Saturday, August 31, 2024

चित्रलेखा

'चित्रलेखा : उपन्यास 
लेखक : भगवती चरण वर्मा 
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन 
पृष्ठ : 200 
मूल्य : 250 रु.
समीक्षा - डॉ सत्यमित्र

 चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहा है? इस उपन्यास का अंत इस निष्कर्ष से होता है कि संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। सम्मोहक और तर्कपूर्ण भाषा ने इस उपन्यास को मोहक और पठनीय बना दिया है।' 

भगवतीचरण वर्मा का यह उपन्‍यास समाज की दो समांतर वि‍चारधाराओं वैराग्‍य और सांसारि‍कता का वर्णन है। दोनों के बारे में वि‍चि‍त्र बात है कि‍ दोनों एक ही समाज में जन्‍म लेती है और दोनों का एक दूसरे से वि‍रोध है।  हारे , कभी मन के मारे ही वैराग्‍य  लेते। ये दोनों मनुष्‍य के लि‍ए बने हैं या मनुष्‍य ने इन दोनों को बनाया है। एक के रहते दूसरे का अस्‍ति‍त्‍व असंभव है। दोनों में वि‍रोध है। वि‍रोध होते हुए भी दोनों मनुष्‍य के बीच ही जीवि‍त हैं। वस्‍तुत: मनुष्‍य ने ही उन्‍हें जीवित रखा है। 


बीजगुप्त:-
बीजगुप्त भोगी है, उसके हृदय में यौवन की उमंग है और आंखों में मादकता की लाली। उसके विशाल भवन में भोग-विलास नाचा करते हैं। वैभव ही उसके बस में  है। ऐश्वर्य की उसके पास कमी नहीं है और उसके हृदय में संसार की समस्त राजसी भोग वासनाओं का निवास।

कहानी में तीन प्रमुख चरित्र चित्रलेखा-बीजगुप्त-कुमारगिरि का चरित्र चित्रण असाधारण है। कुमारगिरि योगी है। खुद उसका दावा है कि उसने संसार की समस्त वासनाओं पर विजय पा ली है।संसार से उसको विरक्ति है ।भोग में अनासक्ति है। और  उसने संसार को भी जान लिया है। उसमें तेज है प्रताप है. उसमें शारीरिक बल है और आत्मिक बल है।

चि‍त्रलेखा उसी समाज का हि‍स्‍सा जि‍सका हि‍स्‍सा कुमारगि‍री है। जि‍स सभा में चि‍त्रलेखा अपने नृत्‍य से सभासदों का मनोरंजन करती है, उसी सभा में कुमारगि‍रि शास्‍त्रार्थ करने आते हैं। चि‍त्रलेखा के ये वाक्‍य उसके वि‍लासी होने की प्रवृत्ति‍ को तर्कपूर्ण ठंग से सही ठहराते हैं - 'जीवन एक अवि‍कल पि‍पासा है। उसे तृप्त करना जीवन का अंत कर देना है।' और 'जि‍से तुम साधना कहते हो वो आत्‍मा का हनन है।' वह कुमारगि‍रि के वैराग्‍य का यह कहकर वि‍रोध करती है कि‍ शांति‍ अकर्मण्‍यता का दूसरा नाम है और रहा सुख, तो उसकी परि‍भाषा एक नहीं है।

कुमारगि‍रि तर्क देते हैं - 'जि‍से सारा वि‍श्‍व अकर्मण्‍यता कहता है, वास्‍तव में वह अकर्मण्‍यता नहीं है। क्‍योंकि‍ उस स्‍थि‍ति‍ में मस्‍ति‍ष्क कार्य कि‍या करता है। अकर्मण्‍यता के अर्थ होते हैं जि‍स शून्‍य से उत्‍पन्‍न हुए हैं उसी में लय हो जाना। और वही शून्‍य जीवन का नि‍र्धारि‍त लक्ष्‍य है।' 

  उपन्‍यास में घोषि‍त रूप से प्रेम और घृणा की खोज नहीं की गई है और न ही वि‍वेचना है लेकि‍न उपन्‍यास इस बात को भी स्‍पष्ट करता है कि‍ हम न प्रेम करते हैं न घृणा, हम वही करते हैं जो हमें करना पड़ता है अर्थात् प्रेम, घृणा या फि‍र छल।      
जब कुमारगि‍रि और चि‍त्रलेखा टकराते हैं तो दो वि‍परीत वि‍चारधाराएँ टकराती हैं और एक दूसरे को प्रभावि‍त करती हैं। संसार और वैराग्‍य में द्वंद्व होता है और प्रखर होकर कई रूपों में सामने आता है। कहीं वो प्रेम बनता है, तो कहीं वासना, कहीं घृणा बनता है तो कहीं छलावा। चि‍त्रलेखा के वि‍लासी होने के पीछे उसके अपने तर्क हैं और कुमारगि‍रि‍ के वि‍रागी होने के पीछे उसके अपने तर्क है। जीत-हार कि‍सी की नहीं होती क्‍योंकि‍ तर्क का अंत नहीं है। 

हालाँकि‍ उपन्‍यास की शुरूआत पाप और पापी की खोज, नि‍र्धारण और उसे परि‍भाषि‍त करने से होती है और एक तटस्‍थ उत्‍तर और परि‍णाम पर समाप्त होती है कि‍ पाप और पुण्‍य कुछ नहीं होता ये परिस्‍थि‍ति‍जन्‍य होता है। हम ना पाप करते हैं ना पुण्‍य, हम वो करते हैं जो हमें करना पड़ता है।

चित्रलेखा हँस पड़ी - 'आत्मा का संबंध अमर है! बड़ी विचित्र बात कह रहे हो बीज गुप्त! जो जन्म लेता है, वह मरता है, यदि कोई अमर है तो इसलिए अमर है, पर प्रेम अजन्मा नहीं है। किसी व्यक्ति से प्रेम होता है तो उस स्थान पर प्रेम जन्म लेता है। ...प्रेम और वासना में भेद है, केवल इतना कि वासना पागलपन है, जो क्षणिक है और इसलिए वासना पागलपन के साथ ही दूर हो जाती है, और प्रेम गंभीर है। उसका अस्तित्व शीघ्र नहीं गिरता। आत्मा का संबंध अनादि नहीं है बीज गुप्त।


"मनुष्य स्वतंत्र विचार वाला प्राणी होते हुए भी परिस्तिथियों का दास है ... यह परिस्थि-चक्र पूर्वजन्म के कर्मों का विधान हैं। मनुष्य की विजय वहीं संभव है जहां वह परिस्तिथियों के चक्र में पड़कर उसके साथ चक्कर न खाये..."

उपन्‍यास में घोषि‍त रूप से प्रेम और घृणा की खोज नहीं की गई है और न ही वि‍वेचना है लेकि‍न उपन्‍यास इस बात को भी स्‍पष्ट करता है कि‍ हम न प्रेम करते हैं न घृणा, हम वही करते हैं जो हमें करना पड़ता है अर्थात् प्रेम, घृणा या फि‍र छल।

उपन्‍यास की भाषा वि‍लक्षण है। तर्कों के जटि‍ल होने के कारण भाषा अत्‍यंत क्‍लि‍ष्ट है और देशकाल-वातावरण के अनुरूप है। समग्र रूप से चि‍त्रलेखा संपूर्ण मानव समाज पर एक प्रहार है जि‍सके दो चेहरे हैं।
लेखक अपनी कहानी के माध्यम से वासना को परिभाषित कर मनुष्य के जीवन में उसका उपयुक्त स्थान खोजने का प्रयत्न करते हैं। तपस्वी दृष्टिकोण से "वासना पाप है, जीवन को कलुषित बनाने का एकमात्र साधन है। वासनाओं से प्रेरित हो कर मनुष्य ईश्वरीय नियमों का उल्लंघन करता है, और उसमें डूबकर मनुष्य अपने को अपने रचीयता ब्रह्म को भूल जाता है ... ईश्वर के तीन गुण हैं - सत, चित, आनंद ! तीनों ही गुण वासना से रहित विशुद्ध मन को मिल सकते हैं ..." इस दृष्टिकोण से अपरिचित शिष्य अपने गुरु से एक महत्वपूर्ण प्रश्न कर बैठता है - "...वासनाओं का हनन क्या जीवन के सिद्धांतों के प्रतिकूल नहीं है ? मनुष्य उत्पन्न होता है, क्यूँ? कर्म करने के लिए। उस समय कर्म करने  के साधनों को नष्ट कर देना क्या विधि के विधान के प्रतिकूल नहीं है ? .


"संसार में पाप कुछ भी नहीं है, वह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष प्रकार की मन:प्रव्रत्ति लेकर उत्पन्न होता है - प्रत्येक व्यक्ति इस्स संसार के रंगमंच पर एक अभिनय करने आता है। अपनी मन:प्रव्रत्ति से प्रेरित होकर अपने पाठ को वह दुहराता है - यही मनुष्य का जीवन है। जो कुछ मनुष्य करता है, वह उसके स्वभाव के अनुकूल होता है और स्वभाव प्राकृतिक है। मनुष्य अपना स्वामी नहीं है, वह परिस्थितियों का दास है - विवश है। कर्ता नहीं है, वह केवल साधन है। फिर पाप और पुण्य कैसा?"

संसार से भागे फिरते हो (चित्रलेखा - 1964) Sansar se bhage phirte ho (Chitralekha - 1964)


साहिर ने लिखा...
संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे
इस लोक को भी अपना न सके, उस लोक में भी पछताओगे .
 
ये पाप है क्या, ये पुण्य है क्या, रीतों पे धरम की मुहरें हैं
हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे
 
ये भोग भी एक तपस्या है, तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचयिता का होगा, रचना को अगर ठुकराओगे
 
हम कहते हैं ये जग अपना है, तुम कहते हो झूठा सपना है
हम जन्म बिता कर जायेंगे, तुम जन्म गंवा कर जाओगे

हरी/लाल मिर्च

पढ़ना लिखना और गीत सुनना तो मेरा शौख ही रहा जैसे छू लेने दो नाजुक होठों को कुछ और नहीं बजता हुआ इस तरह के हजारों  गीत हमें बताता है की...ऊष्मा, शीत और स्पर्श संबधित हमारी संवेदनायें हमारे जीवन के लिए अत्यावश्यक है। इन्ही के द्वारा हम अपने आसपास के विश्व को महसूस करते है। अपने रोजमर्रा के जीवन मे हम इन संवेदनाओ को हम बहुत आसानी से लेते है लेकिन हमारा तंत्रिका तंत्र इन को किस तरह से समझता है, वह तापमान और दबाव को किस तरह से महसूस करता है ? .......हरी मिर्च और लाल मिर्च  खाते  काटते हुए जब हाथों में जलन होती थी तो लगता था कि इस मिर्ची में जरूर ऐसा कुछ है जो स्वाद में ही नहीं तीखापन लाती पलकें भी भिगो देती है। हाथों को भी जलाती है इसके पीछे पड़ा रहा हजारों किताबें पढ़ी पन्ने पलटे उत्तर जो सूझा जो समझ में आया वह यहां लिख रहा हूं ।पढ़ा तो बाद में पता चला कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण क्या है वैज्ञानिक डेविड जूलियस ने मिर्च मे पाए जाने वाले एक रसायन कैप्साइसीन का प्रयोग किया, कैप्साइसीन त्वचा मे जलन उत्पन्न करता है। इस रसायन के प्रयोग से से डेविड ने हमारी त्वचा मे एक ऊष्मा महसूस करने वाले तंत्रिका तंत्र के सिरे का पता लगाया। 
हर छूना छूना नहीं होता हर छूने की भी अलग कहानी होती है जो तुमने भी महसूस किया है और हमने भी महसूस किया है लेकिन इसको जब नए सिरे से देखना शुरू किया तब जाना कि वैज्ञानिक अरडेम पेटापुटीन ने दबाव कोशिकाओ के प्रयोग से त्वचा मे यांत्रिकी दबाव महसूस करने वाली एक नई तरह की तंत्रिकाओं का पता लगाया। इन क्रांतिकारी खोजों से हमारी तंत्रिका तंत्र द्वारा ऊष्मा , शीत और यांत्रिकी दबाव के महसूस करने की प्रक्रिया को समझने मे मदद की है। इन वैज्ञानिकों ने हमारी संवेदना और आसपास के वातावरण के मध्य चल रही जटिल प्रक्रियाओ को समझने मे बिखरी कडीयो को जोड़ा है। ......1944 के चिकित्सा नोबेल पुरस्कार विजेता जोसेफ एर्लांगर(Joseph Erlanger) और हर्बर्ट गॅसर( Herbert Gasser) ने हर विशिष्ट संवेदना संबधित विशिष्ट न्यूरान का पता लगाया था। जैसे दर्द वाले स्पर्श और सहलाने वाले स्पर्श को महसूस करने वाले न्यूरान। उसके बाद से यह प्रमाणित किया जा चुका है कि विशिष्ट तरह की संवेदना वाले न्यूरान अपने काम के लिए विशेषज्ञ होते है, और वे हर तरह की संवेदना को अलग से पहचान सकते है, जिससे हम अपने परिवेश को बेहतर रूप से समझ पाते है। जैसे हमारी ऊँगलीओ के सिरे पर उपस्थित न्यूरान ऊष्मा और गरम दर्दनाक ताप दोनों को महसूस कर सकते है।डेविड जूलियस और अरडेम पेटापुटीन के खोज से पहले हम यह नहीं जानते थे कि हमारा तंत्रिका तंत्र किस तरह से तापमान और दबाव को महसूस करता है। हमारा मस्तिष्क विद्युत संकेत समझता है, लेकिन दबाव और ऊष्मा के संकेत किस तरह से विद्युत संकेत मे बदलते है यह एक बड़ा रहस्य था।....1990 दशक के अंतिम भाग मे डेविड जूलियस ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय कैपसाइसिन रसायन पर कार्य किया, यह रसायन मिर्च मे होता है और त्वचा मे जलन उत्पन्न करता है। हम जानते थे कि कैपसाइसिन दर्द महसूस करनेवाले न्यूरान को उत्तेजित करता है लेकिन कैसे करता है एक रहस्य था। जूलियस और उनके साथियों ने दर्द , ऊष्मा और स्पर्श महसूस करने वाले न्यूरानों मे से करोड़ों डीएनए टूकड़ों का एक संग्रह बनाया और उन्होंने यह प्रस्तावित किया कि इन डीएनए खंडों मे से कोई एक कैपसाइसिन से प्रतिक्रिया करता होगा। एक के बाद एक करके उन्होंने कैपसाइसिन से प्रतिक्रिया नहीं करने वाले डीएनए खंडों को अलग कर दिया। कड़ी और लंबी मेहनत के बाद वे कैपसाइसिन से प्रतिक्रिया करने वाले जीन (डीएनए खंड) को पहचान गए। इस जिन को TRPV1 नाम दिया गया जोकि एक आयन चैनल प्रोटीन है, और कैपसाइसिन से प्रतिक्रिया करता था। जब जूलियस ने इस संवेदी प्रोटीन की प्रतिक्रिया ऊष्मा से करवाई तो उसने जलन से दर्द महसूस करने वाली प्रतिक्रिया दी, जूलियस ने पाया कि उन्होंने एक ऊष्मा संवेदी रिसेप्टर खोज निकाला है।....डेविड जूलियस ने मिर्च मे पाए जाने वाले कैप्साइसीन के प्रयोग से TRPV1 संवेदक की खोज की जो दर्द उत्पन्न करने वाली ऊष्मा से सक्रिय हो कर न्यूरान को विद्युत संकेत भेजती है।...TRPV1 की खोज तापमान महसूस करने वाले अन्य संवेदको को पहचनाने मे एक बड़ा कदम था। डेविड जूलियस और अरडेम पेटापुटीन दोनों ने स्वतंत्र रूप से मेन्थोल (ठण्डाई) के प्रयोग से TRPM8 की खोज की जोकि शीतलता महसूस करवाने वाला संवेदक है। TRPV1 और TRPM8 से संबधित अन्य आयन चैनल खोजे गए और पाया गया कि ये संवेदक तापमान की एक बड़ी रेंज मे काम कर सकते है। डेविड जूलियस द्वारा TRP1 की खोज एक क्रांतिकारी खोज थी, जिसने हमारे शरीर द्वारा भिन्न तापमानो को समझ सकने के रहस्य से पर्दा उठाया।....स्पर्श की संवेदना के लिए Piezo2 आयन चैनल मुख्य है। Piezo1 और Piezo2 मिलकर अन्य भौतिक प्रक्रिया जैसे रक्तचाप , श्वशन तथा मूत्रथैली के नियंत्रण के लिए उत्तरदाई है।
बाकी 2021 यानीइस वर्ष का चिकित्सा नोबेल TRPV1,TRPM8 तथा Piezo आयन चैनल की क्रांतिकारी खोज को समर्पित है, यह खोज दर्शाती है कि हम किस तरह से ऊष्मा, शीत और स्पर्श महसूस करने के द्वारा हमारे आसपास के वातावरण को समझते है और उसके साथ समायोजित होते है। TRP चैनल हमारी ऊष्मा संवेदना के लिए महत्वपूर्ण है जबकी Piezo चैनल स्पर्श और हमारे अंगों की स्तिथि जानने और उनके संचालन के लिए महत्वपूर्ण है। इन चैनलों के ऊष्मा और दबाव पर निर्भर कुछ अन्य चयापचय संबधित कार्य भी है।

सन्दर्भ

2021 चिकित्सा नोबेल पुरस्कार :डेविड जूलियस और अरडेम पेटापुतीन वर्ष 2021 के चिकित्सा नोबेल पुरस्कारों का ऐलान सोमवार 4 अक्टूबर 2021 को किया गया है। इस बार को यह पुरस्कार डेविड जूलियस और अरडेम पेटापुतीन को मिला है।यह पुरस्कार उन्हे ऊष्मा और स्पर्श के संवेदकों (receptors ) की खोज के लिए दिया गया है।








Friday, August 30, 2024

उच्च शिक्षा के दलित

कौन कॉलेज में हो ? 
“उच्च शिक्षा के दलित हैं साब!” 
नहीं मतलब किस जगह से आये हो? 
और अलग की हुये काम से आते हैं साब! 
मुझे लगा उच्च शिक्षा में शिक्षक  हो! 
 हूँ न साब! पर आता हूँ आपके लिपिक काम में। 
क्या खाते हो भाई? 
“अपना बेतन... साब!” 
नहीं मतलब क्या-क्या खाते हो? 
आपसे मार खाता हूँ 
डॉट का भार खाता हूँ 
और छुटियों के नाम cl तो कभी मेडिकल खाता हूँ साब! 
नहीं मुझे लगा कि माल भी खाते हो! 
खाता हूँ न साब! पर आपके काम में। 
क्या पीते हो भाई? 
छुआ-छूत का ग़म 
टूटे घर के अरमानों का दम 
और नंगी आँखों से देखा गया सारा कागज पर भरम साब! 
यहाँ क्या मिला है भाई 
“जो गैरो को मिलता है साब! 
नहीं मतलब क्या-क्या मिला है? 
ज़िल्लत भरी ज़िंदगी आपकी छोड़ी हुई पोस्टिंग और तिस पर भी आप जैसे परजीवियों की दबगी साब! 
मुझे लगा वादे मिले हैं! 
मिलते हैं न साब! पर आपके काम हो जाने में। 
क्या किया है प्राध्यापक? 
नहीं मतलब क्या-क्या किया है? 
बायो मैट्रिक के हिसाब हर कानून की किताब  से काम किया 
10 से 5 कागज से तर सुबह को शाम किया रात को मोबाइल पर आपका काम किया 
और आते जाते जेडी,नेताओं आप के नोनिहालो को सलाम किया साब! 
मुझे लगा कोई बड़ा काम किया! 
किया है न साब! अपने काम को आपके काम  बता कर आप का प्रचार!”

Thursday, August 22, 2024

research proposal

Here is the detailed response:

1. Broad Area of Subject: Religious Sociology

2. Specialization: Religious Tourism and Development

3. Project Title: Strategy and Challenges and Solutions for Uttarakhand's Pilgrimage in the World (विश्व में उत्तराखंड की धर्मयात्रा की रणनीति और चुनौतियां व समाधान)

4. Introduction (Origin of Proposal):
This proposal originates from the need to promote Uttarakhand's pilgrimage globally. Uttarakhand is home to numerous sacred Hindu sites, and developing a strategy to promote these sites worldwide is essential.

5. Review of Research and Development in the Proposed Area:

- National Status: Religious tourism is a significant sector in India, with Uttarakhand playing a crucial role.
- International Status: Globally, religious tourism is a growing industry, with many countries developing their religious tourism infrastructure.
- Importance: Promoting Uttarakhand's pilgrimage globally is vital to increase its international reputation and attract more tourists.
- Patents: Not Applicable

1. Objectives of the Proposed Project:

- Develop strategies to promote Uttarakhand's pilgrimage globally.
- Analyze challenges in promoting Uttarakhand's pilgrimage globally.
- Suggest solutions to overcome challenges in promoting Uttarakhand's pilgrimage globally.

1. Methodology:

- Literature Review
- Surveys and Interviews
- Field Study

1. Duration of the Proposed Project: 12 months

2. Work Plan:

- Year 1:
    - Months 1-3: Literature Review and Survey Design
    - Months 4-6: Data Collection and Analysis
    - Months 7-9: Field Study and Interviews
    - Months 10-12: Report Writing and Presentation

1. Relevance of the Proposed Study for Society and Policymaking:

This study will help promote Uttarakhand's pilgrimage globally, leading to:

- Economic growth in Uttarakhand
- Increased religious tourism
- Enhanced international reputation of Uttarakhand

The findings of this study will be useful for policymakers, tourism boards, and stakeholders involved in promoting religious tourism in Uttarakhand.