समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञान से सम्बंध
विज्ञानों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है -
(i) प्राकृतिक विज्ञान, और i) सामाजिक विज्ञान। सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मानवशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास, भूगोल आदि को सम्मिलित किया जाता है ये सभी सामाजिक विज्ञान किसी न किसी बिन्दु पर एक दूसरे से अन्त: सम्बन्धित हैं। यहाँ इन्हीं सामाजिक विज्ञानों की समाजशास्त्र से अन्त: सम्बन्धित की ववेचना की जाएगी।
(1) समाजशास्त्र और मानवशास्त्र (Sociology And Anthropology)
समाजशास्त्र और मानवशास्त्र अन्य विज्ञानों की तुलना में एक-दूसरे के अधिक निकट हैं। इन दोनों के बीच स्पष्ट अन्तर नहीं किया जा सकता है। फ्रोयबर ने समाजशास्त्र और मानवशास्त्र को जुड़वाँ बहिनें कहा है। समाजशास्त्र का मानवशास्त्र से निम्न सम्बन्ध है -
(i) भौतिक मानवशास्त्र आदिम मानव के शरीर की उत्पत्ति, विकास और उसके शारीरिक लक्षणों का अध्ययन करता है। इसके साथ ही मानवशास्त्र के अन्तर्गत प्रजातियों का गहन अध्ययन भी किया जाता है। भौतिक मानवशास्त्र के अध्ययनों से समाजशास्त्री लाभ उठाकर मानवीय अन्त:क्रियाओं और समस्याओं को समझने का प्रयास करते हैं।
(2) प्रागैतिहासिक मानवशास्त्र जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है यह मानवशास्त्र की वह शाखा है जिसमें ऐतिहासिक युग की सभ्यता, संस्कृति और प्रविधियों का अध्ययन किया जाता है। इसकी सहायता से समाजशास्त्री सांस्कृतिक विरासत और इसके आधुनिक जीवन से सम्बन्धों की व्याख्या करता है। समाजशास्त्र में आधुनिक सामाजिक ढाँचे का अध्ययन करने के लिए प्राचीन पृष्ठभूमि का सहारा लिया जाता है।
(3) सामाजिक मानवशास्त्र सामाजिक परिस्थितियों में मनुष्य के व्यवहारों का अध्ययन करता है। इसके अन्तर्गत आदिकालीन मानव के रीति-रिवाज, परिवार, विवाह, धर्म और अर्थव्यवस्था, न्याय, कानून का अध्ययन किया जाता है। इन सभी विषयों का समाजशास्त्र के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। सामाजिक मानवशास्त्र और समाजशास्त्र की विषय-सामग्री परस्पर इतनी घुली-मिली है कि उसे एक-दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता है और स्पष्टतया ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि यह विषय समाजशास्त्र का है या सामाजिक मानवशास्त्र का।
मानवशास्त्र आदिम समाजों की सरल व्यवस्था का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र इसी सरल व्यवस्था के आधार पर आधुनिक समाज की जटिल व्यवस्था का अध्ययन करता है, इसलिए क्रोबर (Kroeber) ने इन्हें जुड़वाँ बहिनें (Twin Sister) कहकर सम्बोधित किया है।
क्रोबर ने तो आगे स्पष्ट शब्दों में कहा है कि "सिद्धान्ततः समाजशास्त्र और मानवशास्त्र को अलग करना कठिन है।"
दोनों में अन्तर - समाजशास्त्र और मानवशास्त्र एक-दूसरे से घनिष्ट रूप से सम्बन्धित होते हुए
इन दोनों में निम्न अन्तर है। समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में मौलिक अन्तर यह है कि मानवशास्त्र आदिम समुदायों या जनजातियों का अध्ययन करता है, जबकि समाजशास्त्र आधुनिक समाज का अध्ययन करता है
मानवशास्त्र में आदिम मानव के राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक जीवन का समग्र अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है।
समाज अत्यधिक विशाल और जटिल है, अतः एक विज्ञान द्वारा इसका अध्ययन सम्भव नहीं है। इसीलिये इसका अध्ययन अनेक सामाजिक विज्ञानों द्वारा किया जाता है। समाजशास्त्र आधुनिक समाज के ढाँचे, संगठन और मानव की क्रियाओं का अध्ययन करता है।
i) दोनों विज्ञानों की अध्ययन पद्धतियों में भी अन्तर है। मानवशास्त्र एक प्राकृतिक विज्ञान के रूप में विकसित हुआ है, अतः उसकी विधियाँ भी प्राकृतिक विज्ञानों से मिलती-जुलती हैं।
समाजशास्त्र का विकास सामाजिक विज्ञान के रूप में हुआ है, अतः उसकी पद्धतियाँ भी सामाजिक हैं। समाजशास्त्र के अन्तर्गत सामाजिक सर्वेक्षण-पद्धति, सांख्यिकीय-पद्धति, साक्षात्कार-पद्धति, प्रश्नावली और अनुसूची पद्धति का प्रयोग किया जाता है।
मानवशास्त्र के अन्तर्गत सहभागिक अवलोकन (Participant Observation) आवश्यक है। इसके अभाव में मानवशास्त्र का अध्ययन पूर्ण नहीं हो सकता है।
मानवशास्त्र में प्रजातियों के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता है, जबकि समाजशास्त्र में प्रजातियों का अध्ययन सामाजिक सम्बन्धों पर पड़ने वाले प्रभाव के दृष्टिकोण से किया जाता है।
समाजशास्त्र का सम्बन्ध सामाजिक नियोजन (Social Planning) से भी है, अर्थात् समाजशास्त्र इस ओर संकेत करता है कि यह होना चाहिए। सामाजिक मानवशास्त्र इस प्रकार का कोई सुझाव नहीं देता है।
(2) समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र (Sociology and Economics)
समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में अनुमान तो इसी से लगाया जा सकता है कि समाजशास्त्र का शैशवकाल अर्थशास्त्रियों की गोद और संरक्षण में व्यतीत हुआ है। आज भी कुछ विश्वविद्यालय हैं जहाँ दोनों विषय एक ही विभाग के अन्तर्गत पढ़ाये जाते हैं। समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में निम्न सम्बन्ध हैं-
अर्थशास्त्र आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। आर्थिक और सामाजिक दोनों परिस्थितियाँ एक-दूसरे से अन्तःसम्बन्धित हैं। उदाहरण के लिये माँग का नियम सामाजिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मूल्य का निर्धारण भी सामाजिक माँग या सामाजिक परिस्थितियों द्वारा होता है।
(ii) सामाजिक दशाएँ और आर्थिक परिस्थितियाँ एक-दूसरे से अन्तःसम्बन्धित हैं।
(iii) समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों पर आर्थिक कारकों के प्रभाव का अध्ययन करता है। सामाजिक संगठन का रूप क्या होगा? इसका निर्धारण भी आर्थिक परिस्थितियाँ ही करती है।
समाज में शान्ति, न्याय, नैतिकता, सद्भावना और धर्म का क्या रूप होगा इसका निर्धारण आर्थिक दशाएँ करती हैं।
समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों विज्ञान एक ही प्रकार की समस्याओं अध्ययन करते हैं। जैसे श्रम-समस्याएँ और श्रम-कल्याण, औद्योगीकरण और इसके सामाजिक व आर्थिक प्रभाव, बेकारी, निर्धनता, ग्रामीण समस्याएँ और उनका समाधान आदि। इन विषयों के सम्बन्ध में ऐसा कहना असम्भव है कि इन्हें किस विज्ञान में सम्मिलित किया जाये।
समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों विकसित विज्ञान हैं, फिर भी इन दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। अर्थशास्त्र जीवन की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है, जबकि समाजशास्त्र जीवन की सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन करता है।
(4) समाजशास्त्र और इतिहास (Sociology and History)
समाजशास्त्र और इतिहास का भी घनिष्ट सम्बन्ध है इतिहास बीती हुई घटना।
इतिहास और समाजशास्त्र में सम्बन्ध
(1) इतिहास अतीत की सामाजिक घटनाओं का क्रमबद्ध और व्यवस्थित अध्ययन है ।
समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का क्रमबद्ध अध्ययन करता है, किन्तु यह अतीत की पृष्ठभूमि में वर्तमान समा का अध्ययन करता है, इसीलिए इतिहास को अतीत का समाजशाख ओर समाजशास्तर को समाझ का वर्तमान इतिहास' कहा जाता है।
(ii) इतिहास समाज की अतीतकालीन घटनाओं के कार्य कारण सम्बन्धी की व्याख्या करता है समाजशास्त वर्तमान सामाजिक घटनाओं की व्याख्या अतीतकाल की परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में करता है
. (i) इतिहास राजाओं और शासकों का ही अध्ययन माना जाता है, यह सामाजिक घटनाओं की आलोचनात्मक व्याख्या भी करता है। सामाजिक घटनाएँ समाजशास्त्र से सम्बन्धित है। इतिहासकार अब मात्र 'क्य है' काही वर्णन नहीं करता कैसे हुआ, 'कौन-सी परिस्थितियों थो जिनके कारण यह हुआ' कभी अध्ययन करता है और इन परिस्थितियों और घटनाओं का समाजशास्त्र से चनिष्ठ सम्बन्ध है।
(iv) इतिहासकार प्रत्येक युग के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक जीवन का अध्ययन करत है। समाजशास्त्री इतिहास के अध्ययन द्वारा उस युग के सामाजिक जीवन को समझने का प्रयास करता है।
(५) इतिहास के कालक्रम के अनुसार सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र भी सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करता है। (vi) इतिहास में युद्ध और क्रान्ति का वर्णन किया जाता है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत उन प्रक्रियाओं केव वर्णन किया जाता है जिनसे युद्ध और क्रान्ति को प्रोत्साहन मिलता है। युद्ध और क्रान्ति के सामाजि कारणों और परिणामों का भी समाजशास्त्र में पता लगाया जाता है।
(vi) समाजशास्त्र ऐतिहासिक पद्धति का प्रयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य मात्र ऐतिहासिक घटनार्ज की खोज करना है इन ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर समाजशास्त्र वर्तमान सामाजिक बटना का कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करता है और भविष्य की ओर संकेत देता है। यह तब तक सम्भ नहीं जब तक कि उसे इतिहास का ज्ञान न हो।
समाजशास्त्र और इतिहास में अन्तर
(6) समाजशास्त्र और इतिहास में मौलिक अन्तर यह है कि समाजशास्त्र सामान्य विज्ञान है, जय इतिहास विशेष विज्ञान है। सम्बन्ध समाज
(ii) इतिहास का सम्बन्ध मात्र बीती हुई घटनाओं से है, जबकि समाजशास्त्र का वर्तमा घटनाओं से है।
(i) समाजशास्त्र और इतिहास के दृष्टिकोण में भी अन्तर है। इतिहास अतीत की मात्र प्रमुख घटना काही अध्ययन करता, जबकि समाजशास्त्र सामान्य घटनाओं का अध्ययन करता है। इस प्रक इतिहास की अपेक्षा समाजशास्त्र का दृष्टिकोण व्यापक और विशाल है।
(iv) जहाँ तक विज्ञान की निश्चितता और प्रामाणिकता का प्रश्न है, इतिहास की अपेक्षा समाजश अधिक प्रामाणिक है। इसका कारण यह है कि इतिहास की घटनाओं की परीक्षा और पुनर्पगेक्षा की जा सकती है, किन्तु समाजशास्त्र के अन्तर्गत ऐसा सम्भव है। प्राचीनता की दृष्टि से भी इतिहास और समाजशास्त्र में अन्तर है। समाजशास्त्र की तुलना में इतिहास अधिक प्राचीन है।
(i) समाजशास्त्र आधुनिक समाज का इतिहास है, जबकि इतिहास अतीत का समाजशास्त्र है।
(5) समाजशास्त्र और भूगोल
(Sociology and Geography)
भूगोल और समाजशास्त्र का भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। भूगोल भौगोलिक दशाओं से सम्बन्धित है और समाजशास्त्र के अन्तर्गत इन भौगोलिक दशाओं का समाज में क्या स्थान है ? इसका अध्ययन किया जाता है।भूगोल और समाजशास्त्र में सम्बन्ध भूगोल में प्राकृतिक पर्याव का अध्ययन किया जाता है जैसे-जलवायु, वर्षा, तापक्रम, प्राकृतिक दशाएँ आदि।
समाजशास्त्र के अन्तर्गत इन भौगोलिक दशाओं का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसका अध्ययन किया जाता है। इसके साथ ही भौगोलिक परिस्थितियों के बदलने से सामाजिक जीवन किस प्रकार प्रभावित होता है? भौगोलिक परिस्थितियों का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसका अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्रियों के एक सम्प्रदाय का जन्म हुआ, जिसे भौगोलिक सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।
भूगोल राज्य का भी अध्ययन करता है। इसे राजनीतिक भूगोल कहा जाता है, जिसमें विभिन्न देशों की बनावट और पृथ्वी के धरातल का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र इसका अध्ययन करता है कि पृथ्वी की बनावट के अनुसार व्यक्तियों की कार्यकुशलता का निर्धारण होता है। साथ ही इसका सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(i) भूगोल की एक शाखा 'व्यापारिक भूगोल' की है जिसके अन्तर्गत पैदावार का जलवायु के साथ अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र इस पैदावार के अनुसार रहन-सहन और सामाजिक रीतियों, प्रथाओं, परम्पराओं की विवेचना करता है।
(iv) मानव भूगोल मनुष्य का अध्ययन करता है और मनुष्यों की मिश्रित प्रजातियों का कारण भौगोलिक परिस्थितियों को बताया है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत प्रजाति के सामाजिक पक्ष की विवेचना की जाती है।
(v) भूगोल जलवायु का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र इसका अध्ययन करता है कि जलवायु का सामाजिक जीवन से क्या सम्बन्ध है? जलवायु व्यक्ति की र्यकुशलता और प्रकृति का निर्धारण किस प्रकार करती है? ठण्डक में सम्पत्ति से सम्बन्धित अपराध और गर्मी में व्यक्ति से सम्बन्धित अपराध क्यों नहीं होते हैं।
(vi) समाजशास्त्र के अन्तर्गत सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन किया जाता है। सभ्यता और संस्कृति सामाजिक जीवन से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। सभ्यता और संस्कृति के उत्थान और पतन में भौगोलिक दशाओं का योगदान रहा है।समाजशास्त्र और भूगोल में अन्तर समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञान है और सामान्य सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है। भूगोल मात्र भौगोलिक दशाओं का अध्ययन करता है, इसलिए यह विशेष सामाजिक विज्ञान है। समाजशास्त्र का अध्ययन-क्षेत्र विस्तृत है, जबकि भूगोल का अध्ययन-क्षेत्र सीमित है।
i) दोनों की अध्ययन-वस्तु में भी अन्तर है। समाजशास्त्र की अध्ययन वस्तु सामाजिक सम्बन्ध हैं, जबकि भूगोल की अध्ययन-वस्तु भौगोलिक दशाएँ हैं। ) जनांकिकी में जनसंख्या की प्रकृति और स्वरूप का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या की इस प्रकृति और स्वरूप का अध्ययन करने के लिये समाज की प्रकृति और स्वरूप का ज्ञान अनिवार्य है; क्योंकि ज्ञान की यह शाखा सामाजिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में ही जनसंख्या का अध्ययन करती है।
समाज विज्ञान की परिभाषा करते हुए मैकाइवर और पेज ने इसे सामाजिक सम्बन्धों का विज्ञान कहा है। समाज सामाजिक सम्बन्धों के जाल को कहा जाता है। सामाजिक सम्बन्धों के निर्माण के लिए व्यक्ति का होना अनिवार्य है। जनांकिकी में इन्ही व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है।
4) जनांकिकी में जन्मदर, मृत्युदर और इनके कारकों का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या के इन कारकों का सीधा सम्बन्ध समाज की परिस्थितियों से है। उदाहरण के लिए, किसी समाज में जन्मदर अधिक है। जन्मदर अधिक होने के अनेक कारणों में बाल-विवाह और संयुक्त परिवार भी कारक हैं। बाल-विवाह और संयुक्त परिवार सार्वदेशिक और सार्वकालिक न होकर समाज की परिस्थितियों के उत्पादन मात्र होते हैं। इस प्रकार जनांकिकी और समाज विज्ञान परस्पर अन्तःसम्बन्धित हैं। 5) जनांकिकी में मृत्यु का भी अध्ययन किया जाता है, मृत्युदर के अनेक कारक हो सकते हैं। इन सभी कारकों का समाज की परिस्थितियों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।जनांकिकी में जनस्वास्थ्य का अध्ययन किया जाता है, जनस्वास्थ्य का यह अध्ययन समाज विज्ञान से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। इसका कारण यह है कि जनस्वास्थ्य की योजना बनाते समय समाज की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है
(7) जनांकिकी में जनगणना का अध्ययन किया जाता है। जनगणना में जनसंख्या की प्रकृति और उसके विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया जाता है। एक देश की जनसंख्या का विश्लेषण दूसरे देश से भिन्न होता है। इस भिन्नता का कारण यह है कि प्रत्यक्ष देश की सामाजिक परिस्थितियों में अन्तर होता है, जिसके आधार पर जनसंख्या का विश्लेषण किया जाता है।
सामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन समाज विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। इस प्रकार समाज विज्ञान और जनांकिकी परस्पर अन्त:सम्बन्धित हैं
जनांकिकी में जनसंख्या नीति का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत जनसंख्या के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचारों का अध्ययन जाता है। एक देश के विद्वानों के विचार दूसरे देश के विद्वानों के विचारों से पृथक् होते हैं। ये विद्वान जनसंख्या नीति का प्रतिपादन करते हैं इस नीति का प्रतिपादन करते समय देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है। अत: स्पष्ट होता है कि जनांकिकी और समाज विज्ञान अन्तःसम्बन्धित हैं।
(9) जनांकिकी में खाद्य सामग्री का अध्ययन किया जाता है और ऐसा विश्वास किया जाता है कि खाद्य सामग्री और जनांकिकी में सन्तुलन अनिवार्य है खाद्य सामग्री समाज की परिस्थितियों पर आधारित होती है। सामाजिक वातावरण ही खाद्य सामग्री का जनक है। प्रत्येक समाज की परिस्थितियों में भिन्नता पायी जाती है। यह भिन्नता खाद्य सामग्री का निर्धारण करती है। ये सभी तत्व ऐसे हैं जिनका समान रूप से जनांकिकी और समाज विज्ञान में अध्ययन किया जाता है।
(10) इसी प्रकार परिवार नियोजन (Family Planning), आदि ऐसे विषय है जिनका जनांकिकी और समाज विज्ञान दोनों अध्ययन करते हैं।दोनों में अन्तर समाज विज्ञान और जनांकिकी में अनेक समानताएं हैं। इन समानताओं का वर्णन ऊपर किया जा चुका है। इन समानताओं के अतिरिक्त इन दोनों विज्ञानों में अनेक भिन्नताएँ भी है। इन भिन्नताओं को मुख्य रूप से निम्न भागों में बाँटा जा सकता है
(6) समाजशास्त्र और जीवशास्त्र (Sociology and Biology)
जीवशास्त्र वह विज्ञान है जो जीवों की उत्पत्ति, विकास और संगठन का अध्ययन करता है। मनुष्य भी पाणी है, जिसका अध्ययन जीवशास्त्र करता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। इसी की व्याख्या जीवशास्त्र और समाजशास्त्र के अन्तर्गत की जायेगी। समाजशास्त्र और जीवशास्त्र में सम्बन्ध
(6) जीवशास्त्र प्राणियों का अध्ययन है। प्राणियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ और महत्वपूर्ण प्राणी है। जीवशास्त्र मनुष्य के उद्भव, विकास और परिवर्तन का अध्ययन करता है। मनुष्य मात्र प्राणी ही नहीं, वह सामाजिक भी है। 'वह सामाजिक क्यों है ?' इसका अध्ययन समाजशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। इस प्रकार समाजशास्त्र 'समाज' का अध्ययन है और जीवशास्त्र 'व्यक्ति' का अध्ययन है। व्यक्ति और समाज परस्पर अन्तःसम्बन्धित हैं, अत: दोनों विज्ञान भी परस्पर अन्तःसम्बन्धित हैं।
(ii) डार्विन ने 'सावयवी उद्विकास के सिद्धान्त' का प्रतिपादन किया था। उसने इस सिद्धान्त द्वारा यह सिद्ध किया था कि जीवों का उद्भव और विकास किस प्रकार हुआ? इसी सिद्धान्त के आधार पर समाजशास्त्रियों ने 'सामाजिक उद्विकास के सिद्धान्त' का प्रतिमान किया था ।
(iii) इसी प्रकार 'अस्तित्व के लिए संघर्ष' और 'योग्यतम की जीत' के सिद्धान्त सामाजिक जीवन | पर भी लागू होते हैं। जिस प्रकार उपर्युक्त सिद्धान्त जीवों पर प्रभावी होते हैं, उसी प्रकार समाज पर भी प्रभावी होते है।
(iv) वंशानुक्रमण का अध्ययन जीवशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत भी वंशानुक्रमण का अध्ययन किया जाता है।
(v) समाजशास्त्र के नियम जीवशास्त्र को प्रभावित करते हैं और जीवशास्त्र के नियम समाजशास्त्र के प्रभावित करते है। उदाहरण के लिये, विवाह की आयु और अन्तर्विवाह शारीरिक विकास को प्रभावित करते है। सामाजिक जीवन के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए दोनों विज्ञानों का ज्ञान आवश्यक है।
(vi) प्रजाति का अध्ययन जीवशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। समाजशास्त्र भी प्रजाति का अध्ययन करता है।जीवशास्त्र और समाजशास्त्र में अन्तर
(i) जीवशास्त्र विशेष विज्ञान है, जबकि समाजशास्त्र सामान्य सामाजिक विज्ञान है।
(i) समाजशास्त्र का क्षेत्र व्यापक है, जबकि जीवशास्त्र का क्षेत्र सीमित है।
(ii) समाजशास्त्र समाज का अध्ययन सामाजिक सम्बन्ध, संगठन और सामाजिक क्रियाओं के रूप में करता है। जीवशास्त्र मनुष्य का अध्ययन प्राणिशास्त्रीय दृष्टिकोण से करता है। (iv) जीवशास्त्रीय सिद्धान्त समाजशास्त्र के सम्बन्ध में प्रभावी नहीं होते हैं। मनुष्य बुद्धिजीवी और क्रियाशीलप्राणी है। वह परिस्थितियों का दास नहीं है। अतः प्राकृतिक प्रवरण का नियम (Law of Natur3 Selection) समाज पर प्रभावी नहीं होता।
(7) समाजशास्त्र और जनांकिकी (Sociology and Demography)
समाज विज्ञान और जनांकिकी में सम्बन्ध
(1) जनांकिकी जनसंख्या का अध्ययन है और समाज विज्ञान समाज का अध्ययन है। समाज और जनसंख्या एक दूसरे से अन्त सम्बन्धित हैं। जनसंख्या का वास्तविक अध्ययन तब तक पूरा नहीं हो सकता है। जब तक कि समाज का पूर्ण ज्ञान न ही। इस प्रकार जनांकिकी और समाज विज्ञान परस्पर सम्बन्धित है
इन दोनों में मौलिक अन्तर यह है कि समाज विज्ञान समाज का अध्ययन है, जबकि जनांकिकी में जनसंख्या का अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या और समाज दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं। (2) समाज एक विशाल धारणा है, जबकि जनसंख्या एक संकुचित धारणा है। जनसंख्या समाज का छोटा सा भाग है।
(3) समाज विज्ञान सामान्य सामाजिक विज्ञान (General Social Science) है, जिसके अन्तर्गत समाज की सामान्य विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है। जनांकिकी विशिष्ट सामाजिक विज्ञान (Special Social Science) है, जिसमें समाज के एक विशेष पहलू का ही अध्ययन किया जाता है। (4) समाज विज्ञान का क्षेत्र अत्यन्त विशाल है, जबकि जनांकिकी का क्षेत्र अत्यन्त सीमित है।
(5) समाज विज्ञान के अन्तर्गत सभी प्रकार के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है, जबकि जनांकिकी के अन्तर्गत मात्र जनसंख्या सम्बन्धी सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
(6) समाज विज्ञान क्या है' का अध्ययन है, जबकि जनांकिकी में क्या होना चाहिए' का अध्ययन होता है। इसका तात्पर्य यह है कि समाज विज्ञान एक आदर्श विज्ञान नहीं है, जबकि जनांकिकी आदर्श विज्ञान है। आदर्श विज्ञान होने के नाते जनांकिकी के अन्तर्गत समाज के भविष्य की योजनाओं को सम्मिलित किया जाता है। समाज विज्ञान में इस प्रकार की किसी भी योजना को सम्मिलित नहीं किया जाता है।
समाजशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान (Sociology and Social Psychology)
सामाजिक मनोविज्ञान मानव व्यवहार का अध्ययन है, समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन है। इस कारण दोनों में घनिष्ट सम्बन्ध है।
समाजशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान में सम्बन्ध
(6 मनोविज्ञान मानव-मस्तिष्क की अन्त:क्रिया का विज्ञान है। थाउलस (Thouless) ने लिखा है कि मनोविज्ञान मानव अनुभव और व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है।
समाजशास्त्र सामाजिक व्यवहार का अध्ययन है। समाजशास्त्र और मनोविज्ञान एक ही वस्तु का अध्ययन करते हैं। दोनों के बीच मात्र दृष्टिकोण का अन्तर है।
(ii) सामाजिक मनोविज्ञान केवल उन व्यवहारों का अध्ययन करता है जिनकी उत्पत्ति किन्हीं विशेष परिस्थितियों में हुई हैं। समाजशास्त्र सामाजिक व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों की व्याख्या करता है।
(HI) गिन्सबर्ग (Ginsberg) का विचार है कि समाजशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान की सीमाएँ एक दूसरे से इतनी मिली हुई हैं कि इन्हें पृथक् नहीं किया जा सकता है। मूल प्रवृत्तियों, इच्छाओं और प्रेरणाओं का अध्ययन मनोविज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। जब तक इन्हें भली- भाँति नहीं समझ लिया जाता, सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन नहीं किया जा सकता है, जो कि समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र है।सामाजिक मनोविज्ञान समाज में मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन है। समाजशास्त्र मानव व्यवहार | के बाह्य रुप का अध्ययन करता है जबकि सामाजिक मनोविज्ञान मानव-व्यवहार का मानसिक आधार पर अध्ययन करता है। इस प्रकार समाजशास्त्र मानव-व्यवहार का अध्ययन है और सामाजिक मनोविज्ञान व्यवहारों के मानसिक तत्वों का अध्ययन है।समाज मनोविज्ञान का समाजशास्त्र से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसका समर्थन करते हुए डॉ.मोटवाना ने लिखा है कि, "सामाजिक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के बीच की एक कड़ी है।"