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Research Proposal Format
Chief Minister Higher Education Research Encouragement Scheme 2023-24 (Department of Higher Education, Govt. of Uttarakhand)
1: Broad area of Subject: Sociology
2: Specialization:Rural Sociology
3: Project Title:
जागरूकता के संदर्भ में थारू जनजाति के महाविद्यालयी छात्र /छात्राओं का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
(ऊधम सिंह जनपद के विशेष सन्दर्भ में)
4: Name, Post and Address of Principal Investigator:Dr.Satya mitra Singh Assistant Professor Sociology Government PG College Sitarganj
5: Name, Post and Address of Co-Investigator:
6: Name of the institution where a project is being executed/likely to be executed:
Government P.G College Sitarganj Uttarakhand
7: Introduction (Origin of Proposal):
थारू जनजाति
उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र की सर्वाधिक आबादी वाली जनजाति थारू है ।थारू जनजाति ऊधमसिंह नगर के खटीमा, किच्छा, नानकमता व सितारगंज के 144 गांवो में 90% निवास करते है।ऊधम सिंह नगर क्षेत्र के अंतर्गत आता है थारू जनजाति इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश बिहार और नेपाल में प्रमुखता से पाई जाती हैं यह आदिम जातियां स्थानीय कृषि और पशुपालन होते हैं।
8. Review of research and development in the proposed area: (National and International status, Importance, patents)
अध्ययन क्षेत्र (Research Area)
- शोध क्षेत्र के रूप में ऊधमसिंहनगर जनपद के राजकीय महाविद्यालय रुद्रपुर राजकीय महाविद्यालय खटीमा ,राजकीय महाविद्यालय नानकमत्ता ,राजकीय महाविद्यालय सितारगंज में पढ़ने वाले 90% विद्यार्थी स्टूडेंट थारू समुदाय के इन्ही महाविद्यालय में पढ़ते हैं ।
यह शोध महाविद्यालयी विद्यार्थियों में जागरूकता से सम्बन्धित है। शोध कार्य में प्राथमिक तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया जायेगा तथा यथा सम्भव द्वितीयक स्रोतों द्वारा प्राप्त तथ्यों का प्रयोग भी किया जायेगा। प्राथमिक प्रत्यक्ष तथ्य संकलन हेतु जनपद की सितारगंज तहसील के लगभग सभी जनजातीय युवाओं साक्षात्कार किया जायेगा सितारगंज तहसील के जिन जिन ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं उन सभी का सर्वेक्षण किया जायेगा और इनमें रहने वाले नई शिक्षा नीति से आच्छादित 18 से 35 वर्ष की आयु के छात्र/ छात्रों का साक्षात्कार किया जायेगा।
जनजातीय (थारू)छात्र/छात्रों के साथ-साथ लगभग उतनी ही संख्या में सामान्य वर्ग के इस क्षेत्र के युवक युवतियों का साक्षात्कार भी किया जायेगा ताकि जनजातीय तथा सामान्य युवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। वर्तमान में थारु बाहुल्य ग्रामों में सामान्य वर्ग के विभिन्न समुदायों जैसे पंजाबी, बंगाली, कुमाऊँनी, गढ़वाली तथा पूर्वाचली (भोजपुरी) के लोगो निवास कर रहे हैं अतः सामान्य वर्ग के युवाओं के साथ-साथ जनजातीय युवाओं का तुल्नात्मक अध्ययन करना अनिवार्य व सार्थक प्रतीत होता है साक्षात्कार हेतु साक्षात्कार अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग किया जायेगा। सर्वेक्षण के दौरान अन्य तकनीकीय यंत्रों जैसे मोबाइल, कैमरा आदि का प्रयोग भी किया जायेगा।
द्वितीयक स्रोतों के रूप में विषय से सम्बन्धित अब तक हुए शोध कार्यों,प्रकाशित पुस्तकों, सरकारी अभिलेखों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का प्रयोग किया जायेगा। प्राथमिक स्रोतों से संकलित तथ्यों का वर्गीकरण कर सारणीबद्ध किया जायेगा तथा उनका तार्किक व अन्वेषणात्मक विश्लेषण किया जायेगा तथ्यों के विश्लेषण में सांख्यिकीय पद्धतियों तथा चित्रमय प्रदर्शन की सहायता ली जायेगी।
धारणाओं की पुष्टि तुलनात्मक व्याख्या तथा पूर्व में विकसित धारणाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु द्वितीय से प्राप्त प्रयोग किया जाना भी द्वितीयको की सहायता ली जायेगी।
9: Objectives of the Proposed Project:
अध्ययन के उद्देश्य : प्रस्तुत शोध अध्ययन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1- वर्तमान में कौशल विकास के स्वरूप का अध्ययन करना
2.उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों पर संचार माध्यमों का प्रभाव
3-उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों पर औधोगिकरण का प्रभाव
4-उत्तराखण्ड में थारू जनजाति के विद्यार्थियों के थारू भाषा में अन्य भाषा का प्रभाव
5- स्वास्थ्य व नवाचारों के प्रभाव का आकलन करना
6- उत्तराखंड की जनजाति नित व थारू जनजाति के प्रभावी अंतर संबंध ज्ञात करना
7- जनजाति क्षेत्र के संसाधनों की समीक्षा समस्याओं और आवश्यकताओं की पुणे पहचान करना तथा उचित सुझाव प्रस्तुत करना
10: Methodology:
शोध कार्य की रूपरेखा (Methodology)
अध्ययन पद्धति :--
जनजातीय युवाओं के अध्ययन के लिए इस शोध कार्य में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जायेगा ।
जिसके निम्नलिखित चरण होंगे-
1- समस्या / विषय का चयन
2- उपकल्पना का निर्माण,
3- तथ्यों का संकलन,
4- तथ्यों कानिरीक्षण परीक्षण तथा वर्गीकरण,
5- निष्कर्ष निकालना
Methodology
अनुसंधान पद्धति
यह अध्ययन क्षेत्र में प्राथमिक डेटा संग्रह पर आधारित है । उधम सिंह नगर जनपद के गुणात्मक तथा मात्रात्मक डेटा संग्रह का विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए तथा वर्णनात्मक अनुसंधान में थारू समुदाय के रीति-रिवाज परंपरा में परिवर्तन के तरीकों का वर्णन होगा।इस शोध विश्लेषणपरक है क्योंकि यह थारू समुदाय के सामाजिक जागरूकता अवस्था में परिवर्तन के क्रम तथा सीमाओं से संबंधित है ।इस शोध अध्ययन पद्धति में विश्लेषणात्मक और व्याख्यात्मक दोनों पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। जिससे सामाजिक आर्थिक स्थिति और सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन के कई पहलुओं का व्यवस्थित रूप से पता लगेगा। इस अध्ययन के लिए उत्तरदाताओं के चयन के लिए अनुपातिक यादृच्छिक नमूना का प्रयोग किया जाएगा। नमूना लेते समय मजबूत और खराब आर्थिक स्थिति वाले थारू परिवार साक्षर इत्यादि को लिया जाएगा। यह अध्ययन प्राथमिक और द्वितीय दोनों डाटा पर आधारित है इस अध्ययन के लिए आवश्यक डाटा प्राथमिक स्रोतों से प्राप्त किया गया है प्राथमिक डाटा विभिन्न तरीकों से एकत्र किया गया है जैसे इंटरव्यू ऑब्जरवेशन हाउसहोल्ड सर्वे आदि कुछ डाटा एकत्र किया जाएगा। प्रश्नावली विधि से भूमि और पशुधन इतिहास के आंकड़े लिए जाएंगे प्रायमरी डाटा कलेक्शन के क्षेत्र के लिए प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने के लिए इंटरव्यू शेड्यूल तकनीक को मुख्य रूप से अपनाया जाएगा। यह विभिन्न उम्र लिंग और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के साथ आयोजित की जाएगी की इनफार्मेशन इंटरव्यू साक्षात्कार में थारू लोग जो विभिन्न पदों पर पहुंचे हैं वह इनके विषय मे समझ में अन्य समुदाय के शिक्षक सामाजिक कार्यकर्ता को भी शामिल किया जाएगा जो उनकी परंपरा रीतिबद्ध और सामाजिक आर्थिक स्थिति का वर्णन करने में सक्षम होंगे
Participatory Rapid Appraisal (PRA)
पार्टिसिपेशन रैपिड अपप्रसियाल पी आर ए सहभागी तीव्र मूल्यांकन- इस अध्ययन के लिए डेटा संग्रह का सबसे प्रभावी माध्यम PRA मैथड है। PRA मैथड को समुदाय के नेताओं शिक्षकों महिलाओं सामाजिककार्यकर्ता तथा इच्छुक समूह के माध्यम से लिया जाएगा । स्थानीय लोगों की धारणाओं की अपेक्षाओं और दृष्टिकोण की संस्कृति समस्या दृष्टिकोण सामूहिक संभावना और मौजूदा कारणों पर ज्ञान प्राप्त करने में PRA पद्धति सबसे महत्वपूर्ण होगी। सेकेंडरी डाटा कलेक्शन या विभिन्न थारू संबंधित पत्रिकाओं संगठन दस्तावेज ग्राम जिला से डाटा एकत्र किया जाएगा। थारू संस्कृति पर लिखे गए शोध प्रबंध ,पुस्तकें विभिन्न दस्तावेज इतिहास के प्रासंगिक प्रमाणिक साहित्य और प्रशासन का अध्ययन किया जाएगा। डेटा विश्लेषण एकत्रित आंकड़ों का वर्णनात्मक विश्लेषणात्मक किया जाएगा आंकड़ों को व्यवस्थित सारणीयन और निष्कर्ष का विश्लेषण और व्याख्या के लिए सांख्यिकी विधि का उपयोग किया जाएगा।
.......
01 अनुसंधान डिजाइन अध्ययन क्षेत्र से प्राथमिक डेटा संग्रह पर आधारित है। संबंधित क्षेत्र से गुणात्मक और मात्रात्मक डेटा संग्रह का विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए वर्णनात्मक अनुसंधान डिजाइन को अनुकूलित किया गया है। यह वर्णनात्मक है क्योंकि यह थारू समुदाय में प्रचलित पुरानी परंपरा और रीति-रिवाजों को चित्रित करता है और यह उस समुदाय में परिवर्तन के पैटर्न का भी वर्णन करता है। यह शोध विश्लेषणात्मक भी है क्योंकि यह थारू समुदाय की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारणों और सीमा से संबंधित ह।
11: Duration of the Proposed Project:
2years= 24 months
12: Work Plan: Year wise plan of work and targets to be achieved.
शोधकार्य की वार्षिक योजना
(Year-wise Plan of Work and Targets to be Achieve)
प्रथम वर्ष
01-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण व तथ्य संकलन करना।
02-तीन माह
संकलित तथ्यों का वर्गीकरण तथा रिपोर्ट तैयार करना और उद्देश्य संख्या एक को पूर्ण करना किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।
03-तीन माह
शोध क्षेत्र का पुनः सर्वेक्षण तथा तथ्य संकलन करना।
04-तीन माह
संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण से उद्देश्य संख्या दो तथा तीन को प्राप्त करना और निकाले गये निष्कर्षो को प्रकाशित कराना।
द्वितीय वर्ष
01-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन करना।
02-तीन माह
संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण द्वारा उद्देश्य संख्या चार की प्राप्ति करना तथा किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।
03-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन तथा पूर्व में हो चुके शोध कार्यों और विषय सम्बन्धी उपलब्ध प्रकाशित व अपंकाशित सामग्री की सहायता से उद्देश्य संख्या पाँच की प्राप्ति करना तथा शोध कार्य क प्रकाशित करना।
अंतिम तीन माह
समस्त शोध कार्य की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को प्रेषित करना।
सहायता
(सहयोग)
1.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुम्बई
2. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणासी
3.कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
4.उत्तरांचल प्रशासन अकादमी नैनीताल
5.जी०बी० पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर
6. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली
7. आई०सी०एस०एस०आर० नई दिल्ली
13: Relevance of the proposed study for society and policy making.
14: References:
—---/
डॉ
1.
समस्या का मूल
(Origin of the Problem)
उत्तरांचल की पौधों जनजातियों (थारू, बुक्सा भोटिया, वनरावत तथा जौनसारी) पर अब त शोध कार्य हो चुका है। अभी तक हुए लगभग सभी शोध कार्य इन जनजातियों की पारम्परि संस्कृति व सामाजिक आर्थिक व्यवस्था पर केन्द्रित हैं। वर्तमान में लगभग सभी जनजातियाँ परिवर्तन । सास्कृतिक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। ऐसे में इन जनजातियों से सम्बन्धित विभिन्न सन्दर्भों आधारित नवीन अनुसंधान की आवश्यकता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि आज जनजातियों का स् वह नहीं रहा जो वर्षो पहले था। आधुनिकता, औद्योगीकरण, नगरीकरण, शिक्षा प्रसार, रातनैतिक चेतन आजनीय संस्कृति एवं व्यवस्था के मूल ढाँचे पर प्रभाव डाला है जिसका परिणाम है कि यह जनजातियों अब विकास की मुख्य धारा से जुड़ने लगी है। कम से कम उत्तरांचल के संदर्भ में तो यह बात शत प्रतिशत सत्य है। उत्तराचल के जनजातीय समुदाय के युवाओं में नवीन चेतना का उदय हुआ है। पुरानी पीढ़ी की तुलना में नई पीढ़ी के जनजातीय लोग आधुनिक व स्वतंत्र विचारधारा को अधिक अपना रहे है किन्तु यर्थाथ यह भी है कि आधुनिक होने तथा जागरूकता फैलने की गति जितनी तंत्र सामान्य समाज के युवाओं मे है उतनी तीव्र जनजातीय युवाओं में नहीं है। हर जनजाति के युवाओं में जागरुकता की मात्रा अलग-अलग है। ऊधमसिंहनगर जनपद में मुख्य रूप से थारू, बुक्सा तथा भोटिया जनताति के लोग निवास करते है भोटिया जनजाति के युवाओं में थारू एवं बुक्सा जनजातियों के युवाओं की तुलना में अधिक जागरूकता पायी जाती है। जिसका कारण यह भी हो सकता है कि भोटिया जनजाति मूलतः ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र के निवासी है तथा वहाँ के जागरूक परिवार ही आकर तराई क्षेत्र में बसे है। कारण कुछ भी हो परन्तु सत्यता यही है कि ऊधमसिंहनगर जनपद में थारु बुक्सा जनजातियों के युवा भोटिया जनजाति के युवाओं की तुलना में कम जागरूक है। इस कथन के प्रमाण में यह तथ्य भी सामने रखा जा सकता है कि अब तक थारू एवं बुक्सा जनजातियों में से कोई भी युवा आईएएस या पी०सी०एस० जैसी प्रतिष्ठित सरकारी सेवाओं में नहीं चुना गया है जबकि भोटिया जनजाति में अनेक लोग इन सेवाओं में चयनित हुए ।
हैं15
ऊधमसिंहनगर जनपद में खटीमा तथा सितारगंज तहसीलों में लगभग डेढ़ सौ ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते है। दोनों तहसीलों में थारू जनजाति की जनसंख्या लगभग सत्तर हजार है। बाजपुर तथा गदरपुर तहसीलों में बुक्सा जनजाति के लगभग तीस हजार लोग निवास करते हैं।" रूद्रपुर, काशीपुर, खटीमा, सितारगंज, बाजपुर, किच्छा, गदरपुर तथा दिनेशपुर कस्बों में थारू, बुक्सा तथा भोटिया जनजातियों के कुछ परिवार निवास करते है जो रोजगार आदि के कारण अपने मूल स्थानों से आकर यहाँ बस गये है। परिवारों का प्रतिशत कुल जनजातीय जनसंख्या का लगभग आधा प्रतिशत भाग ही नगरीय क्षेत्र में निवास करता है सितारगंज तहसील में थारु जनजाति की जनसंख्या लगभग 26000 है जो कुल जनसंख्या का लगभग 24 प्रतिशत है।
थारू जनजाति के युवाओं में धीरे धीरे जागरूकता तो आ रही है किन्तु उस गति से नहीं जिस गति से सामान्य समाज के युवाओं में आ रही है। थारू जनजाति में अभी कम आयु के विवाह प्रचलित है। वर्तमान में भी तीन चौथाई से अधिक विवाह वैधानिक आयु सीमा से पहले ही हो जाते हैं। विवा के मामले में थारू जनजाति की परम्परागत विवाह पद्धतियों जैसे उदरा, घुसपैठ आदि युवाओं को अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता प्रदान करती है इनकी तुलना हम गन्धर्व एवं हक विवाह से कर सकते ।। थारु युवाओं के सम्बन्ध में एक तथ्य विशेष रूप से विचारणीय है कि यह लोग अपनी परम्परागत संस्कृति के प्रति उदासीन तो होते जा रहे हैं पर नये सामाजिक मूल्यों व चेतना को इस सीमा तक ग्रहण नहीं कर पा रहे है कि वह भोटिया जनजाति अथवा अन्य सामान्य वर्ग के युवाओं की भाँति तेजी से प्रगति कर सके। थारू जनजाति में अभी तक मात्र एक युवक प्रेम सिंह राणा ने पी-एच०डी० की उपाधि प्रा की एक व्यक्ति लक्ष्मण सिंह राणा डिग्री कालेज में प्राध्यापक है मात्र एक व्यक्ति श्री गोपाल सिंह राणा विधायक चुने गये है। हों अधिक जनसंख्या होने के कारण ग्राम प्रधान क्षेत्र पंचायत सदस्य
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क्यूब्लाक प्रमुख आदि पदो पर तो कई थारू युवा चुने गये हैं। अराजपत्रित पदों पर तो अनेक थारू युवा सेवारत है पर राजपत्रित पदों पर अभी भी इनकी संख्या नगण्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षा एवं उच्च पदों पर चयनित होने के लिए भी थारू युवाओं के सामने आदर्श एवं उत्प्ररको के अभाव है जब किसी समुदाय में कुछ लोग उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद प्राप्त कर लेते हैं तो वह अपने समुदाय के लिए आदर्श एवं उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। थारु समुदाय में अभी इनकी कमी है। अतः यही कारण प्रतीत होता है कि थारू युवा तेजी से विकास नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि ग्रामीण विकास की विभिन्न योजनाओं के प्रति थारू युवा काफी सचेत प्रतीत होते हैं किन्तु यह चेतना सिर्फ ग्राम स्तर तक ही दिखाई देती है। विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे जलागम, ट्राइरोम, स्वयं सहायता समूह आदि में यह लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते है किन्तु बड़ी सफलताओं हेतु अधिक प्रयास नहीं करते।
उत्तरांचल बनने के बाद उत्तरांचल की जनजातियों हेतु पी०सी०एस० में आरक्षण होने के बाद भी कोई थारू युवा राज्य की प्रथम पी०सी०एस० परीक्षा में सफल नहीं हुआ थारू युवाओं के सम्बन्ध में यदि कोई संन्तोषजनक बात है तो यह है कि यह लोग स्थानीय स्तर पर परम्परागत व आधुनिक खेलों में पर्यान्त रूचि रखते हैं। थारू युवा एथ्लेटिक्स, कबड्डी, बॉलीबॉल, क्रिकेट, फुटबॉल, हांकी आदि खेलों पर विशेष ध्यान देते हैं। इस क्षेत्र के विद्यालयों की खेल टीमों में थारू युवाओं की अधिकांश भागीदारी रहती है। इस सम्बन्ध में एक चिन्ताजनक पहलू यह भी है कि उचित सुविधाओं व मार्गदर्शन के अभाव में थारू युवा राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी खेल प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। यदि इन्हें सुविधाएं व अवसर मिलें तो यह काफी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। राजनैतिक चेतना के सन्दर्भ में धारू युवक स्थानीय राजनीति के प्रति तो काफी सजग हैं पर राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय राजनैतिद गतिविधियों से प्रायः अनभिज्ञ प्रतीत होते हैं। थारू जनजाति का अपना संगठन है जिसे यह लोग था राणा परिषद कहते हैं। यह परिषद थारू समाज के विकास हेतु कार्य करती है। थारू राणा परिषद के अन्य सह संगठन भी कार्य कर रहे हे जिनमें जाति सुधार सभा, थारू उत्थान युवा संगठन, २ महिला कल्याण समिति, एकीकृत थारू जनजाति समिति आदि प्रमुख हैं। थारू राणा परिषद ने थाल समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने तथा विकास की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए कुछ प्रस्ताव पारित किए हैं जैसे विवाह में कन्याधन न लेना, शराब का निर्माण व सेवन न करना, बच्चों की शिक्षा अनिवा करना, विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध न करना, बाल विवाह न करना आदि। थारू समुदाय के श्री दौलत सिंह राणा, श्री ओम प्रकाश राणा, जिला पंचायत के उपाध्यक्ष व श्री बादाम सिंह राणा, श्री भीम सिंह राणा ब्लाक प्रमुख जैसे प्रमुख स्थानीय निकाय के पदों को प्राप्त करचुके हैं किन्तु अभी तक कोई थारू केन्द्र अथवा राज्य सरकार में मंत्री नहीं बन पाया है।
थारूओं के क्षेत्र में कुछ ईसाई संस्थाएं थारू युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। ईसाई संस्थाओं ने इस क्षेत्र में शिक्षा व चिकित्सा सम्बन्धी विकास के बहाने अपने धर्म प्रचार हेतु गिरिजाघरों, स्कूलों व अस्पतालों की स्थापना की है यह संस्थाएं विशेषतौर पर थारू युवाओं को अपने जाल में फंसाती है और उन्हें विकास के शब्जबाग दिखाकर ईसाई धर्म ग्रहण कराती हैं हाँलाकि थारू युवा इन संस्थाओं के षडयंत्र से परिचित हो चुके हैं अतः इनका विरोध होने लगा है। इक्का-दुक्का लोग ही ईसाई धर्म में दीक्षित हुए हैं। थारू युवाओं में अपराध की भावना कम पायी जाती है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि शराब
आदि नशील पदार्थों का सेवन करने के बाद भी यह लोग आपराधिक कार्यों से प्रायः दूर रहते हैं। हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती जैसे जघन्य अपराध थारू युवाओं में प्रायः नहीं पाये जाते थारू युवा भोले-भाले और शर्मीले होते हैं। स्त्रियों के प्रति अपराध तो थारू जनजाति में न के बराबर होते हैं 24 गाँवों से शहरों की ओर पलायन की प्रवृत्ति तो थारू युवाओं में आई है परन्तु यह ज्यादा अधिक नहीं हैं। अधिकांश युवा ग्रामों में ही रहते हैं। पढ़ने-लिखने के साथ-साथ यह लोग प्राय: कृषि व पशुपालन में भी अपने परिजनों की मदद करते हैं। वर्तमान में संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है फिर भी लगभग 25 प्रतिशत परिवार संयुक्त परिवार हैं थारूओं में एक अनोखी परम्परा 'मिलाई' का पालन अभी भी किया जाता
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सन्दर्भ
1- जोशी अवनींद्र कुमार (1983) 'जियोलॉजिकल ट्राइब्स, प्रकाश बुक डिपो बरेली पी
2-- मजूमदार, डी0एन0 (1942), दि थोरूज एण्ड दियर ब्लड ग्रुप, जर्नल ऑफ राफयल एशियाटिक
सोसाइटी कलकत्ता बाल्यूम XXXXI पृष्ठ-33
3- पाण्डे, बद्रीदत्त (1990) कुमाऊँ का इतिहास', अल्मोडा बुक डिपो अल्मोड़ा पृष्ठ-548
4- अग्रवाल, जी.के. (1989) सोशल एंथ्रोपोलॉजी' आगरा बुक स्टोर आगरा, पृष्ठ-361
5- पाण्डे, बद्रीदत्त (1990) उपरोक्त ही पृष्ठ 549
उप्रेती, हरिचंद्र (1970) इंडियन ट्राइब्स, राजस्थान यूनिवर्सिटी, जयपुर पृष्ठ-64 अशोककीर्ति, भिक्षु (1999) "निःस्वार्थ आत्म पत्रिका के मूल की खोज" नेपाली
6-अध्ययन, रॉयल नेपाल अकादमी काठमांडू,
8- http://en.wikipedia.org/wiki/tharu. पेज 3
9-
10- बिष्ट, भगवान सिंह (1996) उत्तराखंड आज, अल्मोड़ा बुक डिपों अल्मोडा, पृष्ठ-9
उपरोक्त ही
11- भाषा कोड के लिए एथनोलॉग 14 रिपोर्ट: टीएचएल पृष्ठ-1 http://www.ethnologue.com/ पर
14/show_Language.asp उपरोक्त ही 12-
13- http://crafts. Indianetzone.com/patch_work.htm, पेज-1
14- सुभाषचन्द्र (2004) उत्तर प्रदेश की थारू जनजाति का समाजशास्त्रीय अध्ययन (अप्रकाशित
15- उपरोक्त ही पृष्ठ-178
5
निबंध) डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा पृष्ठ-1
16 बिष्ट भगवान सिंह (1996) उत्तराखंड आज अल्मोड़ा बुक डिपो एवं प्रकाशक, अल्मोडा,
पृष्ठ-161
17- संख्या पत्रिका 2001, जिला सांख्यिकी कार्यालय ऊधम सिंह नगर, पृष्ठ-6 उपरोक्त ही
18-
19- सुभाषचन्द्र (2004) उपरोक्त ही उपरोक्त ही पृष्ठ 55
20-
21- 22- वरीयता सूची (राजपत्रित) उच्च शिक्षा विभाग उत्तरांचल शासन कार्यालय, जिला पंचायत राज अधिकारी, ऊधम सिंह नगर की सूचनानुसार
23- राणा, प्रेम सिंह (1999) खटीमा विकास खंड में आवासित थारु ईसाई परिवारों की सामाजिक आर्थिक स्थिति का अध्ययन (अपकाशित शोध प्रबन्ध) कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल, पृष्ठ-70
24- मुखर्जी, रविन्द्र नाथ (1997) सामाजिक मानव शास्त्र की रूपरेखा, विवेक प्रकाशन दिल्ली,
पृष्ठ-381
25- सुभाषचन्द्र (2004) उपरोक्त ही पृष्ठ-34
26- श्रीवास्तव (1958) द थारूज़ आगरा यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन पृष्ठ 96-9
27- सकलानी, शक्ति प्रसाद (1996) तराई रुद्रपुर का इतिहास औ विकास गौरव प्रकाशन दिल्ली, पृष्ठ 69-70
28- अमर उजाला बरेली, 30 दिसम्बर 2002
29- "ऊधमसिंहनगर तब और अब सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग, उत्तरांचल की रिपोर्ट-2005
पृष्ठ-54 उपरोक्त ही. 30- पृष्ठ-22
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थारू जनजाति थारू जनजाति भारत में निवास करने वाली सैकड़ों जनजातियों में से एक है। उत्तराखण्ड में पाई जाने वाली जनसंख्या की दृष्टि से पाँच प्रमुख जनजातियों में से थारू पहले स्थान पर हैं। थारू अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते हैं। अवध गजेटियर के अनुसार थारू का शाब्दिक अर्थ ठहरे है, अर्थात जो लोग तराई के वनों में आकर ठहर गये। अध्ययन के अन्तर्गत थारू जनजाति से तात्पर्य उत्तराखण्ड के कुमायूँ मण्डल में निवास कर रही जनजाति से है।
(ii) प्रस्तुत अध्ययन में माध्यमिक स्तर से आशय उत्तराखण्ड के विद्यालयों में कक्षा 12 से लेकर कक्षा स्नाकोत्तर तक अध्ययनरत् विद्यार्थियों से है।
(iii) शैक्षिक समस्यायें प्रस्तुत अध्ययन में शैक्षिक समस्याओं के अन्तर्गत विशेष रूप से विद्यार्थियों के अध्ययन के अन्तर्गत आने वाली समस्याओं का अध्ययन तथा साथ ही सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और समायोजन सम्बन्धी समस्याओं का भी अध्ययन किया गया हैं।
अध्ययन क्षेत्र (Research Area)
शोध क्षेत्र के रूप में ऊधमसिंहनगर जनपद की सितारगंज तहसील को चुना गया है।तहसील के अधिकांश ग्रामों में थारू जनजाति की बहुलता है। शोध का विषय इस तहसील जनजातीय महाविद्यालयी विद्यार्थियों में जागरूकता से सम्बन्धित है। शोध कार्य में प्राथमिक तथ्यों पर अधिक ध्यान दिया जायेगा तथा यथा सम्भव द्वितीयक स्रोतों द्वारा प्राप्त तथ्यों का प्रयोग भी किया जायेगा। प्राथमिक प्रत्यक्ष तथ्य संकलन हेतु जनपद की सितारगंज तहसील के लगभग सभी जनजातीय युवाओं साक्षात्कार किया जायेगा सितारगंज तहसील के जिन जिन ग्रामों में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं उन सभी का सर्वेक्षण किया जायेगा और इनमें रहने वाले 18 से 35 वर्ष की आयु के युवा युवतियों का साक्षात्कार किया जायेगा। जनजातीय (थारू) युवक युवतियों के साथ-साथ लगभग उतनी ही संख्या में सामान्य वर्ग के युवक युवतियों का साक्षात्कार भी किया जायेगा ताकि जनजातीय तथा सामान्य युवाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। वर्तमान में थारु बाहुल्य ग्रामों में सामान्य वर्ग के विभिन्न समुदायों जैसे पंजाबी, बंगाली, कुमाऊँनी, गढ़वाली तथा पूर्वाचली (भोजपुरी) के लोगो निवास कर रहे हैं अतः सामान्य वर्ग के युवाओं के साथ-साथ जनजातीय युवाओं का तुल्नात्मक अध्ययन करना अनिवार्य व सार्थक प्रतीत होता है साक्षात्कार हेतु साक्षात्कार अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग किया जायेगा। सर्वेक्षण के दौरान अन्य तकनीकीय यंत्रों जैसे मोबाइल, कैमरा, , वाइस रिकार्डर आदि का प्रयोग भी किया जायेगा।द्वितीयक स्रोतों के रूप में विषय से सम्बन्धित अब तक हुए शोध कार्यों,प्रकाशित पुस्तकों, सरकारी अभिलेखों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का प्रयोग किया जायेगा। प्राथमिक स्रोतों से संकलित तथ्यों का वर्गीकरण कर सारणीबद्ध किया जायेगा तथा उनका तार्किक व अन्वेषणात्मक विश्लेषण किया जायेगा तथ्यों के विश्लेषण में सांख्यिकीय पद्धतियों तथा चित्रमय प्रदर्शन की सहायता ली जायेगी। धारणाओं की पुष्टि तुलनात्मक व्याख्या तथा पूर्व में विकसित धारणाओं के प्रस्तुतीकरण हेतु द्वितीय से प्राप्त प्रयोग किया जाना भी द्वितीयको की सहायता ली जायेगी करने प्रकारकये जायेंगे भारत नेपाल ने किया प्रकार के सम्बन्ध और समानताएं हैं तथा अन्तर
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शोध कार्य की रूपरेखा (Methodology)
हेतु यह रचना ही अधिक उपयुक्त रहेगी।
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Duration of the Proposed work
2years= 24 months
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शोधकार्य की वार्षिक योजना
(Year-wise Plan of Work and Targets to be Achieve)
प्रथम वर्ष
01-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण व तथ्य संकलन करना।
02-तीन माह
संकलित तथ्यों का वर्गीकरण तथा रिपोर्ट तैयार करना और उद्देश्य संख्या एक को पूर्ण करना किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।
03-तीन माह
शोध क्षेत्र का पुनः सर्वेक्षण तथा तथ्य संकलन करना।
04-तीन माह
संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण से उद्देश्य संख्या दो तथा तीन को प्राप्त करना और निकाले गये निष्कर्षो को प्रकाशित कराना।
द्वितीय वर्ष
01-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन करना।
02-तीन माह
संकलित तथ्यों के वर्गीकरण व विश्लेषण द्वारा उद्देश्य संख्या चार की प्राप्ति करना तथा किए गये कार्य को प्रकाशित कराना।
03-तीन माह
शोध क्षेत्र का सर्वेक्षण कर तथ्य संकलन तथा पूर्व में हो चुके शोध कार्यों और विषय सम्बन्धी उपलब्ध प्रकाशित व अपंकाशित सामग्री की सहायता से उद्देश्य संख्या पाँच की प्राप्ति करना तथा शोध कार्य क प्रकाशित करना।
अंतिम तीन माह
समस्त शोध कार्य की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को प्रेषित करना।
सहायता
(सहयोग)
1.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुम्बई
2. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणासी
3.कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
4.उत्तरांचल प्रशासन अकादमी नैनीताल
5.जी०बी० पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर
6. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली
7. आई०सी०एस०एस०आर० नई दिल्ली