जय श्री राम....योगी आदित्यनाथ जी
गोरखपुर
यह नदी के किनारे राप्ती और रोहिणी नामक दो नदियों के तट पर बसा हुआ है। नेपाल से निकलने वाली इन दोनों नदियों में सहायक नदियों का पानी एकत्र हो जाने से कभी-कभी इस क्षेत्र में भयंकर बाढ भी आ जाती है।
यहाँ एक बहुत बड़ा तालाब भी है जिसे रामगढ़ ताल कहते हैं।
रामगढ़ ताल जब मैं कह रहा था तो मुझको रामगढ़ में बाबा किनाराम की याद आ रही थी और मैं अपने मन में सोच रहा था क्या कोई साम्यता हो सकती है जो इस नाथ संप्रदाय को बांध रही हो अघोर संप्रदाय और बाबा और बाबा योगी आदित्यनाथ जिस नाथ संप्रदाय से आते हैं ।गोरखपुर में हु पर जब जैसे ही सुना की योगी यूपी के मुख्यमंत्री बने वैसे ही मन के किसी कोने में यह गीत बज गया......
वन्दे मातरम्! सुजलां सुफलां मलयज शीतलां शस्यश्यामलां मातरम्....
(.आनन्द मठ के लेखक बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला भाषा का एक उपन्यास की रचना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्यायने १८८२ में की थी।..आनंदमठ राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के. सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है....)
धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं...राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं"
धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं .....और राजनीति से बड़ाकोई धर्म नहीं" की आवाज मन के किसी कोने से आयी....
. क्योंकि जो शख्स देश के सबसे बड़े सूबे यूपी का मुखिया बना है ।
वह गोरक्ष पीठ से निकला है। शिव के अवतार महायोगी गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर स्थापित मंदिर से निकला है।
नाथ संप्रदाय का विश्वप्रसिद्द गोरक्षनाथ मंदिर से निकला है। जो हिंदू धर्म,दर्शन,अध्यात्म और साधना के लिये विभिन्नसंप्रदायों और मत-मतांतरों में नाथ संप्रदाय का प्रमुख स्थान है । और हिन्दुओं के आस्था के इस प्रमुख केन्द्र यानी गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वरमहतं आदित्यनाथ जब देश के सबसेबडे सूबे यूपी के सीएम हैं, ।
जो आज का सच है.....धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं...राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं" एक बात और याद आ रही है..
आज के"संतो में राजनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञो में संत
उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्रीमान योगी जी सनातनधर्म की जिस धारा के पीठाधीश्वर हैं/उसके आदि पुरूष भगवान दत्त हैं ।
जो सप्त ऋषि मंडल के ऋषि अत्रि और माता अनुसूइया के पुत्र होने के कारण दत्त के साथ अत्रि समाविष्ट हुआ और " भगवान दत्तात्रेय " के नाम से संस्थापित हुए ।कालांतर में इस धारा के दो भाग हुए ।हिमाली और गिरनारी ।हिमाली शाखा के आदि पुरूष बाबा गोरख नाथ और केंद्र हुआ उनके नाम पर गोरखपुर ।
इस धारा में अधीश्वर के नाम के साथ अन्त में नाथ शब्द लग जाता है ।बाबा गोरख नाथ के गुरू मछन्दर नाथ और उनके पहले बाबा जालन्धर नाथ ।जैसे अन्तिम दो (वर्तमान योगी जी से पहले)महथं द्विग विजय नाथमहथं अवैद्य नाथ ।***************भगवान दत्तात्रेय की दूसरी धारा गिरनारी का केन्द्र वाराणसी और सर्वत्रपरम आदरणीय बाबा कीनाराम और अघोरेश्वर महाप्रभु अवधूत भगवान राम । से...
बाबा किनाराम जी अपने प्रथम गुरु वैष्णव शिवाराम जी के नाप पर उन्होंने चार मठ स्थापित किए तथा दूसरे गुरु, औघड़ बाबा कालूराम की स्मृति में कींकुड (वाराणसी), रामगढ़ (चंदौली तहसील, वाराणसी), देवल (गाजीपुर) तथा हरिहरपुर (जौनपुर) में चार औघड़ गद्दियाँ कायम कीं। इनप्रमुख स्थानों पर कर्म छेत्र रहा है पिता जी (डॉ सत्येंद्र सिंह ) का श्री गणेश राय पी जी कालेज में पढ़ाया, गाजीपुर व् अनपरा लालगंज में प्राचार्य व् डीन पूर्वांचल यूनिवर्सिटी रहे।इन्ही पीठो पर सेवारत जुड़े है। इसके बाद
औघड़ परम्परा के औघड़ अवधूत भगवान राम की सर्वेश्वरी सिद्धि की प्रसिद्धि जितनी काशी में हैं, उससे अधिक मेरे ननिहाल क्षेत्र में मानी जाती है। अवधूत भगवान राम ने अपने बाल्य व युवावस्था का अधिकांश समय मनिहरा, महड़ौरा व सकलडीहा के आस-पास के क्षेत्र में बिताया, और यही में खेली, बढ़ी हुई कहते हैं कि औघड़ परम्परा का वरण करते हुए उन्होंने अपनी साधना का अधिकांश समय इन्हीं स्थानों पर बिताया। यही कारण है कि इस क्षेत्र में औघड़ परम्परा का पालन करने वाले भक्तों की संख्या लाखों में है। रामगढ़ स्थित कीनाराम स्थली के अलावा मनिहरा व हरिहरपुर गांव में आदि शक्ति आश्रम अवधूतभगवान राम की साधना स्थल के कारण प्रसिद्ध है।
अब इस परंपरा से कौन...?
इस परम्परा में नाम के अन्त में " राम " शव्द लग जाता है ।वर्तमान मेंबाबा गौतम राम और बाबा सम्भव राम ।।***********************एक बात और कि भगवान दत्तात्रेय की परम्परा मे ही साईं बाबा भी हैंऔर उनके नाम के साथ " नाथ तथा राम " दोनों ही प्रयोग कर लिया जाता है।
उसका ताना-बाना क्या होगा... उसमें मैं क्षत्रिय जाती की भूमिका भी देख रहा था मुझे याद आ रहे थे गौतम बुद्ध मुझको याद आ रहे थे जैन धर्म के प्रथम संस्थापक पार्श्वनाथ और इन्हीं के बीच जब मैं दर्शन कर रहा था गोरखनाथ बाबा का मंदिर घंटों बैठा था देख रहा था वहां पर लगी हुई मूर्तियों को और सोच रहा था।की कैसे यह जनपद महान भगवान बुद्ध, जो बौद्ध धर्म के संस्थापक है, जिन्होंने 600 ई.पू. रोहिन नदी के तटपर अपने राजसी वेशभूषाओं को त्याग दिया और सच्चाई की खोज में निकल पड़े थे गोरखपुर उनसे जुड़ा है ।यह जनपद भगवान महावीर, 24 वीं तीर्थंकर, जैन धर्म के संस्थापक के साथ भी जुड़ा हुआ है।
खैर....
मेरा बनारस में आवास प्रेमचंद स्मारक इंटर कॉलेज के बगल में जो लमही के पास है और प्रेमचंद बड़ा नाम हिंदी साहित्य घर के आता है लमही और गोरखपुर को मैं जोड़ रहा था ।गोरखपुर मुंशी प्रेमचंद की कर्मस्थली रही है
मुंशी प्रेमचंद (1880-1936)], भारत के एक महान हिन्दी उपन्यासकार, गोरखपुर में रहते थे। वह घर जहाँ वे रहते थे और उन्होंने अपना साहित्य लिखा उसके समीप अभी भी एक मुंशी प्रेमचंद पार्क उनके नाम पर स्थापित है।
याद आ रहे थे... मेरे राम का मुकुट भीग रहा है...पंडित विद्यानिवास मिश्र से मेरे परिवार का ताना-बाना तीन पीढ़ियों का घर इधर को 14 जनवरी को पिछले सालों से मैं उनके सेमिनार में प्रतिभाग करता रहा।बनारस कर्म स्थली की जन्म स्थली यही गोरखपुर ही थी अर्थात संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान तथा हिन्दी साहित्यकार और सफल सम्पादक विद्यानिवास मिश्र यहीं के थे।
इलाहाबाद के प्रवास के दौरान फिराक गोरखपुरी रघुपति सहाय फिराक को पढ़ने समझने का मौका मिला गोरखपुर के ही थे आज इनके बहाने में गोरखपुर को याद करना..फिराक गोरखपुरी (1896-1982, पूरा नाम : रघुपति सहाय फिराक), प्रसिद्ध उर्दू कवि, गोरखपुर में उनका बचपन का घर अभी भी है। वह बाद में इलाहाबाद में चले गया जहाँ वे लम्बे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे।
गीता प्रेस जो हमें सबसे सस्ते डायरिया उपलब्ध कराता है धार्मिक पुस्तकें प्रदान करता है जिससे हम अपने हिंदू संस्कृत को गीता प्रेस के बहाने पीढ़ी दर पीढ़ी जन-जन तक पहुंचाने में कामयाब रहे गोरखपुर को हिंदू धार्मिक पुस्तकों के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक गीता प्रेस के साथ भी पहचान लिया गया है। सबसे प्रसिद्ध प्रकाशन ‘कल्याण’ पत्रिका है श्री भागवत गीता के सभी 18 हिस्सों को अपनी संगमरमर की दीवारों पर लिखा गया है। अन्य दीवार के पर्दे और पेंटिंग भगवान राम और कृष्ण के जीवन की घटनाओं को प्रकट करते हैं। पूरे देश में धार्मिक और आध्यात्मिक चेतना के प्रसार के लिए गीता प्रेस अग्रिम है
इतिहास
इतिहास के चलचित्र के जब नजर आती है चौरी चौरा कांड दिया यदि यह ना होता तो गांधी द्वारा कुछ इबादत और लिखी जाती । गांधी साध्य और साधन ईमानदारी के बड़ा जोड़ देते गांधी नैतिकता के प्रबल समर्थक प्रबल समर्थक थे 4 फरवरी, 1 9 22 की ऐतिहासिक ‘चौरोई चौरो’ घटना के कारण गोरखपुर महान प्रतिष्ठा पर पहुंच गया, जो भारत की स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मोड़ था।
पुलिस के अमानवीय बर्बर अत्याचारों पर गुस्से में, स्वयंसेवकों ने चौरी-चौरा पुलिस थाने को जला दिया, परिसर में उन्नीस पुलिसकर्मियों की हत्या। इस हिंसा के साथ, महात्मा गांधी ने 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।
गांधी की अहिंसा का प्रयोग सर्वविदित बुद्ध की ही धरती से हुआ।वही गांधी के राजनैतिक करीबी डिस्कवरी ऑफ इंडिया के लेखक जवाहरलाल नेहरू से भी जुड़ा है ।आज के भारत के निर्माण में जवाहरलाल की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और यहीं पर भी 3 साल जेल में पड़े रहे साधते रहे गोरखपुर इसलिए भी याद आ रहा था आज जवाहरलाल नेहरू के ....बहाने...क्योंकि प्रसिद्ध भारत छोड़ो आंदोलन के बाद शीघ्र ही 9 अगस्त को जवाहर लाल नेहरू को गिरफ्तार किया गया था और इस जिले में उन पर मुकदमा चलाया गया। उन्होंने यहाँ की जेल में अगले तीन साल बिताये। कैसे जगह प्रभावित करती कालखंड कोई भी हो....
गुरु अमरनाथ योगी आदित्यनाथ गौतम बुद्ध पार्श्वनाथ बाबा कीनाराम बाबा अवधूत राम सब क्षत्रिय कुल में ही जन्म लिए थे मान्यता है कि उपनिषद जो लिखे गए उस में क्षत्रियों का ही योगदान है।
खैर
गोरखपुर सामाजिक समरसता का प्रतीक है बुद्ध जो एक क्षत्रिय परिवार में जन्मे थे, उन्होंने जब पहली बार दुःख देखा तो सुख की तलाश शुरू कर दी | तथा उनके गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान तथा भारत के प्राचीन वेदों और उपनिषदों के ज्ञान को आधार बनाते हुए उन्होंने सुख का रास्ता अहिंसा , प्रेम और अध्यात्म द्वारा प्राप्त किया तथा वही अपने अनुयायियों और शिष्यों को भी सिखाने का प्रयास किया |
महात्मा बुद्ध का जन्म लगभग ढाई हजार वर्ष पहले कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के घर में हुआ था । इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनकी माता का नाम महामाया था तथा पुत्र-जन्म के सात दिन बाद ही माता की मृत्यु हो गयी थी । इनकी मौसी गौतमी ने बालक का लालन-पालन किया । इस बालक के जन्म से महाराज शुद्धोदन की पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूर्ण हुई थी, इसलिए बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया । गौतम नाम इनके गोत्र के कारण पड़ा । ( गौतम महान सनातन ऋषि थे, जिनके नाम पर यह गोत्र है मलय पुस्तक “हिकायत सेरी रामा” और जातक कथाओं में यह उल्लेख है की गौतम बुद्ध ने स्वयं यह कहा था के वो श्री राम के ही अवतार हैं |
(बुद्ध और राम के बहाने गोरखपुर)
गोरखनाथ मंदिर
भारत के धार्मिक इतिहास में गोरखकालीन भारत का समय 600 से 1200 ईस्वी का माना जाता है, अधिकांश लोग नाथपंथ को केवल गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ तक ही सीमित मानते हैं, मगर नाथ योगियों के मठ पूरी दुनिया में हैं. तिब्बत की राजधानी ल्हासा में मत्स्येन्द्रनाथ की मूर्ति है
चीन के चुवान द्वीपसमूह के पुटू द्वीप में भी एक प्रसिद्ध मंदिर है. बाली, जावा, भूटान, पेशावर के अलावा नेपाल के मृग स्थली में भी गोरक्षपीठ है. काठमांडू के इंद्र चौक मुहाली में भी गोरखनाथ का मंदिर है
भारत में भी हरिद्वार, सिक्किम और गुजरात में गोरखनाथ के सिद्ध पीठ स्थित हैं.
सत्ता
सामाजिक समरसता का पाठ दिग्विजय नाथ कर्म के रूप में अपनाया और महंत अवैद्यनाथ में इसको आगे बढ़ाएं और उसका परिणाम आज यह है कि -उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसी मंदिर से निकले हुए..पिछले 28 सालों से गोरखपुर के सांसद का पता गोरखनाथ मंदिर ही रहा है.....
(गोरखपुर को मैं इस रूप में भी देख रहा था)
आज हम जिस विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन कर हर्ष और शांति का अनुभव करते हैं, वह ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज जी की ही कृपा से है। वर्तमान पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज के संरक्षण में श्री गोरखनाथ मंदिर विशाल आकार-प्रकार, प्रांगण की भव्यता तथा पवित्र रमणीयता को प्राप्त हो रहा है। पुराना मंदिर नव निर्माण की विशालता और व्यापकता में समाहित हो गया है।
सामाजिक समरसता का प्रतीक जाति बंधन को तोड़ता हुआ या मंदिर अपनी अलग जगा रहा था जिसको मुस्लिम शासक बर्दाश्त नहीं कर पाए इसलिए इसको तोड़ा गया मुस्लिम शासन काल में हिन्दुओं और बौद्धों के अन्य सांस्कृतिक केन्द्रों की भांति इस पीठ को भी कई बार भीषण कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। इसकी व्यापक प्रसिद्धि के कारण शत्रुओं का ध्यान विशेष रूप से इधर आकर्षित हुआ। विक्रमी चौदहवीं सदी में भारत के मुस्लिम सम्राट अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में यह मठ नष्ट किया गया और साधक योगी बलपूर्वक निष्कासित किये गये थे। मठ का पुनर्निर्माण किया गया और पुनः यौगिक संस्कृति का प्रधान केंद्र बना। विक्रमी सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मुग़ल शासक औरंगजेब ने इसे दो बार नष्ट किया पर
आज जब मैं मंदिर का दर्शन कर रहा था तो अपनी भव्य रूप में यह था क्योंकि आज योगी आदित्यनाथ इस सुबे के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री हैं और राम मंदिर जो अयोध्या में बनने जा रहा है उसमें इन की बहुत बड़ी भूमिका है गोरखनाथ मंदिर....
52 एकड़ के सुविस्तृत क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। सत्ता राजसत्ता धर्म जाती के गठबंधन खिचड़ी परंपरा शिक्षा को धर्म से धर्म को कर्म से कैसे जोड़ा जाए यह गौ रक्षा गोरखधाम मंदिर आने पर ही पता चलता है कैसे मन्दिर शैक्षणिक संस्थाओं का निगमन करता है...
मंदिर प्रांगण में ही गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ है। इसमें विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क आवास, भोजन व अध्ययन की उत्तम व्यवस्था है। गोरखनाथ मंदिर की ओर से एक आयुर्वेद महाविद्यालय व धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की गयी है। गोरक्षनाथ मंदिर के ही तत्वावधान में 'महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्' की स्थापना की गयी है। परिषद् की ओर से बालकों का छात्रावास प्रताप आश्रम, महाराणा प्रताप, मीराबाई महिला छात्रावास, महाराणा प्रताप इण्टर कालेज, महंत दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार आदि दो दर्जन से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण और प्राविधिक संस्थाएं गोरखपुर नगर, जनपद और महराजगंज जनपद में स्थापित हैं
गोरक्षपीठ प्रबंधन से जुड़े महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की ओर से संचालित होने वाली दो दर्जन शिक्षण संस्थाएं और गुरु गोरक्षनाथ चिकित्सालय जैसे प्रकल्प भी इस ताने बाने को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते –नेपाल में माओवादियों की तरफ़ से हिन्दू राष्ट्र की मान्यता समाप्त किए जाने से पूर्व तक नेपाल के महाराजा के मुकुट और मुद्रा में भी गुरु गोरक्षनाथ का चित्र अंकित होता था.
एक मान्यता....
और गोरखपुर ही नहीं नेपाल में भी आपको ये कहने वाले बहुतेरे मिल जाएंगे कि माओवादियों का पतन इसीलिए हो गया क्योंकि उन्होंने इन प्रतीकों को हटा दिया था.
महंत अवैद्यनाथ और योगी आदित्यनाथ का नाता उत्तराखंड पिछले 10 वर्षों से मैं उत्तराखंड में रह रहा हूं।इनके जिले की करीबी था ।यहां की आबो हवा समझने का मौका मिला ।
कैसे 28 साल का बालक गोरखधाम मंदिर आ कर मंदिरा आकर सांसद बनता है और साल दर साल अपनी में यश की वृद्धि में और श्री वृद्धि करता चला जाता है....
महंत अवेद्यनाथ....
महंत अवेद्यनाथ का जन्म 28 मई 1921 को महंत अवेद्यनाथ जी का जन्म ग्राम काण्डी, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड में श्री राय सिंह बिष्ट के घर हुआ था। आपके बचपन का नाम श्री कृपाल सिंह बिष्ट था और कालांतर में श्री अवैद्यनाथ बनकर भारत के राजनेता तथा गुरु गोरखनाथ मन्दिर के पीठाधीश्वर थे के रूप में प्रसिद्द हुए। श्री अवैद्यनाथ जी ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक साधना के साथ "सामाजिक हिन्दू" साधना को भी आगे बढाया और सामाजिक जनजागरण को अधिक महत्वपूर्ण मानकर हिन्दू धर्म के सोशल इंजीनियरिग पर बल दिया | हिन्दू धर्म में ऊंच-नीच दूर करने के लिए उन्होंने लगातार सहभोज के आयोजन किए। इसके लिए उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर जाकर भोजन किया और समाज की एकजुटता का संदेश दिया।इस कड़ी में योगी जी अभी हाल में ही वो बाबा कीनाराम की धरती क्री कुंड पर भी गये थे । अघोराचार्य बाबा कीनाराम का जन्म विक्रम संवत 1658 में भाद्र मास की अघोर चतुर्दशी कृष्ण पक्ष में हुआ था। उनकी तपोस्थली रामगढ़ में प्रत्येक वर्ष जन्मोत्सव का आयोजन होता है।
(जिसका जिक्र मैंने ऊपर ही किया था)
बाबा कीनाराम के जन्मोत्सव में शामिल होने गुरुवार को सूबे के मुखिया और गोरखनाथ पीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का आगमन हुआ। वहीं दूसरी ओर बाबा कीनाराम अघोर पीठ के पीठाधीश्वर श्री सिद्धार्थ गौतम राम भी बाबा की जन्मस्थली पहुंचे थे। अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरू माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं। इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।(जैसा देखा) जब दोनों पीठाधीश्वर एक साथ मंच पर जैसे ही आए वैसे ही हर हर महादेव और बाबा कीनाराम और बाबा गोरखनाथ के उद्घोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया। वहीं लोगों में यह चर्चा भी शुरू हो गई कि अरसे बाद शैव संप्रदाय के दो पीठाधीश्वरों का मिलन हुआ है।
हिंदू समाज की एकता ही उनके प्रवचन के केंद्र में होती थी। वह मूलत: इतिहास और रामचरितमानस का सहारा लेते थे। श्रीराम का शबरी, जटायु, निषादराज व गिरीजनों से व्यवहार का उदाहरण देकर दलित-गरीब लोगों को गले लगाने की प्रेरणा देते रहे।धर्म सत्ता और राजसत्ता गोरखपुर की राजनीति का केंद्र गोरखधाम मंदिर आपने 1962, 1967, 1974 व 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में मानीराम सीट का प्रतिनिधित्व किया और 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर से लोकसभा सदस्य रहे। ३४ वर्षों तक हिन्दू महासभा और भारतीय जनता पार्टी से जेड़े रहकर हिंदुत्व को भारतीय राजनीति में गति देने वाले और सामाजिक हितों की रक्षा करने वाले श्री अवैद्यनाथ जी ने स्वयं को अवसरवाद और पदभार से स्वयं को दूर रखा ।वही योगी जीमुख्यमंत्री का पद भार लिया।
15 फरवरी 1994 को गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्य नाथ जी महाराज द्वारा मांगलिक वैदिक मंत्रोच्चारपूर्वक शिष्य योगी आदित्यनाथ जी का दीक्षाभिषेक संपन्न हुआ।महंत अवैद्यनाथ (मामा) के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने 1998 में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। योगी आदित्यनाथ ने 'हिन्दू युवा वाहिनी' का गठन किया जो हिन्दू युवाओं को हिन्दुत्वनिष्ठ बनाने के लिए प्रेरणा देते है।
अभी यहां पर रिफ्रेशर कोर्स की बात एक इतिहास विभाग एक सेमिनार कराने जा रहा है बुध से लेकर कबीर तक की यात्रा...वाराणसी प्राचीन काल से ही जहां मोक्षदायिनी नगरी के रूप में जानी जाती थी तो मगहर को लोग इसलिए जानते थे कि ये एक अपवित्र जगह है और यहां मरने से व्यक्ति अगले जन्म में गधा होता है या फिर नरक में जाता है.
सोलहवीं सदी के महान संत कबीरदास वाराणसी में पैदा हुए और लगभग पूरा जीवन उन्होंने वाराणसी यानी काशी में ही बिताया लेकिन जीवन के आख़िरी समय वो मगहर चले आए और अब से पांच सौ साल पहले वर्ष 1518 में यहीं उनकी मृत्यु हुई.कबीर स्वेच्छा से मगहर आए थे और इसी किंवदंती या अंधविश्वास को तोड़ना चाहते थे कि काशी में मोक्ष मिलता है और मगहर में नरक.उत्तर प्रदेश में गोरखपुर से क़रीब तीस किमी. दूर पश्चिम में स्थित है मगहर.
मगहर नाम को लेकर भी कई किंवदंतियां मौजूद हैं. मसलन, यह भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षु इसी मार्ग से कपिलवस्तु, लुंबिनी, कुशीनगर जैसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों के दर्शन के लिए जाया करते थे.
मगहर में अब कबीर की समाधि भी है और उनकी मज़ार भी. जिस परिसर में ये दोनों इमारतें स्थित हैं उसके बाहर पूजा सामग्री की दुकान चलाने वाले राजेंद्र कुमार कहते हैं, "मगहर को चाहे जिस वजह से जाना जाता रहा हो लेकिन कबीर साहब ने उसे पवित्र बना दिया. आज दुनिया भर में इसे लोग जानते हैं और यहां आते हैं."
बस यूँ ही...