Friday, March 1, 2024

एक शिखर व्यक्तित्व -ः महाराज कर्ण सिंह

एक शिखर व्यक्तित्व -ः महाराज कर्ण सिंह

भारत की परंपरा, संस्कृति तथा स्वाधीन चेतना को आधी शताब्दी तक अपने सतत जागरूक व्यक्त्वि एवं रचनात्मक सोच से जिस महानुभावों ने उत्प्रेरित और विकसित किया है, ऐसे लोगो के नाम उंगलियों पर गिने जा सकते हैंै। आदमी का ऊॅचा होना, अपने व्यक्त्वि को चमकाकर, मांजकर एवरेस्ट बना देना एक बड़ी बात है, पर अपने समकालीन समाज की सोच को, चिंतन के स्तर को पूरी काॅम की अस्मिता को झकझोर कर एक बालिस्त भर उठा देना सम्भवतः उससे भी बड़ी बात है।

      डाॅ0 कर्ण सिंह ऐसे ही शिखर व्यक्तित्व के हैं, जो रूप आकृति से, सोच और रचनाशीलता से विलक्षण बुद्वि और गहरे अध्ययन से, चिन्तन और लेखने से, निर्विवाद राजनीतिक कद से अप्रतिम धर्मबुद्वि से सम्यक सांस्कृतिक भूझ से स्वतंत्र भारत के अद्वितीय अमोद्य, अजातशत्रु , अमिताभ के रूप में विख्यात हैं।

 महान रघुवंशियों की उत्तरवर्ती शाखा जिसने साकेत से अलवर, भटिण्डा से रोहतक और उससे भी आगे बढकर जम्मू कश्मीर में अपना प्रभुत्व व प्रभाव विस्तरित किया था के यशस्वी वरद पुत्र हैं, महाराज कर्ण सिंह। महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य में विशेषणों की एक लम्बी श्रृंखला जोड़कर रघुवंश का वर्णन प्रारम्भ किया है-

 सोेहम आजन्म शुद्वानाम, आॅलोदम वर्मणाम

आसमुद्र शितीषानाम अनाकरथ र्बत्मनाम।

  यथाविधि हुताग्निनाम, यथा कामार्चितार्थीनाम

                    यथापराध दण्डानाम यथाकाल प्रबोधिनाम 

                    त्यागाय संवृतार्थानाम सत्यायमित भाषिणाम

                    यशसे विजयीषुणाम, पूजाायै गृहमेदिनाम

जन्म से ही शुद्व, फलोत्पत्ति तक कार्यरत रहने वाले , विधि पूर्वक यज्ञाहुति करने त्याग के लिए अर्थ संग्रह करने वाले, समय से जगने वाले, सत्य बोलने के लिए कम बोलने वाले आदि अनेक गुणों के मूर्तिमान रूप में अवतीर्ण हुए युवराज कर्ण सिंह उमके थी यशोगाथा प्राचीन रघुवंशियों के अनरूप व अनुवर्तिनी ही रही है।

जम्मू कश्मीर के राजा हरी सिंह और राजमहिषी श्रीमती तारा देवी का यह --और यशस्वी पुत्र भारत आर्य व्यक्तित्व और सनातन धर्म- कर्म का साक्षात विग्रह प्रतिमा है। महाराजा कर्ण सिंह कर्मवीर, दानवीर, दयावीर तथा धर्मवीरत्व के आधुनिक प्रतिमान है। वे सांस्कृतिक, चेतना के संवाहक, अतीत के अध्येता तथा भारत के भावी आलोक के उदगाता रहे हैं।युग के साथ संचरण काटे हुए भी वे कालातीत परम पुरूष की ज्ञान ज्योति के सम्यक प्रस्तोता हैं, वे सबके हैं, पूरे आर्यवर्त, पूरी दुनियाॅ, पूरे ब्रम्हाण्ड के हैं, इसीलिए वे इतिहास के नहीं भाव संसार के व्यक्ति हैं।

नेपाल की राजकन्या यशोराज लक्ष्मी का यह पति यशस्वी पुत्रों का पिता तथा सच्चा भारतीय है। 1949 में अठारह वर्ष की ही अवस्था में वे जम्मू कश्मीर के रेजिडेन्ट बनाये गये। विख्यात दून स्कूल से सीनियर कैम्ब्रिज की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर उन्होने जम्मू कश्मीर वि0वि0 से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।दिल्ली वि0वि0 से राजनीतिशास्त्र में 1957 में प्रथम श्रेणी प्रथम स्थान प्राप्त कर उन्होंने एम0ए की डिग्री हासिल की तथा वहीं से महर्षि अरविन्द के राजनीतिक विचार विषय पर डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।अदभुत प्रतिभा और विलक्षण मेधा सम्पन्न उनका अप्रतिम योग रहा है। बनारस हिन्दू वि0वि0 के अरविन्द शोध पीठ के चेयरमैन प्रोफेसर रहे। वे जम्मू कश्मीर वि0वि0 और का हि0वि0वि0के महाकुलाधिपति रहे हैं, वे जम्मू कश्मीर के सदर-ए- रियासत, गर्वनर भी रहे हैं। उन्होने सर्वप्रथम स्वेच्छा से ही प्रिवीपर्स का त्याग किया था, वर्ष 1967 में वे स्व0 श्रीमती इंदिरा गांधी के मंत्रीमंडल में 36 वर्ष की सबसे कम उम्र के माननीय मंत्री पर्यटन भारत सरकार बनाये गये। वर्ष 1973 में उन्हें स्वास्थय एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का दायित्व सौंपा गया और वे उधमपुर लोकसभा क्षेत्र से विशाल बहुमत से विजयी सदस्य के रूप में अभिनंदित किए गये । उन्होंने  1971,1977, तथा 1980 में अपनी विशेष विजयों का कीर्तिमान कायम किया पर एक सुखद आश्चर्य ही है कि उन्होने गरीब देश से वेतन के रूपये में न कोई धनराशि ली और न सरकारी बंगले में काबिज हुए। बाद में कांग्रेसी मंत्रियों ने जो लूट खसोट और घोटालों किये हैं, उन्हें देख सुनकर उनकी आत्मा पीडा़ से, घृणा से तिलमिलाती रही है, पर वे निर्विकल्प तथा निर्लेप चरित्र के धनी ही बने अपनी सम्पूर्ण चल अचल सम्पत्ति को हरी-तारा ट्रस्ट को समर्पित कर अपना अदभुत राजमहल उन्होने पर्वतीय स्थापत्य, कला और पुस्तकालय तथा संग्रहालय में रूपान्तरित कर दिया । देश का रूपातंरण का वह सपना जो उन्हें राम की रक्त शुद्वता, समरसता लोक से दास में मिली थी ।

वह ऊर्जा, वह दर्शन जिसे उन्होंने महर्षि अरविंद से आत्म साथ किया था, उसका सम्यक उपयोग भारत की परवर्ती पीढी़ नहीं कर पायी।इस अप्रतिम व्यक्तित्व का वह मूल्य,वहमान, उपभोक्ता पीढी़ तथा उन्मुक्त व्यापार वाली स्वार्थी राजनीति ने समझा ही नहीं, जिसके समझ लेने मात्र भर से देश की दिशा और दशा बदल सकती थी । आज मनुवादी व्यवस्था, ब्राम्हाणवादी कर्मकाण्डी व्यवस्था की लानत मलामत हो रही है और पण्डित सुखराम , कैप्टन सतीश शर्मा, नरसिंह राव, हर्ष मेहता, चन्द्रास्वामी के घोटालों का पर्दाफाश हो रहे है तो बार-बार उन लोगों पर नजर जाती हैं। जिन्होनें समय≤ पर समाज को जागरूक बनाने तथा ढोंग लूट एवं धनसंचयी बुद्वि को चुनौती दिया है। पता नहीं क्यों लगता है, कि जनक, विश्वामित्र, चार्वक, वाल्मिकी केवल ऐलुष, एकलव्य,कर्ण, युधिष्ठिर, गौतम, महावीर, कबीर, गांधी, आचार्य नर देव सिंह, लोहिया, लाल बहादुर, कर्ण सिंह, बी0पी0 सिंह, ही संस्कृति के देश पुरूष के रूप में मान्य रहेगें। स्ववार्थी और पाखण्डी, सुख की भौतिक ऐसाग में मशगूल सारे सत्तालोलूप चमत्कारिक पुरूषों के नाम-निशान काल के प्रवाह में बह जायेगें । 

     डाॅ0 कर्ण सिंह को देश विदेश में बेहद प्यार और सम्मान मिला, का0टी0वि0वि0अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय तथा ओशोक विश्वविद्यालय टोकेयो से डाक्टेरेट की मानक उपाधियाॅ मिली। वे रोम के सर्वाधिक सम्मानित क्लब के आजीवन सदस्य बनाये गये, उन्होंने दर्शन, राजनीति, स्थापत्य, नृत्य, संगीत ,हिन्दी, अंग्रेजी, के अप्रतिम अध्येता तथा विद्वान वक्ता के रूप में समादृत है।निबन्ध, यात्रवृतांत और गंम्भीर प्रकृति की कविताओं की संरचना में उन्हें महारत हासिल हैं।

भारत के अमेरिका राजदूत, सांस्कृतिक समितियोें के संयोजक सदस्य के रूप में उन्होंनेें न केवल अमेरिका वरन विश्व के तमाम देशों में भारत का सम्मान बढाया है। सर राधाकृष्णन के पश्चात वे एक मात्र ऐसे भारतीय हैं, जिनकी चितंन शक्ति, वाणी वैदग्ध और धारा प्रवाह वक्हता से विश्व के गणमान्य बौद्विक चमत्कृत होते रहे हैं। उनकी भौतिक उपलब्धि है, उनकी पुत्री ज्योत्सा, पुत्र विक्रम तथा अजातशत्रु ।

उनकी इन तीन संततियों के नाम ही उनका सबसे सटीक परिचय है, वक सरल, सहज ,शालीन, मृदुभाषी, विजयी, विनयी, और अजातशत्रु के प्रतिमान के रूप में जाने जाते हैं। वे प्राकृत संगीत छाया और प्रकाश वेलकम दि मूनराइज जैसी उत्कृष्ट काव्य कृतियों के सृजक हैं।भारतीय राष्ट्रीयता के देवदूत उनकी अप्रतिम गद्य संरचना है, समकालीन निबन्ध उनके व्यक्ति व्यंजक तथा विश्लेषणात्मक निबंधों का संग्रह धर्म के पास तथा हिन्दुत्व के संबंध में उनकी सांस्कृतिक सोच के संवाहक हैं।उन्होंने जीवनवृत, यात्रावृत, संस्मरण आदि भी लिखे हैं, पर सबसे बड़ी बात है, उनकी स्वतः स्फूर्त वाग्मिता जो उन्होंने मुख्य -अतिथि , अध्यक्ष पदों से बोलते हुए अनेक स्थलों, स्थानों पर अभिव्यक्त किया हैउनके चितंन उनकी मनीषा, उनकी अध्यवसायिता उनकी वाजी से फूलों के मानिन्द भरी है।जिसका पान स्रोता समूह अपलक, अनिमेष करता रहता है, इस विशाल भारत भूमि पर वे आर्य चिंतन के आर्य वाणी के आदर्श चरित्र एवं उदान्त जीवन मूल्यों के अन्वेषी और संस्थापक है। वे भारत की सनातन प्रतिमा को समादृत करने का संकल्प साधने वाले राजर्षि मनीषी हैंवे राष्ट्रीय अस्मिता तथा सांस्कृतिक अस्तीत्व के सजीव स्मारक हैं, वे है इसी से हम गौरवान्वित है।वे रहें इसी से संतुष्ट हैं, वे सक्रिय और सचेत रहें, तो हमारी सहज चेतना संतोष का लाभ पाती रहेगी हम उनकी तेजस्वी संचेतना को सौ वर्षो तक शुभ्र ज्योत्रना सस्वर भास्वरता के रूप में देखने के आकांक्षी है।हम चाहते हैं - तमाम जिल्रों पर लिखने दो करन ढाई आखर जरा सी जिंदगी बेहतर किताब क्या देखें।

                                  न्यौछावर उस पर सिंगार 


वह परम पूर्ण पूरन परमेश्वर

अजर अमर वह निराकार

वह गुणातीत गुनसागर वह

सच्चिदानन्द वह निर्विकार ।

योगेश्वर, ज्ञानी र्निविकल्प

उत्तम गृहस्थ शोभा अपार

वह निर्मोही निर्वाण परम

वह मूर्तिमान वह सदाचार ।

वह पूर्णरसिक, करूणा सागर

वह ज्ञान कर्म वह गुणगार ।

वह भाव पुरूष, वह योगीराज,

वह धर्मतत्व सर्जन संहार ।

वह गायक, वादक नर्तक वह

माधुर्य-मंत्र का महोच्यार ।

वह परम प्रकृति, वह प्रथम पुरूष

वह दिव्य देह पूर्णवितार।

वह कूटनीति मर्मज्ञ परम रसिया,

स्वतंत्र उत्तम विचार।

वह ज्ञान गीत गीता गायक 

वह सरवा सहज सुन्दर दुलार


प्रणयी वह शोषण, सजीला वह

अवछावर उस पर रस सिंगार ।










































       


Wednesday, November 22, 2023

A1000

01


Research Proposal Format


 Chief Minister Higher Education Research Encouragement Scheme 2023-24 (Department of Higher Education, Govt. of Uttarakhand) 


1: Broad area of Subject: Sociology


2: Specialization:Rural Sociology 


3: Project Title:

जागरूकता के संदर्भ में थारू जनजाति के महाविद्यालयी छात्र /छात्राओं का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन

(ऊधम सिंह जनपद के विशेष सन्दर्भ में)

                           


4: Name, Post and Address of Principal Investigator:Dr.Satya mitra Singh Assistant Professor Sociology Government PG College Sitarganj


5: Name, Post and Address of Co-Investigator:

6: Name of the institution where a project is being executed/likely to be executed: 

Government P.G College Sitarganj Uttarakhand


7: Introduction (Origin of Proposal):


थारू जनजाति

उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र की सर्वाधिक आबादी वाली जनजाति थारू है ।थारू जनजाति ऊधमसिंह नगर के खटीमा, किच्छा, नानकमता व सितारगंज के 144 गांवो में 90% निवास करते है।ऊधम सिंह नगर क्षेत्र के अंतर्गत आता है थारू जनजाति इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश बिहार और नेपाल में प्रमुखता से पाई जाती हैं यह आदिम जातियां स्थानीय कृषि और पशुपालन होते हैं।

8. Review of research and development in the proposed area: (National and International status, Importance, patents)

अध्ययन क्षेत्र (Research Area)

- शोध क्षेत्र के रूप में ऊधमसिंहनगर जनपद के राजकीय महाविद्यालय रुद्रपुर राजकीय महाविद्यालय खटीमा ,राजकीय महाविद्यालय नानकमत्ता ,राजकीय महाविद्यालय सितारगंज में पढ़ने वाले 90% विद्यार्थी स्टूडेंट थारू समुदाय के इन्ही महाविद्यालय में पढ़ते हैं ।

 यह शोध महाविद्यालयी विद्यार्थियों में जागरूकता से सम्बन्धित है। शोध कार्य में प्राथमिक तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया जायेगा तथा यथा सम्भव द्वितीयक स्रोतों द्वारा प्राप्त तथ्यों का प्रयोग भी किया जायेगा। प्राथमिक प्रत्यक्ष तथ्य संकलन हेतु जनपद की सितारगंज तहसील के लगभग सभी जनजातीय युवाओं साक्षात्कार किया जायेगा सितारगंज तहसील के जिन जिन ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं उन सभी का सर्वेक्षण किया जायेगा और इनमें रहने वाले  नई शिक्षा नीति से आच्छादित 18 से 35 वर्ष की आयु के छात्र/ छात्रों  का साक्षात्कार किया जायेगा।

 जनजातीय (थारू)छात्र/छात्रों के साथ-साथ लगभग उतनी ही संख्या में सामान्य वर्ग के इस क्षेत्र के युवक युवतियों का साक्षात्कार भी किया जायेगा ताकि जनजातीय तथा सामान्य युवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। वर्तमान में थारु बाहुल्य ग्रामों में सामान्य वर्ग के विभिन्न समुदायों जैसे पंजाबी, बंगाली, कुमाऊँनी, गढ़वाली तथा पूर्वाचली (भोजपुरी) के लोगो निवास कर रहे हैं अतः सामान्य वर्ग के युवाओं के साथ-साथ जनजातीय युवाओं का तुल्नात्मक अध्ययन करना अनिवार्य व सार्थक प्रतीत होता है साक्षात्कार हेतु साक्षात्कार अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग किया जायेगा। सर्वेक्षण के दौरान अन्य तकनीकीय यंत्रों जैसे मोबाइल, कैमरा आदि का प्रयोग भी किया जायेगा।

द्वितीयक स्रोतों के रूप में विषय से सम्बन्धित अब तक हुए शोध कार्यों,प्रकाशित पुस्तकों, सरकारी अभिलेखों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का प्रयोग किया जायेगा। प्राथमिक स्रोतों से संकलित तथ्यों का वर्गीकरण कर सारणीबद्ध किया जायेगा तथा उनका तार्किक व अन्वेषणात्मक विश्लेषण किया जायेगा तथ्यों के विश्लेषण में सांख्यिकीय पद्धतियों तथा चित्रमय प्रदर्शन की सहायता ली जायेगी।

 धारणाओं की पुष्टि तुलनात्मक व्याख्या तथा पूर्व में विकसित धारणाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु द्वितीय से प्राप्त प्रयोग किया जाना भी द्वितीयको की सहायता ली जायेगी।

 9: Objectives of the Proposed Project: 


            अध्ययन के उद्देश्य : प्रस्तुत शोध अध्ययन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1- वर्तमान में कौशल विकास के स्वरूप का अध्ययन करना

2.उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों पर संचार माध्यमों का प्रभाव

3-उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों पर औधोगिकरण का प्रभाव

4-उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों के थारू भाषा में अन्य भाषा का प्रभाव

5- स्वास्थ्य व नवाचारों के प्रभाव का आकलन करना

6- उत्तराखंड की जनजाति नित व थारू जनजाति के प्रभावी अंतर संबंध ज्ञात करना

7- जनजाति क्षेत्र के संसाधनों की समीक्षा समस्याओं और आवश्यकताओं की पुणे पहचान करना तथा उचित सुझाव प्रस्तुत करना



10: Methodology:

शोध कार्य की रूपरेखा (Methodology)


अध्ययन पद्धति :--

 जनजातीय युवाओं के अध्ययन के लिए इस शोध कार्य में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जायेगा ।

जिसके निम्नलिखित चरण होंगे- 

1- समस्या / विषय का चयन 

2-  उपकल्पना का निर्माण, 

3- तथ्यों का संकलन,

4- तथ्यों कानिरीक्षण परीक्षण तथा वर्गीकरण, 

5- निष्कर्ष निकालना



Methodology

अनुसंधान पद्धति

यह अध्ययन क्षेत्र में प्राथमिक डेटा संग्रह पर आधारित है । उधम सिंह नगर जनपद के गुणात्मक तथा मात्रात्मक डेटा संग्रह का विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए तथा वर्णनात्मक अनुसंधान में थारू समुदाय के रीति-रिवाज परंपरा में परिवर्तन के तरीकों का वर्णन होगा।इस शोध विश्लेषणपरक है क्योंकि यह थारू समुदाय के सामाजिक जागरूकता अवस्था में परिवर्तन के क्रम तथा सीमाओं से संबंधित है ।इस शोध अध्ययन पद्धति में विश्लेषणात्मक और व्याख्यात्मक दोनों पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। जिससे सामाजिक आर्थिक स्थिति और सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन के कई पहलुओं का व्यवस्थित रूप से पता लगेगा। इस अध्ययन के लिए उत्तरदाताओं के चयन के लिए अनुपातिक यादृच्छिक नमूना का प्रयोग किया जाएगा। नमूना लेते समय मजबूत और खराब आर्थिक स्थिति वाले थारू परिवार साक्षर इत्यादि को लिया जाएगा। यह अध्ययन प्राथमिक और द्वितीय दोनों डाटा पर आधारित है इस अध्ययन के लिए आवश्यक डाटा प्राथमिक स्रोतों से प्राप्त किया गया है प्राथमिक डाटा विभिन्न तरीकों से एकत्र किया गया है जैसे इंटरव्यू ऑब्जरवेशन हाउसहोल्ड सर्वे आदि कुछ डाटा एकत्र किया जाएगा। प्रश्नावली विधि से भूमि और पशुधन इतिहास के आंकड़े लिए जाएंगे प्रायमरी डाटा कलेक्शन के क्षेत्र के लिए प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने के लिए इंटरव्यू शेड्यूल तकनीक को मुख्य रूप से अपनाया जाएगा। यह विभिन्न उम्र लिंग और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के साथ आयोजित की जाएगी की इनफार्मेशन इंटरव्यू साक्षात्कार में थारू लोग जो विभिन्न पदों पर पहुंचे हैं वह इनके विषय मे समझ में अन्य समुदाय के शिक्षक सामाजिक  कार्यकर्ता को भी शामिल किया जाएगा जो उनकी परंपरा रीतिबद्ध और सामाजिक आर्थिक स्थिति का वर्णन करने में सक्षम होंगे

Participatory Rapid Appraisal (PRA)

 पार्टिसिपेशन रैपिड अपप्रसियाल पी आर ए सहभागी तीव्र मूल्यांकन- इस अध्ययन के लिए डेटा संग्रह का सबसे प्रभावी माध्यम PRA मैथड है। PRA मैथड को समुदाय के नेताओं शिक्षकों महिलाओं सामाजिककार्यकर्ता तथा इच्छुक समूह के माध्यम से लिया जाएगा । स्थानीय लोगों की धारणाओं की अपेक्षाओं और दृष्टिकोण की संस्कृति समस्या दृष्टिकोण सामूहिक संभावना और मौजूदा कारणों पर ज्ञान प्राप्त करने में PRA पद्धति सबसे महत्वपूर्ण  होगी। सेकेंडरी डाटा कलेक्शन या विभिन्न थारू संबंधित पत्रिकाओं संगठन दस्तावेज ग्राम जिला से डाटा एकत्र किया जाएगा। थारू संस्कृति पर लिखे गए शोध प्रबंध ,पुस्तकें विभिन्न दस्तावेज इतिहास के प्रासंगिक प्रमाणिक साहित्य और प्रशासन का अध्ययन किया जाएगा। डेटा विश्लेषण एकत्रित आंकड़ों का वर्णनात्मक विश्लेषणात्मक किया जाएगा आंकड़ों को व्यवस्थित सारणीयन और निष्कर्ष का विश्लेषण और व्याख्या के लिए सांख्यिकी विधि का उपयोग किया जाएगा।

.......

 01 अनुसंधान डिजाइन अध्ययन क्षेत्र से प्राथमिक डेटा संग्रह पर आधारित है।  संबंधित क्षेत्र से गुणात्मक और मात्रात्मक डेटा संग्रह का विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए वर्णनात्मक अनुसंधान डिजाइन को अनुकूलित किया गया है।  यह वर्णनात्मक है क्योंकि यह थारू समुदाय में प्रचलित पुरानी परंपरा और रीति-रिवाजों को चित्रित करता है और यह उस समुदाय में परिवर्तन के पैटर्न का भी वर्णन करता है।  यह शोध विश्लेषणात्मक भी है क्योंकि यह थारू समुदाय की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारणों और सीमा से संबंधित ह।

 

11: Duration of the Proposed Project: 

                                                            2years= 24 months


12: Work Plan: Year wise plan of work and targets to be achieved. 

शोधकार्य की वार्षिक योजना 

(Year-wise Plan of Work and Targets to be Achieve)

प्रथम वर्ष

01-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण व तथ्य संकलन करना।

02-तीन माह

संकलित तथ्यों का वर्गीकरण तथा रिपोर्ट तैयार करना और उद्देश्य संख्या एक को पूर्ण करना किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।

03-तीन माह

शोध क्षेत्र का पुनः सर्वेक्षण तथा तथ्य संकलन करना।

04-तीन माह

संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण से उद्देश्य संख्या दो तथा तीन को प्राप्त करना और निकाले गये निष्कर्षो को प्रकाशित कराना।

द्वितीय वर्ष

01-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन करना।

02-तीन माह

संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण द्वारा उद्देश्य संख्या चार की प्राप्ति करना तथा किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।

03-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन तथा पूर्व में हो चुके शोध कार्यों और विषय सम्बन्धी उपलब्ध प्रकाशित व अपंकाशित सामग्री की सहायता से उद्देश्य संख्या पाँच की प्राप्ति करना तथा शोध कार्य क प्रकाशित करना।

अंतिम तीन माह

समस्त शोध कार्य की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को प्रेषित करना।

सहायता

(सहयोग)

1.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुम्बई

2. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणासी

3.कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल

4.उत्तरांचल प्रशासन अकादमी नैनीताल

5.जी०बी० पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर

6. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली

7. आई०सी०एस०एस०आर० नई दिल्ली

13: Relevance of the proposed study for society and policy making. 

14: References:




—---/

डॉ



1.

















समस्या का मूल 

(Origin of the Problem)


उत्तरांचल की पौधों जनजातियों (थारू, बुक्सा भोटिया, वनरावत तथा जौनसारी) पर अब त शोध कार्य हो चुका है। अभी तक हुए लगभग सभी शोध कार्य इन जनजातियों की पारम्परि संस्कृति व सामाजिक आर्थिक व्यवस्था पर केन्द्रित हैं। वर्तमान में लगभग सभी जनजातियाँ परिवर्तन । सास्कृतिक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। ऐसे में इन जनजातियों से सम्बन्धित विभिन्न सन्दर्भों आधारित नवीन अनुसंधान की आवश्यकता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि आज जनजातियों का स् वह नहीं रहा जो वर्षो पहले था। आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण, शिक्षा प्रसार, रातनैतिक चेतन आजनीय संस्कृति एवं व्यवस्था के मूल ढाँचे पर प्रभाव डाला है जिसका परिणाम है कि यह जनजातियों अब विकास की मुख्य धारा से जुड़ने लगी है। कम से कम उत्तरांचल के संदर्भ में तो यह बात शत प्रतिशत सत्य है। उत्तराचल के जनजातीय समुदाय के युवाओं में नवीन चेतना का उदय हुआ है। पुरानी पीढ़ी की तुलना में नई पीढ़ी के जनजातीय लोग आधुनिक व स्वतंत्र विचारधारा को अधिक अपना रहे है किन्तु यर्थाथ यह भी है कि आधुनिक होने तथा जागरूकता फैलने की गति जितनी तंत्र सामान्य समाज के युवाओं मे है उतनी तीव्र जनजातीय युवाओं में नहीं है। हर जनजाति के युवाओं में जागरुकता की मात्रा अलग-अलग है। ऊधमसिंहनगर जनपद में मुख्य रूप से थारू, बुक्सा तथा भोटिया जनताति के लोग निवास करते है भोटिया जनजाति के युवाओं में थारू एवं बुक्सा जनजातियों के युवाओं की तुलना में अधिक जागरूकता पायी जाती है। जिसका कारण यह भी हो सकता है कि भोटिया जनजाति मूलतः ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र के निवासी है तथा वहाँ के जागरूक परिवार ही आकर तराई क्षेत्र में बसे है। कारण कुछ भी हो परन्तु सत्यता यही है कि ऊधमसिंहनगर जनपद में थारु बुक्सा जनजातियों के युवा भोटिया जनजाति के युवाओं की तुलना में कम जागरूक है। इस कथन के प्रमाण में यह तथ्य भी सामने रखा जा सकता है कि अब तक थारू एवं बुक्सा जनजातियों में से कोई भी युवा आईएएस या पी०सी०एस० जैसी प्रतिष्ठित सरकारी सेवाओं में नहीं चुना गया है जबकि भोटिया जनजाति में अनेक लोग इन सेवाओं में चयनित हुए ।

हैं15


ऊधमसिंहनगर जनपद में खटीमा तथा सितारगंज तहसीलों में लगभग डेढ़ सौ ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते है। दोनों तहसीलों में थारू जनजाति की जनसंख्या लगभग सत्तर हजार है। बाजपुर तथा गदरपुर तहसीलों में बुक्सा जनजाति के लगभग तीस हजार लोग निवास करते हैं।" रूद्रपुर, काशीपुर, खटीमा, सितारगंज, बाजपुर, किच्छा, गदरपुर तथा दिनेशपुर कस्बों में थारू, बुक्सा तथा भोटिया जनजातियों के कुछ परिवार निवास करते है जो रोजगार आदि के कारण अपने मूल स्थानों से आकर यहाँ बस गये है। परिवारों का प्रतिशत कुल जनजातीय जनसंख्या का लगभग आधा प्रतिशत भाग ही नगरीय क्षेत्र में निवास करता है सितारगंज तहसील में थारु जनजाति की जनसंख्या लगभग 26000 है जो कुल जनसंख्या का लगभग 24 प्रतिशत है।


थारू जनजाति के युवाओं में धीरे धीरे जागरूकता तो आ रही है किन्तु उस गति से नहीं जिस गति से सामान्य समाज के युवाओं में आ रही है। थारू जनजाति में अभी कम आयु के विवाह प्रचलित है। वर्तमान में भी तीन चौथाई से अधिक विवाह वैधानिक आयु सीमा से पहले ही हो जाते हैं। विवा के मामले में थारू जनजाति की परम्परागत विवाह पद्धतियों जैसे उदरा, घुसपैठ आदि युवाओं को अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता प्रदान करती है इनकी तुलना हम गन्धर्व एवं हक विवाह से कर सकते ।। थारु युवाओं के सम्बन्ध में एक तथ्य विशेष रूप से विचारणीय है कि यह लोग अपनी परम्परागत संस्कृति के प्रति उदासीन तो होते जा रहे हैं पर नये सामाजिक मूल्यों व चेतना को इस सीमा तक ग्रहण नहीं कर पा रहे है कि वह भोटिया जनजाति अथवा अन्य सामान्य वर्ग के युवाओं की भाँति तेजी से प्रगति कर सके। थारू जनजाति में अभी तक मात्र एक युवक प्रेम सिंह राणा ने पी-एच०डी० की उपाधि प्रा की एक व्यक्ति लक्ष्मण सिंह राणा डिग्री कालेज में प्राध्यापक है मात्र एक व्यक्ति श्री गोपाल सिंह राणा विधायक चुने गये है। हों अधिक जनसंख्या होने के कारण ग्राम प्रधान क्षेत्र पंचायत सदस्य

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क्यूब्लाक प्रमुख आदि पदो पर तो कई थारू युवा चुने गये हैं। अराजपत्रित पदों पर तो अनेक थारू युवा सेवारत है पर राजपत्रित पदों पर अभी भी इनकी संख्या नगण्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षा एवं उच्च पदों पर चयनित होने के लिए भी थारू युवाओं के सामने आदर्श एवं उत्प्ररको के अभाव है जब किसी समुदाय में कुछ लोग उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद प्राप्त कर लेते हैं तो वह अपने समुदाय के लिए आदर्श एवं उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। थारु समुदाय में अभी इनकी कमी है। अतः यही कारण प्रतीत होता है कि थारू युवा तेजी से विकास नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि ग्रामीण विकास की विभिन्न योजनाओं के प्रति थारू युवा काफी सचेत प्रतीत होते हैं किन्तु यह चेतना सिर्फ ग्राम स्तर तक ही दिखाई देती है। विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे जलागम, ट्राइरोम, स्वयं सहायता समूह आदि में यह लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते है किन्तु बड़ी सफलताओं हेतु अधिक प्रयास नहीं करते। 


उत्तरांचल बनने के बाद उत्तरांचल की जनजातियों हेतु पी०सी०एस० में आरक्षण होने के बाद भी कोई थारू युवा राज्य की प्रथम पी०सी०एस० परीक्षा में सफल नहीं हुआ थारू युवाओं के सम्बन्ध में यदि कोई संन्तोषजनक बात है तो यह है कि यह लोग स्थानीय स्तर पर परम्परागत व आधुनिक खेलों में पर्यान्त रूचि रखते हैं। थारू युवा एथ्लेटिक्स, कबड्डी, बॉलीबॉल, क्रिकेट, फुटबॉल, हांकी आदि खेलों पर विशेष ध्यान देते हैं। इस क्षेत्र के विद्यालयों की खेल टीमों में थारू युवाओं की अधिकांश भागीदारी रहती है। इस सम्बन्ध में एक चिन्ताजनक पहलू यह भी है कि उचित सुविधाओं व मार्गदर्शन के अभाव में थारू युवा राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी खेल प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। यदि इन्हें सुविधाएं व अवसर मिलें तो यह काफी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। राजनैतिक चेतना के सन्दर्भ में धारू युवक स्थानीय राजनीति के प्रति तो काफी सजग हैं पर राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय राजनैतिद गतिविधियों से प्रायः अनभिज्ञ प्रतीत होते हैं। थारू जनजाति का अपना संगठन है जिसे यह लोग था राणा परिषद कहते हैं। यह परिषद थारू समाज के विकास हेतु कार्य करती है। थारू राणा परिषद के अन्य सह संगठन भी कार्य कर रहे हे जिनमें जाति सुधार सभा, थारू उत्थान युवा संगठन, २ महिला कल्याण समिति, एकीकृत थारू जनजाति समिति आदि प्रमुख हैं। थारू राणा परिषद ने थाल समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने तथा विकास की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए कुछ प्रस्ताव पारित किए हैं जैसे विवाह में कन्याधन न लेना, शराब का निर्माण व सेवन न करना, बच्चों की शिक्षा अनिवा करना, विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध न करना, बाल विवाह न करना आदि। थारू समुदाय के श्री दौलत सिंह राणा, श्री ओम प्रकाश राणा, जिला पंचायत के उपाध्यक्ष व श्री बादाम सिंह राणा, श्री भीम सिंह राणा ब्लाक प्रमुख जैसे प्रमुख स्थानीय निकाय के पदों को प्राप्त करचुके हैं किन्तु अभी तक कोई थारू केन्द्र अथवा राज्य सरकार में मंत्री नहीं बन पाया है।

थारूओं के क्षेत्र में कुछ ईसाई संस्थाएं थारू युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। ईसाई संस्थाओं ने इस क्षेत्र में शिक्षा व चिकित्सा सम्बन्धी विकास के बहाने अपने धर्म प्रचार हेतु गिरिजाघरों, स्कूलों व अस्पतालों की स्थापना की है यह संस्थाएं विशेषतौर पर थारू युवाओं को अपने जाल में फंसाती है और उन्हें विकास के शब्जबाग दिखाकर ईसाई धर्म ग्रहण कराती हैं हाँलाकि थारू युवा इन संस्थाओं के षडयंत्र से परिचित हो चुके हैं अतः इनका विरोध होने लगा है। इक्का-दुक्का लोग ही ईसाई धर्म में दीक्षित हुए हैं। थारू युवाओं में अपराध की भावना कम पायी जाती है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि शराब

आदि नशील पदार्थों का सेवन करने के बाद भी यह लोग आपराधिक कार्यों से प्रायः दूर रहते हैं। हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती जैसे जघन्य अपराध थारू युवाओं में प्रायः नहीं पाये जाते थारू युवा भोले-भाले और शर्मीले होते हैं। स्त्रियों के प्रति अपराध तो थारू जनजाति में न के बराबर होते हैं 24 गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति तो थारू युवाओं में आई है परन्तु यह ज्यादा अधिक नहीं हैं। अधिकांश युवा ग्रामों में ही रहते हैं। पढ़ने-लिखने के साथ-साथ यह लोग प्राय: कृषि व पशुपालन में भी अपने परिजनों की मदद करते हैं। वर्तमान में संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है फिर भी लगभग 25 प्रतिशत परिवार संयुक्त परिवार हैं थारूओं में एक अनोखी परम्परा 'मिलाई' का पालन अभी भी किया जाता


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सन्दर्भ


1- जोशी अवनींद्र कुमार (1983) 'जियोलॉजिकल ट्राइब्स, प्रकाश बुक डिपो बरेली पी


2-- मजूमदार, डी0एन0 (1942), दि थोरूज एण्ड दियर ब्लड ग्रुप, जर्नल ऑफ राफयल एशियाटिक


सोसाइटी कलकत्ता बाल्यूम XXXXI पृष्ठ-33


3- पाण्डे, बद्रीदत्त (1990) कुमाऊँ का इतिहास', अल्मोडा बुक डिपो अल्मोड़ा पृष्ठ-548


4- अग्रवाल, जी.के. (1989) सोशल एंथ्रोपोलॉजी' आगरा बुक स्टोर आगरा, पृष्ठ-361


5- पाण्डे, बद्रीदत्त (1990) उपरोक्त ही पृष्ठ 549


उप्रेती, हरिचंद्र (1970) इंडियन ट्राइब्स, राजस्थान यूनिवर्सिटी, जयपुर पृष्ठ-64 अशोककीर्ति, भिक्षु (1999) "निःस्वार्थ आत्म पत्रिका के मूल की खोज" नेपाली 



6-अध्ययन, रॉयल नेपाल अकादमी काठमांडू,


8- http://en.wikipedia.org/wiki/tharu. पेज 3


9-


10- बिष्ट, भगवान सिंह (1996) उत्तराखंड आज, अल्मोड़ा बुक डिपों अल्मोडा, पृष्ठ-9


उपरोक्त ही


11- भाषा कोड के लिए एथनोलॉग 14 रिपोर्ट: टीएचएल पृष्ठ-1 http://www.ethnologue.com/ पर


14/show_Language.asp उपरोक्त ही 12-


13- http://crafts. Indianetzone.com/patch_work.htm, पेज-1


14- सुभाषचन्द्र (2004) उत्तर प्रदेश की थारू जनजाति का समाजशास्त्रीय अध्ययन (अप्रकाशित


15- उपरोक्त ही पृष्ठ-178


5


निबंध) डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा पृष्ठ-1


16 बिष्ट भगवान सिंह (1996) उत्तराखंड आज अल्मोड़ा बुक डिपो एवं प्रकाशक, अल्मोडा,


पृष्ठ-161


17- संख्या पत्रिका 2001, जिला सांख्यिकी कार्यालय ऊधम सिंह नगर, पृष्ठ-6 उपरोक्त ही


18-


19- सुभाषचन्द्र (2004) उपरोक्त ही उपरोक्त ही पृष्ठ 55


20-


21- 22- वरीयता सूची (राजपत्रित) उच्च शिक्षा विभाग उत्तरांचल शासन कार्यालय, जिला पंचायत राज अधिकारी, ऊधम सिंह नगर की सूचनानुसार


23- राणा, प्रेम सिंह (1999) खटीमा विकास खंड में आवासित थारु ईसाई परिवारों की सामाजिक आर्थिक स्थिति का अध्ययन (अपकाशित शोध प्रबन्ध) कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल, पृष्ठ-70


24- मुखर्जी, रविन्द्र नाथ (1997) सामाजिक मानव शास्त्र की रूपरेखा, विवेक प्रकाशन दिल्ली,


पृष्ठ-381


25- सुभाषचन्द्र (2004) उपरोक्त ही पृष्ठ-34


26- श्रीवास्तव (1958) द थारूज़ आगरा यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन पृष्ठ 96-9


27- सकलानी, शक्ति प्रसाद (1996) तराई रुद्रपुर का इतिहास औ विकास गौरव प्रकाशन दिल्ली, पृष्ठ 69-70


28- अमर उजाला बरेली, 30 दिसम्बर 2002


29- "ऊधमसिंहनगर तब और अब सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग, उत्तरांचल की रिपोर्ट-2005


पृष्ठ-54 उपरोक्त ही. 30- पृष्ठ-22



पेज 4


थारू जनजाति थारू जनजाति भारत में निवास करने वाली सैकड़ों जनजातियों में से एक है। उत्तराखण्ड में पाई जाने वाली जनसंख्या की दृष्टि से पाँच प्रमुख जनजातियों में से थारू पहले स्थान पर हैं। थारू अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते हैं। अवध गजेटियर के अनुसार थारू का शाब्दिक अर्थ ठहरे है, अर्थात जो लोग तराई के वनों में आकर ठहर गये। अध्ययन के अन्तर्गत थारू जनजाति से तात्पर्य उत्तराखण्ड के कुमायूँ मण्डल में निवास कर रही जनजाति से है।


(ii) प्रस्तुत अध्ययन में माध्यमिक स्तर से आशय उत्तराखण्ड के विद्यालयों में कक्षा 12 से लेकर कक्षा स्नाकोत्तर तक अध्ययनरत् विद्यार्थियों से है।


(iii) शैक्षिक समस्यायें प्रस्तुत अध्ययन में शैक्षिक समस्याओं के अन्तर्गत विशेष रूप से विद्यार्थियों के अध्ययन के अन्तर्गत आने वाली समस्याओं का अध्ययन तथा साथ ही सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और समायोजन सम्बन्धी समस्याओं का भी अध्ययन किया गया हैं।


 


अध्ययन क्षेत्र (Research Area)

शोध क्षेत्र के रूप में ऊधमसिंहनगर जनपद की सितारगंज तहसील को चुना गया है।तहसील के अधिकांश ग्रामों में थारू जनजाति की बहुलता है। शोध का विषय इस तहसील जनजातीय महाविद्यालयी विद्यार्थियों में जागरूकता से सम्बन्धित है। शोध कार्य में प्राथमिक तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया जायेगा तथा यथा सम्भव द्वितीयक स्रोतों द्वारा प्राप्त तथ्यों का प्रयोग भी किया जायेगा। प्राथमिक प्रत्यक्ष तथ्य संकलन हेतु जनपद की सितारगंज तहसील के लगभग सभी जनजातीय युवाओं साक्षात्कार किया जायेगा सितारगंज तहसील के जिन जिन ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं उन सभी का सर्वेक्षण किया जायेगा और इनमें रहने वाले 18 से 35 वर्ष की आयु के युवा युवतियों का साक्षात्कार किया जायेगा। जनजातीय (थारू) युवक युवतियों के साथ-साथ लगभग उतनी ही संख्या में सामान्य वर्ग के युवक युवतियों का साक्षात्कार भी किया जायेगा ताकि जनजातीय तथा सामान्य युवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। वर्तमान में थारु बाहुल्य ग्रामों में सामान्य वर्ग के विभिन्न समुदायों जैसे पंजाबी, बंगाली, कुमाऊँनी, गढ़वाली तथा पूर्वाचली (भोजपुरी) के लोगो निवास कर रहे हैं अतः सामान्य वर्ग के युवाओं के साथ-साथ जनजातीय युवाओं का तुल्नात्मक अध्ययन करना अनिवार्य व सार्थक प्रतीत होता है साक्षात्कार हेतु साक्षात्कार अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग किया जायेगा। सर्वेक्षण के दौरान अन्य तकनीकीय यंत्रों जैसे मोबाइल, कैमरा, , वाइस रिकार्डर आदि का प्रयोग भी किया जायेगा।द्वितीयक स्रोतों के रूप में विषय से सम्बन्धित अब तक हुए शोध कार्यों,प्रकाशित पुस्तकों, सरकारी अभिलेखों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का प्रयोग किया जायेगा। प्राथमिक स्रोतों से संकलित तथ्यों का वर्गीकरण कर सारणीबद्ध किया जायेगा तथा उनका तार्किक व अन्वेषणात्मक विश्लेषण किया जायेगा तथ्यों के विश्लेषण में सांख्यिकीय पद्धतियों तथा चित्रमय प्रदर्शन की सहायता ली जायेगी। धारणाओं की पुष्टि तुलनात्मक व्याख्या तथा पूर्व में विकसित धारणाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु द्वितीय से प्राप्त प्रयोग किया जाना भी द्वितीयको की सहायता ली जायेगी करने प्रकारकये जायेंगे भारत नेपाल ने किया प्रकार के सम्बन्ध और समानताएं हैं तथा अन्तर



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शोध कार्य की रूपरेखा (Methodology)



हेतु यह रचना ही अधिक उपयुक्त रहेगी।


11 

Duration of the Proposed work

     2years= 24 months


12

शोधकार्य की वार्षिक योजना 

(Year-wise Plan of Work and Targets to be Achieve)


प्रथम वर्ष

01-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण व तथ्य संकलन करना।

02-तीन माह

संकलित तथ्यों का वर्गीकरण तथा रिपोर्ट तैयार करना और उद्देश्य संख्या एक को पूर्ण करना किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।

03-तीन माह

शोध क्षेत्र का पुनः सर्वेक्षण तथा तथ्य संकलन करना।

04-तीन माह

संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण से उद्देश्य संख्या दो तथा तीन को प्राप्त करना और निकाले गये निष्कर्षो को प्रकाशित कराना।

द्वितीय वर्ष

01-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन करना।

02-तीन माह

संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण द्वारा उद्देश्य संख्या चार की प्राप्ति करना तथा किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।

03-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन तथा पूर्व में हो चुके शोध कार्यों और विषय सम्बन्धी उपलब्ध प्रकाशित व अपंकाशित सामग्री की सहायता से उद्देश्य संख्या पाँच की प्राप्ति करना तथा शोध कार्य क प्रकाशित करना।

अंतिम तीन माह

समस्त शोध कार्य की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को प्रेषित करना।

सहायता

(सहयोग)

1.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुम्बई

2. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणासी

3.कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल

4.उत्तरांचल प्रशासन अकादमी नैनीताल

5.जी०बी० पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर

6. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली

7. आई०सी०एस०एस०आर० नई दिल्ली



Sunday, November 19, 2023

100

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Research Proposal Format

 Chief Minister Higher Education Research Encouragement Scheme 2023-24 (Department of Higher Education, Govt. of Uttarakhand) 

1: Broad area of Subject: Sociology

2: Specialization:Rural Sociology 

3: Project Title:जागरूकता के संदर्भ में थारू जनजाति के महाविद्यालयी  का समाजशास्त्रीय अध्ययन

                            (सितारगंज तहसील के विशेष सन्दर्भ)


4: Name, Post and Address of Principal Investigator:Dr.Satya mitra Singh Assistant Professor Sociology
Government PG College Sitarganj

5: Name, Post and Address of Co-Investigator:
6: Name of the institution where a project is being executed/likely to be executed: 
Government P.G College Sitarganj Uttarakhand

7: Introduction (Origin of Proposal):

थारू जनजाति

उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र की सर्वाधिक आबादी वाली जनजाति थारू है ।थारू जनजाति ऊधमसिंह नगर के खटीमा, किच्छा, नानकमता व सितारगंज के 144 गांवो में 90% निवास करते है।ऊधम सिंह नगर क्षेत्र के अंतर्गत आता है थारू जनजाति इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश बिहार और नेपाल में प्रमुखता से पाई जाती हैं यह आदिम जातियां स्थानीय कृषि और पशुपालन होते हैं।

8. Review of research and development in the proposed area: (National and International status, Importance, patents)

अध्ययन क्षेत्र (Research Area)- शोध क्षेत्र के रूप में ऊधमसिंहनगर जनपद की सितारगंज तहसील को चुना गया है।तहसील के अधिकांश ग्रामों में थारू जनजाति की बहुलता है। शोध का विषय इस तहसील जनजातीय महाविद्यालयी विद्यार्थियों में जागरूकता से सम्बन्धित है। शोध कार्य में प्राथमिक तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया जायेगा तथा यथा सम्भव द्वितीयक स्रोतों द्वारा प्राप्त तथ्यों का प्रयोग भी किया जायेगा। प्राथमिक प्रत्यक्ष तथ्य संकलन हेतु जनपद की सितारगंज तहसील के लगभग सभी जनजातीय युवाओं साक्षात्कार किया जायेगा सितारगंज तहसील के जिन जिन ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं उन सभी का सर्वेक्षण किया जायेगा और इनमें रहने वाले 18 से 35 वर्ष की आयु के युवा युवतियों का साक्षात्कार किया जायेगा। जनजातीय (थारू) युवक युवतियों के साथ-साथ लगभग उतनी ही संख्या में सामान्य वर्ग के युवक युवतियों का साक्षात्कार भी किया जायेगा ताकि जनजातीय तथा सामान्य युवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। वर्तमान में थारु बाहुल्य ग्रामों में सामान्य वर्ग के विभिन्न समुदायों जैसे पंजाबी, बंगाली, कुमाऊँनी, गढ़वाली तथा पूर्वाचली (भोजपुरी) के लोगो निवास कर रहे हैं अतः सामान्य वर्ग के युवाओं के साथ-साथ जनजातीय युवाओं का तुल्नात्मक अध्ययन करना अनिवार्य व सार्थक प्रतीत होता है साक्षात्कार हेतु साक्षात्कार अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग किया जायेगा। सर्वेक्षण के दौरान अन्य तकनीकीय यंत्रों जैसे मोबाइल, कैमरा, , वाइस रिकार्डर आदि का प्रयोग भी किया जायेगा।द्वितीयक स्रोतों के रूप में विषय से सम्बन्धित अब तक हुए शोध कार्यों,प्रकाशित पुस्तकों, सरकारी अभिलेखों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का प्रयोग किया जायेगा। प्राथमिक स्रोतों से संकलित तथ्यों का वर्गीकरण कर सारणीबद्ध किया जायेगा तथा उनका तार्किक व अन्वेषणात्मक विश्लेषण किया जायेगा तथ्यों के विश्लेषण में सांख्यिकीय पद्धतियों तथा चित्रमय प्रदर्शन की सहायता ली जायेगी। धारणाओं की पुष्टि तुलनात्मक व्याख्या तथा पूर्व में विकसित धारणाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु द्वितीय से प्राप्त प्रयोग किया जाना भी द्वितीयको की सहायता ली जायेगी करने प्रकारकये जायेंगे भारत नेपाल ने किया प्रकार के सम्बन्ध और समानताएं हैं तथा अन्तर


 9: Objectives of the Proposed Project: 

            अध्ययन के उद्देश्य : प्रस्तुत शोध अध्ययन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1.उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का लिंग (छात्र / छात्रा) के आधार पर अध्ययन करना।

2. उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का क्षेत्र ( ग्रामीण / शहरी) के आधार पर अध्ययन करना ।

3.उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का उनके माता-पिता के शैक्षिक स्तर (शिक्षित / अशिक्षित) के आधार पर अध्ययन करना ।

4.उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का उनके माता-पिता के आर्थिक स्तर ( उच्च / निम्न ) के आधार पर अध्ययन करना।

5. उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का उनके माता-पिता के द्वारा बच्चों को दिये गये समय ( पर्याप्त समय / समयाभाव ) के आधार पर अध्ययन करना ।

6. उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का उनके स्वास्थ्य ( स्वस्थ / अस्वस्थ ) के आधार पर अध्ययन करना।

7 उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का पाठ्य सहगामी


10: Methodology:

शोध कार्य की रूपरेखा (Methodology)


अध्ययन पद्धति :--

 जनजातीय युवाओं के अध्ययन के लिए इस शोध कार्य में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जायेगा ।

जिसके निम्नलिखित चरण होंगे- 

1- समस्या / विषय का चयन 

2-  उपकल्पना का निर्माण, 

3- तथ्यों का संकलन,

4- तथ्यों कानिरीक्षण परीक्षण तथा वर्गीकरण, 5- निष्कर्ष निकालना



Methodology

अनुसंधान पद्धति

यह अध्ययन क्षेत्र में प्राथमिक डेटा संग्रह पर आधारित है । उधम सिंह नगर जनपद के गुणात्मक तथा मात्रात्मक डेटा संग्रह का विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए तथा वर्णनात्मक अनुसंधान में थारू समुदाय के रीति-रिवाज परंपरा में परिवर्तन के तरीकों का वर्णन होगा।इस शोध विश्लेषणपरक है क्योंकि यह थारू समुदाय के सामाजिक जागरूकता अवस्था में परिवर्तन के क्रम तथा सीमाओं से संबंधित है ।इस शोध अध्ययन पद्धति में विश्लेषणात्मक और व्याख्यात्मक दोनों पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। जिससे सामाजिक आर्थिक स्थिति और सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन के कई पहलुओं का व्यवस्थित रूप से पता लगेगा। इस अध्ययन के लिए उत्तरदाताओं के चयन के लिए अनुपातिक यादृच्छिक नमूना का प्रयोग किया जाएगा। नमूना लेते समय मजबूत और खराब आर्थिक स्थिति वाले थारू परिवार साक्षर इत्यादि को लिया जाएगा। यह अध्ययन प्राथमिक और द्वितीय दोनों डाटा पर आधारित है इस अध्ययन के लिए आवश्यक डाटा प्राथमिक स्रोतों से प्राप्त किया गया है प्राथमिक डाटा विभिन्न तरीकों से एकत्र किया गया है जैसे इंटरव्यू ऑब्जरवेशन हाउसहोल्ड सर्वे आदि कुछ डाटा एकत्र किया जाएगा। प्रश्नावली विधि से भूमि और पशुधन इतिहास के आंकड़े लिए जाएंगे प्रायमरी डाटा कलेक्शन के क्षेत्र के लिए प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने के लिए इंटरव्यू शेड्यूल तकनीक को मुख्य रूप से अपनाया जाएगा। यह विभिन्न उम्र लिंग और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के साथ आयोजित की जाएगी की इनफार्मेशन इंटरव्यू साक्षात्कार में थारू लोग जो विभिन्न पदों पर पहुंचे हैं वह इनके विषय मे समझ में अन्य समुदाय के शिक्षक सामाजिक  कार्यकर्ता को भी शामिल किया जाएगा जो उनकी परंपरा रीतिबद्ध और सामाजिक आर्थिक स्थिति का वर्णन करने में सक्षम होंगे

Participatory Rapid Appraisal (PRA)

 पार्टिसिपेशन रैपिड अपप्रसियाल पी आर ए सहभागी तीव्र मूल्यांकन- इस अध्ययन के लिए डेटा संग्रह का सबसे प्रभावी माध्यम PRA मैथड है। PRA मैथड को समुदाय के नेताओं शिक्षकों महिलाओं सामाजिककार्यकर्ता तथा इच्छुक समूह के माध्यम से लिया जाएगा । स्थानीय लोगों की धारणाओं की अपेक्षाओं और दृष्टिकोण की संस्कृति समस्या दृष्टिकोण सामूहिक संभावना और मौजूदा कारणों पर ज्ञान प्राप्त करने में PRA पद्धति सबसे महत्वपूर्ण  होगी। सेकेंडरी डाटा कलेक्शन या विभिन्न थारू संबंधित पत्रिकाओं संगठन दस्तावेज ग्राम जिला से डाटा एकत्र किया जाएगा। थारू संस्कृति पर लिखे गए शोध प्रबंध ,पुस्तकें विभिन्न दस्तावेज इतिहास के प्रासंगिक प्रमाणिक साहित्य और प्रशासन का अध्ययन किया जाएगा। डेटा विश्लेषण एकत्रित आंकड़ों का वर्णनात्मक विश्लेषणात्मक किया जाएगा आंकड़ों को व्यवस्थित सारणीयन और निष्कर्ष का विश्लेषण और व्याख्या के लिए सांख्यिकी विधि का उपयोग किया जाएगा।



.......

 01 अनुसंधान डिजाइन अध्ययन क्षेत्र से प्राथमिक डेटा संग्रह पर आधारित है।  संबंधित क्षेत्र से गुणात्मक और मात्रात्मक डेटा संग्रह का विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए वर्णनात्मक अनुसंधान डिजाइन को अनुकूलित किया गया है।  यह वर्णनात्मक है क्योंकि यह थारू समुदाय में प्रचलित पुरानी परंपरा और रीति-रिवाजों को चित्रित करता है और यह उस समुदाय में परिवर्तन के पैटर्न का भी वर्णन करता है।  यह शोध विश्लेषणात्मक भी है क्योंकि यह थारू समुदाय की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारणों और सीमा से संबंधित ह।

 
11: Duration of the Proposed Project: 
                                                            2years= 24 months

12: Work Plan: Year wise plan of work and targets to be achieved. 

शोधकार्य की वार्षिक योजना 

(Year-wise Plan of Work and Targets to be Achieve)

प्रथम वर्ष

01-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण व तथ्य संकलन करना।

02-तीन माह

संकलित तथ्यों का वर्गीकरण तथा रिपोर्ट तैयार करना और उद्देश्य संख्या एक को पूर्ण करना किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।

03-तीन माह

शोध क्षेत्र का पुनः सर्वेक्षण तथा तथ्य संकलन करना।

04-तीन माह

संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण से उद्देश्य संख्या दो तथा तीन को प्राप्त करना और निकाले गये निष्कर्षो को प्रकाशित कराना।

द्वितीय वर्ष

01-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन करना।

02-तीन माह

संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण द्वारा उद्देश्य संख्या चार की प्राप्ति करना तथा किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।

03-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन तथा पूर्व में हो चुके शोध कार्यों और विषय सम्बन्धी उपलब्ध प्रकाशित व अपंकाशित सामग्री की सहायता से उद्देश्य संख्या पाँच की प्राप्ति करना तथा शोध कार्य क प्रकाशित करना।

अंतिम तीन माह

समस्त शोध कार्य की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को प्रेषित करना।

सहायता

(सहयोग)

1.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुम्बई

2. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणासी

3.कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल

4.उत्तरांचल प्रशासन अकादमी नैनीताल

5.जी०बी० पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर

6. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली

7. आई०सी०एस०एस०आर० नई दिल्ली

13: Relevance of the proposed study for society and policy making. 
14: References:

.............................................................................................................................................




जागरूकता के संदर्भ में थारू जनजाति के महाविद्यालयी  का समाजशास्त्रीय अध्ययन

(सितारगंज तहसील के विशेष सन्दर्भ)


(Research Proposal)



Chief Minister Higher Education Research Encouragement Scheme 2023-24


Department of Higher Education Govt.of Uttarakhand


मुख्यमंत्री की शोध परियोजना हेतु 

समाजशास्त्र विषय में किये जाने वाले 

शोधकार्य की प्रस्तावित रूपरेखा

 (Research Project)




परियोजना शोधकर्ता

डॉ. सत्यमित्र सिंह 

असिस्टेंट प्रोफेसर समाजशास्त्र

समाजशास्त्र विभाग


डॉ. कामना 

 समाजशास्त्र

समाजशास्त्र विभाग


राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय सितारगंज

 262405 (ऊधम सिंह नगर) उत्तराखंड

 Mob.- 6396452212

 Email-dr.satyamitra@gmail.com






1. शीर्षक: 

जागरूकता के संदर्भ में थारू जनजाति के छात्र/छात्राओं समाजशास्त्रीय अध्ययन


02

भूमिका


प्रमुख शब्दों का परिभाषाकरण

























सन् 1567 ई0 से सम्बद्ध है, जिसके अन्तर्गत अकबर के शासन में तराई क्षेत्र में बुक्साड क्षेत्र ( वर्तमान रूद्रपुर से किलपुरी क्षेत्र ) का उल्लेख है। जिसे अकबर ने कुमाऊँ के राजा रूद्रचन्द्र को पंजाब में सफल युद्ध में अपनी वीरता प्रदर्शित करने के फलस्वरूप प्रदान किया था।” इसका तात्पर्य यह है कि थारू जनजाति के लोग 16वीं सदी से पूर्व से ही तराई क्षेत्र में आकर बसे और अपनी पृथक संस्कृति को विकसित कर लेने के कारण इसने कालान्तर में एक जनजाति का रूप ग्रहण कर लिया। अनेक इतिहासकारों तथा मानवशास्त्रियों के विचारों से जिनमें से कुछ का समर्थन स्वयं थारू राणा परिषद के मुखिया द्वारा भी किया गया है, ऐसा प्रतीत होता है कि एक अप्रवासी समूह के रूप में यह जनजाति अपने आरम्भिक चरण में पूर्णतया मातृसत्तात्मक थी। 38 क्योंकि इनके अन्तर्गत उन राजपूत स्त्रियों की प्रधानता थी जो विभिन्न जातियों के अपने सेवकों के साथ भाग कर तराई क्षेत्रों के निर्जन जंगली तथा दूरस्थ प्रदेश में आकर बसी थी।


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थारू शब्द की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में विचारकों का एक मत नहीं है। लेकिन इन सब विरोधामासों के बाद भी यह कहा जा सकता है कि 'थारूओं' की राजपूत उत्पत्ति से सम्बन्धित सिद्धान्त अधिक प्रमाणित प्रतीत होता है, क्योंकि ऐतिहासिक व्याख्याओं में इस बात का तो सतत उल्लेख प्राप्त होता है कि मुसलमानों व राजपूतों के मध्य समय-समय पर आक्रमण होते रहे लेकिन किसी भी इतिहासकार द्वारा इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया कि युद्ध में पराजय के बाद राजपूत रानियाँ अपने चाकरों के साथ पलायन कर


37 अबुल फजल आइन-ए-अकबरी, पार्ट-3, पृ. 375 38 बी. एस. बिष्ट (1997). उत्तरांचल, अल्मोडा: श्री अल्मोड़ा बुक डिपो, पृ. 153


गयीं। फिर भी राजपूत उत्पत्ति विषयक किंवदन्ति में सत्यता प्रतीत होती है। आज स्वयं थारू


समाज के वृद्ध पुरूष और स्त्रियां इस कथन को स्वीकार करते हैं कि थारू स्त्रियाँ वास्तव में


राज घराने से सम्बन्धित थीं। इस धारणा को आज भी उनके सामाजिक आर्थिक एवं












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समस्या का मूल 

(Origin of the Problem)


उत्तरांचल की पौधों जनजातियों (थारू, बुक्सा भोटिया, वनरावत तथा जौनसारी) पर अब त शोध कार्य हो चुका है। अभी तक हुए लगभग सभी शोध कार्य इन जनजातियों की पारम्परि संस्कृति व सामाजिक आर्थिक व्यवस्था पर केन्द्रित हैं। वर्तमान में लगभग सभी जनजातियाँ परिवर्तन । सास्कृतिक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। ऐसे में इन जनजातियों से सम्बन्धित विभिन्न सन्दर्भों आधारित नवीन अनुसंधान की आवश्यकता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि आज जनजातियों का स् वह नहीं रहा जो वर्षो पहले था। आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण, शिक्षा प्रसार, रातनैतिक चेतन आजनीय संस्कृति एवं व्यवस्था के मूल ढाँचे पर प्रभाव डाला है जिसका परिणाम है कि यह जनजातियों अब विकास की मुख्य धारा से जुड़ने लगी है। कम से कम उत्तरांचल के संदर्भ में तो यह बात शत प्रतिशत सत्य है। उत्तराचल के जनजातीय समुदाय के युवाओं में नवीन चेतना का उदय हुआ है। पुरानी पीढ़ी की तुलना में नई पीढ़ी के जनजातीय लोग आधुनिक व स्वतंत्र विचारधारा को अधिक अपना रहे है किन्तु यर्थाथ यह भी है कि आधुनिक होने तथा जागरूकता फैलने की गति जितनी तंत्र सामान्य समाज के युवाओं मे है उतनी तीव्र जनजातीय युवाओं में नहीं है। हर जनजाति के युवाओं में जागरुकता की मात्रा अलग-अलग है। ऊधमसिंहनगर जनपद में मुख्य रूप से थारू, बुक्सा तथा भोटिया जनताति के लोग निवास करते है भोटिया जनजाति के युवाओं में थारू एवं बुक्सा जनजातियों के युवाओं की तुलना में अधिक जागरूकता पायी जाती है। जिसका कारण यह भी हो सकता है कि भोटिया जनजाति मूलतः ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र के निवासी है तथा वहाँ के जागरूक परिवार ही आकर तराई क्षेत्र में बसे है। कारण कुछ भी हो परन्तु सत्यता यही है कि ऊधमसिंहनगर जनपद में थारु बुक्सा जनजातियों के युवा भोटिया जनजाति के युवाओं की तुलना में कम जागरूक है। इस कथन के प्रमाण में यह तथ्य भी सामने रखा जा सकता है कि अब तक थारू एवं बुक्सा जनजातियों में से कोई भी युवा आईएएस या पी०सी०एस० जैसी प्रतिष्ठित सरकारी सेवाओं में नहीं चुना गया है जबकि भोटिया जनजाति में अनेक लोग इन सेवाओं में चयनित हुए हैं 15

ऊधमसिंहनगर जनपद में खटीमा तथा सितारगंज तहसीलों में लगभग डेढ़ सौ ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते है। दोनों तहसीलों में थारू जनजाति की जनसंख्या लगभग सत्तर हजार है। बाजपुर तथा गदरपुर तहसीलों में बुक्सा जनजाति के लगभग तीस हजार लोग निवास करते हैं।" रूद्रपुर, काशीपुर, खटीमा, सितारगंज, बाजपुर, किच्छा, गदरपुर तथा दिनेशपुर कस्बों में थारू, बुक्सा तथा भोटिया जनजातियों के कुछ परिवार निवास करते है जो रोजगार आदि के कारण अपने मूल स्थानों से आकर यहाँ बस गये है। परिवारों का प्रतिशत कुल जनजातीय जनसंख्या का लगभग आधा प्रतिशत भाग ही नगरीय क्षेत्र में निवास करता है सितारगंज तहसील में थारु जनजाति की जनसंख्या लगभग 26000 है जो कुल जनसंख्या का लगभग 24 प्रतिशत है।


थारू जनजाति के युवाओं में धीरे धीरे जागरूकता तो आ रही है किन्तु उस गति से नहीं जिस गति से सामान्य समाज के युवाओं में आ रही है। थारू जनजाति में अभी कम आयु के विवाह प्रचलित है। वर्तमान में भी तीन चौथाई से अधिक विवाह वैधानिक आयु सीमा से पहले ही हो जाते हैं। विवा के मामले में थारू जनजाति की परम्परागत विवाह पद्धतियों जैसे उदरा, घुसपैठ आदि युवाओं को अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता प्रदान करती है इनकी तुलना हम गन्धर्व एवं हक विवाह से कर सकते ।। थारु युवाओं के सम्बन्ध में एक तथ्य विशेष रूप से विचारणीय है कि यह लोग अपनी परम्परागत संस्कृति के प्रति उदासीन तो होते जा रहे हैं पर नये सामाजिक मूल्यों व चेतना को इस सीमा तक ग्रहण नहीं कर पा रहे है कि वह भोटिया जनजाति अथवा अन्य सामान्य वर्ग के युवाओं की भाँति तेजी से प्रगति कर सके। थारू जनजाति में अभी तक मात्र एक युवक प्रेम सिंह राणा ने पी-एच०डी० की उपाधि प्रा की एक व्यक्ति लक्ष्मण सिंह राणा डिग्री कालेज में प्राध्यापक है मात्र एक व्यक्ति श्री गोपाल सिंह राणा विधायक चुने गये है। हों अधिक जनसंख्या होने के कारण ग्राम प्रधान क्षेत्र पंचायत सदस्य

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क्यूब्लाक प्रमुख आदि पदो पर तो कई थारू युवा चुने गये हैं। अराजपत्रित पदों पर तो अनेक थारू युवा सेवारत है पर राजपत्रित पदों पर अभी भी इनकी संख्या नगण्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षा एवं उच्च पदों पर चयनित होने के लिए भी थारू युवाओं के सामने आदर्श एवं उत्प्ररको के अभाव है जब किसी समुदाय में कुछ लोग उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद प्राप्त कर लेते हैं तो वह अपने समुदाय के लिए आदर्श एवं उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। थारु समुदाय में अभी इनकी कमी है। अतः यही कारण प्रतीत होता है कि थारू युवा तेजी से विकास नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि ग्रामीण विकास की विभिन्न योजनाओं के प्रति थारू युवा काफी सचेत प्रतीत होते हैं किन्तु यह चेतना सिर्फ ग्राम स्तर तक ही दिखाई देती है। विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे जलागम, ट्राइरोम, स्वयं सहायता समूह आदि में यह लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते है किन्तु बड़ी सफलताओं हेतु अधिक प्रयास नहीं करते। 


उत्तरांचल बनने के बाद उत्तरांचल की जनजातियों हेतु पी०सी०एस० में आरक्षण होने के बाद भी कोई थारू युवा राज्य की प्रथम पी०सी०एस० परीक्षा में सफल नहीं हुआ थारू युवाओं के सम्बन्ध में यदि कोई संन्तोषजनक बात है तो यह है कि यह लोग स्थानीय स्तर पर परम्परागत व आधुनिक खेलों में पर्यान्त रूचि रखते हैं। थारू युवा एथ्लेटिक्स, कबड्डी, बॉलीबॉल, क्रिकेट, फुटबॉल, हांकी आदि खेलों पर विशेष ध्यान देते हैं। इस क्षेत्र के विद्यालयों की खेल टीमों में थारू युवाओं की अधिकांश भागीदारी रहती है। इस सम्बन्ध में एक चिन्ताजनक पहलू यह भी है कि उचित सुविधाओं व मार्गदर्शन के अभाव में थारू युवा राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी खेल प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। यदि इन्हें सुविधाएं व अवसर मिलें तो यह काफी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। राजनैतिक चेतना के सन्दर्भ में धारू युवक स्थानीय राजनीति के प्रति तो काफी सजग हैं पर राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय राजनैतिद गतिविधियों से प्रायः अनभिज्ञ प्रतीत होते हैं। थारू जनजाति का अपना संगठन है जिसे यह लोग था राणा परिषद कहते हैं। यह परिषद थारू समाज के विकास हेतु कार्य करती है। थारू राणा परिषद के अन्य सह संगठन भी कार्य कर रहे हे जिनमें जाति सुधार सभा, थारू उत्थान युवा संगठन, २ महिला कल्याण समिति, एकीकृत थारू जनजाति समिति आदि प्रमुख हैं। थारू राणा परिषद ने थाल समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने तथा विकास की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए कुछ प्रस्ताव पारित किए हैं जैसे विवाह में कन्याधन न लेना, शराब का निर्माण व सेवन न करना, बच्चों की शिक्षा अनिवा करना, विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध न करना, बाल विवाह न करना आदि। थारू समुदाय के श्री दौलत सिंह राणा, श्री ओम प्रकाश राणा, जिला पंचायत के उपाध्यक्ष व श्री बादाम सिंह राणा, श्री भीम सिंह राणा ब्लाक प्रमुख जैसे प्रमुख स्थानीय निकाय के पदों को प्राप्त करचुके हैं किन्तु अभी तक कोई थारू केन्द्र अथवा राज्य सरकार में मंत्री नहीं बन पाया है।

थारूओं के क्षेत्र में कुछ ईसाई संस्थाएं थारू युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। ईसाई संस्थाओं ने इस क्षेत्र में शिक्षा व चिकित्सा सम्बन्धी विकास के बहाने अपने धर्म प्रचार हेतु गिरिजाघरों, स्कूलों व अस्पतालों की स्थापना की है यह संस्थाएं विशेषतौर पर थारू युवाओं को अपने जाल में फंसाती है और उन्हें विकास के शब्जबाग दिखाकर ईसाई धर्म ग्रहण कराती हैं हाँलाकि थारू युवा इन संस्थाओं के षडयंत्र से परिचित हो चुके हैं अतः इनका विरोध होने लगा है। इक्का-दुक्का लोग ही ईसाई धर्म में दीक्षित हुए हैं। थारू युवाओं में अपराध की भावना कम पायी जाती है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि शराब

आदि नशील पदार्थों का सेवन करने के बाद भी यह लोग आपराधिक कार्यों से प्रायः दूर रहते हैं। हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती जैसे जघन्य अपराध थारू युवाओं में प्रायः नहीं पाये जाते थारू युवा भोले-भाले और शर्मीले होते हैं। स्त्रियों के प्रति अपराध तो थारू जनजाति में न के बराबर होते हैं 24 गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति तो थारू युवाओं में आई है परन्तु यह ज्यादा अधिक नहीं हैं। अधिकांश युवा ग्रामों में ही रहते हैं। पढ़ने-लिखने के साथ-साथ यह लोग प्राय: कृषि व पशुपालन में भी अपने परिजनों की मदद करते हैं। वर्तमान में संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है फिर भी लगभग 25 प्रतिशत परिवार संयुक्त परिवार हैं थारूओं में एक अनोखी परम्परा 'मिलाई' का पालन अभी भी किया जाता


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सन्दर्भ


1- जोशी अवनींद्र कुमार (1983) 'जियोलॉजिकल ट्राइब्स, प्रकाश बुक डिपो बरेली पी


2-- मजूमदार, डी0एन0 (1942), दि थोरूज एण्ड दियर ब्लड ग्रुप, जर्नल ऑफ राफयल एशियाटिक


सोसाइटी कलकत्ता बाल्यूम XXXXI पृष्ठ-33


3- पाण्डे, बद्रीदत्त (1990) कुमाऊँ का इतिहास', अल्मोडा बुक डिपो अल्मोड़ा पृष्ठ-548


4- अग्रवाल, जी.के. (1989) सोशल एंथ्रोपोलॉजी' आगरा बुक स्टोर आगरा, पृष्ठ-361


5- पाण्डे, बद्रीदत्त (1990) उपरोक्त ही पृष्ठ 549


उप्रेती, हरिचंद्र (1970) इंडियन ट्राइब्स, राजस्थान यूनिवर्सिटी, जयपुर पृष्ठ-64 अशोककीर्ति, भिक्षु (1999) "निःस्वार्थ आत्म पत्रिका के मूल की खोज" नेपाली 



6-अध्ययन, रॉयल नेपाल अकादमी काठमांडू,


8- http://en.wikipedia.org/wiki/tharu. पेज 3


9-


10- बिष्ट, भगवान सिंह (1996) उत्तराखंड आज, अल्मोड़ा बुक डिपों अल्मोडा, पृष्ठ-9


उपरोक्त ही


11- भाषा कोड के लिए एथनोलॉग 14 रिपोर्ट: टीएचएल पृष्ठ-1 http://www.ethnologue.com/ पर


14/show_Language.asp उपरोक्त ही 12-


13- http://crafts. Indianetzone.com/patch_work.htm, पेज-1


14- सुभाषचन्द्र (2004) उत्तर प्रदेश की थारू जनजाति का समाजशास्त्रीय अध्ययन (अप्रकाशित


15- उपरोक्त ही पृष्ठ-178


5


निबंध) डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा पृष्ठ-1


16 बिष्ट भगवान सिंह (1996) उत्तराखंड आज अल्मोड़ा बुक डिपो एवं प्रकाशक, अल्मोडा,


पृष्ठ-161


17- संख्या पत्रिका 2001, जिला सांख्यिकी कार्यालय ऊधम सिंह नगर, पृष्ठ-6 उपरोक्त ही


18-


19- सुभाषचन्द्र (2004) उपरोक्त ही उपरोक्त ही पृष्ठ 55


20-


21- 22- वरीयता सूची (राजपत्रित) उच्च शिक्षा विभाग उत्तरांचल शासन कार्यालय, जिला पंचायत राज अधिकारी, ऊधम सिंह नगर की सूचनानुसार


23- राणा, प्रेम सिंह (1999) खटीमा विकास खंड में आवासित थारु ईसाई परिवारों की सामाजिक आर्थिक स्थिति का अध्ययन (अपकाशित शोध प्रबन्ध) कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल, पृष्ठ-70


24- मुखर्जी, रविन्द्र नाथ (1997) सामाजिक मानव शास्त्र की रूपरेखा, विवेक प्रकाशन दिल्ली,


पृष्ठ-381


25- सुभाषचन्द्र (2004) उपरोक्त ही पृष्ठ-34


26- श्रीवास्तव (1958) द थारूज़ आगरा यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन पृष्ठ 96-9


27- सकलानी, शक्ति प्रसाद (1996) तराई रुद्रपुर का इतिहास औ विकास गौरव प्रकाशन दिल्ली, पृष्ठ 69-70


28- अमर उजाला बरेली, 30 दिसम्बर 2002


29- "ऊधमसिंहनगर तब और अब सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग, उत्तरांचल की रिपोर्ट-2005


पृष्ठ-54 उपरोक्त ही. 30- पृष्ठ-22



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थारू जनजाति थारू जनजाति भारत में निवास करने वाली सैकड़ों जनजातियों में से एक है। उत्तराखण्ड में पाई जाने वाली जनसंख्या की दृष्टि से पाँच प्रमुख जनजातियों में से थारू पहले स्थान पर हैं। थारू अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते हैं। अवध गजेटियर के अनुसार थारू का शाब्दिक अर्थ ठहरे है, अर्थात जो लोग तराई के वनों में आकर ठहर गये। अध्ययन के अन्तर्गत थारू जनजाति से तात्पर्य उत्तराखण्ड के कुमायूँ मण्डल में निवास कर रही जनजाति से है।


(ii) प्रस्तुत अध्ययन में माध्यमिक स्तर से आशय उत्तराखण्ड के विद्यालयों में कक्षा 12 से लेकर कक्षा स्नाकोत्तर तक अध्ययनरत् विद्यार्थियों से है।


(iii) शैक्षिक समस्यायें प्रस्तुत अध्ययन में शैक्षिक समस्याओं के अन्तर्गत विशेष रूप से विद्यार्थियों के अध्ययन के अन्तर्गत आने वाली समस्याओं का अध्ययन तथा साथ ही सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और समायोजन सम्बन्धी समस्याओं का भी अध्ययन किया गया हैं।


 अध्ययन के उद्देश्य :


प्रस्तुत शोध अध्ययन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-


उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का लिंग (छात्र / छात्रा) के आधार पर अध्ययन करना।


2. उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का क्षेत्र ( ग्रामीण / शहरी) के आधार पर अध्ययन करना ।


3.उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का उनके माता-पिता के शैक्षिक स्तर (शिक्षित / अशिक्षित) के आधार पर अध्ययन करना ।


उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का उनके माता-पिता के आर्थिक स्तर ( उच्च / निम्न ) के आधार पर अध्ययन करना।


5. उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का उनके माता-पिता के द्वारा बच्चों को दिये गये समय ( पर्याप्त समय / समयाभाव ) के आधार पर अध्ययन करना ।


6. उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का उनके स्वास्थ्य ( स्वस्थ / अस्वस्थ ) के आधार पर अध्ययन करना।


7.उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों की शैक्षिक समस्याओं का पाठ्य सहगामी





अध्ययन क्षेत्र (Research Area)

शोध क्षेत्र के रूप में ऊधमसिंहनगर जनपद की सितारगंज तहसील को चुना गया है।तहसील के अधिकांश ग्रामों में थारू जनजाति की बहुलता है। शोध का विषय इस तहसील जनजातीय महाविद्यालयी विद्यार्थियों में जागरूकता से सम्बन्धित है। शोध कार्य में प्राथमिक तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया जायेगा तथा यथा सम्भव द्वितीयक स्रोतों द्वारा प्राप्त तथ्यों का प्रयोग भी किया जायेगा। प्राथमिक प्रत्यक्ष तथ्य संकलन हेतु जनपद की सितारगंज तहसील के लगभग सभी जनजातीय युवाओं साक्षात्कार किया जायेगा सितारगंज तहसील के जिन जिन ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं उन सभी का सर्वेक्षण किया जायेगा और इनमें रहने वाले 18 से 35 वर्ष की आयु के युवा युवतियों का साक्षात्कार किया जायेगा। जनजातीय (थारू) युवक युवतियों के साथ-साथ लगभग उतनी ही संख्या में सामान्य वर्ग के युवक युवतियों का साक्षात्कार भी किया जायेगा ताकि जनजातीय तथा सामान्य युवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। वर्तमान में थारु बाहुल्य ग्रामों में सामान्य वर्ग के विभिन्न समुदायों जैसे पंजाबी, बंगाली, कुमाऊँनी, गढ़वाली तथा पूर्वाचली (भोजपुरी) के लोगो निवास कर रहे हैं अतः सामान्य वर्ग के युवाओं के साथ-साथ जनजातीय युवाओं का तुल्नात्मक अध्ययन करना अनिवार्य व सार्थक प्रतीत होता है साक्षात्कार हेतु साक्षात्कार अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग किया जायेगा। सर्वेक्षण के दौरान अन्य तकनीकीय यंत्रों जैसे मोबाइल, कैमरा, , वाइस रिकार्डर आदि का प्रयोग भी किया जायेगा।द्वितीयक स्रोतों के रूप में विषय से सम्बन्धित अब तक हुए शोध कार्यों,प्रकाशित पुस्तकों, सरकारी अभिलेखों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का प्रयोग किया जायेगा। प्राथमिक स्रोतों से संकलित तथ्यों का वर्गीकरण कर सारणीबद्ध किया जायेगा तथा उनका तार्किक व अन्वेषणात्मक विश्लेषण किया जायेगा तथ्यों के विश्लेषण में सांख्यिकीय पद्धतियों तथा चित्रमय प्रदर्शन की सहायता ली जायेगी। धारणाओं की पुष्टि तुलनात्मक व्याख्या तथा पूर्व में विकसित धारणाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु द्वितीय से प्राप्त प्रयोग किया जाना भी द्वितीयको की सहायता ली जायेगी करने प्रकारकये जायेंगे भारत नेपाल ने किया प्रकार के सम्बन्ध और समानताएं हैं तथा अन्तर



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शोध कार्य की रूपरेखा (Methodology)


अध्ययन पद्धति :--

 जनजातीय युवाओं के अध्ययन के लिए इस शोध कार्य में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जायेगा ।

जिसके निम्नलिखित चरण होंगे- 

1- समस्या / विषय का चयन 

2-  उपकल्पना का निर्माण, 

3- तथ्यों का संकलन,

4- तथ्यों कानिरीक्षण परीक्षण तथा वर्गीकरण, 5- निष्कर्ष निकालना



Methodology

शोध प्ररचना (रिसर्च डिजाइन)

का उद्देश्य समस्या (विषय) के सम्बनध में पूर्ण एव तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना है। इसके द्वारा वास्तविक तथ्यों का संकलन किया जाता है और सामाजिक संगठन की संरचना आदि के अध्ययन में यह प्ररचना उपयोग सिद्ध होती है। इस शोध कार्य में भी वास्तविक तथ्यों का संकलन कर पूर्णत पात रहित विवरण प्रस्तुत किया जायेगा। जनजातीय युवाओं के अध्ययन 


हेतु यह रचना ही अधिक उपयुक्त रहेगी।


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Duration of the Proposed work

     2years= 24 months


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शोधकार्य की वार्षिक योजना 

(Year-wise Plan of Work and Targets to be Achieve)


प्रथम वर्ष

01-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण व तथ्य संकलन करना।

02-तीन माह

संकलित तथ्यों का वर्गीकरण तथा रिपोर्ट तैयार करना और उद्देश्य संख्या एक को पूर्ण करना किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।

03-तीन माह

शोध क्षेत्र का पुनः सर्वेक्षण तथा तथ्य संकलन करना।

04-तीन माह

संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण से उद्देश्य संख्या दो तथा तीन को प्राप्त करना और निकाले गये निष्कर्षो को प्रकाशित कराना।

द्वितीय वर्ष

01-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन करना।

02-तीन माह

संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण द्वारा उद्देश्य संख्या चार की प्राप्ति करना तथा किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।

03-तीन माह

शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन तथा पूर्व में हो चुके शोध कार्यों और विषय सम्बन्धी उपलब्ध प्रकाशित व अपंकाशित सामग्री की सहायता से उद्देश्य संख्या पाँच की प्राप्ति करना तथा शोध कार्य क प्रकाशित करना।

अंतिम तीन माह

समस्त शोध कार्य की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को प्रेषित करना।

सहायता

(सहयोग)

1.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुम्बई

2. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणासी

3.कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल

4.उत्तरांचल प्रशासन अकादमी नैनीताल

5.जी०बी० पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर

6. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली

7. आई०सी०एस०एस०आर० नई दिल्ली


Monday, November 6, 2023

गोरखपुर


जय श्री राम....योगी आदित्यनाथ जी

गोरखपुर 


यह नदी के किनारे राप्ती और रोहिणी नामक दो नदियों के तट पर बसा हुआ है। नेपाल से निकलने वाली इन दोनों नदियों में सहायक नदियों का पानी एकत्र हो जाने से कभी-कभी इस क्षेत्र में भयंकर बाढ भी आ जाती है।


 यहाँ एक बहुत बड़ा तालाब भी है जिसे रामगढ़ ताल कहते हैं। 

रामगढ़ ताल जब मैं कह रहा था तो मुझको रामगढ़ में बाबा किनाराम की याद आ रही थी और मैं अपने मन में सोच रहा था क्या कोई साम्यता हो सकती है जो इस नाथ संप्रदाय को बांध रही हो अघोर संप्रदाय और बाबा और बाबा योगी आदित्यनाथ जिस नाथ संप्रदाय से आते हैं ।गोरखपुर में हु पर जब जैसे ही सुना की योगी यूपी के मुख्यमंत्री बने वैसे ही मन के किसी कोने में यह गीत बज गया......

वन्दे मातरम्! सुजलां सुफलां मलयज शीतलां शस्यश्यामलां मातरम्....

(.आनन्द मठ के लेखक बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला भाषा का एक उपन्यास की रचना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्यायने १८८२ में की थी।..आनंदमठ राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के. सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है....)

धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं...राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं"

धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं .....और राजनीति से बड़ाकोई धर्म नहीं" की आवाज मन के किसी कोने से आयी....

. क्योंकि जो शख्स देश के सबसे बड़े सूबे यूपी का मुखिया बना है ।

वह गोरक्ष पीठ से निकला है। शिव के अवतार महायोगी गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर स्थापित मंदिर से निकला है।

 नाथ संप्रदाय का विश्वप्रसिद्द गोरक्षनाथ मंदिर से निकला है। जो हिंदू धर्म,दर्शन,अध्यात्म और साधना के लिये विभिन्नसंप्रदायों और मत-मतांतरों में नाथ संप्रदाय का प्रमुख स्थान है । और हिन्दुओं के आस्था के इस प्रमुख केन्द्र यानी गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वरमहतं आदित्यनाथ जब देश के सबसेबडे सूबे यूपी के सीएम हैं, ।

जो आज का सच है.....धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं...राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं" एक बात और याद आ रही है..

 आज के"संतो में राजनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञो में संत

उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्रीमान योगी जी सनातनधर्म की जिस धारा के पीठाधीश्वर हैं/उसके आदि पुरूष भगवान दत्त हैं ।

जो सप्त ऋषि मंडल के ऋषि अत्रि और माता अनुसूइया के पुत्र होने के कारण दत्त के साथ अत्रि समाविष्ट हुआ और " भगवान दत्तात्रेय " के नाम से संस्थापित हुए ।कालांतर में इस धारा के दो भाग हुए ।हिमाली और गिरनारी ।हिमाली शाखा के आदि पुरूष बाबा गोरख नाथ और केंद्र हुआ उनके नाम पर गोरखपुर ।

इस धारा में अधीश्वर के नाम के साथ अन्त में नाथ शब्द लग जाता है ।बाबा गोरख नाथ के गुरू मछन्दर नाथ और उनके पहले बाबा जालन्धर नाथ ।जैसे अन्तिम दो (वर्तमान योगी जी से पहले)महथं द्विग विजय नाथमहथं अवैद्य नाथ ।***************भगवान दत्तात्रेय की दूसरी धारा गिरनारी का केन्द्र वाराणसी और सर्वत्रपरम आदरणीय बाबा कीनाराम और अघोरेश्वर महाप्रभु अवधूत भगवान राम । से...

बाबा किनाराम जी अपने प्रथम गुरु वैष्णव शिवाराम जी के नाप पर उन्होंने चार मठ स्थापित किए तथा दूसरे गुरु, औघड़ बाबा कालूराम की स्मृति में कींकुड (वाराणसी), रामगढ़ (चंदौली तहसील, वाराणसी), देवल (गाजीपुर) तथा हरिहरपुर (जौनपुर) में चार औघड़ गद्दियाँ कायम कीं। इनप्रमुख स्थानों पर  कर्म छेत्र रहा है पिता जी (डॉ सत्येंद्र सिंह ) का श्री गणेश राय पी जी कालेज में पढ़ाया, गाजीपुर व् अनपरा लालगंज में प्राचार्य व् डीन पूर्वांचल यूनिवर्सिटी  रहे।इन्ही पीठो पर सेवारत जुड़े है। इसके बाद

औघड़ परम्परा के औघड़ अवधूत भगवान राम की सर्वेश्वरी सिद्धि की प्रसिद्धि जितनी काशी में हैं, उससे अधिक  मेरे ननिहाल क्षेत्र में मानी जाती है। अवधूत भगवान राम ने अपने बाल्य व युवावस्था का अधिकांश समय मनिहरा, महड़ौरा व सकलडीहा के आस-पास के क्षेत्र में बिताया, और यही में खेली, बढ़ी हुई  कहते हैं कि औघड़ परम्परा का वरण करते हुए उन्होंने अपनी साधना का अधिकांश समय इन्हीं स्थानों पर बिताया। यही कारण है कि इस क्षेत्र में औघड़ परम्परा का पालन करने वाले भक्तों की संख्या लाखों में है। रामगढ़ स्थित कीनाराम स्थली के अलावा मनिहरा व हरिहरपुर गांव में आदि शक्ति आश्रम अवधूतभगवान राम की साधना स्थल के कारण प्रसिद्ध है। 

अब इस परंपरा से कौन...?

इस परम्परा में नाम के अन्त में " राम " शव्द लग जाता है ।वर्तमान मेंबाबा गौतम राम   और बाबा सम्भव राम ।।***********************एक बात और कि भगवान दत्तात्रेय की परम्परा मे ही साईं बाबा भी हैंऔर उनके नाम के साथ " नाथ तथा राम " दोनों ही प्रयोग कर लिया जाता है।

उसका ताना-बाना क्या होगा... उसमें मैं क्षत्रिय जाती की भूमिका भी देख रहा था मुझे याद आ रहे थे गौतम बुद्ध मुझको याद आ रहे थे जैन धर्म के प्रथम संस्थापक पार्श्वनाथ और इन्हीं के बीच जब मैं दर्शन कर रहा था गोरखनाथ बाबा का मंदिर घंटों बैठा था देख रहा था वहां पर लगी हुई मूर्तियों को और सोच रहा था।की कैसे यह जनपद महान भगवान बुद्ध, जो बौद्ध धर्म के संस्थापक है, जिन्होंने 600 ई.पू. रोहिन नदी के तटपर अपने राजसी वेशभूषाओं को त्याग दिया और सच्चाई की खोज में निकल पड़े थे गोरखपुर उनसे जुड़ा है ।यह जनपद भगवान महावीर, 24 वीं तीर्थंकर, जैन धर्म के संस्थापक के साथ भी जुड़ा हुआ है।

खैर....




मेरा बनारस में आवास प्रेमचंद स्मारक इंटर कॉलेज के बगल में जो लमही के पास है और प्रेमचंद बड़ा नाम हिंदी साहित्य घर के आता है लमही और गोरखपुर को मैं जोड़ रहा था ।गोरखपुर मुंशी प्रेमचंद की कर्मस्थली रही है



मुंशी प्रेमचंद (1880-1936)], भारत के एक महान हिन्दी उपन्यासकार, गोरखपुर में रहते थे। वह घर जहाँ वे रहते थे और उन्होंने अपना साहित्य लिखा उसके समीप अभी भी एक मुंशी प्रेमचंद पार्क उनके नाम पर स्थापित है।

याद आ रहे थे... मेरे राम का मुकुट भीग रहा है...पंडित विद्यानिवास मिश्र से मेरे परिवार का ताना-बाना तीन पीढ़ियों का घर इधर को 14 जनवरी को पिछले सालों से मैं उनके सेमिनार में प्रतिभाग करता रहा।बनारस  कर्म स्थली की जन्म स्थली यही गोरखपुर ही थी अर्थात संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान तथा हिन्दी साहित्यकार और सफल सम्पादक विद्यानिवास मिश्र यहीं के थे।


इलाहाबाद के प्रवास के दौरान फिराक गोरखपुरी रघुपति सहाय फिराक को पढ़ने समझने का मौका मिला गोरखपुर के ही थे आज इनके बहाने में गोरखपुर को याद करना..फिराक गोरखपुरी (1896-1982, पूरा नाम : रघुपति सहाय फिराक), प्रसिद्ध उर्दू कवि, गोरखपुर में उनका बचपन का घर अभी भी है। वह बाद में इलाहाबाद में चले गया जहाँ वे लम्बे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे।






गीता प्रेस जो हमें सबसे सस्ते डायरिया उपलब्ध कराता है धार्मिक पुस्तकें प्रदान करता है जिससे हम अपने हिंदू संस्कृत को गीता प्रेस के बहाने पीढ़ी दर पीढ़ी जन-जन तक पहुंचाने में कामयाब रहे गोरखपुर को हिंदू धार्मिक पुस्तकों के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक गीता प्रेस के साथ भी पहचान लिया गया है। सबसे प्रसिद्ध प्रकाशन ‘कल्याण’ पत्रिका है श्री भागवत गीता के सभी 18 हिस्सों को अपनी संगमरमर की दीवारों पर लिखा गया है। अन्य दीवार के पर्दे और पेंटिंग भगवान राम और कृष्ण के जीवन की घटनाओं को प्रकट करते हैं। पूरे देश में धार्मिक और आध्यात्मिक चेतना के प्रसार के लिए गीता प्रेस अग्रिम है


इतिहास

इतिहास के चलचित्र के जब नजर आती है चौरी चौरा कांड दिया यदि यह ना होता तो गांधी द्वारा कुछ इबादत और लिखी जाती । गांधी साध्य और साधन ईमानदारी के बड़ा जोड़ देते गांधी नैतिकता के प्रबल समर्थक प्रबल समर्थक थे 4 फरवरी, 1 9 22 की ऐतिहासिक ‘चौरोई चौरो’ घटना के कारण गोरखपुर महान प्रतिष्ठा पर पहुंच गया, जो भारत की स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मोड़ था।

 पुलिस के अमानवीय बर्बर अत्याचारों पर गुस्से में, स्वयंसेवकों ने चौरी-चौरा पुलिस थाने को जला दिया, परिसर में उन्नीस पुलिसकर्मियों की हत्या। इस हिंसा के साथ, महात्मा गांधी ने 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।

गांधी की अहिंसा का प्रयोग सर्वविदित बुद्ध की ही धरती से हुआ।वही गांधी के राजनैतिक करीबी डिस्कवरी ऑफ इंडिया के लेखक जवाहरलाल नेहरू से भी जुड़ा है ।आज के भारत के निर्माण में जवाहरलाल की भूमिका को  नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और यहीं पर भी 3 साल जेल में पड़े रहे साधते रहे गोरखपुर इसलिए भी याद आ रहा था आज जवाहरलाल नेहरू के ....बहाने...क्योंकि प्रसिद्ध भारत छोड़ो आंदोलन के बाद शीघ्र ही 9 अगस्त को जवाहर लाल नेहरू को गिरफ्तार किया गया था और इस जिले में उन पर मुकदमा चलाया गया। उन्होंने यहाँ की जेल में अगले तीन साल बिताये। कैसे जगह प्रभावित करती कालखंड कोई भी हो....


गुरु अमरनाथ योगी आदित्यनाथ गौतम बुद्ध पार्श्वनाथ बाबा कीनाराम बाबा अवधूत राम सब क्षत्रिय कुल में ही जन्म लिए थे मान्यता है कि उपनिषद जो लिखे गए उस में क्षत्रियों का ही योगदान है।

खैर

 गोरखपुर सामाजिक समरसता का प्रतीक है बुद्ध जो एक क्षत्रिय परिवार में जन्मे थे, उन्होंने जब पहली बार दुःख देखा तो सुख की तलाश शुरू कर दी | तथा उनके गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान तथा भारत के प्राचीन वेदों और उपनिषदों के ज्ञान को आधार बनाते हुए उन्होंने सुख का रास्ता अहिंसा , प्रेम और अध्यात्म द्वारा प्राप्त किया तथा वही अपने अनुयायियों और शिष्यों को भी सिखाने का प्रयास किया | 


महात्मा बुद्ध का जन्म लगभग ढाई हजार वर्ष पहले कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के घर में हुआ था । इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनकी माता का नाम महामाया था तथा पुत्र-जन्म के सात दिन बाद ही माता की मृत्यु हो गयी थी । इनकी मौसी गौतमी ने बालक का लालन-पालन किया । इस बालक के जन्म से महाराज शुद्धोदन की पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूर्ण हुई थी, इसलिए बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया । गौतम नाम इनके गोत्र के कारण पड़ा । ( गौतम महान सनातन ऋषि थे, जिनके नाम पर यह गोत्र है मलय पुस्तक “हिकायत सेरी रामा” और जातक कथाओं में यह उल्लेख है की गौतम बुद्ध ने स्वयं यह कहा था के वो श्री राम के ही अवतार हैं | 

(बुद्ध और राम के बहाने गोरखपुर)


गोरखनाथ मंदिर

भारत के धार्मिक इतिहास में गोरखकालीन भारत का समय 600 से 1200 ईस्वी का माना जाता है, अधिकांश लोग नाथपंथ को केवल गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ तक ही सीमित मानते हैं, मगर नाथ योगियों के मठ पूरी दुनिया में हैं. तिब्बत की राजधानी ल्हासा में मत्स्येन्द्रनाथ की मूर्ति है

चीन के चुवान द्वीपसमूह के पुटू द्वीप में भी एक प्रसिद्ध मंदिर है. बाली, जावा, भूटान, पेशावर के अलावा नेपाल के मृग स्थली में भी गोरक्षपीठ है. काठमांडू के इंद्र चौक मुहाली में भी गोरखनाथ का मंदिर है

भारत में भी हरिद्वार, सिक्किम और गुजरात में गोरखनाथ के सिद्ध पीठ स्थित हैं.

सत्ता

सामाजिक समरसता का पाठ दिग्विजय नाथ कर्म के रूप में अपनाया और महंत अवैद्यनाथ में इसको आगे बढ़ाएं और उसका परिणाम आज यह है कि -उत्तर प्रदेश  के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसी मंदिर से निकले हुए..पिछले 28 सालों से गोरखपुर के सांसद का पता गोरखनाथ मंदिर ही रहा है.....

(गोरखपुर को मैं इस रूप में भी देख रहा था)


आज हम जिस विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन कर हर्ष और शांति का अनुभव करते हैं, वह ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज जी की ही कृपा से है। वर्तमान पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज के संरक्षण में श्री गोरखनाथ मंदिर विशाल आकार-प्रकार, प्रांगण की भव्यता तथा पवित्र रमणीयता को प्राप्त हो रहा है। पुराना मंदिर नव निर्माण की विशालता और व्यापकता में समाहित हो गया है।

सामाजिक समरसता का प्रतीक जाति बंधन को तोड़ता हुआ या मंदिर अपनी अलग जगा रहा था जिसको मुस्लिम शासक बर्दाश्त नहीं कर पाए इसलिए इसको तोड़ा गया मुस्लिम शासन काल में हिन्दुओं और बौद्धों के अन्य सांस्कृतिक केन्द्रों की भांति इस पीठ को भी कई बार भीषण कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। इसकी व्यापक प्रसिद्धि के कारण शत्रुओं का ध्यान विशेष रूप से इधर आकर्षित हुआ। विक्रमी चौदहवीं सदी में भारत के मुस्लिम सम्राट अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में यह मठ नष्ट किया गया और साधक योगी बलपूर्वक निष्कासित किये गये थे। मठ का पुनर्निर्माण किया गया और पुनः यौगिक संस्कृति का प्रधान केंद्र बना। विक्रमी सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मुग़ल शासक औरंगजेब ने इसे दो बार नष्ट किया पर

 आज जब मैं मंदिर का दर्शन कर रहा था तो अपनी भव्य रूप में यह था क्योंकि आज योगी आदित्यनाथ इस सुबे  के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री हैं और राम मंदिर जो अयोध्या में बनने जा रहा है उसमें इन की बहुत बड़ी भूमिका है गोरखनाथ मंदिर....


 52 एकड़ के सुविस्तृत क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। सत्ता राजसत्ता धर्म जाती के गठबंधन खिचड़ी परंपरा शिक्षा को धर्म से धर्म को कर्म से कैसे जोड़ा जाए यह गौ रक्षा गोरखधाम मंदिर आने पर ही पता चलता है कैसे मन्दिर शैक्षणिक संस्थाओं का निगमन करता है...



मंदिर प्रांगण में ही गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ है। इसमें विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क आवास, भोजन व अध्ययन की उत्तम व्यवस्था है। गोरखनाथ मंदिर की ओर से एक आयुर्वेद महाविद्यालय व धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की गयी है। गोरक्षनाथ मंदिर के ही तत्वावधान में 'महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्' की स्थापना की गयी है। परिषद् की ओर से बालकों का छात्रावास प्रताप आश्रम, महाराणा प्रताप, मीराबाई महिला छात्रावास, महाराणा प्रताप इण्टर कालेज, महंत दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार आदि दो दर्जन से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण और प्राविधिक संस्थाएं गोरखपुर नगर, जनपद और महराजगंज जनपद में स्थापित हैं

गोरक्षपीठ प्रबंधन से जुड़े महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की ओर से संचालित होने वाली दो दर्जन शिक्षण संस्थाएं और गुरु गोरक्षनाथ चिकित्सालय जैसे प्रकल्प भी इस ताने बाने को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते –नेपाल में माओवादियों की तरफ़ से हिन्दू राष्ट्र की मान्यता समाप्त किए जाने से पूर्व तक नेपाल के महाराजा के मुकुट और मुद्रा में भी गुरु गोरक्षनाथ का चित्र अंकित होता था.


एक मान्यता....


और गोरखपुर ही नहीं नेपाल में भी आपको ये कहने वाले बहुतेरे मिल जाएंगे कि माओवादियों का पतन इसीलिए हो गया क्योंकि उन्होंने इन प्रतीकों को हटा दिया था.


महंत अवैद्यनाथ और योगी आदित्यनाथ का नाता उत्तराखंड पिछले 10 वर्षों से मैं उत्तराखंड में रह रहा हूं।इनके जिले की करीबी था ।यहां की आबो हवा  समझने का मौका मिला ।

कैसे 28 साल का बालक गोरखधाम मंदिर आ कर मंदिरा आकर सांसद बनता है और साल दर साल अपनी  में यश की वृद्धि में और श्री वृद्धि करता चला जाता है....

महंत अवेद्यनाथ....

महंत अवेद्यनाथ का जन्म 28 मई 1921 को महंत अवेद्यनाथ जी का जन्म ग्राम काण्डी, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड में श्री राय सिंह बिष्ट के घर हुआ था। आपके बचपन का नाम श्री कृपाल सिंह बिष्ट था और कालांतर में श्री अवैद्यनाथ बनकर भारत के राजनेता तथा गुरु गोरखनाथ मन्दिर के पीठाधीश्वर थे के रूप में प्रसिद्द हुए। श्री अवैद्यनाथ जी ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक साधना के साथ "सामाजिक हिन्दू" साधना को भी आगे बढाया और सामाजिक जनजागरण को अधिक महत्वपूर्ण मानकर हिन्दू धर्म के सोशल इंजीनियरिग पर बल दिया | हिन्दू धर्म में ऊंच-नीच दूर करने के लिए उन्होंने लगातार सहभोज के आयोजन किए। इसके लिए उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर जाकर भोजन किया और समाज की एकजुटता का संदेश दिया।इस कड़ी में योगी जी अभी हाल में ही वो बाबा कीनाराम की धरती क्री कुंड पर भी गये थे । अघोराचार्य बाबा कीनाराम का जन्म विक्रम संवत 1658 में भाद्र मास की अघोर चतुर्दशी कृष्ण पक्ष में हुआ था। उनकी तपोस्थली रामगढ़ में प्रत्येक वर्ष जन्मोत्सव का आयोजन होता है। 

(जिसका जिक्र मैंने ऊपर ही किया था)


बाबा कीनाराम के जन्मोत्सव में शामिल होने गुरुवार को सूबे के मुखिया और गोरखनाथ पीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का आगमन हुआ। वहीं दूसरी ओर बाबा कीनाराम अघोर पीठ के पीठाधीश्वर श्री सिद्धार्थ गौतम राम भी बाबा की जन्मस्थली पहुंचे थे। अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरू माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं। इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।(जैसा देखा) जब दोनों पीठाधीश्वर एक साथ मंच पर जैसे ही आए वैसे ही हर हर महादेव और बाबा कीनाराम और बाबा गोरखनाथ के उद्घोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया। वहीं लोगों में यह चर्चा भी शुरू हो गई कि अरसे बाद शैव संप्रदाय के दो पीठाधीश्वरों का मिलन हुआ है। 

हिंदू समाज की एकता ही उनके प्रवचन के केंद्र में होती थी। वह मूलत: इतिहास और रामचरितमानस का सहारा लेते थे। श्रीराम का शबरी, जटायु, निषादराज व गिरीजनों से व्यवहार का उदाहरण देकर दलित-गरीब लोगों को गले लगाने की प्रेरणा देते रहे।धर्म सत्ता और राजसत्ता गोरखपुर की राजनीति का केंद्र गोरखधाम मंदिर आपने 1962, 1967, 1974 व 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में मानीराम सीट का प्रतिनिधित्व किया और 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर से लोकसभा सदस्य रहे। ३४ वर्षों तक हिन्दू महासभा और भारतीय जनता पार्टी से जेड़े रहकर हिंदुत्व को भारतीय राजनीति में गति देने वाले और सामाजिक हितों की रक्षा करने वाले श्री अवैद्यनाथ जी ने स्वयं को अवसरवाद और पदभार से स्वयं को दूर रखा ।वही योगी जीमुख्यमंत्री का पद भार लिया।

15 फरवरी 1994 को गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्य नाथ जी महाराज द्वारा मांगलिक वैदिक मंत्रोच्चारपूर्वक शिष्य योगी आदित्यनाथ जी का दीक्षाभिषेक संपन्न हुआ।महंत अवैद्यनाथ (मामा) के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने 1998 में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। योगी आदित्यनाथ ने 'हिन्दू युवा वाहिनी' का गठन किया जो हिन्दू युवाओं को हिन्दुत्वनिष्ठ बनाने के लिए प्रेरणा देते है।


अभी यहां पर रिफ्रेशर कोर्स की बात एक  इतिहास विभाग एक सेमिनार कराने जा रहा है बुध से लेकर कबीर तक की यात्रा...वाराणसी प्राचीन काल से ही जहां मोक्षदायिनी नगरी के रूप में जानी जाती थी तो मगहर को लोग इसलिए जानते थे कि ये एक अपवित्र जगह है और यहां मरने से व्यक्ति अगले जन्म में गधा होता है या फिर नरक में जाता है.

सोलहवीं सदी के महान संत कबीरदास वाराणसी में पैदा हुए और लगभग पूरा जीवन उन्होंने वाराणसी यानी काशी में ही बिताया लेकिन जीवन के आख़िरी समय वो मगहर चले आए और अब से पांच सौ साल पहले वर्ष 1518 में यहीं उनकी मृत्यु हुई.कबीर स्वेच्छा से मगहर आए थे और इसी किंवदंती या अंधविश्वास को तोड़ना चाहते थे कि काशी में मोक्ष मिलता है और मगहर में नरक.उत्तर प्रदेश में गोरखपुर से क़रीब तीस किमी. दूर पश्चिम में स्थित है मगहर.

मगहर नाम को लेकर भी कई किंवदंतियां मौजूद हैं. मसलन, यह भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षु इसी मार्ग से कपिलवस्तु, लुंबिनी, कुशीनगर जैसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों के दर्शन के लिए जाया करते थे.






मगहर में अब कबीर की समाधि भी है और उनकी मज़ार भी. जिस परिसर में ये दोनों इमारतें स्थित हैं उसके बाहर पूजा सामग्री की दुकान चलाने वाले राजेंद्र कुमार कहते हैं, "मगहर को चाहे जिस वजह से जाना जाता रहा हो लेकिन कबीर साहब ने उसे पवित्र बना दिया. आज दुनिया भर में इसे लोग जानते हैं और यहां आते हैं."


बस यूँ ही...







छठ


चार दिवसीय महापर्व #छठ का आज नहाय-खाय से शुभारंभ हो रहा है। व्रतियों को हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएं। आप सभी की मनोकामना भगवान भास्कर पूरी करें।सांस्कृतिक प्रसार के जरिये ही छठ का बिहार के बाहर भी प्रसार होता गया और आज यह पर्व पूर्वी भारत में बिहार समेत यूपी, झारखंड व नेपाल के तराई क्षेत्रों तक में भी बड़े धूम-धाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है|भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में।


# छठपूजा_2020

॥ #तमसो_मा_ज्योतिर्गमय ॥

ये छठ जरूरी है .....

धर्म के लिए नहीं, अपनों के लिए ।
परम्परा और संस्कृति जीवंत रहे....

हम आप के लिए जो अपनी जड़ों से कट रहे है,उनके लिए

ये छठ जरूरी है -

उस परम्परा को जिन्दा रखने के लिए जो समानता की वकालत करता है।

जो बताता है की #बिनापुरोहित भी पुजा हो सकती है ।
जो सिर्फ उगते सूरज को नही डूबते सूरज को भी सलाम करता है।

ये छठ जरूरी है -

गागर निम्बू और सुथनी जैसे फलों को जिन्दा रखने के लिए ।

# सूप और #दौउरा को बनाने वालों के लिए

ये छठ जरूरी है -

उन दंभी पुरुषों के लिए

जो नारी को कमजोर समझते हैं ।

ये #छठ जरूरी है।
बेहद जरूरी है ।

लोकास्था और सुर्योपासना के 
#महापर्व छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाये

चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं।आज से  महापर्व 'छठ' शुरू हो गया .... अगले चार दिन भारत"छठमाय" रहेगा ...

छठ के प्रति इस श्रद्धा को आप सिर्फ एक पर्व या सूर्योपासना नहीं कह सकते .... छठ महापर्व हम बिहारियों की सभ्यता , संस्कृति, भेदभाव विहीन पुरातन परम्परा , प्रकृति के प्रति निष्ठा, आस्था, आराध्य के प्रति समर्पण , पवित्रता एवं स्वच्छता का समागम है … एक ऐसा पर्व जो हमे हमारी मिट्टी से जोड़कर रखता है .... बिलकुल पलायनवाद का दंश झेल रहे बिहारियों को लिए अब एकमात्र छठ ही बचा है जिस बहाने न सिर्फ बिहारी बिहार जाने को लालायित रहते हैं बल्कि गर्व से कहते हैं देखो हमारे बिहार में भेदभाव विहीन एक पर्व होता है जिसमे हम सिर्फ प्रकृति को पूजते हैं और स्वछता के साथ सामाजिक समरसता को प्रगाढ़ करते हैं ,  वह  महापर्व छठ है , , बिहारी अस्मिता का सूचक है .."छठ" पर्व हमारी अलौकिक पहचान है .... एक ऐसा महापर्व जो सर्व बंधनों से तो मुक्त है परंतु विविध सात्विकताओं से युक्त है ....

अाज "नहाय खाय" के साथ चारदिवसीय छठ महापर्व अनुष्ठान की शुरुअात हो गई.... भात, चना का दाल, कद्दू का बजका, सब्जी, घी का सात्विक भोजन .... जिसमें सिर्फ शुद्धता का वास है... द्वेषरहित जिस समाज की हम कल्पना करते हैं ... उसी साकार सात्विक भोजन के साथ और प्रकृति से जुड़े कृषि उत्पादों वाले पदार्थों के साथ छठ की शुरुआत है..... जहां कोई पुजारी नहीं है , सब बस पूजक हैं... अाम और खास सबको एक सूत्र में पिरोते छठ महापर्व की अनंत शुभकामनाएं

राजा, रंक, फकीर सब बसिये एक घाट कहां !
जहां मने है छठ वहीं बसिये सब एक घाट तहाँ।


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Monday, September 18, 2023

समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञान से सम्बंध

 


समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञान से सम्बंध


 




विज्ञानों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है -

 (i) प्राकृतिक विज्ञान, और i) सामाजिक विज्ञान। सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मानवशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास, भूगोल आदि को सम्मिलित किया जाता है ये सभी सामाजिक विज्ञान किसी न किसी बिन्दु पर एक दूसरे से अन्त: सम्बन्धित हैं। यहाँ इन्हीं सामाजिक विज्ञानों की समाजशास्त्र से अन्त: सम्बन्धित की ववेचना की जाएगी।


(1) समाजशास्त्र और मानवशास्त्र (Sociology And Anthropology)


माजशास्त्र और मानवशास्त्र अन्य विज्ञानों की तुलना में एक-दूसरे के अधिक निकट हैं। इन दोनों के बीच स्पष्ट अन्तर नहीं किया जा सकता है। फ्रोयबर ने समाजशास्त्र और मानवशास्त्र को जुड़वाँ बहिनें कहा है। समाजशास्त्र का मानवशास्त्र से निम्न सम्बन्ध है -


(i) भौतिक मानवशास्त्र आदिम मानव के शरीर की उत्पत्ति, विकास और उसके शारीरिक लक्षणों का अध्ययन करता है। इसके साथ ही मानवशास्त्र के अन्तर्गत प्रजातियों का गहन अध्ययन भी किया जाता है। भौतिक मानवशास्त्र के अध्ययनों से समाजशास्त्री लाभ उठाकर मानवीय अन्त:क्रियाओं और समस्याओं को समझने का प्रयास करते हैं।


(2) प्रागैतिहासिक मानवशास्त्र जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है यह मानवशास्त्र की वह शाखा है जिसमें ऐतिहासिक युग की सभ्यता, संस्कृति और प्रविधियों का अध्ययन किया जाता है। इसकी सहायता से समाजशास्त्री सांस्कृतिक विरासत और इसके आधुनिक जीवन से सम्बन्धों की व्याख्या करता है। समाजशास्त्र में आधुनिक सामाजिक ढाँचे का अध्ययन करने के लिए प्राचीन पृष्ठभूमि का सहारा लिया जाता है।


(3) सामाजिक मानवशास्त्र सामाजिक परिस्थितियों में मनुष्य के व्यवहारों का अध्ययन करता है। इसके अन्तर्गत आदिकालीन मानव के रीति-रिवाज, परिवार, विवाह, धर्म और अर्थव्यवस्था, न्याय, कानून का अध्ययन किया जाता है। इन सभी विषयों का समाजशास्त्र के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। सामाजिक मानवशास्त्र और समाजशास्त्र की विषय-सामग्री परस्पर इतनी घुली-मिली है कि उसे एक-दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता है और स्पष्टतया ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि यह विषय समाजशास्त्र का है या सामाजिक मानवशास्त्र का।


मानवशास्त्र आदिम समाजों की सरल व्यवस्था का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र इसी सरल व्यवस्था के आधार पर आधुनिक समाज की जटिल व्यवस्था का अध्ययन करता है, इसलिए क्रोबर (Kroeber) ने इन्हें जुड़वाँ बहिनें (Twin Sister) कहकर सम्बोधित किया है।


 क्रोबर ने तो आगे स्पष्ट शब्दों में कहा है कि "सिद्धान्ततः समाजशास्त्र और मानवशास्त्र को अलग करना कठिन है।" 


दोनों में अन्तर - समाजशास्त्र और मानवशास्त्र एक-दूसरे से घनिष्ट रूप से सम्बन्धित होते हुए


इन दोनों में निम्न अन्तर है। समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में मौलिक अन्तर यह है कि मानवशास्त्र आदिम समुदायों या जनजातियों का अध्ययन करता है, जबकि समाजशास्त्र आधुनिक समाज का अध्ययन करता है


मानवशास्त्र में आदिम मानव के राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक जीवन का समग्र अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है।


 समाज अत्यधिक विशाल और जटिल है, अतः एक विज्ञान द्वारा इसका अध्ययन सम्भव नहीं है। इसीलिये इसका अध्ययन अनेक सामाजिक विज्ञानों द्वारा किया जाता है। समाजशास्त्र आधुनिक समाज के ढाँचे, संगठन और मानव की क्रियाओं का अध्ययन करता है।


i) दोनों विज्ञानों की अध्ययन पद्धतियों में भी अन्तर है। मानवशास्त्र एक प्राकृतिक विज्ञान के रूप में विकसित हुआ है, अतः उसकी विधियाँ भी प्राकृतिक विज्ञानों से मिलती-जुलती हैं।


 समाजशास्त्र का विकास सामाजिक विज्ञान के रूप में हुआ है, अतः उसकी पद्धतियाँ भी सामाजिक हैं। समाजशास्त्र के अन्तर्गत सामाजिक सर्वेक्षण-पद्धति, सांख्यिकीय-पद्धति, साक्षात्कार-पद्धति, प्रश्नावली और अनुसूची पद्धति का प्रयोग किया जाता है। 


मानवशास्त्र के अन्तर्गत सहभागिक अवलोकन (Participant Observation) आवश्यक है। इसके अभाव में मानवशास्त्र का अध्ययन पूर्ण नहीं हो सकता है।


मानवशास्त्र में प्रजातियों के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता है, जबकि समाजशास्त्र में प्रजातियों का अध्ययन सामाजिक सम्बन्धों पर पड़ने वाले प्रभाव के दृष्टिकोण से किया जाता है।


समाजशास्त्र का सम्बन्ध सामाजिक नियोजन (Social Planning) से भी है, अर्थात् समाजशास्त्र इस ओर संकेत करता है कि यह होना चाहिए। सामाजिक मानवशास्त्र इस प्रकार का कोई सुझाव नहीं देता है।


(2) समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र (Sociology and Economics)

माजशास्त्र और अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में अनुमान तो इसी से लगाया जा सकता है कि समाजशास्त्र का शैशवकाल अर्थशास्त्रियों की गोद और संरक्षण में व्यतीत हुआ है। आज भी कुछ विश्वविद्यालय हैं जहाँ दोनों विषय एक ही विभाग के अन्तर्गत पढ़ाये जाते हैं। समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में निम्न सम्बन्ध हैं-


अर्थशास्त्र आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। आर्थिक और सामाजिक दोनों परिस्थितियाँ एक-दूसरे से अन्तःसम्बन्धित हैं। उदाहरण के लिये माँग का नियम सामाजिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मूल्य का निर्धारण भी सामाजिक माँग या सामाजिक परिस्थितियों द्वारा होता है।


(ii) सामाजिक दशाएँ और आर्थिक परिस्थितियाँ एक-दूसरे से अन्तःसम्बन्धित हैं।


(iii) समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों पर आर्थिक कारकों के प्रभाव का अध्ययन करता है। सामाजिक संगठन का रूप क्या होगा? इसका निर्धारण भी आर्थिक परिस्थितियाँ ही करती है। 


समाज में शान्ति, न्याय, नैतिकता, सद्भावना और धर्म का क्या रूप होगा इसका निर्धारण आर्थिक दशाएँ करती हैं।


समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों विज्ञान एक ही प्रकार की समस्याओं अध्ययन करते हैं। जैसे श्रम-समस्याएँ और श्रम-कल्याण, औद्योगीकरण और इसके सामाजिक व आर्थिक प्रभाव, बेकारी, निर्धनता, ग्रामीण समस्याएँ और उनका समाधान आदि। इन विषयों के सम्बन्ध में ऐसा कहना असम्भव है कि इन्हें किस विज्ञान में सम्मिलित किया जाये।


समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों विकसित विज्ञान हैं, फिर भी इन दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। अर्थशास्त्र जीवन की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है, जबकि समाजशास्त्र जीवन की सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। 


(4) समाजशास्त्र और इतिहास (Sociology and History)


समाजशास्त्र और इतिहास का भी घनिष्ट सम्बन्ध है इतिहास बीती हुई घटना।


 


इतिहास और समाजशास्त्र में सम्बन्ध

(1) इतिहास अतीत की सामाजिक घटनाओं का क्रमबद्ध और व्यवस्थित अध्ययन है ।


 समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का क्रमबद्ध अध्ययन करता है, किन्तु यह अतीत की पृष्ठभूमि में वर्तमान समा का अध्ययन करता है, इसीलिए इतिहास को अतीत का समाजशाख ओर समाजशास्तर को समाझ का वर्तमान इतिहास' कहा जाता है।


(ii) इतिहास समाज की अतीतकालीन घटनाओं के कार्य कारण सम्बन्धी की व्याख्या करता है समाजशास्त वर्तमान सामाजिक घटनाओं की व्याख्या अतीतकाल की परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में करता है


. (i) इतिहास  राजाओं और शासकों का ही अध्ययन माना जाता है, यह सामाजिक घटनाओं की आलोचनात्मक व्याख्या भी करता है। सामाजिक घटनाएँ समाजशास्त्र से सम्बन्धित है। इतिहासकार अब मात्र 'क्य है' काही वर्णन नहीं करता कैसे हुआ, 'कौन-सी परिस्थितियों थो जिनके कारण यह हुआ' कभी अध्ययन करता है और इन परिस्थितियों और घटनाओं का समाजशास्त्र से चनिष्ठ सम्बन्ध है।


(iv) इतिहासकार प्रत्येक युग के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक जीवन का अध्ययन करत है। समाजशास्त्री इतिहास के अध्ययन द्वारा उस युग के सामाजिक जीवन को समझने का प्रयास करता है।


(५) इतिहास के कालक्रम के अनुसार सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र भी सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करता है। (vi) इतिहास में युद्ध और क्रान्ति का वर्णन किया जाता है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत उन प्रक्रियाओं केव वर्णन किया जाता है जिनसे युद्ध और क्रान्ति को प्रोत्साहन मिलता है। युद्ध और क्रान्ति के सामाजि कारणों और परिणामों का भी समाजशास्त्र में पता लगाया जाता है।


(vi) समाजशास्त्र ऐतिहासिक पद्धति का प्रयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य मात्र ऐतिहासिक घटनार्ज की खोज करना है इन ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर समाजशास्त्र वर्तमान सामाजिक बटना का कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करता है और भविष्य की ओर संकेत देता है। यह तब तक सम्भ नहीं जब तक कि उसे इतिहास का ज्ञान न हो।


समाजशास्त्र और इतिहास में अन्तर

(6) समाजशास्त्र और इतिहास में मौलिक अन्तर यह है कि समाजशास्त्र सामान्य विज्ञान है, जय इतिहास विशेष विज्ञान है। सम्बन्ध समाज


(ii) इतिहास का सम्बन्ध मात्र बीती हुई घटनाओं से है, जबकि समाजशास्त्र का वर्तमा घटनाओं से है।


(i) समाजशास्त्र और इतिहास के दृष्टिकोण में भी अन्तर है। इतिहास अतीत की मात्र प्रमुख घटना काही अध्ययन करता, जबकि समाजशास्त्र सामान्य घटनाओं का अध्ययन करता है। इस प्रक इतिहास की अपेक्षा समाजशास्त्र का दृष्टिकोण व्यापक और विशाल है।


(iv) जहाँ तक विज्ञान की निश्चितता और प्रामाणिकता का प्रश्न है, इतिहास की अपेक्षा समाजश अधिक प्रामाणिक है। इसका कारण यह है कि इतिहास की घटनाओं की परीक्षा और पुनर्पगेक्षा की जा सकती है, किन्तु समाजशास्त्र के अन्तर्गत ऐसा सम्भव है। प्राचीनता की दृष्टि से भी इतिहास और समाजशास्त्र में अन्तर है। समाजशास्त्र की तुलना में इतिहास अधिक प्राचीन है।


(i) समाजशास्त्र आधुनिक समाज का इतिहास है, जबकि इतिहास अतीत का समाजशास्त्र है।


(5) समाजशास्त्र और भूगोल


 (Sociology and Geography)

भूगोल और समाजशास्त्र का भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। भूगोल भौगोलिक दशाओं से सम्बन्धित है और समाजशास्त्र के अन्तर्गत इन भौगोलिक दशाओं का समाज में क्या स्थान है ? इसका अध्ययन किया जाता है।भूगोल और समाजशास्त्र में सम्बन्ध भूगोल में प्राकृतिक पर्याव का अध्ययन किया जाता है जैसे-जलवायु, वर्षा, तापक्रम, प्राकृतिक दशाएँ आदि। 



समाजशास्त्र के अन्तर्गत इन भौगोलिक दशाओं का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसका अध्ययन किया जाता है। इसके साथ ही भौगोलिक परिस्थितियों के बदलने से सामाजिक जीवन किस प्रकार प्रभावित होता है? भौगोलिक परिस्थितियों का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसका अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्रियों के एक सम्प्रदाय का जन्म हुआ, जिसे भौगोलिक सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।


भूगोल राज्य का भी अध्ययन करता है। इसे राजनीतिक भूगोल कहा जाता है, जिसमें विभिन्न देशों की बनावट और पृथ्वी के धरातल का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र इसका अध्ययन करता है कि पृथ्वी की बनावट के अनुसार व्यक्तियों की कार्यकुशलता का निर्धारण होता है। साथ ही इसका सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?


(i) भूगोल की एक शाखा 'व्यापारिक भूगोल' की है जिसके अन्तर्गत पैदावार का जलवायु के साथ अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र इस पैदावार के अनुसार रहन-सहन और सामाजिक रीतियों, प्रथाओं, परम्पराओं की विवेचना करता है। 


(iv) मानव भूगोल मनुष्य का अध्ययन करता है और मनुष्यों की मिश्रित प्रजातियों का कारण भौगोलिक परिस्थितियों को बताया है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत प्रजाति के सामाजिक पक्ष की विवेचना की जाती है।


(v) भूगोल जलवायु का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र इसका अध्ययन करता है कि जलवायु का सामाजिक जीवन से क्या सम्बन्ध है? जलवायु व्यक्ति की र्यकुशलता और प्रकृति का निर्धारण किस प्रकार करती है? ठण्डक में सम्पत्ति से सम्बन्धित अपराध और गर्मी में व्यक्ति से सम्बन्धित अपराध क्यों नहीं होते हैं।


(vi) समाजशास्त्र के अन्तर्गत सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन किया जाता है। सभ्यता और संस्कृति सामाजिक जीवन से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। सभ्यता और संस्कृति के उत्थान और पतन में भौगोलिक दशाओं का योगदान रहा है।समाजशास्त्र और भूगोल में अन्तर समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञान है और सामान्य सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है। भूगोल मात्र भौगोलिक दशाओं का अध्ययन करता है, इसलिए यह विशेष सामाजिक विज्ञान है। समाजशास्त्र का अध्ययन-क्षेत्र विस्तृत है, जबकि भूगोल का अध्ययन-क्षेत्र सीमित है।


i) दोनों की अध्ययन-वस्तु में भी अन्तर है। समाजशास्त्र की अध्ययन वस्तु सामाजिक सम्बन्ध हैं, जबकि भूगोल की अध्ययन-वस्तु भौगोलिक दशाएँ हैं। ) जनांकिकी में जनसंख्या की प्रकृति और स्वरूप का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या की इस प्रकृति और स्वरूप का अध्ययन करने के लिये समाज की प्रकृति और स्वरूप का ज्ञान अनिवार्य है; क्योंकि ज्ञान की यह शाखा सामाजिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में ही जनसंख्या का अध्ययन करती है।


समाज विज्ञान की परिभाषा करते हुए मैकाइवर और पेज ने इसे सामाजिक सम्बन्धों का विज्ञान कहा है। समाज सामाजिक सम्बन्धों के जाल को कहा जाता है। सामाजिक सम्बन्धों के निर्माण के लिए व्यक्ति का होना अनिवार्य है। जनांकिकी में इन्ही व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है।


4) जनांकिकी में जन्मदर, मृत्युदर और इनके कारकों का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या के इन कारकों का सीधा सम्बन्ध समाज की परिस्थितियों से है। उदाहरण के लिए, किसी समाज में जन्मदर अधिक है। जन्मदर अधिक होने के अनेक कारणों में बाल-विवाह और संयुक्त परिवार भी कारक हैं। बाल-विवाह और संयुक्त परिवार सार्वदेशिक और सार्वकालिक न होकर समाज की परिस्थितियों के उत्पादन मात्र होते हैं। इस प्रकार जनांकिकी और समाज विज्ञान परस्पर अन्तःसम्बन्धित हैं। 5) जनांकिकी में मृत्यु का भी अध्ययन किया जाता है, मृत्युदर के अनेक कारक हो सकते हैं। इन सभी कारकों का समाज की परिस्थितियों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।जनांकिकी में जनस्वास्थ्य का अध्ययन किया जाता है, जनस्वास्थ्य का यह अध्ययन समाज विज्ञान से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। इसका कारण यह है कि जनस्वास्थ्य की योजना बनाते समय समाज की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है


(7) जनांकिकी में जनगणना का अध्ययन किया जाता है। जनगणना में जनसंख्या की प्रकृति और उसके विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया जाता है। एक देश की जनसंख्या का विश्लेषण दूसरे देश से भिन्न होता है। इस भिन्नता का कारण यह है कि प्रत्यक्ष देश की सामाजिक परिस्थितियों में अन्तर होता है, जिसके आधार पर जनसंख्या का विश्लेषण किया जाता है।



 सामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन समाज विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। इस प्रकार समाज विज्ञान और जनांकिकी परस्पर अन्त:सम्बन्धित हैं 


जनांकिकी में जनसंख्या नीति का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत जनसंख्या के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचारों का अध्ययन जाता है। एक देश के विद्वानों के विचार दूसरे देश के विद्वानों के विचारों से पृथक् होते हैं। ये विद्वान जनसंख्या नीति का प्रतिपादन करते हैं इस नीति का प्रतिपादन करते समय देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है। अत: स्पष्ट होता है कि जनांकिकी और समाज विज्ञान अन्तःसम्बन्धित हैं।


(9) जनांकिकी में खाद्य सामग्री का अध्ययन किया जाता है और ऐसा विश्वास किया जाता है कि खाद्य सामग्री और जनांकिकी में सन्तुलन अनिवार्य है खाद्य सामग्री समाज की परिस्थितियों पर आधारित होती है। सामाजिक वातावरण ही खाद्य सामग्री का जनक है। प्रत्येक समाज की परिस्थितियों में भिन्नता पायी जाती है। यह भिन्नता खाद्य सामग्री का निर्धारण करती है। ये सभी तत्व ऐसे हैं जिनका समान रूप से जनांकिकी और समाज विज्ञान में अध्ययन किया जाता है।


(10) इसी प्रकार परिवार नियोजन (Family Planning), आदि ऐसे विषय है जिनका जनांकिकी और समाज विज्ञान दोनों अध्ययन करते हैं।दोनों में अन्तर समाज विज्ञान और जनांकिकी में अनेक समानताएं हैं। इन समानताओं का वर्णन ऊपर किया जा चुका है। इन समानताओं के अतिरिक्त इन दोनों विज्ञानों में अनेक भिन्नताएँ भी है। इन भिन्नताओं को मुख्य रूप से निम्न भागों में बाँटा जा सकता है 


(6) समाजशास्त्र और जीवशास्त्र (Sociology and Biology)



जीवशास्त्र वह विज्ञान है जो जीवों की उत्पत्ति, विकास और संगठन का अध्ययन करता है। मनुष्य भी पाणी है, जिसका अध्ययन जीवशास्त्र करता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। इसी की व्याख्या जीवशास्त्र और समाजशास्त्र के अन्तर्गत की जायेगी। समाजशास्त्र और जीवशास्त्र में सम्बन्ध


(6) जीवशास्त्र प्राणियों का अध्ययन है। प्राणियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ और महत्वपूर्ण प्राणी है। जीवशास्त्र मनुष्य के उद्भव, विकास और परिवर्तन का अध्ययन करता है। मनुष्य मात्र प्राणी ही नहीं, वह सामाजिक भी है। 'वह सामाजिक क्यों है ?' इसका अध्ययन समाजशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। इस प्रकार समाजशास्त्र 'समाज' का अध्ययन है और जीवशास्त्र 'व्यक्ति' का अध्ययन है। व्यक्ति और समाज परस्पर अन्तःसम्बन्धित हैं, अत: दोनों विज्ञान भी परस्पर अन्तःसम्बन्धित हैं।


(ii) डार्विन ने 'सावयवी उद्विकास के सिद्धान्त' का प्रतिपादन किया था। उसने इस सिद्धान्त द्वारा यह सिद्ध किया था कि जीवों का उद्भव और विकास किस प्रकार हुआ? इसी सिद्धान्त के आधार पर समाजशास्त्रियों ने 'सामाजिक उद्विकास के सिद्धान्त' का प्रतिमान किया था ।


(iii) इसी प्रकार 'अस्तित्व के लिए संघर्ष' और 'योग्यतम की जीत' के सिद्धान्त सामाजिक जीवन | पर भी लागू होते हैं। जिस प्रकार उपर्युक्त सिद्धान्त जीवों पर प्रभावी होते हैं, उसी प्रकार समाज पर भी प्रभावी होते है।


(iv) वंशानुक्रमण का अध्ययन जीवशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत भी वंशानुक्रमण का अध्ययन किया जाता है।


(v) समाजशास्त्र के नियम जीवशास्त्र को प्रभावित करते हैं और जीवशास्त्र के नियम समाजशास्त्र के प्रभावित करते है। उदाहरण के लिये, विवाह की आयु और अन्तर्विवाह शारीरिक विकास को प्रभावित करते है। सामाजिक जीवन के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए दोनों विज्ञानों का ज्ञान आवश्यक है।


(vi) प्रजाति का अध्ययन जीवशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। समाजशास्त्र भी प्रजाति का अध्ययन करता है।जीवशास्त्र और समाजशास्त्र में अन्तर


(i) जीवशास्त्र विशेष विज्ञान है, जबकि समाजशास्त्र सामान्य सामाजिक विज्ञान है।


(i) समाजशास्त्र का क्षेत्र व्यापक है, जबकि जीवशास्त्र का क्षेत्र सीमित है।


(ii) समाजशास्त्र समाज का अध्ययन सामाजिक सम्बन्ध, संगठन और सामाजिक क्रियाओं के रूप में करता है। जीवशास्त्र मनुष्य का अध्ययन प्राणिशास्त्रीय दृष्टिकोण से करता है। (iv) जीवशास्त्रीय सिद्धान्त समाजशास्त्र के सम्बन्ध में प्रभावी नहीं होते हैं। मनुष्य बुद्धिजीवी और क्रियाशीलप्राणी है। वह परिस्थितियों का दास नहीं है। अतः प्राकृतिक प्रवरण का नियम (Law of Natur3 Selection) समाज पर प्रभावी नहीं होता।


(7) समाजशास्त्र और जनांकिकी (Sociology and Demography)

समाज विज्ञान और जनांकिकी में सम्बन्ध


(1) जनांकिकी जनसंख्या का अध्ययन है और समाज विज्ञान समाज का अध्ययन है। समाज और जनसंख्या एक दूसरे से अन्त सम्बन्धित हैं। जनसंख्या का वास्तविक अध्ययन तब तक पूरा नहीं हो सकता है। जब तक कि समाज का पूर्ण ज्ञान न ही। इस प्रकार जनांकिकी और समाज विज्ञान परस्पर सम्बन्धित है


इन दोनों में मौलिक अन्तर यह है कि समाज विज्ञान समाज का अध्ययन है, जबकि जनांकिकी में जनसंख्या का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या और समाज दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं। (2) समाज एक विशाल धारणा है, जबकि जनसंख्या एक संकुचित धारणा है। जनसंख्या समाज का छोटा सा भाग है।


(3) समाज विज्ञान सामान्य सामाजिक विज्ञान (General Social Science) है, जिसके अन्तर्गत समाज की सामान्य विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है। जनांकिकी विशिष्ट सामाजिक विज्ञान (Special Social Science) है, जिसमें समाज के एक विशेष पहलू का ही अध्ययन किया जाता है। (4) समाज विज्ञान का क्षेत्र अत्यन्त विशाल है, जबकि जनांकिकी का क्षेत्र अत्यन्त सीमित है।


(5) समाज विज्ञान के अन्तर्गत सभी प्रकार के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है, जबकि जनांकिकी के अन्तर्गत मात्र जनसंख्या सम्बन्धी सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।


(6) समाज विज्ञान क्या है' का अध्ययन है, जबकि जनांकिकी में क्या होना चाहिए' का अध्ययन होता है। इसका तात्पर्य यह है कि समाज विज्ञान एक आदर्श विज्ञान नहीं है, जबकि जनांकिकी आदर्श विज्ञान है। आदर्श विज्ञान होने के नाते जनांकिकी के अन्तर्गत समाज के भविष्य की योजनाओं को सम्मिलित किया जाता है। समाज विज्ञान में इस प्रकार की किसी भी योजना को सम्मिलित नहीं किया जाता है।


समाजशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान (Sociology and Social Psychology)

सामाजिक मनोविज्ञान मानव व्यवहार का अध्ययन है, समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन है। इस कारण दोनों में घनिष्ट सम्बन्ध है।


समाजशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान में सम्बन्ध


(6 मनोविज्ञान मानव-मस्तिष्क की अन्त:क्रिया का विज्ञान है। थाउलस (Thouless) ने लिखा है कि मनोविज्ञान मानव अनुभव और व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है। 



समाजशास्त्र सामाजिक व्यवहार का अध्ययन है। समाजशास्त्र और मनोविज्ञान एक ही वस्तु का अध्ययन करते हैं। दोनों के बीच मात्र दृष्टिकोण का अन्तर है।


(ii) सामाजिक मनोविज्ञान केवल उन व्यवहारों का अध्ययन करता है जिनकी उत्पत्ति किन्हीं विशेष परिस्थितियों में हुई हैं। समाजशास्त्र सामाजिक व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों की व्याख्या करता है।


(HI) गिन्सबर्ग (Ginsberg) का विचार है कि समाजशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान की सीमाएँ एक दूसरे से इतनी मिली हुई हैं कि इन्हें पृथक् नहीं किया जा सकता है। मूल प्रवृत्तियों, इच्छाओं और प्रेरणाओं का अध्ययन मनोविज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। जब तक इन्हें भली- भाँति नहीं समझ लिया जाता, सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन नहीं किया जा सकता है, जो कि समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र है।सामाजिक मनोविज्ञान समाज में मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन है। समाजशास्त्र मानव व्यवहार | के बाह्य रुप का अध्ययन करता है जबकि सामाजिक मनोविज्ञान मानव-व्यवहार का मानसिक आधार पर अध्ययन करता है। इस प्रकार समाजशास्त्र मानव-व्यवहार का अध्ययन है और सामाजिक मनोविज्ञान व्यवहारों के मानसिक तत्वों का अध्ययन है।समाज मनोविज्ञान का समाजशास्त्र से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसका समर्थन करते हुए डॉ.मोटवाना ने लिखा है कि, "सामाजिक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के बीच की एक कड़ी है।"