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दुनिया एक बाजार है। क्या आपको महसूस नहीं होता कि आपका वक्त कैसे यह आज के इस साइंस का एंड्रॉयड फोन खा रहा है अब हम इसी के सहारे सोचना समझना और बात करना शुरू कर दे रहे हैं। अपना मुल्य भी लगा रहे हैं जैसे एक बात पहले हमने कहि थी कि हम सब एक प्रॉडक्ट बनते जा रहे हैं। हम इंस्टाग्राम/फेसबुक पर अपनी ही तस्वीर डाल कर अपना लाइक से मोल लगाते हैं कि हमारी कीमत क्या है ? कितने लोग हमें चाहते हैं। भाव बढ़ता है, हम खुश होते हैं।
कम्पनियों आज यही कर रही हैं हमें और आप को भी यही करना होगा।यह तब होगा जब आप के पास डाटा होगा लड़ाई अब डेटा की हैं।2022 के चुनाव में भी यही खेल चलेगा।जिसमें Bjp आगे है यह खेल है RAM (रिसर्च, अनालिसिस ऐन्ड मेसेजिंग) का। हमारे देश की जनता इमोशनल है। नेता एक मॉडल हैं, जो मास को रिप्रेजेंट करते हैं। लेकिन वे असल में स्वयं मास हैं नहीं। उन्हें बस एक प्रतीक बनना होता है। गांधी के धोती में घूमने की वजह यह नहीं थी कि उनके पास कपड़े नहीं थे, बल्कि यह थी कि जब वे विशाल भारतीय सर्वहारा से मिलने जाएँ तो इस लाठी लिये अधनंगे व्यक्ति की उभरी हड्डियों में अपनी भी हड्डी दिखाई दे। वर्तमान प्रधानमंत्री जी में भी यह बात दिखती है कि जिस देश-क्षेत्र गए, वहाँ की वेश-भूषा का एक अंश अपना लिया आज कल वहां की बोली बोलते हैं। उनसे लोग जुड़ाव महसूस करने लगते हैं। खुश होते है। अरविंद केजरीवाल भी इसी कड़ी के हैं आईटी होल्डर और इनकम टैक्स ऑफिसर -ए ग्रेड की सर्विस वाला भी अपना पोशाक हाफ शर्ट पैंट और सैंडल में गले में मफलर डालें एक आम आदमी की तरह दिखता था यह प्रतीक बने थे और दिल्ली में आम आदमी की सरकार बनी थी यह प्रतीकों की लड़ाई है सब अपने अपने अपनी प्रतीकों के सहारे नाच रहे हैं और प्रतीकों के सहारे ही बात हो रही है।
यही भारत के लोकतंत्र की ‘गेम थ्योरी’ भी है और AI भी।अब चुनाव में ‘गेम थ्योरी’ और ‘आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस’ का प्रयोग बढ़ेगा।इसको भुनाने में आज अरविंद केजरीवाल आगे है, तो bjp के पास तंत्र है।pk babu प्रशान्त किशोर इस खेल की कम्पनी साथ लिये है।आप इसी RAM (रिसर्च, अनालिसिस ऐन्ड मेसेजिंग के सहारे कंटोल होंगे देखते रहिये...
कल का खतरा..
यदि यदि हम सोशल नेटवर्किंग से नहीं जुड़ते हैं तो क्या हो सकता है एक अनुमान सा है आहट सा जो मुझे लगता है की गर्भ के समय से ही हम नेटवर्क से जुड़े होंगे, और आजकल तो यह फैशन सा हो गया है गर्भ की नाल कटी नहीं कि हम फेसबुक पर आ ही जाते हैं ।और अगर बाद के अपने जीवन में आप उससे कटना चाहेंगे, तो मुमकिन है कि बीमा ऐजेंसियाँ आपका बीमा करने से इंकार कर दें, नियोक्ता आपको नौकरी पर रखने से इंकार कर दें, और स्वास्थ्य सेवाएँ आपकी देखभाल करने से इंकार कर दें।
क्योंकि डाटा में आपका नाम नहीं होगा और आपका नाम नहीं होगा तो आपको बहुत सारी सेवाओं से वंचित होना पड़ेगा आप जनता तो होंगे लेकिन नेटवर्किंग में आप होंगे नहीं जब आप होंगे नहीं तो आपको कोई नहीं था नहीं तो इस तरह भी हो सकता है कि डाटा कितना इंपॉर्टेंट होता जा रहा है। स्वास्थ्य और गोपनीयता के बीच की बड़ी लड़ाई में स्वास्थ्य की निर्णायक जीत होने की सम्भावना है।
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