Thursday, April 25, 2024

एम॰ एन॰ श्रीनिवास


मैसूर नरसिंहाचार श्रीनिवास (1916-1999) 

एम. एन. श्रीनिवास -यह भारतीय समाजशास्त्र एक महत्वपूर्ण नाम हैं। समाजशास्त्री  एम. एन. श्रीनिवास का पूरा नाम मैसूर नरसिंहाचार श्रीनिवास हैं। उनका जन्म ६ नवंबर, १९१६ में मैसूर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।


भारतीय गांव ,भारत में सामाजिक परिवर्तन संस्कृतिकरण, प्रभु जाति इनके प्रिय विषय थे। उन्होने दक्षिण भारत में 'प्रबल जाति' (Dominant Caste) की अवधारण प्रस्तुत की।   जाति की अवधारणा संख्या बल, भू-स्वामित्व, शिक्षा और नौकरी जैसे कारकों के कारण किसी जाति के गाँव या क्षेत्र विशेष में दबदबे को जाहिर करती है।जिसका आज भी भारतीय राजनीति के विश्लेषण में इसका प्रयोग किया जाता है।अपने शोध अध्ययन के लिए श्रीनिवास ने जिस रामपुरा गाँव को चुना था ।श्रीनिवास का जाति-अध्ययन एक गाँव की स्थानीय संरचना पर केंद्रित था लेकिन वह इस परिघटना की अखिल भारतीय व्याप्ति को लेकर भी सचेत थे। जिसके कारण इनकी विश्वव्यापी समाजशास्त्रीय के रूप में इनकी पहचान बनी।


शिक्षा-दिक्षा

एम. एन. श्रीनिवास ने मुंबई विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट पदवी हासिल येे भारतीय समाजशास्त्र के पितामह जी. एस. घूरे के शिष्य रहे ।

रिलीजन् ऍन्ड् सोसाय्टी अमंग् द कूर्ग्स् ऑफ़् साउथ् इन्डिया" (१९५२ में प्रकाशित)। यह पुस्तक कर्नाटक के कोडावा समुदाय का नृतत्त्वशास्त्रीय अध्ययन थी। यही इनका शोध प्रबंध था।ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वे अपने प्रोफेसर रॅडक्लिफ ब्राउन से बहुत प्रभावित हुए।

... 

भारत मेें समाज शास्त्र विषय मे योगदान


श्रीनिवास कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयो में अध्यापक रह चुके है, जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय; इंस्टीट्यट फॉर सोशियल एंड इकोनोमिक चेंज, बंगलौर; नैशनल इंस्टीट्युट ऑफ अडवान्स्ड स्टडिज़, बंगलौर; महाराज सयाजीराउ बड़ोदरा विश्वविद्यालय और जे. आर्. डी. टाटा इंस्टीट्युट।
श्रीनिवास ने एम. एस. बी. विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के विभाग की स्थपना करने लिये

में अपना योगदान दिया यहाँ तक कि उन्होने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की पदवी को भी ठुकरा दिया था। बादमें, उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय में भी समाजशास्त्र के विभाग की स्थापना में सहायता की तथा जीवन भर अध्यापन के क्षेत्र में रहे।

श्रीनिवास संस्थाओं के निर्माता भी थे। बड़ौदा और दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के विभागों की स्थापना का श्रेय उन्हीं को जाता है। शोध और अध्ययन के उच्चस्तरीय संस्थानों की स्थापना और दिशा-निर्देशन के लिहाज़ से भी भारतीय समाजशास्त्र के विकास में उनका योगदान कालजयी माना जाएगा।

लेखन/रचना

एम. एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज और संस्कृति के कई पहलूओ पर अपनी कलम चलाई है। वे खसकर धर्म, गाँव, जाति प्रथा और सामाजिक परिवर्तन की विषयवस्तुओ पर लिखी पुस्तको के लिये विख्यात है। 

श्रीनिवास की कुछ उतकृष्ट पुस्तके निम्नलिखित है- 

पुस्तके

  • मैरिज एंड फैमिली इन मैसूर (१९४२)
  • रिलिजन एंड सोसाइटी अमंग द कूरगस ऑफ़ साउथ इंडिया (१९५२)
  • कास्ट्स इन मॉडर्न इंडिया एंड अदर एसेज (१९६२), एशिया पब्लिशिंग हाउस
  • द रेमेम्बेरेड विलेज (१९७६, पुनः प्रकाशित २०१३)
  • इंडियन सोसाइटी थ्रू पर्सनल राइटिंग्स (१९९८)
  • विलेज, कास्ट, जेन्डर एंड मेथ्ड़ (१९९८)
  • सोशल चेंज इन मॉडर्न इंडिया
  • द डोमिनेंट कास्ट एंड अदर एसेज
  • डाइमेंशन्स ऑफ़ सोशल चेंज इन इंडिया

      •भारत के ग्राम (India’s Villages),१९५२

         •भावी भारत में जाति प्रथा, १९५९ 

        आधुनिक भारत में जाति और अन्य निबंध           (Caste in Modern India and other essays),१९६२

 •दक्षिण भारत के कूर्ग में धर्म और समाज (Religion and Society among the Coorgs of South India), १९६५

 •आधुनिक भारत मे सामाजिक परिवर्तन (Social Change in Modern India), १९७२ 

•यादों से रचा गाँव (Remembered Village), १९७६ 

•भारत: सामाजिक संरचना (India: Social Structure), १९८०

 •प्रभावी जाति और अन्य निबंध (The Dominant Caste and other essays), १९८७ 

•संस्कृतीकरण की संसज्जित भूमिका (The Cohesive Role of Sanskritization), १९८९ 

•ग्राम, जाति, लिंग और विधि (Village, Caste, Gender and Method), १९९६

इन रचनाओ के अलावा, श्रीनिवास ने दर्ज़नो और रचनाए की है।



श्रीनिवास के अनुसंधान के  मुद्दे....


•सामाजिक परिवर्तन- सामाजिक पतिवर्तन एक एसा मुद्द है जिसपर अनेकानेक समाजशास्त्री जाँच और अनुसंधान करते आ रहे है। एम एन श्रीनिवास ने निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों ख़ास तौर पर ब्राह्मण वर्ग की संस्कृति, रीति-रिवाज़ों, भाषा और वेशभूषा आदि को अपनाने की प्रवृत्ति को ज्ञापित करती हैं। जिसको इन्होंने संस्कृतिकरण का नाम दिया यह इसी संस्कृतिकरण की अवधारणा से बहुुुत ख्याति प्राप्त किए थे।इनकी पाश्चातिकरण  और धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रियाओ के आधार पर गाँवों में सामाजिक परिवर्तन के स्वरूप और प्रकृति को बताया है।संस्कृतिकरण, पाश्चातिकरण, प्रभावी जाति, अंतर-जातिय एवं जाति की आंतरिक एकजुटता जैसे ससंप्रत्ययो काअ प्रयोग कर के श्रीनिवास ने जाति की व्यवस्था की परिवर्तनशीलता पर प्रकाश डाला है।


•धर्म और समाज- एम. एन. श्रीनिवास ने दक्षिण भारत के कूर्ग में धर्म और समाज पर अनुसंधान किया था। उनके जाँच के आधार पर उन्होने भारतीय परंपराओ और जाति-व्यवस्थाकी विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की।

 उन्कोने हिन्दु संस्कृति, रहन- सहन और सामजिक व्यवस्था के विषयों पर भी चर्चा की। उनके अनुसार भारतीय परंपरा वास्तव में हिन्दु परंपरा है; और हिन्दु परंपरा की जड जाति व्यवस्था है।

•ग्राम एम एन श्रीनिवास के अनुसार गाँव ही भारत का प्रतिनिधी है। श्रीनिवास का यह मानना है कि गाँवो की जाति-व्यवस्था, धर्म , समाज, परिवर्तन और विकास के अध्ययन से हम भारतीय समाज को समझ सकते है।

•जाति व्यवस्था- भारत में जाति एक एसी व्यवस्था है जो केवल धर्म तक ही सीमित नहि है, उसका प्रभाव व्यापार-व्यवसाय, राजनीति और शिक्षा जैसी अन्य व्यवस्थाओ पर भी गहरा प्रभाव है। 

जाति व्यवस्था 'पवित्र' और 'अपवित्र' के बनावटी धारणा पर टिकी हुई है, जिसको धर्म से बढावा मिला है। किसी जाति के आचरण, रीति-रिवाज़ और मूल्यो के आधार पर उस जाति ई श्रेणी तय की जाती है। 

एम एन श्रीनिवास का यह मानना है की निचली वर्ग की जातियाँ अपनी श्रेणी सुधारने के लिये "उच्च" वर्ग की जातियों के आचरण और रीति-रिवाज़ो का अनुकरण करती है; इस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण कहते है। 

कहते हैं  संस्कृतीकरण केवल नयी प्रथाओं और आदतों का अंगीकार करना ही नहीं है, बल्कि संस्कृत वाङ्मय में विद्यमान नये विचारों और मूल्यों के साथ साक्षात्कार करना भी इसमें आ जाता है।1

 वे कहते हैं कि कर्म, धर्म, पाप, माया, संसार, मोक्ष आदि ऐसे संस्कृत साहित्य में उपस्थित विचार हैं जो कि संस्कृतीकृत लोगों के बोलचाल में आम हो जाते हैं।




क्रिया-विधि

एम एन श्रीनिवास ने पाश्चातिय दृष्तिकोण को छोड भारतीय दृष्तिकोण को ध्यान में रखकर अपने जाँच-परिणामो को प्रस्तुत किया था। अर्थातश्रीनिवास ने किताबी दृष्तिकोण को नकार कर उन्होने क्षेत्र-जाँच की परियोजना को अपनाया। उनकी रचनाए कूर्ग और रामपुर जैसी जगहो पर किए उनके व्यापक जाँच पर आधारित है। उन्होने प्रत्यक्ष अवलोकन (direct observation) को समाज के अध्ययन का सर्वश्रेष्ठ माध्यम माना।

उनकी क्रिया-विधि और अवलोकन को कई समाजशास्त्रियो अपनाया और आगे बढाया है। उनकी रचना "यादों से रचा गांव, १९७६" उनकी क्रिया-विधि का एक श्रेष्ठ उदाहरण है; क्यो कि यह रचना एक गाँव में बिताए ग्यारह महीनो के उनके अनुभव पर आधारित है।

सम्मान

एम.एन. श्रीनिवास

एम.एन. श्रीनिवास इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकॉनॉमिक चेंज बंगलोर की समाजशास्त्र इकाई के सीनियर फैलो और प्रमुख थे। वे ऑक्स फोर्ड विश्वविद्यालय में (1948-51) भारतीय समाजशास्त्र के व्याख्याता, एम.एस. विश्वविद्यालय, बड़ौदा में (1952-59) और दिल्ली विश्वविद्यालय में (1952-72) समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे।
1953-54 में वह मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के साइमन सीनियर रिसर्च फैलो और 1956-57 में ब्रिटेन और अमेरिका में रॉक फैलर फैलो रहे। वे पहले भारतीय हैं जिन्हें रॉयल एन्थ्रॉपॉलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ ग्रेेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड की मानद फैलोशिप मिली। इसके अलावा, 1963 में लेखक कुछ समय के लिए बर्कले, कैलिफोॢनया में टैगोर लैक्चरर और डिपार्टमेंट ऑफ सोशल एन्थ्रॉपॉलॉजी एंड सोशियोलॉजी के साइमन विजि़टिंग प्रोफेसर रहे।

पुरस्कार

   : रॉयल एन्थ्रॉपॉलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड का रिवर्स मेमोरियल मेडल (1955), भारतीय नृतत्त्वशास्त्र में योगदान के लिए शरतचन्द्र रॉय मेमोरियल गोल्ड मेडल (1958) और जी.एस. धुर्वे अवार्ड (1978)। शिकागो, नाइस और मैसूर विश्वविद्यालयों की मानद उपाधियाँ प्राप्त हुई हैं।

मृत्यु

एम एन श्रीनिवास का देहांत  30 नवम्बर, 1999

१९९९ में बंगलौर हुआ था।

आलोचना

एम एन श्रिनिवास के काय की कुछ विद्वानों ने आलोचना भी की है जैसे...

 •संस्कृतिकरण को बढावा देने के कारण एम एन श्रीनिवास ने धार्मिक अपवर्गो को और भी उपेक्षित कर दिया है।

 •श्रीनिवास के लिये भारतीय परंपरा हिन्दु परंपरा है जो जाति व्यवस्था और ग्रामो मे दिखाई देती है। इस दावे में धर्म-निश्पक्षता नहि दिखाई देती है। 

•श्रीनिवास का सामाजिक परिवर्तन का विवरण केवल संस्कृतिकरण, पाश्चातिकरण और धर्मनिरपेक्षीकरण तक ही सीमित है, जो बाकी देशो और समाजो में समान रूप से उपयुक्त या लागु नही है।

 •श्रीनिवास के पहले भी कैइ समाजशास्त्री संस्कृतिकरण, पाश्चातिकरण और धर्मनिरपेक्षीकरण जैजी संप्रत्ययो की चर्चा कर चुके है, अतः इन संप्रत्ययो में श्रीनिवास की मौलिकता नहि झलकती।

------------------------------------------------
मेरी बात...
        इन सब आलोचनाओं के बावजूद एम एन श्रीनिवास की भारतीय समाजशास्त्र में एक महत्वपूर्ण जगह है। उनकी रचनाओं के अध्ययन के बिना भारतीय समाजशास्त्र का अभ्यास अधूरा है। उनके अनुसंधान और पुस्तकों ने कैइ अन्य समाजशास्त्रियों को प्रेरित किया है। भारतीय समाज और संस्कृति को समझने के लिये एम एन श्री निवास द्वारा रचित पुस्तको और उनके अनुसंधान का अभ्यास करना अनिवार्य है।


2

एक समाजशास्त्री के तौर पर श्रीनिवास ने भारतीय ग्राम और जाति की संरचना को औपनिवेशिक धारणाओं के सैद्धांतिक वर्चस्व से भी मुक्त कराया है। 

श्रीनिवास जब ग्रामीण समुदाय की संकल्पना और गाँवों की आर्थिक-सांस्कृतिक अंतर-निर्भरता की बात करते हैं तो वे अव्यक्त ढंग से अखिल भारतीय सभ्यता की बात भी करते हैं।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

Srinivas, M.N. (1952) Religion and Society Amongst the Coorgs of South India Clarendon Press, Oxford, page 32,

1-Srinivas, Mysore Narasimhachar (1962) Caste in Modern India: And other essays Asia Publishing House, Bombay, page 48,