1-स्वामी विवेकानंद की चिंतनधारा सनातनी ब्राह्मण-धारा के ठीक उलट है. वह भारतीय चिंतन परम्परा की वैंदातिक धारा से लेकर बौद्ध और अन्य गैर-ब्राह्णवादी धाराओं से भी बहुत कुछ ग्रहण करते हैं।
2-स्वामी विवेकानंद ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन से परिचय करवाया और वैश्विक मंच पर दृढ़ता के साथ हिन्दूत्व के विचार को प्रस्तुत किया।
3-स्वामी विवेकानंद का दृढ़ विश्वास था कि आध्यात्मिक ज्ञान और भारतीय जीवन दर्शन के द्वारा संपूर्ण विश्व को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इसी जीवन दर्शन के द्वारा भारत को भी क्रियाशील और शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
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विवेकानंद का सामाजिक दर्शन श्रीमद्भगवद्गीता के 'कर्मयोगी' की अवधारणा से प्रेरित है। उनका मानना था कि राजनीतिक और सामाजिक स्वतंत्रता के आधुनिक पश्चिमी विचारों को 'स्वतंत्रता' की परंपरागत भारतीय धारणा से तालमेल बैठाने की जरूरत है।
उनका मत था कि सामाजिक कर्तव्य पालन और सामाजिक सौहार्द के जरिये ही सच्ची स्वतंत्रता पाई जा सकती है।
5-विवेकानंद का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने औपनिवेशिक शासन से मुक्ति के लिए संघर्ष को आध्यात्मिक आधार दिया और नैतिक व सामाजिक दृष्टि से हिन्दू समाज के उत्थान के लिए काम किया।
6-विवेकानंद ‘मनुष्यों के निर्माण में विश्वास‘ रखते थे। इससे उनका आशय था शिक्षा के जरिए विद्यार्थियों में सनातन मूल्यों के प्रति आस्था पैदा करना।
7-विवेकानंद की मान्यता थी कि शिक्षा, आत्मनिर्भरता और वैश्विक बंधुत्व को बढ़ावा देने का जरिया होनी चाहिए।
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