Tuesday, March 24, 2020

धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं...राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं"

25 मार्च  दिन  बुधवार


ॐ जयन्ती मंगला काली
भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री
स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः

सबकी रक्षा करना माँ.

आप सभी को चैत्र नवरात्र की मंगल कामनाएँ...

भव्य राम मंदिर के निर्माण का पहला चरण आज सम्पन्न हुआ....
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम त्रिपाल से नए आसन पर विराजमान...मानस भवन के पास एक अस्थायी ढांचे में 'रामलला' की मूर्ति को स्थानांतरित किया गया।
जय श्री राम



जय श्री राम....
     जय योगी आदित्यनाथ जी...

एक यात्रा


 नाथ संप्रदाय को बांध रही हो अघोर संप्रदाय और बाबा और बाबा योगी आदित्यनाथ जिस नाथ संप्रदाय से आते हैं ।जैसे ही सुना की योगी यूपी के मुख्यमंत्री बने वैसे ही मन के किसी कोने में यह गीत बज गया......

वन्दे मातरम्! सुजलां सुफलां मलयज शीतलां शस्यश्यामलां मातरम्....

(.आनन्द मठ के लेखक बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला भाषा का एक उपन्यास की रचना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्यायने १८८२ में की थी।..आनंदमठ राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के. सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है....)

धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं...राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं" ---धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं .....और राजनीति से बड़ाकोई धर्म नहीं" की आवाज मन के किसी कोने से आयी..... क्योंकि जो शख्स देश के सबसे बड़े सूबे यूपी का मुखिया बना है ।वह गोरक्ष पीठ से निकला है। शिव के अवतार महायोगी गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर स्थापित मंदिर से निकला है।


 नाथ संप्रदाय का विश्वप्रसिद्द गोरक्षनाथ मंदिर से निकला है। जो हिंदू धर्म,दर्शन,अध्यात्म और साधना के लिये विभिन्नसंप्रदायों और मत-मतांतरों में नाथ संप्रदाय का प्रमुख स्थान है । और हिन्दुओं के आस्था के इस प्रमुख केन्द्र यानी गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वरमहतं आदित्यनाथ जब देश के सबसेबडे सूबे यूपी के सीएम हैं, ।जो आज का सच है.....धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं...राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं" एक बात और याद आ रही है..आज के"संतो में राजनीतिज्ञ धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं...राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं"और राजनीतिज्ञो में संत उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्रीमान योगी जी सनातनधर्म की जिस धारा के पीठाधीश्वर हैं/उसके आदि पुरूष भगवान दत्त हैं ।जो सप्त ऋषि मंडल के ऋषि अत्रि और माता अनुसूइया के पुत्र होने के कारण दत्त के साथ अत्रि समाविष्ट हुआ और " भगवान दत्तात्रेय " के नाम से संस्थापित हुए ।कालांतर में इस धारा के दो भाग हुए ।हिमाली और गिरनारी ।हिमाली शाखा के आदि पुरूष बाबा गोरख नाथ और केंद्र हुआ उनके नाम पर गोरखपुर ।इस धारा में अधीश्वर के नाम के साथ अन्त में नाथ शब्द लग जाता है ।बाबा गोरख नाथ के गुरू मछन्दर नाथ और उनके पहले बाबा जालन्धर नाथ ।जैसे अन्तिम दो (वर्तमान योगी जी से पहले)महथं द्विग विजय नाथमहथं अवैद्य नाथ ।***************भगवान दत्तात्रेय की दूसरी धारा गिरनारी का केन्द्र वाराणसी और सर्वत्रपरम आदरणीय बाबा कीनाराम और अघोरेश्वर महाप्रभु अवधूत भगवान राम । 




  

Saturday, March 21, 2020

मोहनदास करमचंद गांधी

2/10/....

*मोहनदास करमचंद गांधी  के 150 साल ..

भोजपुरी में  और मेरे मन में गाँधी ...

पहिले सुना -सोहर...
https://youtu.be/BNd-PUhd0Vw

फिर बतकही…..

भोजपुरी का यह गीत भी बहुत मशहूर हुआ, जिसके बोल थे...

मोरे चरखा के टूटे न तार, चरखवा चालू रहे. गान्ही बाबा बनलै दुलहवा, अरे दुल्हिन बनी सरकार, चरखवा चालू रहे...." 

शादी विवाह के मौके पर सुना था  तब गांधी चरखे से उठ के नोट पर आ गए थे.. यह प्रतीक था या कुछ और खैर....

आज बापू का 150 वा जन्म दिन है। विश्व में फैले उनके करोड़ों प्रशंसकों और समर्थकों की भाँति ,जिनमें एक मैं भी शामिल हूँ ।

आज के दिन को आत्म मंथन का दिन मानता हूं
गाँधी का होना आप इससे जान सकते हो की
 
1- #आइन्स्टाइन ( E=mc2 )ने यह कहा था कि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ बमुश्किल यह विश्वास कर पायेंगी कि हाड़ माँस का एक ऐसा आदमी कभी इस धरती पर चलता फिरता था।

2-अमेरिकी अश्वेत नेता मार्टिन #लूथर किंग जूनियर यह कहा करते थे कि दुनियाँ के बाक़ी लोगों के लिए भारत पर्यटन स्थल की भाँति होगा परन्तु मेरे लिए यह एक तीर्थाटन के समान है क्योंकि यह महात्मा गांधी की जन्मस्थली है।
   
हम सामान्य व्यक्तियों का जन्मदिन मनाते हैं परन्तु महापुरुषों की जयन्ती मनाते हैं। जो बात इन #महापुरुषों को सामान्य लोगों से अलग करती है वह है वर्तमान और भविष्य की संधिरेखा या क्षितिज के पार दूर तक देख सकने की इनकी असाधारण क्षमता ,इनकी भविष्य दृष्टि -
जिस समय कार्ल मार्क्स पूँजी और श्रम के मूल द्वन्द से जूझ रहा था ,

 गांधी भारत में पूँजी और श्रम का मेल करा रहे थे।

सिग्मंड #फ्रायड जिस समय मानव जीवन की गति में सेक्स की भूमिका का अध्ययन कर रहे थे, गांधी अपने आश्रम में सेक्स का दमन-शमन कर इस उद्दाम ऊर्जा के सार्थक चैनेलाइजेशन का सफल प्रयोग कर रहे थे।

गांधी दक्षिण अफ़्रीका तथा भारत में विभेदकारी नस्लवाद के विरुद्ध अहिंसक क्रान्ति की हुंकार भरते हुए ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिला रहे थे।

 जिस समय पश्चिम के राष्ट्र औपनिवेशिक लूट से अपना घर भर रहे थे ,भारत में गांधी अपने #ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के माध्यम से राष्ट्रीय पूँजी के responsible व्यावहारिक सदुपयोग की अपनी thesis को अमली जामा पहना रहे थे ।

लोक जीवन में गांधी
गांधी अपने जीवन काल में ही भोजन में नमक की तरह हो गये थे ।#नमक सत्याग्रह से । भारतीय लोकजीवन मे लोक नेें गाँधी को उनके जीवन काल में ही एक अवतार मान लिया गया। #चंपारण में भी लोगों ने उनको उसी रूप में देखा.।उनको एक उद्धारक के रूप में माना गया. इसलिए उनके जीवन काल में ही उनकी मूर्तियां बनीं और वे लोक गीत का भी हिस्सा बने। वे जन जन के नायक बने। गाँधी #बुद्ध के राजनीतिक अवतार थे। वे अपने नैतिक बल से अबला के तारणहार के रूप में अवतरित हुए। यही कारण था कि वे जन मानस के गीत-संगीत में भी ढलें। अभी भारत मे मुन्ना भाई एमबीबीएस जैसी पिक्चर ही बनी और गांधीकरण  शुरू हुआ जिसे आमजन  #गांधीगिरी  कहने लगे।

गांधी अपने समकालीन विचारकों, चिन्तकों, दार्शनिकों से मीलों आगे थे।
   जहाँ तक भारत का प्रश्न है देश
 के सर्वांगीण विकास के जितने भी समकालीन विमर्श हैं सब के सब अन्तत: “ #गांधीचौक “ पर ही मिलते हैं। 
  गांधी #कबीर ही नहीं थे ।  वह जनमानस के दुखती रग को जानते थे । वह बस विचार ही नहीं करते थे बल्कि उस पर कार्य करते थे। डरबन से लेकर चंपारण तक आजादी के जश्न को छोड़कर नौखली में अपने आप को समर्पित कर देने वाले शख्स महात्मा राष्ट्रपिता ही हो सकता है ।#राष्ट्रपिता कहने वाले प्रथम व्यक्ति सुभाष चंद्र बोस थे ।जो गांधी की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखते थे। लेकिन उन्होंने उद्घोष किया और राष्ट्रपिता कहा।जो भोजपुरी समाज का #बापू...है...
यही वो शक्स था जिसने गिरिमिटिया लोगों को अपनी भाषा को जीवित रखने की सीख दी।यही राम से जोड़ा जिससे गिरिमिटिया राम को व अपनी भाषा को नही भूला पाये।
आज भी इन्ही गिरिमिटिया की पीढ़ी अपनी जमीन तलाशने आती हैं। उत्तर प्रदेश व बिहार के लोग पहले पहले कलकत्ता आते फिर यही से सात समुद्र पार कर जाते और गिरिमिटिया बन जाते ।इसलिए  बिहार व पूर्वांचल में विदेसिया मशहूर हुआ और
आपने भोजपुरी का एक गीत #रेलिया #बैरन #पिया को लिए जाए रे .....जरूर सुना होगा.... 
https://youtu.be/axCA_LJIRsk
उसी वक्त गांधी से जुड़ा यह गीत भी लोगों की जुबान पर था...
 '#कातब चरखा, सजन तुहु कात, मिलही एहि से #सुरजवा न हो, पिया मत जा पुरूबवा के देसवा न हो
https://youtu.be/icj7WlZ4Mqk

 इस गीत में आमतौर पर मज़दूरों की महिलाओं के स्वर को प्रतिध्वनित किया गया,। उस समय जब मज़दूर पूरब देस यानी कोलकाता,  कमाने जाते थे तो उनकी पत्नियां मना करती थीं कि परदेस क्या करने जाना है...घर में ही रहकर चरखा चलाओ, हम भी चलाएंगे, गांधीजी कह रहे हैं कि इससे कमाई भी होगी, #सुराज भी आएगा."।

लेकिन समय के साथ लोकभाषाओं के ये गीत #लोकस्मृति  में था। गांधी की वेशभूषा आज नंगा #फकीरीपन भारतीय लोगों का अपनाकरण था इसीलिए गांधी आमजन के करीब हमेशा महसूस होते हैं । वह लोकगीतों में मिल जाते हैं।जैसे गीत #कातब सू्त्  र हब पिया अलगे....* भी  गांधी के चरखे से  जुड़ा था ।
चरखे से गांधी ने आत्मबल आत्मसम्मान और अपना देसी पन के विचार का विकास किया व $स्वदेशी की रूपरेखा तय की चरखा प्रतीक था। अपने स्वालंबन का अपने संस्कार का अपने श्रम पर गर्व करने का।
पर आज चरखा गायब है। गांधी ही वह कसौटी का पत्थर हैं जिससे भारतीय मनीषा आज तक नीतियों और आदर्शों की वैधानिकता का परीक्षण करती आई है। अगर मनुष्यता को प्रगति करनी है तो गांधी का कोई विकल्प नहीं है।
  
                       नमन