साहित्य संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। साहित्य समाज का दर्पण है। संस्कृति से हमारी सांस्कृतिक पहचान पैदा होती है। साहित्य समाज सापेक्ष होता है। भौगोलिकता, सामाजिकता, प्रादेशिकता आदि का साहित्य में विशेष प्रभाव निहित होता है। फिल्मे, टेलीविजन, विविध माध्यमों में साहित्य का दृश्य स्वरूप प्राप्त होता है। समाज की वास्तविकता का रूपायन साहित्य के द्वारा होता है। वेदकालीन साहित्य, बौद्ध व जैनकालीन साहित्य, भक्त्तिकालीन साहित्य, ब्रिटिशकालीन साहित्य तथा आधुनिक कालीन साहित्य में कई साहित्यकारो का योगदान प्राप्त हुआ है। उन्होंने अपने साहित्य में अपने समय के समाज की स्वच्छता को प्रतिबिंबित किया है। प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में स्वच्छता के चित्र अंकित किये हैं।