Monday, October 31, 2022

सूचना का अधिकार नियमावली

  

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GOVERNMENT DEGREE COLLEGE SITARGANJ

 

7/24/2022

 

SMS

 

 


 


 


 


 

सूचना का अधिकार नियमावली



 

मैनुअल – 1 [धारा 4 (1) (बी) (i)]

 

संगठन के विवरण

 

1. संक्षिप्त इतिहास

 

शासकीय डिग्री महाविद्यालय सितारगंज, ऊधमसिंह नगर, सिसोना के शांतिपूर्ण गांव में सितारगंज हल्द्वानी रोड पर स्थित है। महाविद्यालय कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल से सम्बद्ध है इसकी स्थापना के बाद से। इसने 2 (F) और के लिए भी आवेदन किया है 12 (B) (UGC.pdf - Google Drive) कॉलेज की शुरुआत कला संकाय में छह विषयों के साथ हुई थी, अर्थात् हिंदी, राजनीति विज्ञान, इतिहास, समाजशास्त्र, अंग्रेजी और शिक्षा। छात्रों को बेहतर अवसर प्रदान करने के लिए 2019 में वाणिज्य और विज्ञान संकाय की शुरुआत की गई थी। इसके अलावा, उच्च शिक्षा की सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले छात्रों के बीच नैतिक मूल्यों को विकसित करने के लिए, कॉलेज एनएसएस और रोवर रेंजर्स जैसी पाठ्येतर गतिविधियों की पेशकश करता है। यह अपने छात्रों के बीच मानवतावादी दृष्टिकोण और सेवा की भावना विकसित करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान, उन्नत भारत अभियान, मतदाता जागरूकता आदि जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भी योगदान देता है। अपनी आधुनिक बुनियादी सुविधाओं और पुस्तकालय के साथ, कॉलेज छात्रों को उनकी पढ़ाई में सहायता करता है। कामकाजी आबादी को शिक्षा प्रदान करने के लिए, कॉलेज के परिसर में एक उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय केंद्र है, जो बीए, बीकॉम और बीएससी जैसे स्नातक पाठ्यक्रमों की एक श्रृंखला प्रदान करता है। कॉलेज सभी विभागों में उच्च योग्य, ऊर्जावान और सहायक संकाय के साथ संपन्न है जो कॉलेज के अकादमिक माहौल को प्रोत्साहित करते हैं।

 

कॉलेज का नाम और पता

नाम

राजकीय महाविद्यालय सितारगंज

पता

राजकीय महाविद्यालय सितारगंज जिला  - उधम सिंह नगर

शहर

सितारगंज

राज्य

उत्तराखंड

पिन

262405

वेबसाइट

http://gdcsitarganj.in/

 

कॉलेज परिसर में उपलब्ध सुविधाएं

 

·         पुस्तकालय : महाविद्यालय का केंद्रीय पुस्तकालय पुस्तकों, पत्रिकाओं, पत्रिकाओं और विश्वकोशों के संग्रह से समृद्ध है।

·         अनुसंधान: संस्थान हमेशा अपने संकाय सदस्यों को अनुसंधान गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। वर्तमान में, संस्था के 04 संकाय, (श्रीमती अनीता नेगी, श्रीमती सविता रानी, श्री भुवनेश कुमार, और रितिका गिरी गोस्वामी अपनी पीएच.डी. कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल से) संस्थान के कई संकाय सदस्यों ने अपने शोध पत्रों/लेखों को विभिन्न सहकर्मी-समीक्षित और अन्य ISSN/ISBN पत्रिकाओं में प्रकाशित किया है। वे देश भर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित विभिन्न सेमिनारों और सम्मेलनों में अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत करते हैं।

·         बोटैनिकल गार्डन : कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग ने औषधीय महत्व के कई दुर्लभ पौधों की प्रजातियों के साथ एक अच्छा बगीचा विकसित किया है।

·         नेटवर्क संसाधन केंद्र: कॉलेज में पुस्तकालय में अच्छी तरह से सुसज्जित नेटवर्क संसाधन केंद्र है जो इंटरनेट, फोटोकॉपी और प्रिंटिंग आदि की सुविधा प्रदान करता है. यह प्रिंटिंग मशीन, फोटोकॉपी और स्कैनिंग मशीन आदि से समृद्ध है।

·         खेल सुविधा: कॉलेज में टेबल टेनिस, बैडमिंटन, वॉलीबॉल, खो-खो, शतरंज, योग आदि जैसे विभिन्न खेल उपकरण और खेल का मैदान है।

·         प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मार्गदर्शन : शिक्षक एक दिवसीय परीक्षाओं जैसे बैंकिंग, रेलवे, सेना, SSC, UKPSC, आदि जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में छात्रों की मदद करते हैं।

·         करियर काउंसलिंग सेल : भविष्य की योजना के संबंध में छात्रों का मार्गदर्शन करने के लिए कॉलेज ने एक कैरियर परामर्श का गठन किया है। छात्रों को कैंपस प्लेसमेंट की सुविधा प्रदान की जा सकती है। प्रत्येक माह में दो बार विद्यार्थियों की काउंसलिंग की जाती है।

·         कैंटीन: छात्रों के लिए कॉलेज में कैंटीन है।

·         प्रयोगशाला : जूलॉजी विभाग, वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिकी और शिक्षाशास्त्र करने के लिए प्रयोगशालाएं हैं।

·         संस्थागत मूल्य और सर्वोत्तम प्रथाएं : संस्था का मुख्य उद्देश्य अपने छात्रों को सर्वोत्तम शैक्षणिक वातावरण प्रदान करना है जहाँ वे शिक्षा के उच्चतम मानकों को प्राप्त कर सकें। इस संबंध में, संस्था अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित मूल्यों और प्रथाओं का अभ्यास कर रही है।

 

आचरण और अनुशासन के नियम

·         अनुशासन : कॉलेज परिसर में सख्त अनुशासन बनाए रखता है। छात्रों को प्रिंसिपल और टीचिंग फैकल्टी के निर्देशों का पालन करने की सलाह दी जाती है। अनुशासनहीनता या नियमों के उल्लंघन के किसी भी कार्य पर विचार नहीं किया जाएगा। इस तरह के उल्लंघन के मामले में सख्त कार्रवाई की जाती है।

·         उपस्थिति : विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार, प्रत्येक छात्र को व्याख्यान में कम से कम 75% उपस्थिति आवश्यक है।

·         ड्रेस कोड : कैंपस में छात्रों के लिए ड्रेस कोड का पालन किया जाता है।

·         पहचान पत्र : सत्र की शुरुआत में, कॉलेज छात्रों को पहचान पत्र प्रदान करता है। कॉलेज परिसर में कार्ड को प्रमुखता से दिखाना सभी के लिए अनिवार्य है। इसके बिना किसी भी छात्र को कक्षाओं या अन्य गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

·         एंटी रैगिंग सेल : सरकार द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार कॉलेज परिसर में रैगिंग सख्त वर्जित है। कानून का कोई भी उल्लंघन सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई का पात्र है।

 

सर्वोत्तम प्रथाएं:

·         शिक्षण, सीखने और मूल्यांकन प्रक्रियाओं में आईसीटी उपकरणों और संसाधनों का उपयोग।

·         वृक्षारोपण।

·         वानस्पतिक, प्राणी विज्ञान भ्रमण और औद्योगिक दौरे।

·         संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन।

·         छात्रों और कर्मचारियों की सराहना।

·         प्रतियोगी परीक्षाओं के संबंध में छात्रों को मार्गदर्शन

·         वार्षिक कॉलेज पत्रिका सृजन

·         शिक्षक प्रायोजित छात्रवृत्तियां दी जाती हैं।

·         ग्रीन ऑडिट।

·         लड़कियों के लिए परामर्श।

·         छात्रों के लिए ड्रेस कोड

·         राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्वपूर्ण दिनों का उत्सव

·         महान हस्तियों की जन्म और मृत्यु वर्षगांठ का उत्सव

 

2. दृष्टि

·         कॉलेज की दृष्टि छात्रों को उनकी पसंद के अनुशासन में सर्वोत्तम गुणवत्ता और मूल्य-आधारित शिक्षा प्रदान करके उनके समग्र विकास को सुनिश्चित करना है और इस प्रकार, अपने छात्रों को उनकी कक्षा और पंथ के बावजूद सर्वोत्तम ज्ञान और कौशल से लैस करना है। और संस्थान को उच्च शिक्षा के एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में विकसित करना।

 

3. मिशन

कॉलेज का मिशन अकादमिक माहौल को प्रोत्साहित करना है जिसमें नए विचार, अनुसंधान और छात्रवृत्ति पनपती है, संस्थान में नवीन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण-शिक्षण को बढ़ावा देने के लिए, सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए, अपने छात्रों में जीवन के आंतरिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए, युवा दिमाग को बौद्धिक, सामाजिक और आध्यात्मिक परिवर्तन की यात्रा शुरू करने में सक्षम बनाना और इस प्रकार, उत्कृष्ट विद्वानों, नेताओं, शिक्षकों, खिलाड़ियों और छात्रों को अनुसंधान में तैयार करना।

 

4. कॉलेज के कर्तव्य:

कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल द्वारा अनुमोदित विभिन्न शैक्षणिक कार्यक्रमों का संचालन करना और इस उद्देश्य में योगदान देने वाली विभिन्न गतिविधियों को करना।

 

5. महाविद्यालय द्वारा प्रदान किए जाने वाले कार्य/सेवाएं :

कॉलेज कुमाऊं विश्वविद्यालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार कला, वाणिज्य और विज्ञान में स्नातक पाठ्यक्रम प्रदान करता है। कॉलेज का एक मान्यता प्राप्त केंद्र है। उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय का एक केंद्र है।

 

6. कॉलेज का पता:

Government Degree College, Sitarganj Vill- Sisona, Chorgaliya Road, Sitarganj Udham Singh Nagar- 262405

Email : gdcsitarganj@gmail.com

Website http://gdcsitarganj.in/

 

 


 

मैनुअल - 2 [धारा 4 (1) (B) (ii)]

 

अधिकारियों और कर्मचारियों की शक्तियां और कर्तव्य

·         प्राचार्य महाविद्यालय के शैक्षणिक एवं प्रशासनिक अधिकारी हैं।

·         कॉलेज के शिक्षण संकाय, प्रशासन, पुस्तकालय और प्रयोगशाला कर्मचारियों और अन्य कर्मचारियों सहित अन्य अधिकारियों के अधिकार और कर्तव्य भी कुमाऊं विश्वविद्यालय और उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय के नियमों और विनियमों के अनुसार हैं।

 

मैनुअल - 3 [धारा 4 (1) (B) (iii)]

 

विभिन्न मामलों पर निर्णय लेने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

·         कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के अनुसार कर्मचारी परिषद की बैठकों में प्रवेश देने, सेमिनार, खेलकूद, पाठ्येतर गतिविधियों, शिक्षकों को काम का वितरण, समय-सारणी तैयार करने जैसी विभिन्न गतिविधियों के आयोजन के निर्णय लिए जाते हैं।

·         महाविद्यालय का समस्त कार्य प्राचार्य के नियंत्रण में है।

 

मैनुअल - 4 [धारा - 4 (1) (बी) (iv)]

 

कार्यों के निर्वहन के लिए निर्धारित मानदंड

कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल और उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय  द्वारा दिए गए विनियमों और निर्देशों के अनुसार विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों के लिए मानदंड और मानक प्राचार्य द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

 

मैनुअल - 5 [धारा - 4 (1) (बी) (v)]

 

कार्यों के निर्वहन के लिए नियम, विनियम, निर्देश, नियमावली और रिकॉर्ड

 

कार्यों के निर्वहन के लिए नियम, विनियम, निर्देश, नियमावली और अभिलेखों का पालन कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल और उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय के मानदंडों के अनुसार किया जाता है।

 

मैनुअल - 6 [धारा 4(1) (बी) (vi)]

 

आधिकारिक दस्तावेज और उनकी उपलब्धता

·         कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल और उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा प्रकाशित निर्देश, अधिसूचना, परिपत्र। समय-समय पर उत्तराखंड के (विश्वविद्यालय/ कॉलेज और उत्तराखंड सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध)

·         कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल (https://www.kunainital.ac.in/) की वेबसाइट पर उपलब्ध विभिन्न पाठ्यक्रमों के पाठ्यक्रम

·         आधिकारिक दस्तावेज कॉलेज कार्यालय में उपलब्ध हैं।

 

मैनुअल - 7 धारा 4 (1) (बी) (vii)

 

सार्वजनिक भागीदारी का तरीका

कॉलेज हर साल सामाजिक भागीदारी के लिए कई गतिविधियों का आयोजन करता है। विभिन्न गतिविधियों में वार्षिक सभा, पूर्व छात्र बैठक, अभिभावक बैठक, पुरस्कार वितरण, डिग्री वितरण, और विभिन्न अन्य कार्यक्रम शामिल हैं जहां जनता सक्रिय रूप से शामिल है।

 

मैनुअल - 8 धारा 4 (1) (बी) (viii)

 

विभिन्न समितियों की सूची

कॉलेज के शैक्षणिक और प्रशासनिक मामलों के प्रबंधन के लिए, निम्नलिखित 29 समितियों का गठन किया गया है। सभी समितियों का विवरण महाविद्यालय की वेबसाइट पर दिया गया है http://gdcsitarganj.in/

 

1. Teaching Learning And Evaluation

2. Alumni Committee

3. Annual Social Gathering Committee

4. College Examination

5. Co-Operative Store

6. Career Employment

7. College Prospectus And Annual Report

8. College Development Committee

9. College Annual Report

10. Uni. Youth Festival Science Club, Science Exhibition, And Cultural Committee, Debate, Essay

11. Computer Centre Committee & Website

12. College Magazine

13. Cycle Stand, Canteen, Discipline in College Campus

14. College Council

15. Staff Council

16. Feedback Committee

17. Teacher-Guardian scheme

18. Sport Committee

19. Library Committee

20. Internal Quality Assurance Cell

21. Students Admission

22. Grievances Redressal Cell

23. Students Council

24. Students Attendance

25. Time Table Committee

26. College Research Committee (U.G.C. Proposals, Research Projects, College Research

Activities And Extension, Students Seminar)

25. Woman Cell And Sexual Harassment, Internal Complaint Committee-ICC

26. Anti-ragging Committee

27. RTI Act 2005

28. N.S.S

29. College Website

 

मैनुअल - 9 धारा 4 (1) (बी) (ix)

 

कर्मचारियों की निर्देशिका

यह कॉलेज की वेबसाइट पर उपलब्ध है:  http://gdcsitarganj.in/

 

मैनुअल - 10 [धारा - 4 (1) (बी) (x)]

 

विभिन्न शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के वेतनमान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित और कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल और उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा अपनाए गए हैं।

 

मैनुअल - 10 [धारा - 4 (1) (बी) (xi)]

 

प्रत्येक एजेंसी को आवंटित बजट

विभिन्न विभागों द्वारा अनुशंसित बजट और वित्तीय अनुमानों को कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल और उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय/प्रधानाचार्य द्वारा अनुमोदित किया जाता है।

 

मैनुअल - 10 [धारा - 4 (1) (बी) (xii)]

 

सब्सिडी कार्यक्रम के निष्पादन का तरीका -

Not applicable –––

 

मैनुअल - 10 [धारा - 4 (1) (बी) (xiii)]

 

दी गई रियायतों, परमिटों या प्राधिकरणों के प्राप्तकर्ताओं का विवरण

 

कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल और उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय/प्रधानाचार्य के प्रावधानों के अनुसार।

 

मैनुअल - 10 [धारा - 4 (1) (बी) (xiv)]

 

इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध जानकारी

आरटीआई के तहत सभी नियमावली और कॉलेज के बारे में अन्य जानकारी कॉलेज की वेबसाइट पर उपलब्ध है http://gdcsitarganj.in/

 

मैनुअल - 10 [धारा - 4 (1) (बी) (xv)]

 

सूचना प्राप्त करने के लिए नागरिकों को उपलब्ध साधन, तरीके और सुविधाएं:

सूचना पट्ट, सूचना विवरणिका, महाविद्यालय की वेबसाइट के माध्यम से  और कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल और उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय में उपलब्ध है।

 

मैनुअल - 10 [धारा - 4 (1) (बी) (xvi)]

 

अपील-प्राधिकारी

Dr. Subhash Chandra Verma (Principal)
Government Degree College, Sitarganj
Vill- Sisona, Chorgaliya Road, Sitarganj Udham Singh Nagar ?
Pin - 262405
Email id-
gdcsitarganj@gmail.com

 

 

मैनुअल - 10 [धारा - 4 (1) (बी) (xvii)]

 

अन्य उपयोगी जानकारी

आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना मांगने वाला व्यक्ति आरटीआई नियमों के अनुसार आवेदन कर सकता है।

संपर्क-

https://rti.gov.in/

https://www.ugc.ac.in/

पूर्वाचल राज्य: एक पहल

                                                      पूर्वाचल राज्य: एक पहल

     

सर सीताराम

 



सर सीताराम






डॉ0 सत्येद्र सिंह

                       




    

 एक छोटी नदी गांगी के आरे बारे के ताल से निकल कर आजमगढ़ की दक्षिणी सीमा से जौनपुर व आजमगढ़ की ऊसर-परती, धरती को विभाजित करती है। इसी के किनारे पर तुलसी साहित्य के सम्यक अध्येयता डॉक्टर उदयीमान सिंह, साहित्य सेवी मंगला सिंह, प्रोसेसर दार्शनिक अभिमन्य,ु समाजसेवी प्रमुख स्वर्गीय राजनाथ सिंह, संतों की उन्मनी शोधक स्वर्गीय राजदेव सिंह, अजातशत्रु स्वर्गीय सीताराम सिंह शिक्षा व समाज उन्नायक स्वर्गीय मथुरा सिंह, स्वर्गीय लाल बहादुर, डॉक्टर विजय प्रताप, प्रोफेसर नागेंद्र सिंह, स्वर्गीय रामराज सिंह आदि ने जन्म लिया था। यह नदी महाप्रतापी स्कंदगुप्त की उपराज धानी सैदपुर भीतरी के अवशेषों की साक्षी बनकर गंगा से मिलती है, गाजीपुर में डोमी ताल्लुके का एक बड़ा प्रसिद्ध गांव है कुसुम्ही-जरासी

  कुसुम्ही में बाबू राम शरण सिंह, बाबू रामधारी संकठा सिंह, जैसे लोगों ने 1950 से लेकर 2000 तक बडा़ नाम कमाया हैं।जरासी में भी बाबू दयाराम सिंह, प्रमुख जी की चर्चा होती रहती है। इसी गांव के डॉक्टर सविंद्र सिंह भूगोल के बड़े चर्चित विद्वान रहे हैं। इसी गांव से पांच पीढ़ी लगभग, 150 वर्ष पहले, दो परिवार गांव से निकलकर गांगी के किनारे उस पार ग्राम कपसेठा हिलाल में बस गये।घर के मुखिया थ,े बाबू जंगबहादुर सिंह। वजह माना था बाबू मथुरा से पत्तर सिंह, तुलसी सिंह, राम ज्ञानी सिंह, अदैवर सिंह, बैजनाथ सिंह जैसे चौधरी लोगों का जो डोमी की नाक थे। आन बान शान थे।

स्वर्गीय बाबू जंगबहादुर सिंह अध्यापक थ,े और लहुवॉ में मैं स्वर्गीय राजनाथ सिंह (सरजू) ढाढा के द्वारा बनवाये गए स्कूल में पढ़ाते थे। यहां से उन्होंने अच्छी खेती के गुर सीखे, मायप निभाने के तौर तरीके की सीखे और अपने संतानों को शिक्षा से जोड़ने का हुनर सीखा। वे कालिका, केदार, सत्यदेव सिंह के प्रिय पात्र बने रहे। स्वर्गीय सर सीताराम सिंह जी इनके सबसे बड़े पुत्र थ,े राजाराम, सर्वदेव, पदमदेव, सूर्यनाथ,देवनाथ जैसे पुत्रों को उन्होंने पढ़ाया लिखा ह,ै और अपने चचेरे भाइयों शिवशंकर सिंह, दीनानाथ सिंह, गौरी शंकर को भी उन्होंने पुत्रवत स्नेह दिया। जो जमीन जायदाद आज उनके बड़े कुनबे को हासिल है, उसे बनाने में बाबू शिवशंकर सिंह, गौरी शंकर सिंह, राजाराम सिंह को योगदान सर्वोपरि था। कपसेठा गांव बाबू सीताराम सिंह, प्रिंसिपल के नाम से ही जाने जाता थ,े पाठक बस सर्विस जो मेहनाजपुर से जौनपुर रोज आती जाती थी, कंडक्टर पाठक यात्रियों को सचेत करके कहता था कि “आ गया प्रिंसिपल सीताराम जी का कपसेठा” कपसेठा, कठरवा, लहुवॉ, सलेमपुर के लोग जाए।       यह जमाना 1960-70 के बीच का था, सुनते-सुनते आम आदमी रोज के आने-जाने वाले   लोग कपसेठा को सीताराम वाला कपसेठा कहने जानने लगे थे।

 सर सीताराम जी का जन्म सन 1912 में ग्राम कपसेठा हिलाला में हुआ था। भव्य देवमूर्ति जैसा स्वरूप था उनका उन्नत ललाट और नुकीली तीखी नाक वाले सर सीताराम जी की चाल धीमी सिंहवंत ध्वनि वाली चाल थी, बड़ी-बड़ी आंखों वाले सर साहेब अजानबाहु थे, शरीर गंठा था और भुजदण्डों में उनके कसाव था, सुधर थे वे। सबसे बड़े भाई होने के कारण उन्होंने पिता के सपनों को स्वीकार करने का भगीरथ संकल्प लिया और सबको शिक्षा से जोड़ने का उपक्रम किया। चचेरे भाई शिवशंकर जो सात्विक वृत्ति के घोर कर्मठ किसान थे, के सहयोग से सभी को श्रम एवं शिक्षा की डगर पर आगे बढ़ाया,वे अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बल पर उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी के छात्र बने और वही से उच्च शिक्षा के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय गए। वर्ष 1937 में भौतिक विज्ञान से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की, तहसील लालगंज और डोमी ताल्लुके में वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने फिजिक्स में एम0एस0सी किया था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय आपने वी0टी0 किया और फिर भी शिकोहाबाद में अध्यापन कार्य किया। उदय प्रताप कॉलेज में आप भौतिकी के प्रवक्ता बने। हॉकी, फुटबॉल में आपकी रूचि को देखते हुए वहां क्रीडा अध्यक्ष बनाया गया, स्वर्गीय बटुक सिंह, स्वर्गीय राम उग्रसेन, आचार्य बीरबल, प्रोफेसर एस0के सिंह, बाबू गिरिराज शरण सिंह से आपकी आत्मीयता प्रगाढ़ होती गयी, देश में स्वतंत्रता का आंदोलन चल रहा था डोमी में रामनरेश सिंह, राम लखन सिंह विभुनपुर के स्वर्गीय राजवंत सिंह और आचार्य बीरबल सिंह ने अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध अनवरत जन जागरण चलाया यूपी कॉलेज में उस जमाने में 10ः00 बजे छात्रों को पंक्तिबद्ध खड़े होकर प्रार्थना करनी होती थी, इसकी व्यवस्था सर सीता राम सिंह के जिम्मे थी।

 बाबू राम लोचन सिंह जी भूगोल के विशुद्ध विद्वान और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अध्यक्ष भूगोल विभाग ने जो यूपी कॉलेज के पूरा छात्र थे। पूछा कि आखिर  यह जो प्रार्थना आप कराते हैं उसका पालन भी क्या होता है सीताराम सिंह जी सोच में डूब गए कोई उत्तर नहीं दिया पर जिस देश जाति में जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जाए पर उन्होंने बार-बार विचार किया। बनारस से साइकिल चला कर व,े अपने गांव वापस लौटे उन्होंने उमरी के राजा राम ंिसह, दरोगा सिह, माटी के राम बुखार सी बरबीघा के फतेह बहादुर सिंह अमरोहा के एसके सिंह मूर्खा के गिरिजा शरण सिंह रामापुर के अयोध्या से विशुनपुर के बाबू तुलसी से बंसराज सिंह राम लखन सिंह सेनापुर के बाबू रामाज्ञा थी रामधारी सिंह आदि से मिलकर एक संकल्प लिया कब से था मैं पूरा परिवार शिव शंकर व स्वर्गीय  बाबू मथुरा से हैं बैजनाथ से हैं पत्थर से हैं रामाज्ञा सिंह अयोध्या से हैं तुलसी से हैं किटको के राम सागर से हैं राजा राम सिंह संभाल रहे थे उन्होंने स्वर्गीय दीनानाथ सिंह शिवशंकर को नौकरी दिलाई व अपने छोटे भाइयों को पढ़ने लिखने की अनवरत प्रेरणा दी वर्तमान में मथुरा नगर में नेशनल ट्रस्ट ने हाई स्कूल की स्थापना करती थी हिसामपुर के मारकंडेय से हैं ठंडी के रामलगन सिंह इस  संस्था से जोड़ने वाले डोमी के चौधरी लोग थे। जिन्होंने गया धोनी के दशमा चौधरी लोगों की अनवरत मनोहर और आदमी आ ग्रहों से प्रभावित होकर उन्होंने गणेश राय हाई स्कूल के प्रधानाचार्य का पद स्वीकार किया और अपनी प्रगति सुख सुविधा बच्चों के भविष्य और इस संस्था को अपने पूर्वज श्री गणेश राय का नाम दिया था। स्वर्गीय राम प्रसाद सिंह को पहला प्रधानाचार्य बनाया विकास की निजता को छोड़ा स्वर्गीय सीताराम सिंह जी ने अपनी संस्था को विकसित करने का निरंतर अथक प्रयास किया और शिक्षा तथा क्रीडा के क्षेत्र में गुणवत्ता को तरजीह देते हुए जनपद में टीडी कॉलेज के बाद दूसरे पायदान पर खड़ा कर दिया। 

   10 वर्षों के अविरल पर याद से जनपद की सबसे बड़ी संस्था के रूप में शहर सीताराम जी ने इस प्रतिष्ठित कर दिया कला विज्ञान कृषि वाणिज्य इंटर तक की पढ़ाई कराने वाला जनपद का इकलौता इंटर कॉलेज बनाने में सफल हो गए बाबू राम लगन सिंह बाबू नंदन सिंह बाबू लाल बहादुर सिंह का स्नेह और विश्वास फलीभूत हो गया । बाबू इंद्र बहादुर सिंह, इंद्रपति , हंसराज सिंह, श्री सत्यनारायण  बाबू हरिहर सिंह , बाबू राममूर्ति सिंह, कोतवाल नामधारी इंद्रदेव सिंह, श्याम कन्हैया सिंह, मुंशी सिंह , हरिहर पांडे, काशी नाथ पांड,े त्रिभुवन सिंह, राजदेव सिंह ,रामनरेश सिंह, महेंद्र विक्रम सिंह, गिरिजा शंकर लाल और अवध बिहारी तथा शंकर सिंह इंद्रजीत सिंह जैसे समर्पित अध्यापक हरिशंकर बैजनाथ जैसे कार्यालय से बागियों के बल पर उन्होंने शिक्षा और क्रीडा के क्षेत्र में वाराणसी मंडल में सर्वोच्च स्थान बनाया नाम नाम कमाया था ।

 सर सीताराम जी एक साथ ही कई मोर्चों पर संघर्षरत थें ं। पारिवारिक मुद्दों पर क्षेत्र में पैड बनाने के लिए उन्होंने ऊंचे गांव के कोशिको सूरजपुर के सूर्यवंशी निकुंभ हो आरा छपरा के चंद्रवंशी बोरा के चंद्रवंशी गहर बारू सुल्तानपुर के राजकुमार सोनवानी दूर 1 सीटों से वैवाहिक संबंध बनाए सूरजपुर के इंद्र बहादुर सिंह पर मेंद्र सिंह कल्पना सिंह  मोरा के राज नारायण सिंह दीप नारायण सिंह प्रमुख कार्य गोपालपुर के राजनाथ सिंह प्रमुख जी से रिश्तेदारी की सिद्ध होना के केडी करवा के राम अवध प्रधान नाही कोशिक धोनी के रामधारी सिंह राजवंत सिंह राम लखन सिंह राम लोचन सिंह बेहड़ा बराई के फौजदार सिंह डॉक्टर अमर सिंह डॉक्टर मौला सिंह डॉ हरिहर सिंह गोरखनाथ से अकबरपुर के फूल सिंह अवधेश सिंह सर सीताराम के चाहने वाले लोग थे विधायक राम शब्द भगवान राम और लक्ष्मी शंकर यादव सर सीताराम के आज भक्त बने रहे पढ़ा लिखा कर उन्होंने स्वर्गीय राम राज सिंह स्वर्गीय सर्वदेव सिंह को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नौकरी दिलवाई देवनाथ को निदेशालय में सूर्यनाथ को परिस्थितियां स्कूल में भर्ती कराया मास्टर बनाएं। भाई पद्म देव के पुत्र को जयप्रकाश के रात में प्रवक्ता बनाया था अपने भाई राजा राम के पुत्र त्रिलोकी रविंद्र आदि को पढ़ाया लिखाया और सेवा आयोजित भी कराया अपनी बड़ी पुत्री स्नेहा का सरकारी इंजीनियर से छोटी पुत्री पुष्पा का डॉक्टर श्रीनाथ से विवाह कराया जो यूपी कॉलेज में प्रोफेसर बने बड़े पुत्र अग्रवाल कॉलेज के प्रवक्ता श्री महेंद्र सिंह का विवाह मोहरा में प्रमुख जी की भतीजी से इंजीनियर उपेंद्र का राज नारायण सिंह की पुत्रों से कराया। अपनी छोटे पुत्र इंजीनियर सुरेंद्र सिंह का विवाह उन्होंने राज्यपाल त्रिभुवन सिंह की पुत्री से संपन्न कराया इस प्रकार उन्होंने अपने और अपने परिवार को डोली तालुके में सर्वोच्च तथा शीर्ष स्थान पर प्रतिष्ठित कर दिया शिक्षा और सामाजिक संबंधों में भी शिखर व्यक्तित्व के स्वामी बने जिनके शिष्यों ने उन्हें आजमगढ़ जौनपुर गाजीपुर वाराणसी से लेकर बिहार तक सम्मानित अभिजन का रुतबा दिलाया घर की मुखिया के रूप में शिक्षा और सेवा तथा सम्मान का जो विधान उन्होंने खड़ा किया उसकी क्षमता डोली में आज तक कोई कर नहीं सका है चचेरे भाई बाबू दीनानाथ सिंह पुलिस में भर्ती हो गए थे आगे दरोगा बनते पर बच्चों की जिम्मेदारी बनारस और घर के मुंह में भी कार्यालय में मुंशी या परिवहन पुलिस में रहकर रामराज सिंह उपेंद्र उपेंद्र सिंह बने बैंक मैनेजर बाबू राम राजू सिंह प्रयाग विश्वविद्यालय में संपत्ति अधिकारी बने।

 जिन्होंने अपनी सभी भाइयों को शिक्षा ईमान और साफगोई से रहने का सलीका दिया स्वर्गीय राम राम सिंह के छोटे भाई राम जन्म की अकाल मृत्यु हो गई ऐसे समय में स्वर्गीय राजनाथ सिंह ने उनकी पत्नी को हाई स्कूल इंटर पास कराया तथा मृतक आश्रित श्रेणी में उन्हें नौकरी से  जोड़ा  आगे विनायक आदि को स्वर्गीय रामराज सिंह ने विश्वविद्यालय में काम दिलाया और परिवार को व्यवस्थित किया बाबू सम्मुख सिंह बैंक से जुड़े भाई श्री राधेश्याम के बच्चे बैंक तथा मेडिकल आदि से जुड़े एक ही पुत्र हैं बाबू राम राज के डॉक्टर सत्य प्रकाश सिंह जो संप्रति पीजी कॉलेज के प्राचार्य। और उनके दोनों पुत्र विदेश और देश में व्यवस्थित हैं। स्वर्गीय दीनानाथ जी के दो पुत्रों ने लखनऊ में स्थाई निवास बना लिया है भूपेंद्र और जनार्दन के पुत्र इंजीनियर हैं बाबू उपेंद्र के पुत्र जज और एसडीएम रैंक से सेवानिवृत्त हैं । इस प्रकार स्वर्गीय सीताराम सिंह जी के वंश के वृक्ष की समस्त शाखाएं अब स्वयं वृक्ष बन गए हैं और संजय विनय गांव लौट आए हैं भाई दुर्गा प्रसाद सिंह कपसेठी के प्रतीक पुरुष बन गए हैं। भगति में भारत जैसे समर्पित और साधु पुरुष हैं पूरे क्षेत्र में सबसे बड़ी उपज के किसान हैं अकेले दम पर 100 शब्दों को निभाते हैं भाई बंदी के लिए खातिरदारी के लिए जाने जाते हैं बेटी बहू इंजीनियर व्यवसाई हैं और खुद भाजपा के सेक्टर प्रभारी संयोजक और क्षेत्रीय नेता है गांव में रहकर परिवार की इज्जत आबरू के पहरेदार हैं वे नेशनल ट्रस्ट धोनी के आजीवन अध्यक्ष रहे हैं स्वर्गीय लाल बहादुर सिंह पर पूरा पूर्वांचल पुण्य भूमि का प्रबंधक मानता रहा भोजपुरी की कहावत है सिर बड़ा सरदार का के मूर्ति प्रभाव विग्रह यह वकील साहिब चार चार बार 42 से विल यू विधायक एवं दुग्ध संघ के अध्यक्ष रहे वकील साहिब 1948 से 1971 तक सीताराम संस्था के प्राचार्य रहे वकील साहब से सर के मतभेद तो होते रहे पर उनमें मनभेद आजीवन नहीं हो पाए चापलूसी कंफू कथा लोगों को सुना दोनों ने पर उनकी चाल कभी सफल हो नहीं पाई धोनी की शुचिता भाई अब और तालुको दोनों से निभाया भरपूर

  सर सीताराम ने 19 6465 में कंचन सिंह के सहयोग से डिग्री कॉलेज विज्ञान वर्ग में खोला और महामहिम राज्यपाल उत्तर प्रदेश ने उन्हें विशेषाधिकार से प्राचार्य बनाय।ा प्राचार्य  सर सीताराम की उपलब्धियों की एक लंबी श्रृंखला है वे जनपद के प्राचार्य के अध्यक्ष बने उप शिक्षा निदेशक वाराणसी ने 10 वर्ष तक उन्हें जनपदीय मंडलीय क्रीड़ा अध्यक्ष बनाए रखा माध्यमिक शिक्षक संघ के आर एन आर आई हरिहर पांडे ओम प्रकाश शर्मा पंचानन राय ने उन्हें  आदर्श प्रधानाचार्य माना शिक्षक विधायक स्वर्गीय नारायण सिंह डॉक्टर राजनाथ सिंह ने सर साहिब की संयोगिता को सर्वोच्च माना था डॉक्टर हरगोविंद सिंह डॉक्टर राम लखन सिंह उन्हें सर्वोपरि सम्मान देते थे राम संभवन वह राम सागर जैसी विधायक उनके पैर छूते थे कहा जाता है कि सबसे अच्छे प्रशासक भी होते हैं जो शासन कम करते हैं सर सीताराम ऐसे ही प्रशासक थी जो मुस्कुराकर असहमति को सहमति में बदलने में माहिर अपने जागृत विवेक से आत्मविश्वास का अमोघ अस्त्र उन्होंने पाया था क्षेत्र के गणमान्य प्रधानाचार्य व स्वर्गीय डॉ राम सिंह स्वर्गीय ब्रह्मा देव सिंह अवधेश सिंह स्वर्गीय राजनाथ सिंह स्वर्गीय रामसूरत राय उनके परिजनों में शामिल थे इसके बाद भी सर साहेब माध्यमिक शिक्षा परिषद की कई कई समितियों के संयोजक और सदस्य थे अपने जीवन काल में उन्होंने लगभग 200 लोगों को शिक्षण क्षेत्र में सेव आयोजित किया स्वर्गीय जंग बहादुर सिंह स्वर्गीय हरीश चंद्र रामकेश जी पांचू राम डॉक्टर सत्येंद्र राम अवतार डॉ अशोक तेज प्रताप सिंह विक्रम सिंह महेंद्र गिरिराज शंकर लाल आदि के साथ ही अनेक लोगों को टीडीकॉलेज राम कॉलेज समोधपुर में डिग्री कॉलेजों में सेवा में आयोजित कराया लगभग 102 भी की लोगों को स्कूलों कॉलेजों अनपरा लाल कुआं में नौकरी दिलवाई सिफारिश किया और खुद चलकर उन संस्थानों तक कहीं भी इस दृष्टि से भी ताल्लुक की महामानव थे उनके बाद धोनी के इस महान कर्मयोगी प्राचार्य हुए डॉ विजय प्रताप सिंह जिन्होंने मृत्यु उपरांत साहेब की अथक सेवा की व्यवस्था की।

   सर सीताराम साहेब एक अच्छे प्राध्यापक और प्रवक्ता थे बहुत कि जैसे विषय में भी सहजता सरलता से छात्रों को बोधगम्य कराते थे पत्र लेखन और पत्राचार की ड्राफ्टिंग में होने महारत हासिल थी विद्वान अंग्रेजी प्रवक्ता शंभू रत्न स्वर्गीय बाबू राम मूरत सिंह उनके लेखन के अद्भुत प्रशंसक थे वे अपने सहकर्मियों से वादियों के लिए एक आदर्श प्राध्यापक और सहिष्णु प्राचार्य थे वे अनूठे और अनुकरणीय सोच सम्यक के व्यक्तित्व के स्वामी थे खाने पीने खाने खिलाने के शौकीन थे और सबसे महंगी मछली कटिया के गोले और ब्रेसलेट धोती तथा मोड वाली महंगी छड़ी में फॉर रीडिंग पहनकर टहलने निकलते थे वे खुद की मोड पर उदयीमान सिंह के पेट्रोल पंप पर हर शाम जाते थे जो भी प्यार सम्मान से मिलता था उसकी हालचाल खुशी शर्मा पूछते थे सैकड़ों लोगों को भी नाम से बुलाते थे अपने छात्रों की पढ़ाई कठिनाई को आत्मीय भाव से पूछते रहते थे डॉ अशोक सिंह को इलाहाबाद पहुंचाने डॉक्टर प्रोफेसर जसवंत सिंह को बीएचयू में जाने डॉक्टर के एन पांडे को स्थापित करने में उनका बड़ा योगदान था स्वर्गीय कंचन सिंह ढिल्लों कैसे हैं राजदेव हवलदार सिंह दशरथ मुनि कुछ नहीं किए रामधारी भैया विशुनपुर के प्रधान डॉ पाठक डॉ राम रोग डॉक्टर नरेश आलिया के प्रधान पद से हैं लेवा के संगठन सिंह आदि अनेक कृपा भजन लोगों में थे वेज से तुम  कहकर भुला देते थे वे लोग छात्रों को या अध्यापक सभी भाव विहीन हो जाते थे ।ग्रीष्मावकाश था छात्र नहीं थे पर उनकी शोक सभा से जब डॉक्टर विजय प्रताप ने जो प्रस्ताव रखा ।और शिव प्रसाद जी ने प्रस्ताव पढा़ तो पूरा हाल पढा़ सत्र और डबा डब गया था।इतनी बड़ी शोक -सभा फिर किसी की भी हम नहीै कर पाये हजारो लोग फील्ड में आंसू पोछते ढिरने हमें। स्व0 बाबू हरिहर सिंह , कंचन सिह हंस राज सिंह, इन्द्र पति सिंह, सोमपति  मुरवी के ठाकुर प्रसाद सिह रामआश्रम सिंह , उदयमान सिंह मौलवी दादा  बाबू रामकेर सिंह कनौरा के बद्री सिंह ------ के सरगना गडौली के मातबर सिह चेतबर के मंुशी दुखी राम प्रधान शिव शंकर , गौरी शंकर ,चन्द्रबली सिंह, बाबू चेतन रायन, विजय नारायन कचंजहित के पृथ्वीपाल सिंह उनके आजीवन अंत रंग बने रहे ।

  आज सर सीताराम सिंह हमारे बीच नहीं हैं पर आज भी वे बडा़ें प्रौढ आबादी की स्मृति में विद्यमान हैं।


आपकी पवि़त्र स्मृति को शत-शत नमन ।


गरल विन्दु होठों पे टपका किया ,

  जिन्दगी जिसने पर मुस्कुरा कर जिया

जिनकी इंसानियत के बड़े नाम थे

                                                                      इसी डोमी में पहले सीताराम थे।
























Wednesday, August 24, 2022

हनुमान चालीसा

हम सब #हनुमान_चालीसा पढते हैं, सब रटा रटाया।

क्या हमे चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं या क्या मांग रहे हैं?

बस रटा रटाया बोलते जाते हैं। आनंद और फल शायद तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी पता हो।

तो लीजिए पेश है श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित!!

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श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।
📯《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।★
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।★
📯《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।★
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥★
📯《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥★
📯《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।★
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥★
📯《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।★
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥★
📯《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।★
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥★
📯《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★
📯《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।★
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥★
📯《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।★
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥★
📯《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।★
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥★
📯《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।★
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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥★
📯《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।★
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥★
📯《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।★
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।★
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥★
📯《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥★
📯《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।★
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥★
📯《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥★
📯《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।★
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥★
📯《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।★
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥★
📯《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।★
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥★
📯《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥★
📯《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥★
📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।★
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥★
📯《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।★
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥★
📯《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥★
📯《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।★
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥★
📯《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।★
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥★
📯《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।★
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥★
📯《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥★
📯《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥★
📯《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।★
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥★
📯《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥★
📯《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥★
📯《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।★
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥★
📯《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★
📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥★
📯《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥★
📯《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।★
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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★
📯《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।★
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥★
📯《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥★
📯《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।★
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥★
📯《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।★
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🌹सीता राम दुत हनुमान जी को समर्पित🌹
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जय जय श्री राम🙏

Tuesday, February 1, 2022

साहित्य समाज का दर्पण है

साहित्य संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। साहित्य समाज का दर्पण है। संस्कृति से हमारी सांस्कृतिक पहचान पैदा होती है। साहित्य समाज सापेक्ष होता है। भौगोलिकता, सामाजिकता, प्रादेशिकता आदि का साहित्य में विशेष प्रभाव निहित होता है। फिल्मे, टेलीविजन, विविध माध्यमों में साहित्य का दृश्य स्वरूप प्राप्त होता है। समाज की वास्तविकता का रूपायन साहित्य के द्वारा होता है। वेदकालीन साहित्य, बौद्ध व जैनकालीन साहित्य, भक्त्तिकालीन साहित्य, ब्रिटिशकालीन साहित्य तथा आधुनिक कालीन साहित्य में कई साहित्यकारो का योगदान प्राप्त हुआ है। उन्होंने अपने साहित्य में अपने समय के समाज की स्वच्छता को प्रतिबिंबित किया है। प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में स्वच्छता के चित्र अंकित किये हैं।     

Tuesday, January 11, 2022

स्वामी विवेकानंद

उत्तिष्ठत जाग्रत .....

"उठो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए"
(स्वामी विवेकानंद जी)
  आधुनिक विश्व को भारतीय परंपरा और तत्त्वज्ञान से परिचित कराने और प्रभावित करने वाले  में भारतीयों में सर्वाधिक योगदान  देने वाले  आज का #आइकॉन स्वामी विवेकानंद का है। अपने प्रकांड ज्ञान, प्रखर तर्कशक्ति, निष्कलंक चरित्र, अटूट आत्मविश्वास और वाणी से  उन्होंने ऐसा चमत्कार कर दिखाया, जो  आज भी याद की जाती हैं।लेकिनआज उसी भारत से यह भी कहने वाले मिल रहे हैं।
भारत के #टुकड़े टुकड़े करने वाले, भारत की बर्बादी तक जंग जारी रखने वाले, स्वामी विवेकानंद की मूर्ति तोड़ने वाले, हिंदुत्व को गाली व हिंदुत्व कब्र खोदने वालों की आवाज  जो आज मीडिया से मिल रही हैं।
(उन्हें भी सद्बुद्धि आ जायेगी)  उन्हें विवेकानंद के विचारों की एक विलक्षण बानगी है उनकी कला-दृष्टि और उनके भाषापरक विचार, जो उनके व्याख्यानों, पत्रों और वार्तालापों में यत्र-तत्र बिखरे पड़े है जैसे कहा जाता है कि एक बार स्वामी विवेकानंद जी किसी स्थान पर प्रवचन दे रहे थे । 


श्रोताओ के बीच एक मंजा हुआ चित्रकार भी बैठा था । उसे व्याख्यान देते स्वामी जी अत्यंत ओजस्वी लगे । इतने कि वह अपनी डायरी के एक पृष्ठ पर उनका रेखाचित्र बनाने लगा।प्रवचन समाप्त होते ही उसने वह चित्र स्वामी विवेकानंद जी को दिखाया । चित्र देखते ही, स्वामी जी हतप्रभ रह गए । पूछ बैठे - यह मंच पर ठीक मेरे सिर के पीछे तुमने जो चेहरा बनाया है , जानते हो यह किसका है ? चित्रकार बोला - नहीं तो .... पर पूरे व्याख्यान के दौरान मुझे यह चेहरा ठीक आपके पीछे झिलमिलाता दिखाई देता रहा।यह सुनते ही विवेकानंद जी भावुक हो उठे । रुंधे कंठ से बोले - " धन्य है तुम्हारी आँखे ! तुमने आज साक्षात मेरे गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस जी के दर्शन किए ! यह चेहरा मेरे गुरुदेव का ही है, जो हमेशा दिव्य रूप में, हर प्रवचन में, मेरे अंग संग रहते है ।**मैं नहीं बोलता, ये ही बोलते है । मेरी क्या हस्ती, जो कुछ कह-सुना पाऊं !  वैसे भी देखो न, माइक आगे होता है और मुख पीछे। ठीक यही अलौकिक दृश्य इस चित्र में है। मैं आगे हूँ और वास्तविक वक्ता - मेरे #गुरुदेव पीछे !"
खैर
  सन 1901 में बेलूर मठ में कलकत्ता जुबली आर्ट अकादमी के संस्थापक और अध्यापक रणदाप्रसाद दासगुप्त से हुई उनकी लंबी बातचीत इस दृष्टि से एक उल्लेखनीय प्रसंग  भी इसी प्रकार है।
विवेकानंद नाट्य विद्या पर एक बोधप्रद टिप्पणी करते हुए उसे कलाओं में कठिनतम इसलिए बताते हैं कि यह एक साथ दो ऐंद्रिक संवेदनों को प्रभावित करती है। वे लिखते हैं- ‘नाटक सब कलाओं में कठिनतम है। उसमें दो चीजों को संतुष्ट करना पड़ता है- पहले कान, दूसरे आंखें। दृश्य का चित्रण करने में अगर एक ही चीज का अंकन हो जाए, तो काफी है, पर अनेक विषयों का चित्रांकन करके भी केंद्रीय रस अक्षुण्ण रख पाना बहुत कठिन है। दूसरी मुश्किल चीज है मंच-व्यवस्था, यानी विविध वस्तुओं को इस तरह विन्यस्त करना कि #केंद्रीय रस अक्षुण्ण बना रहे।
  ’हम वो हैं, जो हमें हमारी सोच ने बनाया है। इसलिए इस बात का धयान रखें कि आप क्या सोचते हैं। जैसा आप सोचते हैं वैसे बन जाते हैं। उद्बोधन’ के ही एक अन्य प्रसंग में वे लिखते हैं कि, ‘क्रियापदों का अत्यधिक प्रयोग लेखन को कमजोर बनाता है। क्योंकि इससे भाव ठहर से जाते हैं।’ 

 स्वामी विवेकानंद की कला तथा साहित्यपरक दृष्टि और अंत में, इस आधुनिक राष्ट्रगुरु की एक विलक्षण उक्ति, जिसे पढ़ कर सहसा विश्वास नहीं होता कि धर्म और अध्यात्म के पथ का पुरोधा एक संन्यासी यह बात कह रहा है, अवलोकनीय है: ‘नाटक और संगीत स्वयं धर्म है, कोई भी गीत क्यों न हो, प्रेम गीत हो या कोई अन्य गीत कोई चिंता नहीं। अगर उस गान में कोई व्यक्ति अपनी पूरी आत्मा उड़ेल दे तो बस उसी से उसको मुक्ति मिल जाती है।आज का सौभाग्यशाली_भारत

पुनश्च...

स्वामी जी  की  #आत्मकथा  के  #अन्तिमपृष्ठ   आत्मकथ्य
************   12 जनवरी  वैश्विक पटल पर
स्वामी जी  का अवतरण। 
         *********
स्वामी जी के जीवन के संदर्भ में  मैं  #आखिरी #समय में उनके   " #आत्मकथ्य  " आप मित्रों के समक्ष   " #उनके अपने ही #शब्दों  में  ""            **************************
बेलूर  मई  १९०२
*****************। सुनो  , मैं  ४० चालीस  की  दहलीज नहीं पार कर पाऊँगा। मुझे जो कुछ कहना था, कह दिया है।मुझे अब #जाना ही #होगा।

बड़े पेड़ की छाया में छोटे छोटे पौधों का विकास नहीं हो पाता। वह बढ़ नहीं पाते  । जगह खाली करने के लिए मुझे जाना ही पड़ेगा  ।
#मृत्यु  मेरे  #सिरहाने खड़ी है  । ""
***************************
२१  जून  १९०२ बेलूर
**********************  सुनो , शरीर  अब ठीक। नहीं होने का। कभी  स्वस्थ नहीं  होगा  ।  यह चोला त्याग कर नया शरीर लाना होगा। अभी भी ढेरों काम पड़ा है।

सुनो  " मैं  मुक्ति फुक्ति नहीं चाहता। जब तक सबके  सब मुक्त नहीं  होते
तब तक मेरा निस्तार नहीं।
#मुझे_बार_बार  #आना_होगा  । ""
************************
बेलूर  ०२  जुलाई  १९०२
**************************  " मैं  मृत्यु के लिए प्रस्तुत हो रहा हूँ  । किसी महा तपस्या और ध्यान के भाव ने मुझे आछन्न कर लिया है और मैं #मृत्यु के लिए तैयार हो रहा हूँ।
*********     बेलूर  ४ जुलाई  १९०२  "
                 **************************
"" जब जब मृत्यु मेरे निकट आती है  ,मेरी। सारी कमजोरी चली जाती है। उस वक्त  भय - संदेह - बाहरी जगत् की चिंता सब समाप्त हो जाती है  मैं। अपने को सिर्फ मृत्यु के लिए प्रस्तुत करने में ही व्यस्त रहता हूँ  ।

"" जो  सोचता है कि  वह जगत का कल्याण करेगा  ,
वह  अहमक है। लेकिन  हमें  अच्छा काम करते रहना होगा  - अपने अपने  बंधनों की परिसम्पत्ति के लिए।""
************
                   " मेघ  हल्के  होकर  अदृश्य  होते  जा रहे हैं - मेरी  दुष्कृत्यों  के  मेघ ।   अब  #सुकृत्यियों  का  ज्योतिर्मय  #सूर्य  उदय  हो रहा  है। अब  मैं  स्थिर  और  प्रसान्त  हो  गया  हूँ। 
                            पहले  ऐसा  नहीं  था  ।
मेरी  तरणी  मेरी  जीवन नौका  धीरे धीरे  शान्ति  के
तट के निकट  होती  जा रही  है  ।
अब  मेरी  कोई  इच्छा  - आकांक्षा  नहीं  है  ।
मैं  तो   रामकृष्ण  का  दास  हूँ  ।

जय  हो  " माँ  " !  जय हो !!  माँ   जय  हो  !!!

1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा हुई थी, जिसमें विवेकानंदजी ने भाषण दिया। इस भाषण के बाद वैश्विक रूप से उन्हें काफी ख्याति मिली थी। उनके इस भाषण के प्रभाव से ही कई अंग्रेजी लोग भारत की संस्कृति से प्रभावित हुए और #आध्यात्मिक सुख के लिए भारत भी आए।

जितना हम दूसरों के साथ अच्छा करते हैं उतना ही हमारा हृदय #पवित्र हो जाता है और भगवान उसमें बसता


1-स्वामी विवेकानंद की चिंतनधारा सनातनी ब्राह्मण-धारा के ठीक उलट है. वह भारतीय चिंतन परम्परा की वैंदातिक धारा से लेकर बौद्ध और अन्य गैर-ब्राह्णवादी धाराओं से भी बहुत कुछ ग्रहण करते हैं।


2-स्वामी विवेकानंद ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन से परिचय करवाया और वैश्विक मंच पर दृढ़ता के साथ हिन्दूत्व के विचार को प्रस्तुत किया।


3-स्वामी विवेकानंद का दृढ़ विश्वास था कि आध्यात्मिक ज्ञान और भारतीय जीवन दर्शन के द्वारा संपूर्ण विश्व को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इसी जीवन दर्शन के द्वारा भारत को भी क्रियाशील और शक्तिशाली बनाया जा सकता है।


4-

विवेकानंद का सामाजिक दर्शन श्रीमद्भगवद्गीता के 'कर्मयोगी' की अवधारणा से प्रेरित है। उनका मानना था कि राजनीतिक और सामाजिक स्वतंत्रता के आधुनिक पश्चिमी विचारों को 'स्वतंत्रता' की परंपरागत भारतीय धारणा से तालमेल बैठाने की जरूरत है। 


 उनका मत था कि सामाजिक कर्तव्य पालन और सामाजिक सौहार्द के जरिये ही सच्ची स्वतंत्रता पाई जा सकती है।


5-विवेकानंद का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने औपनिवेशिक शासन से मुक्ति के लिए संघर्ष को आध्यात्मिक आधार दिया और नैतिक व सामाजिक दृष्टि से हिन्दू समाज के उत्थान के लिए काम किया।


6-विवेकानंद ‘मनुष्यों के निर्माण में विश्वास‘ रखते थे। इससे उनका आशय था शिक्षा के जरिए विद्यार्थियों में सनातन मूल्यों के प्रति आस्था पैदा करना। 



 7-विवेकानंद की मान्यता थी कि शिक्षा, आत्मनिर्भरता और वैश्विक बंधुत्व को बढ़ावा देने का जरिया होनी चाहिए।


विवेकानंद की रसोई

...


ऐसा कौन-सा देश है, जिसमें सम्राट, संन्यासी और सूपकार तीनों को एक ही नाम से पुकारा जाता है? उत्तर बहुत सरल है। वह देश है भारत। और वह नाम है "महाराज"। एक भारत ही ऐसा देश है, जिसमें सम्राट भी "महाराज" कहलाता है, संन्यासी भी और सूपकार यानी "रसोइया" भी!


स्वामी विवेकानंद के जीवन के बारे में अद्भुत आश्चर्यदृष्टि से भरी मणिशंकर मुखर्जी की किताब "विवेकानंद : जीवन के अनजाने सच" के एक पूरे अध्याय का शीर्षक ही यही है : "सम्राट, संन्यासी और सूपकार"। यह अध्याय भोजनभट विवेकानंद के विभिन्न रूपों का परीक्षण करता है और मणिशंकर मुखर्जी का दावा है कि भारत में भोजन-वृत्ति पर गहन चिंतन करने वाले ऐसे कम ही लोग हुए होंगे, जैसे विवेकानंद थे!


किसी ने नरेननाथ के बारे में उड़ा दी थी कि वे दक्षिणेश्वर में परमहंसदेव से मिलने इसीलिए गए थे कि वहां पर्याप्त सोन्देश और रोशोगुल्ले खाने को मिलेंगे। फिर किसी अन्य मित्र ने यह कहकर इस प्रवाद का खंडन किया कि नरेन और मिठाई! अजी नहीं, नरेन तो मिर्चों के रसिक थे!


स्वामीजी की रसोई में सचमुच बहुत मिर्च होती थी! 


18 मार्च 1896 को स्वामीजी डेट्रायट में अपने एक भक्त के यहां ठहरे थे। उससे उन्होंने अनुमति ली कि भोजन पकाने की आज्ञा दी जाए। आज्ञा मिलते ही उनकी जेब से फटाफट मसालों और चटनियों की पुड़ियाएं निकलने लगीं। चटनी की एक बोतल को वे अपनी मूल्यवान सम्पदा मानते थे, जो उन्हें किसी भक्त ने मद्रास से भेजी थी।


जनवरी 1896 की एक चिट्ठी का मज़मून पढ़िये : "जोगेन भाई, अमचूर, आमतेल, अमावट, मुरब्बा, बड़ी और मसाले सभी अपने ठिकानों पर पहुंच चुके हैं। किंतु भूनी हुई मूंग मत भेजना, वह जल्द ख़राब हो जाती है!"


30 मई 1896 की एक चिट्ठी में विवेकानंद का वर्णन है कि किस तरह से उन्होंने सिस्टर मेरी को तीखी करी बनाकर खिलाई। उसमें उन्होंने जाफ़रान, लेवेंडर, जावित्री, जायफल, दालचीनी, लवंग, इलायची, प्याज़, किशमिश, हरी मिर्च सब डाल दिया और अंत में यह सोचकर खिन्न हो गए कि अब यहां विलायत में हींग कहां से खोजकर लावें!


स्वामीजी आम, लीची और अनानास के भी भारी रसिक थे। स्वामी अद्वैतानंद से उन्होंने एक बार कहा था कि जो व्यक्ति फल और दूध पर जीवन बिता सकता है, उसकी हडि्डयों में कभी जंग नहीं लग सकती। 


बेलुर मठ में ख़ूब कटहल लगते थे। अपनी एक विदेशिनी शिष्या क्रिस्तीन को लिखे एक पत्र में स्वामीजी ने "कटहल-महात्म्य" का अत्यंत सुललित वर्णन किया है। अलबत्ता अमरूद से स्वामीजी को विरक्ति-सी थी।


अमरीका में स्वामीजी का मन आइस्क्रीम पर भी आ गया था। कलकत्ते में जब पहले-पहल बर्फ आई थी तो गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट स्थित "दत्त-कोठी" भी पहुंच गई थी, जहां नरेननाथ रहते थे। अमरीका जाकर वे चॉकलेट आइस्क्रीम पर मुग्ध हो गए। बाद में जब स्वामीजी को मधुमेह हुआ और आइस्क्रीम खाने पर मनाही हो गई तो वे पोई साग पर अनुरक्त रहने लगे। एक बार तो स्टीमर से समुद्र यात्रा के दौरान पोई साग खिलाने पर ही उन्होंने एक प्रेमी-भक्त को दीक्षा दे डाली थी!


एक बार ऋषिकेश में स्वामीजी को ज्वर हो आया। पथ्य के रूप में उनके लिए खिचड़ी बनवाई गई। खिचड़ी स्वामीजी को रुचि नहीं। खाते समय खिचड़ी में एक धागा दिखा। पूछने पर पता चला कि गुरुभाई राखाल दास ने खिचड़ी में एक डला मिश्री डाल दी थी। स्वामीजी बहुत बिगड़े। राखाल दास को बुलाकर डांट पिलाई कि "धत्त्, खिचड़ी में भी भला कोई मीठा डालता है। तुझमें बूंदभर भी बुद्धि नहीं है रे!"


"स्वामी-शिष्य संवाद" नामक एक पुस्तिका में स्वामीजी ने भोजन के दोषों पर भी विस्तार से वार्ता की थी। यह पुस्तिका "विवेकानंद ग्रंथावली" में सम्मिलित है।


विवेकानंद जहां भी जाते : कौन कैसे खाता है, कितनी बार खाता है, क्या खाता है, इस सबका अत्यंत सूक्ष्म पर्यवेक्षण करते। फिर मित्रों को चिट्ठियां लिखकर विस्तार से बताते। 


एक चिट्ठी में उन्होंने लिखा : "आर्य लोग जलचौकी पर खाने की थाली लगाकर भोजन पाते हैं। बंगाली लोग भूमि पर खाना सपोड़ते हैं। मैसूर में महाराज भी आंगट बिछाकर दाल-भात खाते हैं। चीनी लोग मेज़ पर खाते हैं। रोमन और मिस्र के लोग कोच पर लेटकर। यूरोपियन लोग कुर्सी पर बैठकर कांटे-चम्मच से खाते हैं। जर्मन लोग दिन में पांच या छह बार थोड़ा थोड़ा खाते हैं। अंग्रेज़ भी तीन बार कम कम खाते हैं, बीच बीच में कॉफ़ी और चाय। किंतु भारत में हम दिन में दो बार गले गले तक भात ठूंसकर खाते हैं और उसे पचाने में ही हमारी समस्त ऊर्जा चली जाती है!"


स्वामी विवेकानंद के महापरिनिर्वाण के पूरे 40 वर्षों बाद बंगभूमि में भयावह दुर्भिक्ष हुआ था! अगर विवेकानंद होते तो उनकी आत्मा को भूखे बंगालियों का वह दृश्य देखकर कितना कष्ट हुआ होता! वे भूखों को भोजन कराने के लिए अपने मठ की भूमि बेचने तक के लिए तत्पर हो उठते थे। कहते थे कि जब तक भारतभूमि में एक भी प्राणी भूखा है, तब तक सबकुछ अधर्म है!


अपने एक शिष्य शरच्चंद्र को स्वामीजी ने चिट्ठी लिखकर भोजनालय खोलने की हिदायत दी थी। कहा था : "जब रुपए आए तो एक बहुत बड़ा भोजनालय खोला जाएगा। उसमें सदैव यही गूंजता रहेगा : "दीयता:, नीयता:, भज्यता:!" भात का इतना मांड़ होगा कि अगर वह गंगा में रुलमिल जाए तो गंगा का पानी श्वेत हो जाए। देश में वैसा एक भोजनालय खुलते अपनी आंखों से देख लूं तो मेरे प्राण चैन पा जाएं!"


अस्तु, स्वामी विवेकानंद की "भोजन-रस-चवर्णा" की गाथाएं भी उनके अशेष यश की भाँति ही अपरिमित हैं।


(आभार सुशोभित,रामाधीन सिंह जी)



Thursday, January 6, 2022

मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।।

https://youtu.be/NneX37VZTlo

https://www.facebook.com/watch/?v=205435937523014

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।।

हे कृष्ण!आपके होंठ मधुर हैं,आपका मुख मधुर है,आपकी आंखें मधुर हैं,आपकी मुस्कान मधुर है,आपका हृदय मधुर है,आपकी चाल मधुर है,मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण आपका सब कुछ मधुर है। 

Tuesday, December 28, 2021

तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं.......डॉ संतोष

तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं.......डॉ संतोष मिश्र जिला प्रतापगढ़ के लालगंज तहसील से आते हैं । स्याल्दे में 1997 से धूमिल के रंग में रसकर राजकीय महाविद्यालय स्याल्दे में हिंदी के प्राध्यापक पद पर B.A के बच्चों को पढ़ाना शुरू करते हैं। पहाड़ पर पहाड़ जैसी अपनी करनी की एक कलाकृति भी तैयार करते हैं ।वह  नई पौध को सींचते हैं , उच्च शिक्षारथ विद्यार्थियों को 10:00 से 3:00 pm के अलावा ।....इस नई  पौध  (बाल क्लब ) के सपनों को रंग भरते पेंसिल कागज रंग ब्रश धमाते उनकी दुनिया को भी सजा रहे थे।...इस दुबली काया से अनोखे कार्य भी करते ... जैसे मैराथन वाले, और संचार की सारी खूबियां  को उस पहाड़ पर जुगाड़ से चलाते भी रहते थे। गणित के विद्यार्थी जो ठहरे। बाल क्लब हो या कविता मंच सब कुछ अपने स्तर से सवार रहे थे। खुद अपने को लिख रहे थे। जानने वाले उनको सनकी और मुख्यधारा से कटा हुआ कहते ।कुछ का मानना था कि बड़े बहुत बड़े मठाधीश  है ....सबको साधते ....और उनके बीच से निकलते हुए वह अपने पैमाने गढ़ रहे थे ।
  हल्द्वानी आने के बाद भी वह अंगदान जैसा बड़ा कार्य अपने कुल में तो किया ही किया । हल्द्वानी  शहर में एक मुहिम सी  चला दी।

लोग कहते है कि एनएसएस के तहत पूरे हल्द्वानी में कपड़ा बैंक तो कहीं रोटी बैंक की मुहिम चली नहीं दौड़ी थी। 

यह सब कर रहे थे । जो जायज था लेकिन कुछ और भी किया जो प्रतापगढ़  को भी नागवार गुजरी , जात के ब्राह्मण हो कर भारतीय परंपरा और अपनी ब्राह्मणवाद पर भी कुठाराघात कर रहे थे। 

   जब अंगदान खुद की व पत्नी मां-बाप सबको करवाएं और बड़ी बात थी कि वह वे इकलौते पुत्र होते हुए भी। उस ब्राह्मणवाद को जिसकी जाति में  जन्मे थे ।उसके ही  कर्मकांड को बदल रहे थे। अपने स्तर से, और अपने विवेक  से । 

  वह मानसिक, शारीरिक और अपने  उस पुरखों से भी लड़ रहे थे जो स्वर्ग में बैठकर तर्पण का उनसे आस लगाए थे। 

   सब कुछ उटला के वे अपनी हठधर्मिता या अपने स्वविवेक से या कबीर पढ़ाते पढ़ाते कबीरा गए थे,व अपनी कहानी रच रहे थे। ऐसा ही कुछ वह संतान उत्पत्ति में भी कर चुके थे। कहते हैं  जिससे ससुराल पक्ष और पितृपक्ष दोनों लाचार हो गए थे।  यह सब चल ही रहा था  की आकर हल्द्वानी में आवास बनाते हैं और हल्द्वानी में हीं इस मास्टरी से सेवानिवृत्त का फैसला  भी ले लेते, और फैसला ही नहीं लेते उस पर उस को असली जामा भी पहना लेते हैं।

   वक्त बताएगा कि आने वाले कल में वह कौन सा इतिहास रखेंगे लेकिन एक बात जब इनको सोचता ,समझता  हूं तो... घनानंद की यह कविताएं  मेरे मन में बरबस ही  याद  आने लगती है।....तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं॥

1-
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥ 
घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं॥
2-
घनानंद के प्यारे सुजान सुनौ, जेहिं भांतिन हौं दुख-शूल सहौं।
नहिं आवन औधि, न रावरि आस, इते पर एक सा बात चहौं॥

यह देखि अकारन मेरि दसा, कोइ बूझइ ऊतर कौन कहौं।
जिय नेकु बिचारि कै देहु बताय, हहा प्रिय दूरि ते पांय गहौं॥