में"र" 27 वा अक्षर है, आ, की मात्रा दूसरा अक्षर ,और "म"25वां अक्षर इसलिए सब मिलाकर 54, गुणांक बनता है और दो बार राम राम कहने से 108 हो जाता है जो पूर्ण ब्रह्म का द्योतक है।
https://youtu.be/g23p9HlTlVU

    आदरणीय सज्जनों राम ,समस्त शास्त्रों के शाश्वत शिल्प के रूप में आज भी बरकरार है, राम विश्व संस्कृत के अप्रतिम मानव हैं, वे सभी सुलक्षण, सद्गुणों, सदा चरणों से युक्त हैं, वे मानवीय मर्यादाओं के पालक एवं संवाहक है।इसलिए एक संपूर्ण मानव है।सामाजिक जीवन मे देखें, राम आदर्श मित्र हैं, राम आदर्श पुत्र हैं, राम आदर्श पति हैं, राम आदर्श शिष्य हैं ,राम आदर्श स्वामी है, राम आदर्श है,अर्थात समस्त आदर्शों के एक मात्र 'न्यादर्श' राम हैं ,ईसलिय केवल एक राम है,जिन्हे भूतपूर्व राजा राम नही बल्कि 'राजारामचन्द्र की जय' कहा जाता है।

 'राम' शब्द की उत्पत्ति के बारे में बहुत सारे विद्वानों ने बहुत सारी बातें कही हैं। किसी ने राम को संस्कृत की दृष्टि से 'रम' और घम' धातु से  उतपन्न बताया है ,रम ,का मतलब रमना होता है और घम का मतलब होता है कि ब्रह्मांड का खाली स्थान अर्थात राम का अर्थ हुआ कि सकल ब्रह्मांड में जो रमा हुआ है।
  कहीं-कहीं मिलता है कि 
  'रमंते योगिन्ह यश्मिन रामः" 
 अर्थात जो योगियों में रमण करते हैं वही राम है ,राम के बारे में विद्वानों ने लिखा है कि रतिऔर महीधर शब्द से जिसमे रति के र का तातपर्य परम् ज्योतितसत्ता ,और महिधर के म से लेकर के संपूर्ण विश्व के जो सर्वश्रेष्ठ ज्योतिष सत्ता है वह राम है।  

   साहित्य का अध्ययन करें तो  'रावणस्य मरणम राम,'

अर्थात राम वह है जो रावण को मारता है, 



  इसलिए परम् प्रकाशक रामू।तुलसी ने उस डिवाइन लाइट की बात की,अर्थात राम का अर्थ आभा अथवा कांति है इसमें रा का अर्थ आभा से है और म का अर्थ मैं और मेरा है ,कहने का तात्पर्य है राम वह है जो मेरे अंदर जीवंतता प्रदान करता है।
  राम के बारे में बहुत सारी कथाएं बताती है, राम विराम है ,राम विश्राम है, राम अभिराम है, राम आनन्द है ,राम आरोग्यहै, यहां एक बात और स्पष्ट कर देना है कि राम,के विभन्न उपासको ने राम चरित्र चित्रण अलग अलग किया है,जैसे बाल्मीकि जका 'राम' वेदना युक्त हैं तो भवभूति का 'राम' इतना दुखी है कि वह पत्थर को भी रुला सकता है ,तुलसी का राम मर्यादा में पड़ा हुआ है मर्यादा कभी नहीं छोड़ता और तुलसी के राम  तो जनता के सुख-दुख से प्रतिध्वनित राम है।
  
   राम विश्व संस्कृति के अप्रतिम मानव हैं यही कारण है कि रामलीला मानव जीवन का नवोत्थान है, यह महोत्सव आत्मचिंतन और व्यवहार की समीक्षा करता है इसलिए कॉल दर काल से इसकी समकालीनता बनी हुई है ।गांधीजी का विचार देखें तो हम पाते हैं कि गांधी का राम विश्व संस्कृति के प्रतीक 'राम' है इसलिए राम के बारे में कुछ कहना राम के बारे में सोचना सामान्य नहीं है,
 राम निराश्रित जनों की  'सन्धि' है, हारे हुए लोगों के वह 'समास' हैं।कहा भी गया है कि 
'हारे को हरिनाम' '
 विपत्ति में राम का काम विनय विवेक कि जागृत करना है, राम संकल्प समर्पण स्वसृजन और आंतरिक क्रांति के जनक हैं इसलिए 'राम' को परम तत्व के रूप में स्वीकार किया जाना माना जाता है ।

  राम शब्द या राम नाम रखते समय वशिष्ठ ने स्वयं कहा था!
"जो आनंद सिंधु सुखरासी। 
 सीकर ते त्रैलोक सुपासी ।।    
सो सुखधाम राम  अस नामा ।
अखिल लोकदायक विश्रामा ।।
 कहने का तातपर्य जिस आनन्द सिंधु के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं।वह राम है,
राम नाम की महत्ता इतनी और दुर्भाग्य यह कि इस देश का,कि संसार में जिन जिन धर्मों के इष्ट हैं सबके अपने देवस्थान और यहां तक कि निश्चित रूप से सबकी अपनी प्रतीकों की व्यवस्था है परंतु भारत एक ऐसा अभागा देश रहा जहां राम  को स्वयं अपने जन्म स्थान के लिए 500 वर्ष इंतजार करना पड़ा और अभी दो दिन पूर्व राम अपने घर में आए ।
  सज्जनों 
इसलिए मैं मानता हूं कि राम का मंदिर यह नहीं है, बल्कि जन जन के राम हैं इसलिए राम के मंदिर को "राष्ट्र मंदिर "कहा जाना चाहिए। 

 राम के चरित्र पर रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि
' हे राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है !
  और कोई कवि बन जाए ,सहज संभाव्यहै"!!
 राम के बारे में हमारे आदरणीय बुद्धसेन जी ने कहा कि 
'समय शिला पर सूर्य रश्मि से लिखा तुम्हारा नाम।
  जग कहता धरती की धड़कन' हम कहते हैं राम।।
  हम कहते हैं राम।।
   सत्य न्याय और धर्म सनातन के मृणय आदर्श।
  श्रेष्ठ धनुर्धर तुमसे दीपित भारतवर्ष।  

पाकर मृदु संस्पर्श, बन गया दंडक वन भी धाम।।

बामन से विराट तक  सबका जो है पालनहार।
   करुणा सागर पाठजनों के दुखियों के आधार।   

मर्यादा की शिखर कल्पना पाती जहां विराम।
   जग कहता धरती की धड़कन हम कहते हैं राम।।
  हम कहते हैं राम।।
   राम के बारे में सनातन धर्म के घोर विरोधी बौद्धों ने भी राम के महत्व को समझा, विद्वानों बौद्ध धर्म में दशरथ जातक 'दशरथ कथानिकम' राम के बारे में लिखा गया है आठवीं शताब्दी में जब बौद्धों का' उत्कर्ष था तब 'तिब्बती रामायण लिखी गई और नवमी शताब्दी में जब मुगलों का उत्कर्ष था तो तुर्की जैसे देश में 'खोताई रामायण' लिखी गई। भारत में राम पर जितना लिखा गया है संसार के ग्रंथाल्यो रखने की जगह नही रह जायेगी ।सम्पूर्ण पृथ्वी भर सकती हैं, 

  "असितगिरीसम कंजलम सिन्धुपात्रे लेखान्यामपत्रामुरवी।
 लिखति यदि ग्रहीत्वा शारदासर्वकालम तदपि तव गुणानाम ईशं पारं न याति।।

   अर्थात संसार में जितने भी पर्वत हैं उनकी स्याही बना दी जाए और समुद्र में उसे घोर दिया जाए, जितने वृक्ष हैं उनकी शाखाओं को कलम बना दी जाए और सर्वकाल स्वयं सरस्वती लिखें तब भी आपके गुणों को नहीं लिखा जा सकता ।
 क्योंकि 'हरि अनंत हरि कथा अनंता!! 

राम के धैर्य राम की सहनशक्ति और राम की समरसता का पालन सब नहीं कर सकते क्योंकि गरीब से गरीब के जुड़ने के कारण ही राम को "गरीब नवाज" ,निर्बल के बल राम"कहा गया राम की संस्कृति में बांट कर खाने की संस्कृति है उसमें एकत्र करने कि कहीं विकृति नहींहै। राम-राम है आप रामचरितमानस को देखें तो लिखा गया है 'विरुद्ध वैभव भीम रोग के" अर्थात 'करोना' जैसी महामारी के समय राम का धैर्य' राम की प्रकृति उपासना; राम की जनसेवा राम की पावित्रता ,राम की शारीरिक दूरी, राम की स्वच्छता राम की निराश्रित जनों से प्रेम ,वाकई राम की संस्कृति को ला सकता  यही से करोना से मुक्ति की  भी शिक्षा मिलती है।मेरा मानना है रामचरितमानस को, राम की ज्योति सत्ता को जानने के लिए सकल ब्रह्मांड में निहित राम को जानने के लिए जरूर पढ़ना चाहिए। हमारी भारतीय संस्कृति में अभिवादन प्रणाम में दो बार 'राम राम' कहने की जो संस्कृति है आप उसे जान ही चुके हैं समर्थ गुरु रामदास ने उस संस्कृति में 'जयराम' जोड़ा इसलिए किसी से नमस्ते करने में राम-राम अथवा 'जयराम'कहा जाता है। राम के बारे में लिखना राम के बारे में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाना है मन की एक विचारधारा थी लिख दिया हूं।   

   रामनवमी पर यह विशेष आग्रह था आपके श्री चरणों में समर्पित है श्रीरामावतार, रामनवमी पर्व पर आपको बधाई देता हूं,प्रभु श्रीराम से आपके सुंदर सुखद जीवन की मंगल कामना करता हूं, मेरी पूरी पोस्ट पढियेगा,यह प्रार्थना है।
  
राम के जीवन से यही सीख मिलती है,जब व्यक्ति सन्तुलित जीवन चर्या रखेगा तो उसके जीवन मे सदाचार खुद ब खुद आजाएगा, वह प्रकृतिस्थ हो जाएगा,परोपकारी,जीवों पर दयाकारी हो जायेगा, तब  अलौकिक कान्तियुक्त स्वस्थ होगा,
 मध्य दिवस अरु शीत न घामा,  अर्थात न आलसी बनिये और न व्यवहार से आक्रामक,जब आप आध्यत्म भरा कर्तब्यनिष्ठ जीवन जियेंगे तो आपका शरीर और मन सन्तुलित हो जाएगा  और आप 'राम' जैसे हो जाएंगे, तभी आपका विवेक जागृत हो जाएगा,और दुष्प्रवित्तियाँ स्वतः हटने लगेगी, करोना जैसी बीमारी मुक्त हो जाएगी।
अयोध्या जो भगवान का घर है,उसका तातपर्य जहाँ युध्द न हो,अर्थात स्वार्थ साधना की प्रवित्तियों पर विजय,'हर्षित महतारी'शब्द आया है ,जीवन को सद्कर्मो से पोषित करने पर मातृरूपी प्रवित्तिया बढ़ती है,अर्थात राष्ट्र भावना,परोपकार,दया,करुणा जागृति होती है,यही जागृति होना हर्षित होना है, 
  
अंत मे यही कहूंगा कि श्रीराम अवतार लेते है,जन्म नही,काश राम के कुछ ही गुण रूपी अवतार हम अपने  में ला लेते तो श्रीरामावतार के इस पर्व की सार्थकताऔर बढ जाती ।

इस अवसर पर भगवान राम से समकालीन समाज की सोच क्या है,इससे मुक्ति हेतु मिथलेश जी की रचना
  "है  रामनवमी  पर्व  पर  श्री  राम   तुमसे   याचना।

फिर पापपीड़ित भूमि पर अवतार लो यह प्रार्थना।।

तब से जटिल दुर्जेय जीवन की समस्या आज है।
इस हेतु रोग असाध्य-सा अब धर्म रक्षा काज है।।

तब-सी न केवल एक लंका भूमि पर अब आज है।
अब लोभ की लंका करोड़ों दाद में  ज्यों खाज  है ।।

अपराध -भ्रष्टाचार  के  रावण  अनंतानंत  अब ।
नर के हृदय के लंक में रहते छिपे ज्यों संत अब।।

उनके अमानुष कृत्य से धरती  दहलती जा  रही।
परिणाम में 'करोना' आदिक आपदा नित आ रही।।

नित निशिचरी संत्रास  से है शांति सबकी खो गई।
है नरक- जैसी जिंदगी अतिशय मनुज की हो गई।।

उद्धार करने भूमि  का  फिर राम जी अवतार लो।
इस  रामनवमी पर्व पर मम प्रार्थना स्वीकार लो ।

 

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