Research Proposal
Mukhyamantri Uchch Shiksha Shodh Protsahan Yojna 2025-26
(Department of Higher Education, Govt. of Uttarakhand)
1. Broad Area of Subject:
समाजशास्त्र
2. Specialization:
ग्रामीण समाजशास्त्र, लिंग अध्ययन, प्रवासन अध्ययन, सामाजिक परिवर्तन
3. Project Title:
"उत्तराखंड के पर्वतीय समाज में महिला-प्रशासित परिवार: प्रवासन की पृष्ठभूमि में उभरती पारिवारिक संरचनाएँ"
4. Introduction (Origin of Proposal):
4. Introduction (Origin of the Proposal)
(शीर्षक: उत्तराखंड के पर्वतीय समाज में महिला-प्रशासित परिवार: प्रवासन की पृष्ठभूमि में उभरती पारिवारिक संरचनाएँ)
उत्तराखंड के पर्वतीय समाज की पहचान उसके सांस्कृतिक वैभव, प्राकृतिक कठिनाइयों, और सामूहिक सहजीवन की परंपरा में निहित है। किंतु बीते कुछ दशकों में, इस समाज की पारिवारिक संरचनाओं में एक अदृश्य परंतु गहन सामाजिक परिवर्तन घटित हुआ है — प्रवासी पुरुषों की स्थायी अथवा दीर्घकालिक अनुपस्थिति के कारण, अब महिलाओं ने पारिवारिक, आर्थिक और सामुदायिक उत्तरदायित्वों का नेतृत्व अपने हाथों में लेना प्रारंभ कर दिया है। इस परिघटना ने एक ऐसी नवपरिभाषित संरचना को जन्म दिया है, जिसे हम 'महिला-प्रशासित परिवार' के रूप में पहचान सकते हैं।
इस शोध प्रस्ताव की प्रेरणा, उत्तराखंड के उन सैकड़ों गाँवों की वास्तविकता से उपजती है जहाँ पुरुषों का रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर पलायन एक सामान्य प्रक्रिया बन चुका है। यह प्रवासन केवल भौगोलिक विस्थापन नहीं, बल्कि सामाजिक संरचना, अधिकार वितरण, निर्णय-निर्माण और जेंडर भूमिकाओं में आमूल-चूल परिवर्तन का वाहक बन गया है। इन परिवर्तनों का अध्ययन न केवल अकादमिक महत्व रखता है, बल्कि नीति निर्माण, महिला सशक्तिकरण, और ग्रामीण विकास के लिए आवश्यक मार्गदर्शन भी प्रदान कर सकता है।
इस प्रस्ताव के मूल में यह समझ है कि "पारिवारिक संरचना" कोई स्थिर इकाई नहीं, बल्कि समाज की आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों से निरंतर रूपांतरित होती रहने वाली जीवंत संरचना है। महिला-प्रशासित परिवारों की उभरती भूमिका को समझना, एक ओर तो समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से 'लैंगिक भूमिका परिवर्तन' और 'पारिवारिक सत्ता संरचना' का विश्लेषण है, वहीं दूसरी ओर यह अनुसंधान एक मानवीय दृष्टिकोण से उन संघर्षों, जिम्मेदारियों, सामर्थ्य और नेतृत्व की कहानियों को सामने लाने का प्रयास है, जो अब तक हाशिए पर रही हैं।
इस अध्ययन के पीछे एक मानवीय संवेदना भी कार्यरत है — पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों के बीच जब एक महिला खेत, घर, बच्चों की पढ़ाई, वृद्धजनों की देखभाल और आर्थिक फैसलों की जिम्मेदारी एक साथ उठाती है, तो वह केवल एक 'परिवार की मुखिया' नहीं होती, वह पूरे सामाजिक परिवेश की पुनर्रचना में भागीदार बन जाती है। उसका अनुभव, उसकी रणनीतियाँ और उसकी चुनौतियाँ — सभी समाजशास्त्र के गवेषणीय क्षेत्र हैं।
यह शोध प्रस्ताव, उत्तराखंड की उस ‘नारी शक्ति’ को एक गंभीर अकादमिक स्वर देने का प्रयास है, जो आज के समय में न केवल परिवार का संचालन कर रही है, बल्कि ग्रामीण समाज के सामाजिक-सांस्कृतिक पुनर्संयोजन में भी निर्णायक भूमिका निभा रही है। अतः यह अध्ययन, प्रवासन की पृष्ठभूमि में उत्तराखंड के पारिवारिक ढांचे में आ रहे इस परिवर्तन की पहचान, विश्लेषण और व्याख्या के माध्यम से एक महत्वपूर्ण सामाजिक विमर्श को समृद्ध करने की आकांक्षा रखता है।
यदि आप चाहें, तो अगले खंड — Objectives, Methodology, Review of Literature आदि — भी मैं इसी भाषा-शैली में तैयार कर सकता हूँ।
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2-उत्तराखंड में तीव्र सामाजिक-आर्थिक पलायन के कारण अनेक परिवारों में पुरुष सदस्यों का स्थायी रूप से बाहर जाना आम हो गया है। इसके परिणामस्वरूप महिलाएँ न केवल परिवार की मुखिया बनती जा रही हैं, बल्कि खेती, बच्चों की शिक्षा, ग्राम पंचायत के कामकाज, सामाजिक निर्णयों एवं स्वास्थ्य संबंधी मामलों में भी केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं। इस परिवर्तन ने पारंपरिक पितृसत्तात्मक संरचना को चुनौती दी है और महिलाओं में नेतृत्व की संभावनाएं बढ़ी हैं। यह अध्ययन इस बदलते परिदृश्य को समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से समझने का प्रयास है।
5. Review of Research and Development in the Proposed Area:
उत्तराखंड के पलायन पर कई रिपोर्टें उपलब्ध हैं — जैसे पलायन आयोग की रिपोर्ट (2018), विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अध्ययन आदि। परंतु "महिला-प्रशासित परिवार" (Women-headed Households) पर सीमित शोध हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर UNDP, ILO, और Ministry of Women & Child Development द्वारा ऐसे परिवारों पर कुछ शोध प्रकाशित हुए हैं, पर उत्तराखंड जैसे विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों में यह एक नया शोध क्षेत्र है।
6. Objectives of the Proposed Project:
यह रहा आपका 7. प्रस्तावित परियोजना के उद्देश्य खंड — हिंदी में, उच्च अकादमिक स्तर, ओजपूर्ण और मानव-स्पर्श के साथ, जैसा आपने निर्देश दिया था:
7. प्रस्तावित परियोजना के उद्देश्य
(शीर्षक: उत्तराखंड के पर्वतीय समाज में महिला-प्रशासित परिवार: प्रवासन की पृष्ठभूमि में उभरती पारिवारिक संरचनाएँ)
यह अनुसंधान परियोजना उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पुरुष प्रवासन की पृष्ठभूमि में उभरते महिला-प्रशासित परिवारों की संरचना, सामाजिक भूमिका और दीर्घकालिक प्रभावों का समाजशास्त्रीय विश्लेषण करने का प्रयास है। यह अध्ययन केवल आँकड़ों के संग्रह तक सीमित न रहकर, उन सूक्ष्म सामाजिक गतियों की पहचान करेगा जो समाज के पारंपरिक ढाँचों में मौलिक बदलाव ला रही हैं। इस परियोजना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
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उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों में महिला-प्रशासित परिवारों की संरचनात्मक और सामाजिक विशेषताओं का विश्लेषण करना, जिससे यह समझा जा सके कि प्रवासी पुरुषों की अनुपस्थिति में परिवार किस प्रकार पुनर्गठित हो रहे हैं और महिला नेतृत्व की भूमिका किस तरह विकसित हो रही है।
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प्रवासन की पृष्ठभूमि में महिलाओं की निर्णय-निर्माण क्षमता, आर्थिक भागीदारी एवं पारिवारिक नेतृत्व में आए परिवर्तन का सूक्ष्म अध्ययन करना, ताकि यह जाना जा सके कि क्या यह सशक्तिकरण का स्थायी रूप ले रहा है अथवा मात्र एक कार्यात्मक आवश्यकता है।
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पारंपरिक लिंग-भूमिकाओं में आए सूक्ष्म व स्पष्ट परिवर्तनों का विवेचन करना, विशेष रूप से यह जानने हेतु कि किस सीमा तक प्रवासन ने पारिवारिक व सामुदायिक ‘लैंगिक सत्ता संतुलन’ को पुनर्परिभाषित किया है।
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महिला-प्रशासित परिवारों के समक्ष उत्पन्न सामाजिक, आर्थिक, भावनात्मक तथा प्रशासनिक चुनौतियों की पहचान करना, तथा यह समझना कि सीमित संसाधनों और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच महिलाएँ कैसे रणनीतिक रूप से इन चुनौतियों का सामना कर रही हैं।
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स्थानीय समुदाय, ग्राम पंचायत, सामाजिक संस्थानों और प्रशासनिक ढाँचों द्वारा महिला नेतृत्व को दी जा रही स्वीकृति, सहयोग या प्रतिरोध के स्वरूपों का मूल्यांकन करना, जिससे यह जाना जा सके कि सामाजिक परिवर्तन को लेकर समाज की प्रतिक्रियाएँ कितनी सहायक या बाधक हैं।
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इस सामाजिक परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभावों की पड़ताल करना, जैसे बच्चों के समाजीकरण में परिवर्तन, पीढ़ियों के बीच भूमिका-विन्यास में बदलाव, और ग्राम्य जीवन की सांस्कृतिक बुनावट पर पड़ने वाले प्रभाव।
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नीति-निर्माताओं और स्थानीय संस्थाओं के लिए तथ्य-आधारित सुझाव विकसित करना, ताकि प्रवासनजन्य सामाजिक-आर्थिक पुनर्रचना की चुनौती से निपटने हेतु महिला-प्रशासित परिवारों को संस्थागत समर्थन प्रदान किया जा सके।
इन उद्देश्यों के माध्यम से यह अध्ययन न केवल उत्तराखंड के पर्वतीय समाज के एक विशिष्ट सामाजिक यथार्थ को उद्घाटित करेगा, बल्कि एक सजीव समाजशास्त्रीय हस्तक्षेप के रूप में उभरकर नीतिगत और अकादमिक विमर्श को समृद्ध करेगा।
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- महिला-प्रशासित परिवारों की सामाजिक संरचना का अध्ययन
- प्रवासी पुरुषों की अनुपस्थिति में महिलाओं की भूमिका का मूल्यांकन
- महिलाओं की आर्थिक, कृषि, पारिवारिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों का विश्लेषण
- सामाजिक लचीलापन के संकेतकों की पहचान
- महिला-सशक्तिकरण नीतियों हेतु अनुशंसाएं प्रस्तुत करना
7. Methodology:
- रिसर्च डिज़ाइन: गुणात्मक और मात्रात्मक
- डेटा संग्रहण:
- प्राथमिक डेटा: साक्षात्कार, फोकस ग्रुप चर्चा (FGDs)
- द्वितीयक स्रोत: सरकारी रिपोर्टें, जनगणना आदि
- नमूना चयन: 3 जिले, 6 गांव, 120-150 महिला उत्तरदाता
- डेटा विश्लेषण: SPSS और NVivo द्वारा
आपके संशोधित निर्देशों के आधार पर, मैंने कार्यप्रणाली खंड को और अधिक सुसंगत, स्पष्ट एवं शैक्षणिक रूप से समृद्ध बनाया है। इसमें गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों दृष्टिकोणों को शामिल किया गया है, साथ ही आधुनिक डेटा विश्लेषण तकनीकों का उल्लेख भी किया गया है। कृपया अद्यतन खंड पढ़ें:
8. कार्यप्रणाली (Methodology)
(शीर्षक: उत्तराखंड के पर्वतीय समाज में महिला-प्रशासित परिवार: प्रवासन की पृष्ठभूमि में उभरती पारिवारिक संरचनाएँ)
यह अध्ययन गुणात्मक (Qualitative) तथा मात्रात्मक (Quantitative) अनुसंधान डिज़ाइन पर आधारित होगा, जो उत्तराखंड के पर्वतीय समाज में प्रवासन के कारण उत्पन्न हो रही पारिवारिक संरचनाओं, महिला नेतृत्व, सामाजिक भूमिकाओं और स्थानीय प्रशासन में महिला भागीदारी का बहुआयामी विश्लेषण करेगा। अनुसंधान में अंतर्विषयक दृष्टिकोण (interdisciplinary perspective) को अपनाते हुए समाजशास्त्र, महिला अध्ययन, मानव भूगोल और ग्रामीण विकास के दृष्टिकोणों को समाहित किया जाएगा।
1. अध्ययन क्षेत्र का चयन (Selection of Study Area):
शोध हेतु उत्तराखंड के दो पर्वतीय जिले – अल्मोड़ा एवं पौड़ी गढ़वाल को चयनित किया जाएगा, जहाँ पुरुषों का स्थायी प्रवासन अपेक्षाकृत अधिक है। प्रत्येक जिले से 3-3 ग्राम पंचायतों (कुल 6 गाँव) का चयन उद्देश्यपूर्ण नमूना चयन (Purposive Sampling) विधि के माध्यम से किया जाएगा। चयन का आधार होगा:
- उच्च प्रवासन दर
- महिला-प्रशासित परिवारों की उपस्थिति
- प्रशासनिक पहुँच की सुविधा
2. नमूना आकार एवं चयन (Sample Size and Sampling Technique):
प्रत्येक चयनित ग्राम में 20 से 25 महिला मुखिया उत्तरदाताओं को शामिल किया जाएगा। इस प्रकार कुल 120 से 150 महिला उत्तरदाता शोध में सम्मिलित होंगी।
नमूना चयन हेतु गैर-सांख्यिकीय (Non-Probability) Purposive Sampling तकनीक को अपनाया जाएगा ताकि उन परिवारों पर केंद्रित रहा जा सके जो प्रत्यक्ष रूप से प्रवासनजन्य प्रभावों के अंतर्गत आते हैं।
3. डेटा संग्रहण की विधियाँ (Methods of Data Collection):
(क) प्राथमिक स्रोत (Primary Sources):
- अर्ध-संरचित साक्षात्कार (Semi-Structured Interviews): प्रत्येक महिला उत्तरदाता से व्यक्तिगत साक्षात्कार के माध्यम से उनके अनुभव, पारिवारिक निर्णय प्रक्रिया, सामाजिक उत्तरदायित्व, और सामुदायिक सहभागिता के विषय में जानकारी एकत्र की जाएगी।
- फोकस ग्रुप चर्चाएँ (Focus Group Discussions – FGDs): प्रत्येक गाँव में 6-8 महिला प्रतिभागियों के साथ समूह चर्चा आयोजित की जाएगी, जिससे सामूहिक अनुभवों, रूढ़ियों और महिला नेतृत्व की व्यवहारिक चुनौतियों की जानकारी प्राप्त हो सके।
- प्रत्यक्ष अवलोकन (Participant Observation): शोधकर्ता द्वारा चयनित गाँवों में सीमित समय के लिए निवास कर महिला नेतृत्व की भूमिका, पारिवारिक संगठन और सामाजिक सहभागिता का सीधा अवलोकन किया जाएगा।
(ख) द्वितीयक स्रोत (Secondary Sources):
- सरकारी रिपोर्टें, जनगणना 2011, राज्य प्रवासन सर्वेक्षण, पंचायती राज दस्तावेज़, महिला एवं बाल विकास विभाग की रिपोर्ट्स, तथा
- प्रासंगिक शोध लेख, केस स्टडीज, एवं स्थानीय अख़बारों की रिपोर्ट्स का समावेश।
4. डेटा विश्लेषण की प्रक्रिया (Data Analysis Techniques):
डेटा विश्लेषण हेतु गुणात्मक तथा मात्रात्मक दोनों तकनीकों का प्रयोग किया जाएगा:
- गुणात्मक डेटा का विश्लेषण थीमैटिक एनालिसिस (Thematic Analysis) की सहायता से किया जाएगा, जहाँ प्रतिभागियों के कथनों, अनुभवों और सामाजिक क्रियाओं को कोडिंग, वर्गीकरण एवं संदर्भानुकूल व्याख्या के माध्यम से समाजशास्त्रीय अवधारणाओं से जोड़ा जाएगा।
- मात्रात्मक डेटा का विश्लेषण SPSS या R Software के माध्यम से किया जाएगा, जिसमें साधारण सांख्यिकीय विश्लेषण (जैसे – आवृत्ति, प्रतिशत, सह-संबंध) किया जाएगा, जिससे उत्तरदाताओं के सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल तथा पैटर्न्स स्पष्ट हों।
5. नैतिक विचार (Ethical Considerations):
शोध कार्य में सभी उत्तरदाताओं की गोपनीयता, गरिमा तथा निजता का पूर्ण ध्यान रखा जाएगा।
- प्रत्येक सहभागी से पूर्व-सहमति (Informed Consent) प्राप्त की जाएगी।
- उत्तरदाता अपनी मर्ज़ी से किसी भी समय शोध से बाहर हो सकते हैं।
- अनुसंधान किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत हानि, मनोवैज्ञानिक दबाव या सांस्कृतिक अपमान से मुक्त रहेगा।
यह कार्यप्रणाली शोध को केवल एक तथ्यात्मक अध्ययन न रहकर, उत्तराखंड की स्त्री चेतना, प्रवासनजन्य पारिवारिक परिवर्तन और ग्राम्य समाज की सामाजिक पुनर्रचना के प्रति एक संवेदनशील, प्रामाणिक और समाजशास्त्रीय दस्तावेज़ में रूपांतरित करेगी।
8. Duration of the Proposed Project:
12 माह
9. Work Plan:
- माह 1-2: साहित्य समीक्षा, प्रश्नावली निर्माण
- माह 3-6: क्षेत्र कार्य
- माह 7-9: डेटा विश्लेषण
- माह 10-11: रिपोर्ट लेखन
- माह 12: अंतिम प्रस्तुति
10. Relevance for Society and Policymaking:
यह शोध महिला नेतृत्व, सामाजिक लचीलापन और महिला-सशक्तिकरण को राज्य नीति से जोड़ने में सहायक होगा।
यहाँ प्रस्तुत है खंड 10. समाज एवं नीतिनिर्धारण के लिए प्रासंगिकता (Relevance for Society and Policymaking) — आपकी शोध विषयवस्तु, भाषा शैली और समाजशास्त्रीय सरोकारों के अनुरूप परिष्कृत रूप में:
10. समाज एवं नीतिनिर्धारण के लिए प्रासंगिकता (Relevance for Society and Policymaking)
यह शोध उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में प्रवासन की पृष्ठभूमि में उभरते महिला-प्रशासित परिवारों की संरचना, कार्यप्रणाली और सामाजिक अनुभवों का सम्यक् समाजशास्त्रीय मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। यह अध्ययन न केवल अकादमिक संदर्भों में नवीन दृष्टिकोण प्रदान करेगा, बल्कि राज्य नीति निर्माण, स्थानीय प्रशासन और महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों के लिए भी ठोस आधार विकसित करेगा।
1. महिला नेतृत्व और ग्राम्य शासन के लिए योगदान:
शोध में सामने आने वाले अनुभव और निष्कर्ष यह स्पष्ट करेंगे कि किस प्रकार महिलाएँ प्रवासन की स्थिति में पारिवारिक, सामाजिक एवं पंचायत स्तर पर नेतृत्व की भूमिकाओं में सशक्त रूप से उभरती हैं। यह जानकारी स्थानीय शासन (Panchayati Raj) को लैंगिक समावेशन की दिशा में अधिक सक्षम एवं उत्तरदायी बना सकती है।
2. सामाजिक लचीलापन (Social Resilience) की समझ:
इस अध्ययन से यह उद्घाटित होगा कि महिलाएँ सामाजिक-आर्थिक संकट की स्थितियों—जैसे प्रवासन, श्रमिक-अभाव, एवं संसाधन-संकट—के बावजूद किस प्रकार सामाजिक लचीलापन प्रदर्शित करती हैं। यह निष्कर्ष आपदा प्रबंधन, गरीबी उन्मूलन एवं आजीविका योजनाओं की रूपरेखा में सहायक होंगे।
3. महिला-सशक्तिकरण की नीतिगत पुनर्व्याख्या:
अध्ययन से प्राप्त अनुभवजन्य प्रमाण यह दर्शा सकते हैं कि पारंपरिक 'कल्याणकारी' दृष्टिकोण से आगे बढ़कर महिला सशक्तिकरण को सामुदायिक नेतृत्व, निर्णय-निर्माण और संसाधन नियंत्रण से जोड़ा जाना चाहिए। यह उत्तराखंड राज्य की महिला नीति, स्वयं सहायता समूह योजनाओं, और आजीविका मिशनों के स्वरूप को और अधिक प्रभावी बनाने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
4. प्रवासन और ग्रामीण विकास नीतियों के समन्वय में सहायक:
चूँकि यह अध्ययन प्रवासन की पारिवारिक संरचनाओं पर पड़ने वाले प्रभाव का गहन विश्लेषण करता है, इसलिए इसके निष्कर्ष प्रवासन नीति, रिवर्स माइग्रेशन योजनाओं, एवं स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन से जुड़ी योजनाओं को संवेदनशील और लचीला रूप देने में उपयोगी होंगे।
5. नीति-निर्माताओं, प्रशासकों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए उपकरण:
शोध में संकलित जीवन-कथाएँ, अनुभव और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ नीति निर्माताओं को 'नीचे से ऊपर' (bottom-up) दृष्टिकोण से योजनाओं के निर्माण हेतु सशक्त सामग्री प्रदान करेंगी, जिससे योजनाएँ अधिक यथार्थपरक, जनोन्मुखी और प्रभावी बन सकेंगी।
इस प्रकार यह शोध पर्वतीय भारत में महिलाओं के अनुभवों और सामाजिक उत्तरदायित्व की पड़ताल करते हुए राज्य को एक ‘सुनने वाला’ और ‘प्रतिक्रियाशील’ शासन तंत्र बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण समाजशास्त्रीय योगदान प्रस्तुत करता है।
11. References:
- Uttarakhand Migration Commission Report (2018)
- Ministry of Women and Child Development Reports
- UNDP (2023): Women and Resilience in Rural India
- Census of India (2011)
- J.S. Rawat et al (2020): Migration and Gender in Uttarakhand
12. Financial Requirement:
फ़ील्डवर्क, विश्लेषण, यात्रा, रिपोर्ट आदि के लिए विस्तृत बजट पृथक रूप में संलग्न किया जाएगा।
Research Proposal
Mukhyamantri Uchch Shiksha Shodh Protsahan Yojna 2025-26
(Department of Higher Education, Govt. of Uttarakhand)
1. Broad Area of Subject:
समाजशास्त्र
2. Specialization:
ग्रामीण समाजशास्त्र, लिंग अध्ययन, प्रवासन अध्ययन, सामाजिक परिवर्तन
3. Project Title:
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में महिला-प्रशासित परिवार और सामाजिक-आर्थिक लचीलापन: प्रवासी पुरुषों की अनुपस्थिति में बदलती भूमिकाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन
4. Introduction (Origin of Proposal):
उत्तराखंड में तीव्र सामाजिक-आर्थिक पलायन के कारण अनेक परिवारों में पुरुष सदस्यों का स्थायी रूप से बाहर जाना आम हो गया है। इसके परिणामस्वरूप महिलाएँ न केवल परिवार की मुखिया बनती जा रही हैं, बल्कि खेती, बच्चों की शिक्षा, ग्राम पंचायत के कामकाज, सामाजिक निर्णयों एवं स्वास्थ्य संबंधी मामलों में भी केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं। इस परिवर्तन ने पारंपरिक पितृसत्तात्मक संरचना को चुनौती दी है और महिलाओं में नेतृत्व की संभावनाएं बढ़ी हैं। यह अध्ययन इस बदलते परिदृश्य को समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से समझने का प्रयास है।
5. Review of Research and Development in the Proposed Area:
उत्तराखंड के पलायन पर कई रिपोर्टें उपलब्ध हैं — जैसे पलायन आयोग की रिपोर्ट (2018), विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अध्ययन आदि। परंतु "महिला-प्रशासित परिवार" (Women-headed Households) पर सीमित शोध हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर UNDP, ILO, और Ministry of Women & Child Development द्वारा ऐसे परिवारों पर कुछ शोध प्रकाशित हुए हैं, पर उत्तराखंड जैसे विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों में यह एक नया शोध क्षेत्र है।
6. Objectives of the Proposed Project:
- महिला-प्रशासित परिवारों की सामाजिक संरचना का अध्ययन
- प्रवासी पुरुषों की अनुपस्थिति में महिलाओं की भूमिका का मूल्यांकन
- महिलाओं की आर्थिक, कृषि, पारिवारिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों का विश्लेषण
- सामाजिक लचीलापन के संकेतकों की पहचान
- महिला-सशक्तिकरण नीतियों हेतु अनुशंसाएं प्रस्तुत करना
7. Methodology:
- रिसर्च डिज़ाइन: गुणात्मक और मात्रात्मक
- डेटा संग्रहण:
- प्राथमिक डेटा: साक्षात्कार, फोकस ग्रुप चर्चा (FGDs)
- द्वितीयक स्रोत: सरकारी रिपोर्टें, जनगणना आदि
- नमूना चयन: 3 जिले, 6 गांव, 120-150 महिला उत्तरदाता
- डेटा विश्लेषण: SPSS और NVivo द्वारा
8. Duration of the Proposed Project:
12 माह
9. Work Plan:
- माह 1-2: साहित्य समीक्षा, प्रश्नावली निर्माण
- माह 3-6: क्षेत्र कार्य
- माह 7-9: डेटा विश्लेषण
- माह 10-11: रिपोर्ट लेखन
- माह 12: अंतिम प्रस्तुति
10. Relevance for Society and Policymaking:
यह शोध महिला नेतृत्व, सामाजिक लचीलापन और महिला-सशक्तिकरण को राज्य नीति से जोड़ने में सहायक होगा।
11. References:
- Uttarakhand Migration Commission Report (2018)
- Ministry of Women and Child Development Reports
- UNDP (2023): Women and Resilience in Rural India
- Census of India (2011)
- J.S. Rawat et al (2020): Migration and Gender in Uttarakhand
12. Financial Requirement:
फ़ील्डवर्क, विश्लेषण, यात्रा, रिपोर्ट आदि के लिए विस्तृत बजट पृथक रूप में संलग्न किया जाएगा।
उत्तराखंड में पलायन की समस्या और सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र
अल्मोड़ा व पौड़ी गढ़वाल जिले के अध्ययन के आधार पर प्रोजेक्ट
1. सबसे अधिक पलायन वाला क्षेत्र
- जिला: पौड़ी गढ़वाल
- ग्राम: सानीयार गांव (पौड़ी गढ़वाल)
सानीयार गांव पूरी तरह से खाली हो चुका है और इसे "भूतिया गांव" कहा जाता है। इसके अतिरिक्त पातास (अल्मोड़ा) और चांदौली (पौड़ी गढ़वाल) जैसे गांवों में भी भारी जनसंख्या गिरावट देखी गई है।
2. पलायन की समस्या का अवलोकन
- उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पलायन एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक समस्या है। राज्य सरकार के पलायन आयोग (2018-2022) की रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में लगभग 3.3 लाख से अधिक लोग पहाड़ी जिलों से पलायन कर चुके हैं।
- पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं, जहाँ कई गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं या जनसंख्या में भारी गिरावट आई है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार 2007-2017 के बीच 3.8 लाख से अधिक लोग पहाड़ छोड़ चुके हैं, जिनमें अधिकांश वापस नहीं लौटे।
3. पलायन के मुख्य कारण
- रोजगार के अवसरों की कमी
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव
- कृषि संकट, जंगली जानवरों द्वारा फसल का नुकसान
- बुनियादी सुविधाओं की कमी (सड़क, बिजली, पानी)
- सामाजिक-सांस्कृतिक कारण जैसे युवा पीढ़ी की रुचि शहरी जीवन में अधिक होना
4. अध्ययन क्षेत्र का चयन
- जिला: पौड़ी गढ़वाल
- विकासखंड: रानीखेत (उदाहरण)
- ग्राम पंचायत: खुट-धामास तथा आसपास की छह ग्राम पंचायतें
चयन का कारण:
- यह क्षेत्र पलायन से अत्यधिक प्रभावित है, जिससे सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
- यहां पलायन के कारण हुए परिवर्तनों का अध्ययन और राज्य सरकार की योजनाओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना संभव है।
5. अध्ययन की कार्ययोजना
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डेटा संग्रहण:
- स्थानीय सरकारी कार्यालयों से पलायन संबंधी आंकड़े जुटाना।
- ग्रामवासियों से साक्षात्कार एवं सर्वेक्षण द्वारा प्राथमिक डेटा संग्रह।
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सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण:
- रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि एवं बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारणों का विश्लेषण।
- पलायन के सामाजिक प्रभावों का अध्ययन, जैसे परिवार संरचना में बदलाव, महिलाओं की भूमिका आदि।
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नीति मूल्यांकन:
- राज्य सरकार की पलायन रोकथाम योजनाओं की समीक्षा एवं प्रभावशीलता का अध्ययन।
- स्थानीय लोगों के सुझाव और प्रतिक्रिया को शामिल करना।
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रिपोर्ट एवं सुझाव:
- प्राप्त डेटा और विश्लेषण के आधार पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना।
- राज्य सरकार और संबंधित विभागों को नीति सुधार हेतु सुझाव देना।
6. निष्कर्ष
उत्तराखंड में पलायन की समस्या सबसे अधिक पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा जिलों में गम्भीर है। विशेषकर सानीयार, चांदौली और पातास जैसे गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं। पलायन के पीछे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि संकट तथा बुनियादी सुविधाओं का अभाव प्रमुख कारण हैं। इस समस्या से निपटने के लिए प्रभावी नीतियां बनाना और जमीनी स्तर पर कार्यवाही जरूरी है।
संदर्भ
- उत्तराखंड में पलायन की अवधारणा एवं पर्वतीय क्षेत्र से पलायन - IJFMR [https://www.ijfmr.com/papers/2022/1/4871.pdf]
- उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं निवारण पलायन आयोग [https://www.uttarakhandpalayanayog.com/homehindi.aspx]
- विकार हसन खां, उत्तराखण्ड में पलायन और बेरोजगारी (PDF)
- पलायन आयोग, उत्तराखंड [https://www.uttarakhandpalayanayog.com/aboutpalhindi.aspx]
- Gaon Connection, उत्तराखंड में पलायन [https://www.gaonconnection.com/gaon-connection-tvvideos/migration-in-uttarakhand-biggest-problem-of-state-46535/]
- Feminism in India, पलायन समस्या [https://hindi.feminisminindia.com/2024/05/21/uttarakhand-migration-problem-will-bjp-bring-solution-hindi/]
- Review Of Research, ग्रामीण जनसंख्या के पलायन (PDF)
यहां उत्तराखंड के अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जिले के पलायन संबंधी अध्ययन के लिए एक सर्वेक्षण प्रश्नावली का उदाहरण है। इसे आप स्थानीय भाषा और संदर्भ के अनुसार संशोधित कर सकते हैं।
सर्वेक्षण प्रश्नावली
अध्ययन विषय: उत्तराखंड में पलायन की समस्या – अल्मोड़ा एवं पौड़ी गढ़वाल के संदर्भ में
स्थान: ________ (ग्राम/ग्राम पंचायत)
तिथि: ________
प्रश्नावली संख्या: ________
भाग 1: व्यक्ति एवं परिवार संबंधी जानकारी
- आपका नाम (वैकल्पिक): __________________
- उम्र: _______ वर्ष
- लिंग: ☐ पुरुष ☐ महिला ☐ अन्य
- शिक्षा स्तर:
☐ अनपढ़
☐ प्राथमिक
☐ माध्यमिक
☐ उच्च माध्यमिक
☐ स्नातक और उससे ऊपर - परिवार का कुल सदस्य संख्या: _______
- परिवार का मुख्य व्यवसाय:
☐ कृषि
☐ व्यवसाय
☐ सरकारी/प्राइवेट नौकरी
☐ मजदूरी
☐ अन्य: ____________
भाग 2: पलायन की स्थिति
-
क्या आपके परिवार का कोई सदस्य पिछले 10 वर्षों में गाँव छोड़कर बाहर किसी शहर या अन्य राज्य में चला गया है?
☐ हाँ
☐ नहीं -
यदि हाँ, तो किस कारण से? (एक या अधिक विकल्प चुनें)
☐ रोजगार की तलाश
☐ शिक्षा के लिए
☐ स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए
☐ कृषि संकट/फसल नष्ट होना
☐ बेहतर जीवन स्तर
☐ अन्य: ____________ -
पलायन करने वाले सदस्य कौन हैं?
☐ पुरुष
☐ महिला
☐ युवा (18-35 वर्ष)
☐ वृद्ध -
क्या वह सदस्य वापस गाँव लौटे हैं?
☐ हाँ
☐ नहीं
☐ कभी-कभी
भाग 3: पलायन के कारणों का मूल्यांकन
-
आप अपने गाँव में रोजगार के अवसरों को कैसे आंकते हैं?
☐ पर्याप्त
☐ सीमित
☐ बिल्कुल नहीं -
क्या शिक्षा के अवसर सीमित होने के कारण लोग पलायन करते हैं?
☐ हाँ
☐ नहीं -
क्या स्वास्थ्य सुविधाएँ आपके गाँव में पर्याप्त हैं?
☐ हाँ
☐ नहीं -
क्या कृषि संकट (जैसे जंगली जानवरों का नुकसान, जल संकट) पलायन का मुख्य कारण है?
☐ हाँ
☐ नहीं -
क्या बुनियादी सुविधाएँ (सड़क, बिजली, पानी) आपके गाँव में पूरी हैं?
☐ हाँ
☐ नहीं
भाग 4: पलायन के प्रभाव
-
पलायन के कारण परिवार में कौन-कौन से बदलाव आए हैं? (विवरण दें)
-
क्या गाँव में महिलाओं की भूमिका में कोई बदलाव आया है?
☐ हाँ
☐ नहीं
यदि हाँ, तो किस प्रकार?
- क्या आपको लगता है कि पलायन से आपके गाँव की सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियाँ प्रभावित हुई हैं?
☐ हाँ
☐ नहीं
भाग 5: नीति एवं सुझाव
-
क्या आपको लगता है कि सरकार की पलायन रोकथाम योजनाएँ प्रभावी हैं?
☐ हाँ
☐ नहीं
कृपया कारण बताएं: _______________________________ -
पलायन रोकने के लिए आपके क्या सुझाव हैं?
धन्यवाद! आपका सहयोग महत्वपूर्ण है।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन और महिला-प्रशासित परिवारों पर एक प्रोजेक्ट बनाने के लिए, अल्मोड़ा (कुमाऊँ) और पौड़ी (गढ़वाल) जनपदों के गांवों को शामिल करते हुए, यहां एक विस्तृत परियोजना की रूपरेखा दी गई है।
परियोजना का शीर्षक
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन और महिला-प्रशासित परिवार: बदलती सामाजिक-आर्थिक भूमिकाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन (अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जिलों के विशेष संदर्भ में)
1. प्रस्तावना (Introduction)
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पिछले कुछ दशकों से ग्रामीण-शहरी पलायन एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा है। इस पलायन का मुख्य कारण रोजगार, बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ और बुनियादी ढाँचे का अभाव है। जब पुरुष सदस्य रोजगार की तलाश में शहरों या अन्य राज्यों में चले जाते हैं, तो पीछे छूटे परिवारों का संचालन मुख्य रूप से महिलाओं के हाथों में आ जाता है। यह अध्ययन अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जिलों के चुनिंदा गांवों में इस घटना के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों और महिला-प्रशासित परिवारों की बदलती भूमिकाओं का गहन समाजशास्त्रीय विश्लेषण करेगा।
2. अध्ययन के उद्देश्य (Objectives of the Study)
* पलायन के मुख्य कारणों और उसके परिवारों पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करना।
* पुरुषों के पलायन के बाद महिलाओं द्वारा निभाई जा रही बदलती भूमिकाओं (पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक) का अध्ययन करना।
* पलायन के कारण ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक संरचना में आ रहे बदलावों का पता लगाना।
* महिला-प्रशासित परिवारों के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके द्वारा अपनाई गई अनुकूलन रणनीतियों को समझना।
* सरकारी नीतियों और योजनाओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना जो पलायन को रोकने या पलायन से प्रभावित परिवारों की मदद करने के उद्देश्य से चलाई जा रही हैं।
3. अध्ययन क्षेत्र (Study Area)
यह अध्ययन उत्तराखंड के दो प्रमुख पर्वतीय जिलों पर केंद्रित होगा, जो पलायन से अत्यधिक प्रभावित हैं:
* अल्मोड़ा जनपद (कुमाऊँ क्षेत्र):
* गाँव: पातास (आप अन्य गाँव भी चुन सकते हैं, जैसे कि दन्या, स्याल्दे, आदि)
* चयन का कारण: यह गाँव कुमाऊँ क्षेत्र में पलायन के विशिष्ट पैटर्न को दर्शाता है और यहाँ महिला-नेतृत्व वाले परिवार अधिक संख्या में पाए जाते हैं।
* पौड़ी गढ़वाल जनपद (गढ़वाल क्षेत्र):
* गाँव: सानीयार (आप अन्य गाँव भी चुन सकते हैं, जैसे कि चांदौली, कोटद्वार के निकटवर्ती गाँव, आदि)
* चयन का कारण: सानीयार को "भूतिया गाँव" के रूप में जाना जाता है, जो पुरुषों के बड़े पैमाने पर पलायन के कारण महिलाओं पर पड़ने वाले अत्यधिक बोझ और ग्रामीण क्षेत्रों के परित्याग को दर्शाता है।
4. शोध प्रविधि (Research Methodology)
* शोध का प्रकार: गुणात्मक (Qualitative) और मात्रात्मक (Quantitative) दोनों।
* प्राइमरी डेटा संग्रह:
* सर्वेक्षण (Surveys): चयनित गांवों में महिला-प्रशासित परिवारों से प्रश्नावली के माध्यम से डेटा एकत्र करना।
* गहन साक्षात्कार (In-depth Interviews): परिवार की मुखिया महिलाओं, स्थानीय नेताओं, सरकारी अधिकारियों और स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ विस्तृत साक्षात्कार।
* फोकस ग्रुप डिस्कशन (FGDs): गाँव की महिलाओं के साथ सामूहिक चर्चा, ताकि उनकी साझा चुनौतियों और अनुभवों को समझा जा सके।
* केस स्टडीज (Case Studies): कुछ विशिष्ट परिवारों की विस्तृत केस स्टडी करना।
* अवलोकन (Observation): गाँवों में सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों का प्रत्यक्ष अवलोकन।
* सेकेंडरी डेटा संग्रह:
* उत्तराखंड सरकार के पलायन आयोग की रिपोर्टें।
* जनगणना डेटा।
* पलायन, ग्रामीण विकास और लैंगिक अध्ययन से संबंधित अकादमिक साहित्य।
* स्थानीय समाचार रिपोर्टें और दस्तावेज़।
5. अध्ययन की रूपरेखा (Study Framework)
* पलायन की पृष्ठभूमि:
* उत्तराखंड में पलायन के ऐतिहासिक और समकालीन रुझान।
* चयनित गांवों में पलायन की स्थिति और आंकड़े।
* पलायन के पीछे के मुख्य प्रेरक कारक (आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय)।
* महिला-प्रशासित परिवारों का उदय:
* पुरुषों के पलायन के बाद परिवार के मुखिया के रूप में महिलाओं की बढ़ती भूमिका।
* पारिवारिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी।
* घर और कृषि संबंधी कार्यों का प्रबंधन।
* बदलती सामाजिक-आर्थिक भूमिकाएँ:
* आर्थिक भूमिका: कृषि कार्य, पशुपालन, सूक्ष्म-उद्यम (जैसे हस्तशिल्प, घरेलू उत्पाद), और बाहरी धन पर निर्भरता।
* सामाजिक भूमिका: बच्चों की शिक्षा और पालन-पोषण, बुजुर्गों की देखभाल, सामाजिक आयोजनों में भागीदारी और सामुदायिक नेतृत्व।
* मानसिक और भावनात्मक प्रभाव: अकेलेपन, तनाव और जिम्मेदारी के बोझ का विश्लेषण।
* चुनौतियाँ और लचीलापन (Challenges and Resilience):
* चुनौतियाँ: संसाधनों की कमी, श्रम की कमी, जंगली जानवरों का खतरा, बाजार तक पहुँच का अभाव, सामाजिक सुरक्षा का अभाव, स्वास्थ्य समस्याएँ।
* लचीलापन: महिलाओं द्वारा विकसित की गई अभिनव रणनीतियाँ, सामुदायिक सहयोग, स्वयं सहायता समूहों की भूमिका।
* सरकारी नीतियों का प्रभाव:
* पलायन रोकने और ग्रामीण विकास के लिए चलाई जा रही सरकारी योजनाओं (जैसे मनरेगा, स्वरोजगार योजनाएँ, कृषि ऋण) का मूल्यांकन।
* इन योजनाओं की जमीनी स्तर पर पहुँच और प्रभावशीलता का आकलन।
6. अपेक्षित परिणाम (Expected Outcomes)
* पलायन की समस्या के गहन कारणों और उसके लैंगिक प्रभावों की स्पष्ट समझ।
* महिला-प्रशासित परिवारों की सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता का विस्तृत विवरण।
* नीति निर्माताओं के लिए सिफारिशें, जो पलायन से प्रभावित महिलाओं और परिवारों को सशक्त बनाने में मदद कर सकें।
* ग्रामीण विकास और महिला सशक्तिकरण के लिए स्थानीय स्तर पर प्रभावी हस्तक्षेप सुझाना।
7. परियोजना की समय-सीमा (Project Timeline)
* माह 1-2: साहित्य समीक्षा, शोध उपकरण का विकास (प्रश्नावली, साक्षात्कार गाइड), पायलट अध्ययन।
* माह 3-6: फील्डवर्क (डेटा संग्रह)।
* माह 7-9: डेटा विश्लेषण और व्याख्या।
* माह 10-12: रिपोर्ट लेखन, निष्कर्ष और सिफारिशें।
8. निष्कर्ष (Conclusion)
यह अध्ययन उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन के जटिल आयामों को समझने और महिला-प्रशासित परिवारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करने में सहायक होगा। इससे नीति निर्माताओं को ऐसे कार्यक्रम तैयार करने में मदद मिलेगी जो ग्रामीण आजीविका को सुदृढ़ करें, महिलाओं को सशक्त करें, और अंततः सतत ग्रामीण विकास को बढ़ावा दें।
विषय: उत्तराखंड में पलायन की समस्या: अल्मोड़ा व पौड़ी गढ़वाल जिले के संदर्भ में अध्ययन
स्थान: पौड़ी गढ़वाल (सानीयार, चांदौली), अल्मोड़ा (पातास)
अध्यक्ष: सत्यमित्र
तिथि: 27 मई, 2025
प्रस्तावना
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र पिछले दशकों से पलायन की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। विशेषकर अल्मोड़ा व पौड़ी गढ़वाल जिलों के कई ग्रामीण क्षेत्र अपने युवा और श्रमिक वर्ग को खोते जा रहे हैं। यह अध्ययन इन दो जिलों के प्रभावित ग्रामों में पलायन के कारणों, प्रभावों और सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता का विश्लेषण करता है।
1. अध्ययन क्षेत्र का परिचय
* पौड़ी गढ़वाल: सानीयार और चांदौली जैसे गाँव जहाँ जनसंख्या में भारी गिरावट देखी गई है। सानीयार गाँव तो लगभग पूरी तरह खाली हो चुका है और इसे "भूतिया गाँव" के रूप में जाना जाता है।
* अल्मोड़ा: पातास गाँव, जहां भी पलायन के कारण जनसंख्या में गिरावट आई है।
2. पलायन की समस्या का अवलोकन
उत्तराखंड सरकार के पलायन आयोग की रिपोर्ट (2018-2022) के अनुसार, पर्वतीय जिलों से लगभग 3.3 लाख लोग पलायन कर चुके हैं। पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा सबसे अधिक प्रभावित जिलों में शामिल हैं। मुख्यतः आर्थिक, सामाजिक और बुनियादी आवश्यकताओं की कमी के कारण पलायन बढ़ा है।
3. अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
3.1 पलायन के कारण
* रोजगार की कमी: गाँवों में रोजगार के सीमित अवसरों के कारण युवाओं का शहरों और बाहरी राज्यों की ओर पलायन।
* शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव: बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी भी पलायन का प्रमुख कारण है।
* कृषि संकट: फसलों में जंगली जानवरों से नुकसान, जल संकट और कृषि के आर्थिक पक्ष में गिरावट।
* बुनियादी सुविधाओं का अभाव: सड़क, बिजली, जल जैसी सुविधाओं की कमी।
3.2 पलायन के प्रभाव
* परिवारों की संरचना में बदलाव, विशेषकर पुरुष सदस्यों का पलायन होने से महिलाओं की भूमिका बढ़ी है।
* सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में कमी।
* गाँवों का खाली होना और "भूतिया गाँव" की समस्या।
4. सरकारी नीतियों का मूल्यांकन
उत्तराखंड सरकार द्वारा पलायन रोकने के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं, जैसे स्वरोजगार योजनाएँ, कृषि सुधार और आधारभूत सुविधाओं का विकास। हालाँकि, इन नीतियों की प्रभावशीलता अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है और ज़मीनी स्तर पर इनकी पहुँच बढ़ाने की आवश्यकता है। इन योजनाओं के सफल क्रियान्वयन और जनभागीदारी के माध्यम से ही पलायन की समस्या को कम किया जा सकता है।
बहुत अच्छी बात है। मैं अब आपके शोध विषय —
"उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में महिला-प्रशासित परिवार और सामाजिक-आर्थिक लचीलापन: प्रवासी पुरुषों की अनुपस्थिति में बदलती भूमिकाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन" —
पर आधारित एक संक्षिप्त शोध प्रस्ताव (Research Proposal) तैयार कर रहा हूँ। यह मुख्यमंत्री उच्च शिक्षा शोध प्रोत्साहन योजना (2025–26) के दिशा-निर्देशों के अनुरूप होगा।
भाग 2
📄 शोध प्रस्ताव प्रारूप (Draft Research Proposal in Hindi)
1. शोध शीर्षक (Title of the Research):
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में महिला-प्रशासित परिवार और सामाजिक-आर्थिक लचीलापन: प्रवासी पुरुषों की अनुपस्थिति में बदलती भूमिकाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन
2. प्रस्तावक का नाम एवं विवरण:
नाम: डॉ. सत्यमित्र सिंह
पद: सहायक प्रोफेसर, समाजशास्त्र
संस्थान: राजकीय महाविद्यालय, रानीखेत, अल्मोड़ा
ईमेल: [आपका ईमेल]
संपर्क: [आपका मोबाइल]
3. प्रस्तावित शोध का क्षेत्र:
समाजशास्त्र, महिला अध्ययन, प्रवासन अध्ययन, विकास अध्ययन
4. शोध की पृष्ठभूमि और समस्या का विवरण:
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका की सीमित संभावनाओं के कारण बड़े पैमाने पर पुरुषों का बाह्य प्रवासन होता है। इस प्रवृत्ति के कारण महिलाओं पर पारिवारिक, आर्थिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियाँ बढ़ती जा रही हैं। यह शोध प्रवासी पुरुषों की अनुपस्थिति में महिलाओं द्वारा निभाई जा रही नवीन भूमिकाओं, सामाजिक-आर्थिक लचीलेपन, तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी का गहन समाजशास्त्रीय विश्लेषण करेगा।
5. अनुसंधान उद्देश्य (Objectives):
- महिला-प्रशासित परिवारों की सामाजिक संरचना का अध्ययन करना।
- प्रवासन के कारण महिलाओं की भूमिकाओं में आए परिवर्तन का मूल्यांकन करना।
- महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक लचीलापन को समझना।
- नीति-सुझाव प्रस्तुत करना जो महिला सशक्तिकरण एवं ग्राम्य विकास में सहायक हों।
6. अनुसंधान प्रश्न (Research Questions):
- प्रवासन के बाद महिलाओं की पारिवारिक एवं सामाजिक भूमिका में क्या परिवर्तन आया है?
- वे किस प्रकार सामाजिक-आर्थिक निर्णय ले रही हैं?
- महिला-प्रशासित परिवार किन-किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं?
7. कार्यप्रणाली (Methodology):
- अध्ययन क्षेत्र: चमोली एवं बागेश्वर जिलों के पर्वतीय गाँव
- नमूना चयन: 100 महिला-प्रशासित परिवार
- तकनीकें: साक्षात्कार, FGD (Focus Group Discussion), केस स्टडी
- पद्धति: मिश्रित विधि (Mixed Method – गुणात्मक व मात्रात्मक)
8. अनुसंधान की उपयोगिता (Significance):
यह शोध राज्य के महिला-सशक्तिकरण एवं प्रवासन-प्रबंधन नीति निर्माण में उपयोगी होगा। यह ग्राम्य क्षेत्र की महिलाओं की शक्ति, नेतृत्व और निर्णय क्षमता को उजागर करेगा, जो प्रायः अदृश्य रहती हैं।
9. समयावधि (Duration):
12 माह
10. अनुमानित बजट (Estimated Budget):
(यह अनुभाग आप योजना की निर्धारित सीमा के अनुसार भर सकते हैं; यदि चाहें तो मैं इसका प्रारूप भी बना सकता हूँ)
11. अपेक्षित परिणाम (Expected Outcomes):
- नीति-निर्धारकों के लिए अनुशंसाएँ
- शोध-आधारित प्रकाशन
- राज्य सरकार के महिला एवं ग्राम विकास विभाग हेतु रिपोर्ट
12. संदर्भ (References):
- Census of India, Migration Tables
- Uttarakhand Migration Commission Reports
- Desai, A.R. (2005). Rural Sociology in India
- Govinda, R. (2022). Gender and Migration in the Himalayas
- संबंधित राज्य एवं नीति दस्तावेज़
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